Author: ईश मिश्रा

  • युवकधारा की खेती में सुरेश सलिल ने पैदा किए सैकड़ों लेखक-पत्रकार

    युवकधारा की खेती में सुरेश सलिल ने पैदा किए सैकड़ों लेखक-पत्रकार

    हिंदी, साहित्य और पत्रकारिता में अमूल्य योगदान करने वाले 19 जून, 1942 को जन्मे जनपक्षीय कवि, लेखक सुरेश सलिल 79 बसंत पार कर चुके हैं। 1980 के दशक के मध्य के वर्षों में युवकधारा में सलिल जी के संपादकत्व में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा (सीपी) उन्हें, आदि विद्रोही…

  • अब सामाजिक और आर्थिक अन्याय के विरुद्ध अलग-अलग संघर्षों का वक्त नहीं

    अब सामाजिक और आर्थिक अन्याय के विरुद्ध अलग-अलग संघर्षों का वक्त नहीं

    आज के हालात में जब दुनिया भर में राष्ट्रोनमादी, दक्षिणपंथी ताकतों की मुखरता आक्रामक है; भारत पर सांप्रदायिक फासीवाद के बादल मंडरा ही नहीं रहे हैं, किस्तों में बरस भी रहे हैं; प्रतिरोध की ताकतें खंडित-विखंडित हैं; जनपक्षीय ताकतें सैद्धांतिक और राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रही हैं; दलित-आदिवासियों के हिमायतियों को अर्बन नक्सल…

  • धर्म उत्पीड़ित की आह है, हृदयविहीन दुनिया का हृदय है: मार्क्स

    धर्म उत्पीड़ित की आह है, हृदयविहीन दुनिया का हृदय है: मार्क्स

    मार्क्सवाद समाज को समझने का विज्ञान और उसे बदलने का आह्वान है। समाज के हर पहलू पर इसकी सत्यापित स्पष्ट राय है, धर्म पर भी। ‘हेगेल के अधिकार के दर्शन की समीक्षा में एक योगदान’ में मार्क्स ने लिखा है “………धर्म की आलोचना सभी आलोचनाओं की पूर्व शर्त है।” उसी के आगे उसी ग्रंथ में…

  • स्पार्टाकसः गुलामों की सेना ने हिला दी थी रोम की चूलें

    स्पार्टाकसः गुलामों की सेना ने हिला दी थी रोम की चूलें

    हावर्ड फॉस्ट के कालजयी उपन्यास स्पार्टाकस का हिंदी अनुवाद अमृत राय ने आदिविद्रोही शीर्षक से किया है। मैं इस अनुवाद को मानक मानता हूं। अच्छा अनुवाद वह है जो मौलिक सा ही मौलिक लगे। यह दास प्रथा पर आधारित रोमन सभ्यता के विरुद्ध, ग्लौडिएटर स्पार्टाकस के नेतृत्व में प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व दास विद्रोह की…

  • राजा ने एक देश को कैसे किया तबाह

    राजा ने एक देश को कैसे किया तबाह

    एक राजा था। प्रजा उसे आराध्य सा पूजती थी। प्रजा खुशहाल तथा धन-धान्य से संपन्न थी। राज्य के अधिकारी ईमानदार थे तथा कर्तव्य परायण। भ्रष्टाचार या कामचोरी की कम-से-कम सजा मौत थी। 1-2 बार भेस बदल कर घूमते हुए कुछ गलत देखा तथा संबंधित लोगों को दंडित किया। लोगों में ख़ौफ था कि राजा किस…

  • आत्मालोचना है बौद्धिक विकास की आवश्यक शर्त

    आत्मालोचना है बौद्धिक विकास की आवश्यक शर्त

    यह अलग बात है कि धर्म परिवर्तन के बाद भी जातियां बनी रहीं, लेकिन इसमें लोभ किसने दिया? सांप्रदायिक दिमाग में तलवार या प्रलोभन से धर्म परिवर्तन के कुप्रचार का असर इस कदर बैठा हुआ है कि कोई-न-कोई कुतर्क ढूंढ लेंगे। पहली बात तलवार, भय या लोभ में धर्म परिवर्तन होता तो मुस्लिम सत्ता का…

  • मैकाले को भी मात दे देगी मोदी सरकार की नयी शिक्षा नीति

    मैकाले को भी मात दे देगी मोदी सरकार की नयी शिक्षा नीति

    “हर ऐतिहासिक युग में शासक वर्ग के विचार ही शासक विचार होते हैं, यानि समाज की भौतिक शक्तियों पर जिस वर्ग का शासन होता है, बौद्धिक शक्तियों पर भी वही बौद्धिक शक्ति पर भी शासन करता है। भौतिक उत्पादन के साधन जिस वर्ग नियंत्रण में होते हैं, बौद्धिक उत्पादन के साधनों पर भी उसी का…

  • ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’: ऐतिहासिक संदर्भ में नस्लवाद और दासता के मायने

    ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’: ऐतिहासिक संदर्भ में नस्लवाद और दासता के मायने

    (वर्चस्ववाद की बुनियाद के मौलिक तत्वों में से एक है श्रेष्ठतावाद, जो यह दावा करता है कि वही श्रेष्ठ है क्योंकि दुनिया को सभ्य बनाने की जवाबदेही उसकी है। इसके बदले वह विश्व पर अपनी हुकूमत करता है। इसी श्रेष्ठतावाद का एक तत्व नस्लवाद है। जाहिर तौर पर यह भारतीय सामाजिक व्यवस्था के संदर्भ में…

  • आपातकाल को भी मात देती मोदी सरकार की तानाशाही

    आपातकाल को भी मात देती मोदी सरकार की तानाशाही

    वेब अखबार जनचौक में छपी एक खबर के अनुसार, 2 दिन पहले आधी रात को वाराणसी में सीपीआई एमएल (लिबरेशन) के दफ्तर में बिना सर्च वारंट के छापा मारा गया। अर्बन नक्सल के नाम पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की धर-पकड़ दो  साल से जारी है। महामारी के संकट काल का फायदा उठाकर सांप्रदायिक नागरिकता (संशोधन) कानून…

  • भीड़ का कोई धर्म नहीं होता, न ही होती है कोई जाति और नस्ल

    भीड़ का कोई धर्म नहीं होता, न ही होती है कोई जाति और नस्ल

    मार्टिन नीम्वैलर (1892-1984) ने जर्मनी में नाज़ी शासन के अंतिम 7 साल यातना शिविरों में बिताए, वे पेशे से प्रोटेस्टेंट पादरी थे तथा प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मन नेवी में रह चुके थे। उनकी सुविदित पंक्तियां : पहले उन्होंने समाजवादियों को पकड़ा मैं चुप रहा, क्योंकि मैं समाजवादी नहीं था फिर उन्होंने ट्रेड यूनियन वालों को…