Thursday, March 28, 2024

भोपाल विलीनीकरण आंदोलन: जब चार युवाओं ने सीने पर गोली खा ली लेकिन नहीं गिरने दिया तिरंगा

15 अगस्त, 1947 को देश तो आजाद हो गया था। मार्च 1948 में भोपाल नवाब हमीदुल्लाह ने रियासत को स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी। मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का एक मंत्रिमंडल घोषित कर दिया। प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय बनाए गए थे।

इस बीच रायसेन से विलीनीकरण आंदोलन शुरू हो गया

भोपाल रियासत के भारत गणराज्य में विलय के लिए विलीनीकरण आंदोलन की रणनीति और गतिविधियों का मुख्य केंद्र रायसेन था।

14 जनवरी, 1949 को उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास के नर्मदा तट पर विलीनीकरण आंदोलन को लेकर विशाल सभा चल रही थी। सभा को चारों ओर से भारी पुलिस बल ने घेर रखा था। सभा में आने वालों के पास जो लाठियां और डंडे थे, उन्हें पुलिस ने रखवा लिया। विलीनीकरण आंदोलन के सभी बड़े नेताओं को पहले ही बंदी बना लिया गया था। बोरास में 14 जनवरी को तिरंगा झंडा फहराया जाना था। आंदोलन के सभी बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी को देखते हुए बैजनाथ गुप्ता आगे आए और उन्होंने तिरंगा झंडा फहराया। तिरंगा फहराते ही बोरास का नर्मदा तट भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारों से गूंज उठा।

पुलिस के मुखिया ने कहा जो विलीनीकरण के नारे लगाएगा, उसे गोलियों से भून दिया जाएगा। उस दरोगा की यह धमकी सुनते ही एक 16 साल का किशोर छोटे लाल हाथ में तिरंगा लेकर आगे आया और उसने भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारा लगाया। पुलिस ने छोटेलाल पर गोलियां चलाई और वह जमीन पर गिरता इससे पहले धनसिंह नामक युवक ने तिरंगा थाम लिया, धनसिंह पर भी गोलियां चलाई गईं, फिर मगलसिंह पर और विशाल सिंह पर गोलियां चलाई गईं, लेकिन किसी ने भी तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया। इस गोली काण्ड में कई लोग गम्भीर रूप से घायल हुए। बोरास में आयोजित विलीनीकरण आंदोलन की सभा में होशंगाबाद, सीहोर से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे।

बोरास में 16 जनवरी को शहीदों की विशाल शवयात्रा निकाली गई, जिसमें हजारों लोगों ने अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि के साथ विलीनीकरण आंदोलन के इन शहीदों को विदा किया। अंतिम विदाई के समय बोरास का नर्मदा तट शहीद अमर रहे और भारत माता की जय के नारों से गुंजायमान हो उठा।

भोपाल में चल रहे बवाल पर आजाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सख्त रवैया अपना लिया। बोरास के गोली काण्ड की सूचना सरदार वल्लभ भाई पटेल को मिलते ही उन्होंने बीपी मेनन को भोपाल भेजा था।

सरदार पटेल ने नवाब के पास संदेश भेजा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता है। भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। 29 जनवरी, 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सभी अधिकार अपने हाथ में ले लिए। इसके बाद भोपाल के अंदर ही विलीनीकरण के लिए विरोध-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। तीन माह तक जमकर आंदोलन हुआ।

जब नवाब हमीदुल्ला हर तरह से हार गए तो उन्होंने 30 अप्रैल, 1949 को विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद भोपाल रियासत 1 जून 1949 को भारत का हिस्सा बन गई। केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त चीफ कमिश्नर एनबी बैनर्जी ने भोपाल का कार्यभार संभाला और नवाब को 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स तय कर सत्ता के सभी अधिकार उनसे ले लिए।

इस तरह भोपाल रियासत का एक जून 1949 को भारत गणराज्य में विलय हुआ और भारत की आजादी के 659 दिन बाद भोपाल में तिरंगा झंडा फहाराया गया।

विलीनीकरण आंदोलन में 4 युवा हुए थे शहीद

भोपाल रियासत के विलीनीकरण में रायसेन जिले के ग्राम बोरास में 4 युवा शहीद हुए। यह चारों शहीद 30 साल से कम उम्र के थे।

1. धनसिंह आयु (25)

2. मंगलसिंह (30)

3. विशाल सिंह (25)

4. छोटेलाल (16)

इन शहीदों की स्मृति में रायसेन जिले की उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास में नर्मदा तट पर 14 जनवरी 1984 को शहीद स्मारक स्थापित किया गया है। नर्मदा के साथ-साथ बोरास का यह शहीद स्मारक भी उतना ही पावन और श्रद्धा का केंद्र है। प्रतिवर्ष यहां 14 जनवरी को विशाल मेला आयोजित किया जाता है।

हाल ही में विलीनीकरण आंदोलन को लेकर एक कंट्रोवर्सी शुरू हो गई है। खान शाकिर अली खान के भतीजे एडवोकेट शाहनवाज खान ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि विलीनीकरण आंदोलन नवाब भोपाल के खिलाफ नहीं था, बल्कि भोपाल स्टेट का किसी बड़ी स्टेट (यानी मध्यभारत) में विलय करने के लिए था।

(डॉ सुनीलम मूलूतापी के पूर्व विधायक और समाजवादी नेता हैं।)

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