Friday, March 29, 2024

सोफिया दिलीप सिंह: एक क्रांतिकारी सिख ‘राजकुमारी’                               

राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह को कौन नहीं जानता? बतौर ‘राजकुमारी’ नहीं बल्कि भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने जुनून के साथ-साथ महिलाओं के लिए ब्रिटेन में ‘नो वोट नो टैक्स’ की क्रांतिकारी मुहिम चलाकर प्रताड़ित होने वालीं; शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की पोती कभी अंग्रेज साम्राज्य के लिए जबरदस्त मुसीबत का सबब बनीं थीं और अब यूके सरकार उन्हें अति सम्मानित ‘ब्लू प्लैक’ से (मरणोपरांत) नवाजने जा रही है।

ब्लू प्लैक का प्रतीकात्मक रूप नीली पट्टिका है। यह नीली पट्टिका एक महल के पास उस बड़े घर के मुख्य द्वार पर स्थापित की जाएगी जो 1896 में तत्कालीन महारानी विक्टोरिया ने उन्हें और उनकी बहनों को रहने के लिए दिया था। ब्लू प्लैक इतिहास में दर्ज विभूतियों से वाबस्ता विशेष इमारतों के ऐतिहासिक महत्त्व को अति सम्मानित दर्जा देने तथा उन्हें संरक्षित करने के लिए इंग्लिश हेरिटेज चैरिटी द्वारा संचालित किया जाता है।

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राजकुमारी सोफिया बहनों के साथ

2023 के लिए राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह का चयन किया गया है। इसकी घोषणा करते हुए इंग्लिश हेरिटेज ने कहा कि, “रानी विक्टोरिया की धर्मबेटी और अपदस्थ महाराजा दिलीप सिंह की वंशज राजकुमारी सोफिया एक बड़ी क्रांतिकारी आंदोलनकर्ता थीं। उन्होंने महिलाओं के मताधिकार के लिए बहुत बड़ी भूमिका अदा की। इसलिए उन्हें ब्लू प्लैक (नीली पट्टिका) दी जा रही है। उनके पास पहले ही लंदन के होलेंड पार्क में एक पट्टिका है।”

भारतीय मूल की ब्रिटिश लेखिका अनीता आनंद ने सोफिया दलीप सिंह पर एक चर्चित किताब, ‘सोफिया: प्रिंसेस, सफ्रागेट, रिवॉल्यूशनरी’ लिखी है। इस सम्मान के घोषणा के साथ ही आनंद की पहली प्रतिक्रिया थी कि राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह को आखिरकार वह पहचान मिल गई, जिसकी वह हकदार हैं।

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ब्रिटिश लेखिका अनीता आनंद की किताब

अठारहवीं शताब्दी में सिख साम्राज्य ढह गया था। 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद रानी विक्टोरिया ने उनके बेटे दिलीप सिंह को अपने अधीन कर लिया था। अंग्रेजी हुकूमत के पैरोकार जबरदस्ती उन्हें ब्रिटेन ले गए और मजबूर किया कि वह ईसाई धर्म अपना लें। महाराजा दिलीप सिंह अपना राज वापस चाहते थे और इसके लिए उन्होंने फिर सिख धर्म अपना लिया। अंग्रेजों ने इस दिशा में की गई उनकी हर कोशिश को हर हथकंडा इस्तेमाल करके विफल कर दिया।

महाराजा रणजीत सिंह की पोती और महाराजा दिलीप सिंह की बेटी सोफिया का जन्म 1876 में हुआ था। वह दिलीप सिंह की पहली पत्नी की सबसे छोटी बेटी थीं। अपने महान पिता रणजीत सिंह का साम्राज्य वापस हासिल करने की कवायद में दिलीप सिंह कई बार भारत आए लेकिन आखिरकार ब्रिटिश सरकार के आदेशानुसार उन्हें 30 मार्च 1886 में एडेन में गिरफ्तार करके बंधक बना लिया गया। यह गिरफ्तारी सिख साम्राज्य के पतन का आखिरी अध्याय थी। इसके बाद महाराजा दिलीप सिंह कभी अपनी मातृभूमि हिंदुस्तान नहीं जा पाए। शराब, अफीम और गहरा अवसाद उनकी मौत का कारण बने। रानी विक्टोरिया दिलीप सिंह की बेटी सोफिया को बहुत पसंद करती थीं और उन्होंने उन्हें हैंपटन कोर्ट में एक घर ले दिया।

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लेखिका अनीता आनंद

दिलीप सिंह की मौत के बाद सोफिया ने 1903 में दिल्ली दरबार में हिस्सेदारी की, जहां उनके वंशजों के महान साम्राज्य को एडवर्ड वीआईआई को सौंपा जा रहा था। एडवर्ड के महाराजा दिलीप सिंह से गहरे परिवारिक संबंध थे। राजकुमारी सोफिया को शिद्दत से एहसास हुआ कि वह और उनका परिवार उन्हीं लोगों से शिकस्त खा गया है जिन्हें वे अपना गहरा दोस्त और शुभचिंतक मानते थे। ठीक तभी उनके मन-मस्तिष्क में अपने पूर्वजों की मिसालें कायम रखने की लौ रोशन हुई।

सन 1907 राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह के लिए अहम वक्त था। वह स्वदेशी आंदोलन के नेता लाला लाजपत राय और अन्य क्रांतिकारियों से खूब प्रभावित हुईं। आजादी के लिए लड़ी जा रही अहिंसक लड़ाई को उन्होंने करीब से देखा यह भी खुली आंखों से देखा कि हिंदुस्तान में किस कदर गरीबी और असमानत है। जान की परवाह किए बगैर लोग ‘स्वतंत्रता’ के लिए संघर्षरत हैं। ठीक उसी दौर में बंबा डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए जर्मन गईं और वहां उन्हें इस कानून के आधार पर एडमिशन नहीं दिया गया कि जर्मन में महिलाओं को इस पढ़ाई की आजादी नहीं है। इस प्रकरण की छाप भी राजकुमारी सोफिया के दिलो-दिमाग में घर कर गई।

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महाराजा दिलीप सिंह

साल 1909 में राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह महिला अधिकारों के लिए सक्रिय काम करने लगीं। महिला मताधिकार के लिए संघर्षशील एम्मेलिन ने उनका चयन महिला कर (टैक्स) प्रतिरोध लीग के एक प्रमुख सदस्य के रूप में किया। सोफिया बतौर ‘राजकुमारी’ खुशहाल जिंदगी जी सकती थीं लेकिन हिंदुस्तान की दशा और ब्रिटिश हुक्मरानों का रवैया उन्हें परिवर्तन की ओर ले गया। नीतीजतन राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने जुनून के साथ-साथ महिलाओं के मतदान के अधिकार के लिए संघर्ष अथवा आंदोलन में बेशकीमती योगदान दिया। उन्होंने इसकी अगुवाई तक की। इतिहास उन्हें इसी रूप में जानता है। अब और ज्यादा जानेगा। सन 1918 में उन्होंने भारतीय सैनिकों के लिए एक ध्वज दिवस की शुरुआत के लिए भी आंदोलन चलाया और इसमें वह सफल रहीं।

राजकुमारी सोफिया ने ईस्ट एंड के एशियाई नाविकों, महिलाओं के विकास, हिंदुस्तान की आजादी और 1914 में हुए प्रथम विश्व युद्ध के पश्चिम मोर्चे पर घायल हुए भारतीय सैनिकों के लिए अहम काम किया। सिख सैनिकों को एकबारगी यकीन नहीं हो रहा था कि महान महाराजा रणजीत सिंह की पोती नर्स की वर्दी में उनके बिस्तर के सिरहाने बैठीं हैं। उन्होंने भारतीय सैनिकों के लिए धन भी जुटाया। वह दिन भी आया, जब कहा गया कि महारानी विक्टोरिया की ‘गॉड-डॉटर’ एक बड़े और दक्ष आंदोलनकारी में तब्दील हो गईं हैं।

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नर्स के रूप में राजकुमारी सोफिया

ज्ञात इतिहास के मुताबिक मताधिकारवादी अखबार ‘द वोट’ ने अपनी विशेष संपादकीय टिप्पणी में लिखा कि नारीवादी आंदोलन युवा भारत की आकांक्षाओं से सीधे तौर पर वाबस्ता है और सोफिया इनका नेतृत्व कर रही हैं। अध्यक्ष के रूप में राजकुमारी सोफिया दिलीप सिंह ने मताधिकार फैलोशिप की अगुवाई भी की, जब 21 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को पुरुषों के बराबर संपत्ति और वोट का अधिकार दिया गया था।

वह सिख रीति-रिवाजों को मानतीं थीं। तब तक लिखे जा चुके सिख इतिहास का और खास तौर पर अपने दादा महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य की अवधारणा का सूक्ष्म अध्ययन किया था। हिंदुस्तान और अपने दादा की विरासत से उन्हें बेपनाह मोहब्बत थीं। लाहौर और अमृतसर को वह अपना मक्का मानतीं थीं। यही वजह थी कि मौत से पहले उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि उनका अंतिम संस्कार सिख रीति-रवाजों से किया जाए और उनकी अस्थियां हिंदुस्तान में प्रवाहित की जाएं। 12 अगस्त साल 1948 को सोफिया दिलीप सिंह की मौत नींद में ही हो गई। उनके साथ इतिहास के बेशुमार शानदार पन्ने जुड़े हुए हैं, जो महाराजा रणजीत सिंह की शान में इजाफा करते हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट।)

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