Review
पहला पन्ना
धर्मग्रंथों की समीक्षा का ऐलान कर क्या दिखाना और क्या छिपाना चाहते हैं, मोहन भागवत
‘जाति भगवान ने नहीं, पंडितों ने बनाई है’ जैसे बयान के बाद इत उत खड़ा हुआ तूमार अभी थम भी नहीं पाया था कि आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत एक नयी थीसिस लेकर आ गए हैं। इस बार उनके...
उर्मिलेश की कलम से
एकाकीपन के सौ वर्षः गार्सीया मार्केस की महान् कृति
उर्मिलेश -
कोलम्बिया के नोबेल विजेता उपन्यासकार-पत्रकार गाब्रिएल गार्सीया मार्केस का वन हंड्रेड इयर्स आॉफ सॉलिट्यूड एक विश्व-प्रसिद्ध उपन्यास है, जो सिर्फ एक बेस्टसेलर ही नहीं रहा, दुनिया की अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद भी हुए। पहली बार स्पेनिश में यह...
संस्कृति-समाज
आधे सफर का हमसफरः वे कहानियां जिन्हें प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए था
Janchowk -
‘लोग इन कहानियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। सच कहूं तो ये मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रही हैं। ये वे कहानियां हैं जिन्हें प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए था।’ शहादत की कहानियों को लेकर उक्त टिप्पणी दिल्ली यूनिवर्सिटी के...
बीच बहस
बाबा साहेब के गहरे वैचारिक पक्षों को सामने लाती है ‘….आंबेडकर एक जीवनी’
डॉ. भीम राव आंबेडकर के व्यक्तित्व और उनके अवदान को लेकर भारत के बौद्धिक वर्ग में आम तौर पर दो तरह का नजरिया देखने को मिलता है। पहला उनकी उपेक्षा करता है और उन पर बात ही नहीं करना...
संस्कृति-समाज
कोरोना काल में मेहनतकशों की त्रासदी का जिंदा दस्तावेज है ‘1232 किमी’
गुलज़ार साहब की कुछ चंद लाइनों से शुरू हुई ये किताब आपको इन लाइनों से ही किताब का सार समझा देती है। इसके बाद 'द हिन्दू' के पूर्व प्रधान संपादक एन. राम ने प्रधानमंत्री द्वारा पहले लॉकडाउन की घोषणा...
संस्कृति-समाज
किताब समीक्षा: प्रगतिशील आंदोलन पर गंभीर चर्चा करने वाली किताब है ‘तरक़्क़ीपसंद तहरीक की रहगुज़र’
Janchowk -
जाने-माने लेखक, समीक्षक और समकालीन समस्याओं पर समान रूप से कलम चलाने वाले पत्रकार जाहिद खान की हाल ही में आई किताब 'तरक़्क़ीपसंद तहरीक की रहगुज़र' प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े साहित्यकारों, रंगकर्मियों और कलाकारों के रचनात्मक योगदान, तत्कालीन सामाजिक,...
संस्कृति-समाज
खोई हुई परंपरा को सामने लाना स्त्रीवादी आलोचना की जिम्मेदारी
Janchowk -
हिंदी साहित्य का इतिहास लिखे जाने के क्रम में महिला साहित्यकारों और उनके साहित्य की कई तरह से अनदेखी होती रही। जाहिर है, संसाधनों और समाज पर हमेशा से पुरुषों का वर्चस्व रहा है, इसलिए बाकी क्षेत्रों में भी...
संस्कृति-समाज
किताब समीक्षा: कविता की जनपक्षधरता पर शैलेंद्र चौहान की नज़र
शैलेंद्र चौहान बुनियादी तौर पर कवि हैं उन्होंने कुछ कहानियां और एक उपन्यास भी लिखा है। लघु पत्रिका ‘धरती’ का एक लंबे अंतराल तक संपादन भी किया है। आलोचनात्मक आलेख और किताबों की समीक्षा गाहे-बगाहे लिखते रहे हैं। आठवें दशक से...
लेखक
पूंजी की सभ्यता-समीक्षा के कवि मुक्तिबोध
मुक्तिबोध गहन संवेदनात्मक वैचारिकी के कवि हैं। उनके सृजन-कर्म का केंद्रीय कथ्य है-सभ्यता-समीक्षा। न केवल कवितायें बल्कि उनकी कहानियां, डायरियां, समीक्षायें तथा टिप्पणियां सार रूप में सभ्यता समीक्षा की ही विविध विधायें हैं, वह जो उपन्यास लिखना चाहते थे,...
बीच बहस
आलोचना पत्रिका के बहानेः बाजार और जंगल के नियम में कोई फर्क नहीं होता!
पांच दिन पहले ‘आलोचना’ पत्रिका का 62वां (अक्तूबर-दिसंबर 2019) अंक मिला। कोई विशेषांक नहीं, एक सामान्य अंक। आज के काल में जब पत्रिकाओं के विशेषांकों का अर्थ होता है कोरा पिष्टपेषण, एक अधकचरी संपादित किताब, तब किसी भी साहित्यिक...
Latest News
आइये, मोदी सरकार संग बेरोज़गारी दूर करें: तीन पोस्ट, तीनों हैरतअंगेज़ भरी!
फेसबुक पर मोदी-नेतृत्व के भाजपा सत्ता प्रतिष्ठान के चरित्र से जुड़ी तीन पोस्टों पर नज़र पड़ी। तीनों ही बेहद...
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