(सनातन संस्था को देश के कट्टरपंथी हिंदू संगठनों में शुमार किया जाता है। गौरी लंकेश, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे की हत्याओं में इस संगठन का नाम आया है। और इस मामले में उसके कई कार्यकर्ताओं और समर्थकों की गिरफ्तारी हुई है। इन सबके बावजूद ये संगठन अभी भी बाहर के लोगों के लिए एक रहस्य बना हुआ है। ईपीडब्ल्यू ने इसके पूरे इतिहास, विचारधारा और ढांचे पर एक लेख प्रकाशित किया है। अंग्रेजी में दिए गए इस लेख का जनचौक ने हिंदी में अनुवाद कर यहां किश्तों में देने का फैसला किया है। पेश है उसकी पहली किश्त-संपादक)
सनातन संस्था अकेला ऐसा हिंदू अतिवादी संगठन है जो आध्यात्म के प्रचार-प्रसार के साथ राज्य के खिलाफ युद्ध की घोषणा करता है। इसका लक्ष्य 2025 तक हिंदू राष्ट्र स्थापित करने का है। जिसके लिए सभी दुर्जनों को हटा देना उसकी पूर्व शर्त है। हिंदू राष्ट्र में बौद्धों, जैनियों, शैव और वैष्णवों, मुस्लिम और इसाई समुदाय की कोई जगह नहीं होगी। सनातन संस्था के पास अपना संविधान पहले से ही तैयार है जिसमें चुनाव, लोकतंत्र या किसी न्यायपालिका का कोई प्रावधान नहीं है। हां हिंदू धर्म को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा-व्यवस्था के प्रावधान की बात जरूर है।
सनातन संस्था एक बार फिर खबर में उस समय आयी जब टेरर प्लाट के लिए रेशनलिस्ट नरेंद्र दाभोलकर की हत्या में शामिल होने के लिए उसके कुछ फालोवरों और समर्थकों को गिरफ्तार किया गया। महाराष्ट्र के एटीएस ने सात ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जो सनातन संस्था के समर्थक थे। वैभव राउत, शरद कलास्कर और सुधनवा गोंधालकर को 10 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। इस कार्रवाई के दौरान नालासोपारा स्थित राउत के घर से पुलिस ने आग्नेय अस्त्र और हथियार बरामद किए थे। हिंदुत्व आतंकियों का नेटवर्क सनातन संस्था के साथ खत्म नहीं होता है।
राउत, कलास्कर और गोंधालकर के कबूलनामे पर 19 अगस्त को हिंदू जनजागृति समिति (एचजेएस) के साथ संपर्क रखने वाले शिवसेना के पूर्व पार्षद को भी गिरफ्तार किया गया था। हिंदू समूहों से संपर्क रखने वाले एक और संदिग्ध अविनाश पवार को भी उसी समय गिरफ्तार किया गया था। 18 अगस्त को दाभोलकार की हत्या में शूटर के तौर पर इस्तेमाल होने वाले और किए गए गिरफ्तार सचिन अंदुरे का भी हिंदुत्व समूहों से रिश्ता बताया जा रहा है। जर्नलिस्ट गौरी लंकेश की हत्या के मामले में जांच के बाद हुए खुलासे में ये बात सामने आय़ी कि सनातन संस्था और एचजेएस जैसे हिंदुत्व समूहों का बहुत लंबा-चौड़ा नेटवर्क है।
सनातन संस्था के दो सदस्यों वीरेंद्र तावड़े और समीर गायकवाड़ को 2016 में दाभोलकर और गोविंद पनसारे हत्याकांड मामले में गिरफ्तार किया गया था। तावड़े ईएनटी स्पेशलिस्ट है और उस पर दाभोलकर की हत्या करने की योजना में शामिल होने का केस दर्ज है। लेकिन बाद में गायकवाड़ जमानत पर छूट गया। अगर हम हिंदुत्व संगठनों के आतंकी गतविधियों से जुड़ी कुछ और घटनाओं को याद करें तो 2006 में नांदेड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक कार्यकर्ता के घर पर एक बम विस्फोट की घटना हुई थी। और उसी तरह की एक घटना उसी शहर में फरवरी 2007 में हुई थी जिसमें दो लोगों की मौत हो गयी थी।
2008 में मालेगांव धमाका होता है। साध्वी प्रज्ञा सिंह और श्रीकांत पुरोहित पर उसमें शामिल होने का आरोप लगता है। उसी साल ठाणे, वाशी और पनवेल के थियेटरों में कम तीव्रता के विस्फोट होते हैं। इन मामलों में रमेश गडकरी और विक्रम भावे नाम के दो दोषियों को 10 साल की सजा हुई थी। हाल में गडकरी को जो इस समय जमानत पर है सनातन संस्था ने सैंटहुड का खिताब दिया। सनातन संस्था का गोवा में हुए मारगो धमाके से भी रिश्ता था जिसमें खुद उसके ही दो सदस्यों की मौत हो गयी थी।
ये कुछ शुरुआती घटनाएं देश के पैमाने पर हिंदुत्ववादी आतंक के शांत तरीके से उभार के संकेत थीं। ऐसा लगता है कि सनातन संस्था जैसे संगठन न केवल आतंकी गतिविधियों का समर्थन करते हैं बल्कि उसमें भागीदारी के साथ ही उनकी फंडिंग भी करते रहे हैं। ये प्रभावकारी हिंदू बहुमत की आम धारणा का संकेत है। जांच एजेंसियां और केंद्र सरकार इस बात को मानने से हिचकते रहे हैं कि हिंदूवादी संगठन आतंकी गतिविधियों में शरीक हैं। उस समय इस एंगल को एक हद तक खारिज किया गया। गोवा और महाराष्ट्र सरकार 2008 से ही सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की बात करती रही हैं। लेकिन केंद्र को उससे संबंधित पर्याप्त पुख्ता आधार नहीं मिले।
ये कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार थी जिसने न तो ऐसे संगठनों पर शिकंजा कसा और न ही उनके फंडिंग के स्रोतों की जांच की। तब देश एक हद तक इस्लामिक टेरर के नरेटिव से सहमत था जिसे 1990 के दशक में उछाला गया था। बहुमत के लिए आतंक, बम विस्फोट और दंगे केवल मुसलमानों से जुड़े होते थे। इस्लामिक आतंक का ये अकेला विकल्प कई निर्दोष मुस्लिम युवाओं और उनके परिवारों की जिंदगियां को तबाह कर दिया। जिन्हें आतंक के केसों में झूठे तरीके से फंसाया गया था।
दूसरी तरफ सनातन संस्था को मिलने वाले राज्य के अदृश्य रक्षाकवच ने उसके लिए बूस्टर का काम किया। जिसने अपनी विचारधारा को आक्रामक ढंग से प्रचारित करने के क्रम में न्यूज चैनलों की बहस में हिस्सा लेना तक शुरू कर दिया। लेकिन मृत एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने मालेगांव धमाके की जांच के समय हिंदुत्ववादी आतंक के आपरेशन का पहली बार पर्दाफाश किया। जिसने भारत में आतंकी गतिविधियों के बारे में पूरे नरेटिव को बदल कर रख दिया।