Thursday, April 25, 2024

प्रधानमंत्री की भाषा: सोच और मानसिकता का स्तर

धरती पर भाषा और लिपियां सभ्यता के प्राचीन आविष्कारों में से एक है। भाषा का विकास दरअसल सभ्यता का भी विकास है, संस्कृति का भी विकास है। भाषाएं एक दिन में नहीं...

ग्राउंड रिपोर्ट: तपती गर्मी में खारे पानी की सज़ा

बीकानेर, राजस्थान। "जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है गांव में पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। जो स्रोत उपलब्ध हैं उसमें इतना खारा पानी आता है कि हम लोगों...

अडानी की कंपनियों में 12 विदेशी फंड निवेशकों ने डिस्क्लोजर...

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पाया है कि अडानी समूह की कंपनियों में निवेश करने वाले 12 ऑफशोर फंड प्रकटीकरण नियमों का उल्लंघन कर रहे थे और निवेश सीमा...

झूठी ख़बर फैलाने में गोदी मीडिया दुनिया में पहले...

लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के‌ बाद पराजय की आशंका से ग्रस्त होकर प्रधानमंत्री एक‌ बार फिर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ नफ़रती झूठी ख़बरें...

स्मृति शेष: सत्यजीत राय- वह जीनियस फ़िल्मकार जिसने पहली...

सत्यजित राय देश के ऐसे फ़िल्मकार हैं, जिनकी पहली ही फ़िल्म से उन्हें एक दुनियावी शिनाख़्त और बेशुमार शोहरत मिली। दुनिया भर में धूम मचाने...

सूरत चुनाव: मोदी राज में लोकतंत्र की सीरत और वन...

   सूरत में जो हादसा हुआ है वह किसी भी सभी समाज और परिपक्व लोकतंत्र पर एक बदसूरत धब्बा है – इसलिए यह सिर्फ सूरत का...

रामदेव को फिर सुप्रीम फटकार, मेडिकल अराजकता पर SC...

मेडिकल अराजकता पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए जहां बाबा रामदेव को आज फिर फटकार लगायी वहीं सुनवाई के दौरान गुमराह करने वाले...

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

कहर साबित हुई उत्तराखंड में बेमौसम बारिश

अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन और तबाही, जलवायु परिवर्तन के लक्षण साफ हैं। पर हम जलवायु-परिवर्तन को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, बड़े-बड़े समाधान के बारे में सोचते हैं, लेकिन उसके...

बेचैन करती है जलवायु परिवर्तन पर यूएन की...

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट बेचैन करने वाली है। इस रिपोर्ट ने पहली बार जलवायु परिवर्तन के लिए मानवीय गतिविधियों को ‘असंदिग्ध’रूप...

जंगलों और पारिस्थितिकी के लिए खतरे की घंटी...

हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन संरक्षण अधिनियम 1980 में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर प्रकाशित मसौदा दस्तावेज पर हिमाचल प्रदेश के विभिन्न पर्यावरणवादियों और...

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की...

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।

स्मृति शेष : जन कलाकार बलराज साहनी

अपनी लाजवाब अदाकारी और समाजी—सियासी सरोकारों के लिए जाने—पहचाने जाने वाले बलराज साहनी सांस्कृतिक...

राजपूतों का देशव्यापी विरोध बीजेपी के लिए बन गया है गले की हड्डी

अहमदाबाद। चुनाव जीतने के लिए भाजपा की व्यूह रचना हर एक स्टेट में अलग होती है जिसमें गुजरात हमेशा से प्रयोगशाला बना हुआ है। गुजरात में जो स्ट्रैट्जी काम कर जाती है उसे दूसरे स्टेट में भी भाजपा...