Friday, March 29, 2024

अहमदाबाद जगन्नाथ रथयात्रा का कौमी सौहार्द का इतिहास

कलीम सिद्दीक़ी

अहमदाबाद। “हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैयालाल की” के नारों के साथ अहमदाबाद में 141वीं भगवान्  जगन्नाथ की रथयात्रा का शनिवार को समापन हो गया। पुरी के अलावा कोलकाता और अहमदाबाद  दो ऐसे शहर हैं जहां  पर हर वर्ष जगन्नाथ रथयात्रा बड़े ही धूम-धाम से निकली जाती है। पिछले 141 वर्ष से लगातर अहमदाबाद के जमालपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर से यह यात्रा निकाली जाती रही है। 14 किलोमीटर दूर स्थित सरसपुर मामा के घर से शाम 6 बजे वापस जमालपुर लौट जाती है। आज से साढ़े चार वर्ष पूर्व साधु सारंगदास जी ने इस मंदिर की स्थापना की थी। जमालपुर मुस्लिम बहुल इलाका है। मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने मामा के घर जाते हैं, मिष्ठान और महाभोज कर लौट आते हैं। इसी परंपरा को दिखाती यह यात्रा हर वर्ष निकाली जाती है।रथयात्रा के दौरान कानून -व्यवस्था बनी रहे यह पुलिस के लिए चुनौती और प्राथिमिकता होती है।

अच्छी बात यह है पिछले पंद्रह-बीस वर्षों से यात्रा के समय कोई दंगा नहीं हुआ है। बल्कि कौमी सौहार्द के साथ बड़े ही धूम -धाम से यात्रा निकाली जाती है। एक समय था जब यात्रा अहमदाबाद के मुस्लिम बहुल क्षेत्र दरियापुर से गुज़रती थी तब कुछ न कुछ होता ही था। 1985 में रथयात्रा जैसे ही प्रेम दरवाज़ा होते हुए लिमडी चौक पहुंची तो रथ में बैठे कुछ शरारती तत्व मुस्लिम विरोधी नारे लगाने लगे जैसे जय रणछोर मियां चोर, मियां की मां ….आदि नारे मुसलमानों को भड़काने के लिए काफी होते थे। श्रद्धालुओं को सही सलामत निकालने के लिए पुलिस को गोलियां चलानी पड़ती थी।

1985 में रथयात्रा को सही सलामत निकालने के लिए गोली चलाई गई थी जिसमें 3 मुस्लिमों की मृत्यु हुई थी। 1985 में कांग्रेस सत्ता में थी आलमजेब और लतीफ़ जैसे बुट्लेगरों का दौर भी था इसलिए कानून व्यवस्था ख़राब होने पर ज़िम्मेदार मुस्लिमों को बना दिया जाता था। इस घटना के बाद पुलिस और मुस्लिम आगेवान ने रथयात्रा को सुरक्षित निकलने के लिए जनता कर्फ्यू लगाना शुरू किया। यह जनता कर्फ्यू अघोषित कर्फ्यू होता था।

दरियापुर शाहपुर इलाके से रथयात्रा से पहले लाउड स्पीकर में जनता कर्फ्यू की घोषणा की जाती थी और मुसलमानों को कहा जाता था कि रथयात्रा दरियापुर से गुजरने वाली है, सभी मुसलमान अपने घरों में चले जाएं, खिड़की और दरवाज़े बंद कर लें उस समय कांग्रेस सत्ता में थी इसलिए जनता कर्फ्यू लगाने की ज़िम्म्मेदारी भी लोकल मुस्लिम नेताओं की होती थी। मुस्लिम सुरक्षा मुहाज के मोहम्मद हुसैन बरेजिया ने कई बार इस प्रकार के कर्फ्यू का विरोध भी किया फिर भी 8 वर्ष तक जनता कर्फ्यू की नौटंकी चलती रही। इस जनता कर्फ्यू से केवल एक भय का वातावरण खड़ा हुआ। यात्रा के समय कुछ न कुछ हो ही जाता था।

1992 में यात्रा के समय ही दंगा हुआ और मिलिट्री को गोली चलानी पड़ी जिसमे मौके पर ही तीन लोगों की मौत हो गई थी ।1947 में पहली बार रथ यात्रा के समय दंगा हुआ था। देश की आज़ादी से कुछ दिन पहले ही रथयात्रा का आयोजन हुआ था।

अहमदाबाद में रथयात्रा के दौरान कौमी एकता

यात्रा में कई अखाड़े भी चलते हैं। यात्रा में एक महाराज एक भारी पत्थर लेकर चल रहे थे। महाराज का दावा था इस पत्थर में दैवीय शक्ति है इसे कोई नहीं उठा सकता है। महाराज की चुनौती को स्वीकार करते हुए कालूपुर के असलम पहलवान ने पत्थर को उठा दिया, एक बार नहीं कई बार उठाया जिससे महाराज नाराज़ हो गए कहासुनी बढ़ी तो झगड़ा दो समुदाय का हो गया। लेकिन अंग्रजी शासन में इसे कंट्रोल कर लिया गया।

कांग्रेस के समय में मुस्लिम नेता जनता कर्फ्यू लगते थे। भाजपा के शासन में यही मुस्लिम कांग्रेसी नेता रथयात्रा को कौमी सौहार्द का प्रतीक मानते हैं,रथयात्रा के स्वागत में पड़ापड़ी करते हैं, भगवान जगन्नाथ की आरती उतारते हैं, जगन्नाथ के महंत का स्वागत जाली वाली मस्जिद के मोमेंटो से करते हैं। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में महिलाएं और बच्चे सड़क के किनारे से हाथ हिलाकर अपनी खुशी जाहिर करते हैं।

ऐसे बदलाव पर दरियापुर तंबू चौकी के पास किराना स्टोर चलाने वाले अज़ीज़ भाई गांधी बताते हैं, “जनता ने खुद फैसला ले लिया है कि अब रथयात्रा में किसी प्रकार से कानून- व्यवस्था को नहीं तोड़ेंगे, क्रेडिट आम जनता को जाता है, साथ ही शांति समिति और पुलिस के चौकन्नेपन को भी क्रेडिट देते हैं।”  गांधी का मानना है कि पिछले समय में हुए दंगों के लिए हिन्दू-मुस्लिम दोनों ज़िम्मेदार हैं। दोनों तरफ से कुछ हरकतें ऐसी हो जाती थी जिस कारण दंगे भड़क जाते हैं। आप को बता दें 75 वर्षीय अज़ीज़ गांधी ही वह व्यक्ति हैं जो अपने गले में लाउड स्पीकर पहन कर जनता कर्फ्यू लगाते थे। कानून व्यवस्था बनी रहे इसके लिए 1975 से पुलिस का सहयोग करते आए हैं।दरियापुर के नागीनावाड के बाबूलाल सय्यद बताते हैं कि दंगे न होने का कुछ और ही कारण बताते हैं। सय्यद के अनुसार कांग्रेस के समय एक तरफ़ा मुस्लिमों को दबाया जाता था और उन्हें ही ज़िम्मेदार माना जाता था।

पिछले बीस बाईस वर्ष से पुलिस और प्रशासन ने काम करने का तरीका बदला है। पुलिस यात्रा में शामिल सभी वाहन का रिकॉर्ड रखती है। हर वाहन में पुलिस के लोग रहते हैं। ट्रक में बैठने वालों में 5-6 लोगों के पहचान पत्र अपने पास रखती है। यात्रा से पहले पुलिस उन्हें आगाह करती है यदि इस ट्रक से कुछ हुआ तो उसकी ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी। जिस कारण मुस्लिम विरोधी नारे लगने बंद हो गए। रथ यात्रा से सप्ताह भर पहले पूरे शहर में शराब की बिक्री पर सख्ती के साथ रोक लगा देती है। दारू पीकर यात्रा में आने वाले ही उलटे सीधे नारे लगाते थे। जिससे मुस्लिम समुदाय भड़कता था। मुसलमानों को नागा साधुओं से भी आपत्ति थी तो पुलिस खुद मुस्लिम इलाकों में यात्रा पहुंचने पर साधुओं को अपनी तरफ से धोती पहना देती है। यदि कोई साधु पहनने के लिए राज़ी नहीं होता है तो उसे पुलिस बंद गाड़ी में बिठाकर मुस्लिम मोहल्ला पास करा देती है। 

अहमदाबाद में आयोजित रथयात्रा में राज्य के मुख्यमंत्री विजय रुपानी, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने भगवान् जगन्नाथ का आशीर्वाद लिया। विपक्षी दल नेता परेश धनानी और कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख अमित चावड़ा ने भी यात्रा में शामिल होकर आशीर्वाद लिया।

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