Friday, March 29, 2024

आज के हिंदुस्तान में युगद्रष्टा पंडित नेहरू की यादें  

ब्रिटिश हुक्मरानी की दासता से भारत की राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए लड़ने के कारण बरसों कारागार में बंद रखे गए अप्रतिम संग्रामी और 15 अगस्त, 1947 को हासिल आजादी के उपरांत देश के प्रथम प्रधानमन्त्री बने जवाहरलाल नेहरू की आज 27 मई को पुण्य तिथि है। इसी दिन 1964 में नई दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में उनका निधन हुआ था, जो तब प्रधानमंत्री का राजकीय आवास था। भारत के 14 वें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब इसे प्रधानमंत्री संग्रहालय में बदल दिया है। आज के दिन जवाहरलाल नेहरू को याद करना सभी भारतीयों के लिए स्वाभाविक है। उनका जन्म 14 नवम्बर  1889  को इलाहाबाद (अब प्रयाग राज) में बहुत ही धनी बैरिस्टर और मूलत: कश्मीरी पण्डित मोतीलाल नेहरू (1861–1931) के घर आनंद भवन में हुआ था जो स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रहे। उनकी माता, स्वरूपरानी (1868–1938) लाहौर के कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थीं और मोतीलाल नेहरू की दूसरी पत्नी थीं। उनकी पहली पत्नी की प्रसव के दौरान मृत्यु हो गई थी।  

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस और अन्य पार्टियों द्वारा छेड़े स्वतन्त्रता आन्दोलन में पंडित नेहरू अगुआ नेता के रूप में उभरे और उन्होंने अपने निधन तक देश में शासन किया। वे उत्तर आधुनिक भारत में  समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणतन्त्र व्यवस्था कायम करने के वास्तुकार माने जाते हैं। मूलत: कश्मीरी पण्डित समुदाय के होने के कारण ही उन्हें पण्डित नेहरू कहा जाता है। हिंदुस्तान के बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में याद करते हैं। उनमें हम भी शामिल हैं।

व्यक्तिगत

हमें याद है उस दिन हम बिहार के सहरसा जिला मुख्यालय के शहर में ईसाइयों के मिशन कब्रगाह के पास एक खाली मैदान में खेल रहे थे। चाचा नेहरू के निधन की खबर मिलते ही हम सबने खेलना बंद कर दिया। कुछ रोने लगे। हमारे पिता ने वहां आकर सबको चुप कराया। बाद में वह सभी बच्चे साथ लेकर सहरसा जिला कलेक्टर कार्यालय के पास बने हवाई अड्डा मैदान ले गए जहां नेहरू की अस्थियां एक कलश में भर कर लाई गई थीं। इस तरह के कलश हिंदुस्तान के हर जिला मुख्यालय पर लाई गई थी। मेरे पिता ने बताया था कि बाद में उन सभी कलश में रखी अस्थियाँ हवाई जहाज से हिंदुस्तान की खेतों में छिड़क दिए गए। मेरे पिता जिला कलेक्टर कार्यालय में चुनाव विभाग के अधिकारी थे।

प्रधानमन्त्री कौन बने

स्वतन्त्र भारत का प्रथम प्रधानमन्त्री कौन होगा ये सवाल 1941 में सुलझ गया था जब गांधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को ही उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। आजादी हासिल होने के बाद 26 जनवरी 1950  को भारत का संविधान लागू हुआ तो नेहरू जी ने देश में बहुदलीय राजनीतिक और व्यापक सामाजिक सुधारों की ही नहीं बल्कि आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए योजना आयोग बनाकर पंच-वर्षीय योजनाओं की शुरुआत की। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित कर देश में कृषि और उद्योग के नए युग का सूत्रपात किया।

गुट निरपेक्ष आन्दोलन

उन्होंने भारत को विश्व नायकत्व की राह पर लाकर युगोस्लाविया के जोसिप बरोज़ टीटो और मिस्र के अब्दुल गमाल नासिर के साथ मिलकर अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के दबावों से स्वतंत्र निर्गुट यानि गुट निरपेक्ष आन्दोलन शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई। निर्गुट आंदोलन ने कोरियाई युद्ध का अंत करने, स्वेज नहर विवाद सुलझाने, पश्चिम बर्लिन, ऑस्ट्रिया, लाओस और कांगो समझौते को मूर्तरूप देने जैसे अनेक मुद्दों के समाधान में भूमिका निभाई। अमेरिकी षड्यन्त्र के तहत सोवियत संघ में मिखाइल गोरबाचेव के शासन काल में राष्ट्रीयता के पेचीदा सवाल पर उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए और जो रूस और यूक्रेन कभी साथ थे आज कई माह से युद्धरत हैं। ऐसे में नेहरू द्वारा शुरू किये गए निर्गुट आंदोलन की याद आनी स्वाभाविक है।

चुनाव

नेहरू के नेतृत्व में  कांग्रेस ने 1951 में स्वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में ही नहीं लोकसभा के 1957 और फिर 1962 के भी चुनाव में लगातार जीत दर्ज की। 1962 के भारत-चीन युद्ध में उनके नेतृत्व की कड़ी आलोचना भी हुई। नेहरू, पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं ला सके। पाकिस्तान से समझौते में कश्मीर का मुद्दा भारी पड़ गया। चीन से मैत्री में सीमा विवाद आड़े आ गया। 1962 में चीन ने भारत पर सैन्य आक्रमण कर दिया। नेहरू के लिए यह एक बड़ा झटका था। कुछ लोग कहते हैं इसी चिंता से उन्हें 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई।

शिक्षा

मोतीलाल नेहरू के तीन बच्चों में से जवाहरलाल उनकी बड़ी बहन, विजया लक्ष्मी पंडित, छोटी बहन, कृष्णा हठीसिंग थीं। विजया लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी थीं। कृष्णा हठीसिंग लेखिका थीं, जिन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। जवाहरलाल नेहरू ने 1890 के दशक में स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज (लंदन) से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। वह इंग्लैंड में सात बरस रहे जिसके दौरान वह फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद की विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने 1912 में भारत लौट कर वकालत शुरू की। उनका 1916 में कमला नेहरू से विवाह हुआ। वह 1917 में होम रुल लीग में शामिल हो गए। उनकी वास्तविक राजनीतिक दीक्षा 1919 में महात्मा गांधी के संपर्क में आने पर हुई। तब गांधी जी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ अभियान शुरू किया था।

खादी

महात्मा गांधी के शांतिपूर्ण,  सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति आकर्षित होने के बाद नेहरू ने अपने परिवार को भी गांधीवादी जीवन में ढाल लिया। उन्होंने और उनके पिता ने भी पश्चिमी परिधान त्याग कर खादी कुर्ता और गांधी टोपी धारण कर लिया। जवाहरलाल नेहरू ने 1920 से 1922 के दौरान गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। उस दौरान वह पहली बार गिरफ्तार किए गए। पर कुछ माह के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। नेहरू 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने उस रूप में दो वर्ष तक सेवा की। ब्रिटिश अधिकारियों से सहयोग नहीं मिलने के कारण उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। वह 1926 से 1928 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव रहे। 1928-29  के कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ। उसमें जवाहरलाल नेहरू और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के गरम दल ने पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया। मोतीलाल नेहरू और अन्य नेताओं के नरम दल ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ही प्रभुत्व सम्पन्न राज्य का दर्जा पाने की मांग का समर्थन किया।

मुद्दे को हल करने गांधी जी ने बीच का रास्ता निकाल कहा कि ब्रिटेन को भारत के राज्य का दर्जा देने के लिए दो साल का समय दिया जाए और यदि ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष शुरू करे। गरम दल ने कहा कि इस मोहलत को कम कर सिर्फ एक बरस कर दिया जाए। ब्रिटिश हुकूमत ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दिसम्बर 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू पार्टी अध्यक्ष चुने गए। और इसी मौके पर उन्होंने तिरंगा फहराया। इसी दौरान एक प्रस्ताव पारित कर ‘पूर्ण स्वराज्य’ की मांग की गई। फिर गांधी जी ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। जब ब्रिटिश सरकार ने 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट  लागू किया तो कांग्रेस ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। नेहरू खुद चुनाव प्रत्याशी नहीं बने पर उन्होंने पार्टी के लिए देश भर में प्रचार किया। कांग्रेस लगभग हर प्रांत में चुनाव जीत कर प्रांतीय सत्ता में आ गई। कांग्रेस ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नेहरू 1936 और 1937 में चुने गए। उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर 1945 में छोड़ दिया गया।

1947 में भारत को आजादी हासिल होने पर जब भावी प्रधानमन्त्री के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार वल्लभ भाई पटेल को सर्वाधिक मत मिले। उसके बाद सबसे ज्यादा वोट आचार्य जेबी कृपलानी को मिले थे। गांधी जी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमन्त्री बनाया गया। 1947 में हिंदुस्तान की आजादी के समय अंग्रेजों ने करीब 500  देशी रजवाड़ों को स्वतंत्र घोषित कर नेहरू जी के लिए बड़ी समस्या पैदा कर दी उन्होंने सरदार पटेलके साथ मिलकरभारत के पुनर्गठन के रास्ते में उभरी चुनौती का समझदारी से सामना किया। नेहरू ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभायी। नेहरू जी को 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

किताबें  

नेहरू जी की मूलत: अंग्रेजी में लिखी डिस्कवरी ऑफ इंडिया पुस्तक का हिंदी में भारत एक खोज और हिंदुस्तान की कहानी शीर्षक से अनुवाद हुआ है। इसी पुस्तक के आधार पर फिल्मकार श्याम बेनेगल ने दूरदर्शन के लिए भारत एक खोज नाम से धारावाहिक बनाया। भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के मुताबिक नेहरू की आत्मकथा ऐन ऑटो बायोग्राफी में उनके जीवन की श्रेष्ठता का बखान करने के बजाय जीवन संघर्ष वर्णित है। इसलिए ये हमारे युग की सबसे ज्यादा उल्लेखनीय पुस्तकों में शामिल है। नेहरू जी ने अनगिनत व्याख्यान दिये, लेख और पत्र लिखे। इनके प्रकाशन के लिए ‘जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि’ ने एक ग्रंथ-माला प्रकाशित की है जिनमें सरकारी चिट्ठियों, विज्ञप्तियों आदि को छोड़ स्थायी महत्त्व की पाठ्य सामग्री है।

जवाहरलाल नेहरू वांग्मय नामक इस ग्रंथ माला का प्रकाशन अंग्रेजी में 15 खंडों में हुआ और इसे हिंदी में सस्ता साहित्य मंडल ने 11 खंडों में छापा है। नेहरू ने व्यस्त और संघर्षपूर्ण राजनीतिक जीवन के बावजूद कई पुस्तकें लिखीं जो अधिकतर कारावास में लिखी गयी हैं। उनके लेखन में ऐतिहासिक प्रामाणिकता तो है ही, गजब की साहित्यिक कल्पनाशीलता भी है। इंदिरा गांधी को काल्पनिक पत्र लिखने के बहाने उन्होंने विश्व इतिहास लिख डाला। ये पत्र वास्तव में कभी नहीं भेजे गये। बहरहाल, आज के हिंदुस्तान में अधिकतर लोगों को जवाहरलाल नेहरू की बहुत याद आती है। गोपाल दास नीरज ने उनके निधन के बाद एक गीत लिखा था जो निम्नवत है।

मौत कितने रंग बदले

ढंग बदले

तर्ज़ बदले

जब तलक ज़िंदा कलम है

हम तुम्हें मरने ना देंगे..

हम तुम्हें मरने ना देंगे

खो दिया हमने तुम्हें तो

पास अपने क्या रहेगा

कौन फिर बारूद से

सन्देश चन्दन का कहेगा

हर किसी की आँख नम है

हम तुम्हें मरने ना देंगे

जब तलक ज़िंदा कलम है

हम तुम्हें मरने ना देंगे

तुम गए तबसे ना सोई

एक पल गंगा तुम्हारी

फिर ना निकली बाग़ से

हँसते गुलाबों की सवारी रे

मृत्यु तो नूतन जनम है

हम तुम्हें मरने ना देंगे

(सीपी नाम से चर्चित पत्रकार,यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से दिसंबर 2017 में रिटायर होने के बाद बिहार के अपने गांव में खेतीबाड़ी करने और स्कूल चलाने के अलावा स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।)

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