Thursday, March 28, 2024

खतरे में हैं भारत के बड़े शहर

नई दिल्ली। एक तरफ देश के बड़े शहर अब भी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं वहीं दूसरी तरफ ग्रीनपीस द्वारा जारी नाइट्रोजन डायआक्सायड (NO2) के सैटलायट डाटा के विश्लेषण में यह सामने आया है कि ज्यादा घनत्व वाले वाहन और औद्योगिक क्षेत्र ही देश के सबसे ख़राब नाइट्रोजन आक्सायड हॉटस्पॉट हैं।

ट्रॉपॉस्फेरिक मॉनिटरिंग इंस्ट्रूमेंट (TROPOMI) के पहले 16 महीने के (फ़रवरी 18 से मई 19 तक) नाइट्रोजन डायआक्सायड सैटलायट डाटा से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बंगलुरू, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहर जहां वाहन संख्या अधिक है, सबसे अधिक प्रदूषित हाट्स्पाट हैं। इसी तरह कोयला और औद्योगिक क्षेत्र जैसे मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश का सिंगरौली-सोनभद्र, छत्तीसगढ़ में कोरबा, ओडिशा में तलचर, महाराष्ट्र में चंद्रपुर, गुजरात में मुंद्रा और पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर भी नाइट्रोजन आक्सायड उत्सर्जन के मामले में उतने ही प्रदूषित हैं।

ग्रीनपीस इंडिया के सीनियर कैम्पेनर पुज़ारिनी सेन कहती हैं, “पिछले कुछ सालों में कई अध्ययन आ चुके हैं जिनसे साबित होता है कि पीएम 2.5, नाइट्रोजन आक्सायड और ओज़ोन का लोगों के स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ता है। ये बहुत ख़तरनाक वायु प्रदूषक है जिसकी वजह से हृदय और सांस सम्बंधी बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है और लंबे समय तक संपर्क में रहने की वजह से हृदयाघात और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है।”

नाइट्रोजन डायआक्सायड एक ख़तरनाक प्रदूषक है और दो सबसे ख़तरनाक प्रदूषक ओज़ोन तथा पीएम 2.5 के बनने में योगदान देता है। एक अनुमान के मुताबिक वायु प्रदूषण (बाहरी पीएम 2.5, घरेलू और ओजोन वायु प्रदूषण मिलाकर) से साल 2017 में दुनिया में 34 लाख लोगों की मौत हुई। वहीं भारत में यह संख्या 12 लाख था। पीएम 2.5 अकेले भारत में साल 2017 में करीब 6.7 लाख लोगों की मौत की वजह बना।

2015 में आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर दिल्ली के 300 किमी क्षेत्र में स्थित पावर प्लांट से 90% नाईट्रोजन ऑक्साइड में कमी की जाती है तो इससे 45% नाइट्रेट को घटाया जा सकता है। इससे दिल्ली में पीएम10 और पीएम2.5 क्रमशः 37 माइक्रोग्राम/घनमीटर और 23 माइक्रोग्राम/घनमीटर तक घटाया जा सकता है। अगर इस घटाव को हासिल किया जाता है तो वायु प्रदूषण से निपटने में महत्वपूर्ण पड़ाव बनेगा क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीएम 2.5 का सलाना औसत 10 माइक्रोग्राम/घनमीटर होना चाहिए और भारतीय मानक के अनुसार यह 40 माइक्रोग्राम/घनमीटर होना चाहिए। 

इस साल के शुरुआत में ग्रीनपीस द्वारा जारी वायु प्रदूषण सिटी रैंकिंग रिपोर्ट में यह सामने आया था कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 15 भारतीय शहर शामिल हैं। जनवरी 2019 में ग्रीनपीस के एयरोप्किल्पिस 3 में भी यह सामने आया कि देश के 241 शहर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते हैं।

पुजारिनी ने सरकार और प्रदूषक उद्योगों को तुरंत मजबूत और तत्काल कदम उठाने की मांग करते हुए कहा, “नाइट्रोजन ऑक्साइड के सभी स्रोत जैसे परिवहन, उद्योग, उर्जा उत्पादन आदि पर स्वास्थ्य आपातकाल की तरह निपटना चाहिए। वायु प्रदूषकों के अध्य्यन का इस्तेमाल करके अलग-अलग सेक्टर के लिये लक्ष्य निर्धारित करके, अयोग्य शहरों की सूची को अपडेट करके, तथा शहरों के हिसाब से लक्ष्य निर्धारित करके उसे राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्य योजना में शामिल करना चाहिए। पावर प्लांट और उद्योगों के लिये उत्सर्जन मानकों को लागू करना चाहिए और उद्योगों और ऊर्जा क्षेत्र को स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की जरुरत है। यह समझना चाहिए कि जितनी देर हो रही है, हम उतनी जिन्दगियां खो रहे हैँ।”

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