Friday, March 29, 2024

जयंती पर विशेष: वर्तमान में नहीं रही प्रेमचंद युग की पत्रकारिता

वाराणसी। प्रेमचंद जी कहते हैं कि समाज में ज़िन्दा रहने में जितनी कठिनाइयों का सामना लोग करेंगे उतना ही वहां गुनाह होगा। अगर समाज में लोग खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज़्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। प्रेमचन्द ने शोषित वर्ग के लोगों को उठाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने आवाज़ लगाई ‘ए लोगों जब तुम्हें संसार में रहना है तो जिन्दों की तरह रहो, मुर्दों की तरह ज़िन्दा रहने से क्या फ़ायदा ?’ मसलन, पत्रकारिता नई पीढ़ी के लिए एक चुनौती है। आज प्रेमचंद के युग की पत्रकारिता नहीं रही, वर्तमान में पत्रकारिता के कई आयाम हैं। हमें समरस समाज को गढ़ने की जरूरत है। प्रेमचंद ने अपनी कथा, कहानी और नाटकों के माध्यम से समाज में एक नया आयाम स्थापित किया है। उन्होंने समाज के निचले तबके की व्यथाओं को सलीके के साथ हम सबके सामने रखा है।

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के केन्द्रीय पुस्तकालय सभागार में शनिवार को पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने ‘प्रेमचंद : अध्यापक और पत्रकार’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए उक्त बातें कहीं। मुख्य अतिथि हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. गजेन्द्र पाठक ने कहा कि हिंदी साहित्य में जो बहुत सरल होता है, उसके पीछे एक बड़ी साधना होती है। कठिन होना आसान है लेकिन सरल होना बहुत कठिन है। साथ ही उन्होंने मध्यकालीन और आधुनिक युग की तुलना त्रिवेणी का उदाहरण दिया। 

प्रेमचंद को पढ़ने से पहले आप समझिए कि उन्होंने लिखा क्यों? 

मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित लमही गांव में 31 जुलाई, 1880 को हुआ था। आकाशवाणी के केंद्रीय निदेशक राजेश गौतम ने कहा कि प्रेमचंद विद्यापीठ में अध्यापक रहे और आप प्रेमचंद की पीढ़ी से हैं तो अपने सोच को ऐसा बनाएं की आपसे प्रदर्शित हो कि आप कहां से हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद को पढ़ने से पहले आप समझिए कि उन्होंने लिखा क्यों? विशिष्ट वक्ता डॉ. वंदना मिश्र ने कहा कि टूटे-फूटे शब्द महाकाव्य से भी बड़े होते हैं। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में मानव मन को बहुत सूक्ष्म तरीके से समाहित किया है। प्रेमचंद विरोध का समर्थन करते हैं। उन्होंने पत्रकार और शिक्षक के रूप में बहुत चुनौतियों को झेला। प्रेमचंद समानता स्वाधीनता का संतुलन बनाते हुए चलते थे। संगोष्ठी के प्रतिभागी सत्र में छात्र-छात्राओं ने अपने शोध पत्र पढ़े।

जाति-धर्म और आर्थिक विषमता की गाठों को तोड़ना चाहते थे मुंशी प्रेमचंद्र 

विमर्श के पहले दिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो प्रणय कृष्ण ने मुशी प्रेमचंद के कलम का सिपाही की कुछ पंक्तियों को पढ़कर सुनाया। साथ ही एक अध्यापक और पत्रकार के रूप में प्रेमचंद की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने प्रेमचंद के जीवन की कुछ घटनाओं का भी जिक्र किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बलिराज पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद जातिधर्म और आर्थिक विषमता की गाठों को तोड़ना चाहते थे। पोस्ट मास्टर जनरल वाराणसी परिक्षेत्र कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद एक अध्यापक, पत्रकार, साहित्यकार के साथ ही आदर्शोन्मुखी व्यक्तित्व के धनी थे। एक पत्रकार को कभी भी पक्षकार नहीं होना चाहिए, उसे अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का समाज के अंतिम व्यक्ति से विशेष अनुग्रह था और समाज की विसंगतियों पर उनकी कलम हमेशा चला करती थी। उनकी कहानी, उपन्यासों और पटकथाओं में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार होता था।

प्रेमचंद जी गांधीमार्गी थे, अंधभक्त नहीं

हिंदी विभाग के शोध छात्र गजेंद्र यादव ने अपना शोध पत्र पढ़ते हुए बताया कि प्रजा में राजनीतिक चेतना लाना भारत का पहला कर्तव्य है। प्रेमचंद गांधीमार्गी थे, लेकिन अंधभक्त नहीं थे। सूरज चौबे ने प्रेमचंद के पत्रकारिता के वर्तमान परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के युग में प्रेमचंद की पत्रकारिता जन सरोकार से जुड़ी है। आयुषी तिवारी ने प्रेमचंद की रचनाओं का सार प्रस्तुत किया। जया ने बताया कि प्रेमचंद जाति धर्म संप्रदाय से ऊपर उठकर लिखे, और स्वतंत्रता आंदोलन में एक समर्थ पत्रकार बन कर सामने आए। रोशन कुमार ने कहा कि प्रेमचंद देश और राजनीति के आगे चलने वाले मशाल थे। विजय आनंद ने प्रेमचंद का लोक विषय पर वक्तव्य दिया। संचालन रविनंदन सिंह और धन्यवाद ज्ञापन  केपी गौडर ने किया। रपट पत्र अंकित कुमार सिंह ने पढ़ा। उन्होंने कहा कि अध्यापक प्रेमचंद और पत्रकार प्रेमचंद का संबंध विद्यापीठ से रहा है।

सदैव सामाजिक कुरीतियां और समसामयिक लेखनी के केंद्र में रहे 

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र के प्रभारी सुभाष चन्द्र यादव ने कहा कि प्रेमचंद न सिर्फ एक साहित्यकार बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे। विषय प्रवर्तन करते हुए काशी विद्यापीठ हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने कहा कि शिक्षक असाधारण होता है। प्रेमचन्द एक असाधारण शिक्षक थे। प्रेमचंद के बहुत सारे आयाम हैं, जिस पर प्रकाश डालने की जरूरत है। प्रेमचंद को केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि अध्यापक के रूप में भी उनकी जीवनी को पढ़ा जाना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो अनुराग कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने कभी भी अपनी लेखनी से समझौता नहीं किया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और समसामयिक मुद्दों को अपनी लेखनी के केन्द्र में रखा।

दो दिवसीय संगोष्ठी में डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ राजमुनि, डॉ रामाश्रय सिंह, प्रो नीरज खरे, डॉ. रविनन्दन, डॉ आर एस चौहान, डॉ. अनुकूल चन्द्र राय, डॉ. केवी गौंडर, डॉ. केके सिंह, डॉ श्रीराम त्रिपाठी, डॉ. रविन्द्र पाठक, डॉ जिनेश कुमार, प्रो. निरंजन सहाय, डॉ. रविन्द्र पाठक, शिवशंकर यादव, शोध छात्र दीपक यादव, नन्दलाल, मनीष, जन्मेजय, हनुमान, अंकित, अभिषेक, शिवशंकर, अमित, प्रियंका, ऋतु, वरुणा, आयुषी तिवारी, सूरज चौबे, जया, धन्याश्री, सौम्या, अश्वनी, रोशन, शशिकांत, देवेन्द्र गिरि सहित शोध छात्र व अन्य रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रीति एवं डॉ. विजय रंजन ने किया। 

(वाराणसी से पीके मौर्य की रिपोर्ट।) 

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