नूपुर-नवीन पर एक्शन से भौंचक हैं कार्यकर्ता, विदेशी दबाव में आ गए मोदी?

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नूपुर और नवीन यानी दो ‘N’ की कारगुजारियों ने दुनिया में भारत की ऐसी दुर्गति करा दी कि तीसरे ‘N’ यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को समाधान लेकर आना पड़ा है। मगर, इससे पहले कुवैत, कतर समेत इस्लामिक वर्ल्ड ने भारत से नाराज़गी का खुलकर इज़हार किया और नाराज़गी भी भारतीय राजदूत को तलब करने जैसी पहल तक पहुंच चुकी थी। कतर में मौजूद उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू असहज हो गये। आखिरकार बीजेपी को दुनिया में देश का मान रखने के लिए नुपूर और नवीन पर अनुशासन का डंडा चलाना पड़ा।

भारत में मुसलमानों के विरोध की बीजेपी ने कभी परवाह नहीं की, मगर वैश्विक स्तर पर इस्लामिक वर्ल्ड की आपत्तियों को नजरअंदाज कर पाना मुश्किल था। भारत में बीजेपी के भीतर भी इस बात को लेकर बेचैनी है कि नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल पर बेहद सख्त कार्रवाई की गयी है। यहां तक कि इन नेताओं को अनुशासनात्मक कार्रवाई से पहले नोटिस देकर जवाब तक नहीं मांगा गया। एक तरह से न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत का भी बीजेपी ने उल्लंघन किया है तो इसके पीछे का दबाव छोटा दबाव कत्तई नहीं हो सकता।

20 साल बाद फिर जीवंत हुई अटल वाणी, ‘दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे’ 

दुनिया में इस्लामिक देशों के दबाव को समझना हो तो याद करें गुजरात का दंगा जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अहमदाबाद और अन्य दंगा प्रभावित इलाकों में पहुंचे थे। वहां उन्होंने कहा था कि हम कौन सा मुंह लेकर दुनिया के पास जाएंगे? हमारे कई मित्र देश हैं जहां मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं उन्हें हम क्या मुंह दिखाएंगे?

जब पत्रकारों ने पूछा कि मुख्यमंत्री के लिए भी आपका कोई संदेश है तो तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में उन्होंने कहा, “चीफ मिनिस्टर के लिए मेरा एक ही संदेश है कि वो राजधर्म का पालन करें…राजधर्म…ये शब्द काफी सार्थक है…मैं उसी का पालन कर रहा हूं, पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा प्रजा में भेद नहीं हो सकता… न जन्म के आधार पर न जाति के आधार पर न संप्रदाय के आधार पर… ”

(बीच में टोकते हुए मोदी बोले- हम भी वही कर रहे हैं साहेब।)

वाजपेयी : मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही कर रहे हैं… बहुत-बहुत धन्यवाद।

गुजरात दंगे के 20 साल बाद आज वैसी ही स्थिति पैदा हुई जब दुनिया के देशों के सामने हमारा मुंह दिखाना मुश्किल हो रहा था। तब सांप्रदायिक दंगा था तो अब पैगंबर मोहम्मद के लिए सत्ताधारी दल के  प्रवक्ता की गैर जिम्मेदाराना आपत्तिजनक टिप्पणी थी। तब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अटल बिहारी वाजपेयी थे, अब उनकी जगह नरेंद्र मोदी हैं। तब अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि नरेंद्र मोदी का इस्तीफा लिया जाए, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके क्योंकि कई तरह के अंदरूनी अंकुश थे। आज नरेंद्र मोदी बेहद ताकतवर हैं और उन्होंने अगर चाहा कि नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल का इस्तीफा लिया जाना चाहिए तो इसे रोकने वाला कोई नहीं। अब बात समझ में आ रही होगी कि क्यों किसी कार्यकर्ता को पार्टी से बाहर निकाले जाते वक्त उससे स्पष्टीकरण लेने की जरूरत भी नहीं समझी गयी?

बीजेपी के प्रवक्ता रातों रात शरारती तत्व हो गये!

नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल को बीजेपी ने पार्टी से न सिर्फ निलंबित और निष्कासित किया है बल्कि उन्हें ‘शरारती तत्व’ करार देते हुए उनके बयानों से खुद को अलग कर लिया है। ये दोनों नेता बीजेपी के प्रवक्ता रहे हैं और टीवी चैनलों पर पार्टी का चेहरा रहे हैं। 27 मई को नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद के लिए आपत्तिजनक बातें कही थीं और उसके बाद 10 दिन लग गये बीजेपी को कार्रवाई करने में। 

जब बीजेपी ने कार्रवाई की तो इन दोनों नेताओं को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और दोनों ने ही ट्विटर पर ट्वीट करते हुए अपने बयानों के लिए माफी मांगी। मिल रही धमकियों को देखते हुए अपने पते छिपाए रखने और अपने जान-माल की हिफाजत के लिए भी इन नेताओं ने सक्षम अधिकारियों से गुहार लगायी है।

अगर बीजेपी को लगता है कि नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल की टिप्पणियां गलत थीं तो इन दोनों नेताओं का बचाव कर रहे बीजेपी नेताओं के साथ भी पार्टी को इतनी ही सख्ती के साथ पेश आना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो बीजेपी के कितने नेता अनुशासनहीनता की कार्रवाई की जद में आते इसकी गिनती मुश्किल हो जाती। जाहिर है बीजेपी की मंशा कभी अपने नेताओं पर अंकुश लगाने की नहीं है। सिर्फ अंतरराष्ट्रीय दबाव से निकलने के लिए ही उसने यह कदम उठाया है। 

बीजेपी के एक्शन से सकते में हैं कट्टर समर्थक भी

नूपुर और नवीन पर सख्त कार्रवाई से बीजेपी के नेता और समर्थक सन्न रह गये हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। “नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल पर कार्रवाई वापस हो” के नारे बुलन्द होने लगे हैं। यह असंतोष बढ़ेगा। लोग अपने-अपने ढंग से बीजेपी की कार्रवाई का मतलब निकालेंगे। कट्टर बीजेपी समर्थक अधिक निराश हैं। वे लगातार नूपुर और नवीन के लिए विपक्ष को बढ़-चढ़ कर जवाब दे रहे थे। ऐसे में वे निराश हैं और कई सवाल उनके मन में हैं।

बीजेपी को कभी अपने विरोधियों की इतनी चिन्ता नहीं रही कि वह उनकी मांग पर अपने नेताओं पर कार्रवाई करे। एक उदाहरण जरूर याद आता है जब बीजेपी ने एक दलित महिला के साथ दुर्व्यवहार के मामले में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अपने नेता दया शंकर पर कार्रवाई की थी। मगर, उनकी जगह पत्नी को टिकट देकर मंत्री बनाना और आखिरकार वापस उसे मंत्री बना देने के फैसलों से यह जगजाहिर है कि वह निर्णय भी दबाव में लिया गया था। दलित समुदाय की नाराज़गी का डर तब वजह थी। विपक्ष तब भी इसकी वजह नहीं था। 

घरेलू दबाव को दरकिनार करती रही बीजेपी वैश्विक दबाव में आ गयी?

सवाल यह उठता है कि जब बीजेपी राजनीति में घरेलू दबाव को हावी नहीं होने दे रही है तो आखिर उसने विदेशी दबाव को कैसे अपने ऊपर हावी होने दिया? मुसलमानों के दबाव को तो बीजेपी इस तरीके से खारिज करती रही है मानो वे उन्हें कुछ समझते ही नहीं। सीएए-एनआरसी के विरोध में मुसलमान सड़कों पर उतरे, लेकिन मोदी सरकार पर इसका कभी कोई असर नहीं दिखा। 

उल्टे मुस्लिम समुदाय को नकारने वाली सियासत बीजेपी की प्राथमिकता बन गयी। अगर रोज के टीवी डिबेट को देखें तो बीजेपी के नेता मुसलमानों को कमतर साबित करने के लिए शब्दों की सीमा अक्सर लांघते देखे जा सकते हैं। अब तो राज्यसभा से आखिरी मुस्लिम सांसद को भी बीजेपी ने दोबारा लौटने का रास्ता बंद कर दिया है। देश में ऐसा पहली बार हुआ है जब बीजेपी का कोई मुस्लिम सांसद न राज्यसभा में होगा, न लोकसभा में। नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल के उदाहरणों से कोई यह समझने की भूल ना करे कि बीजेपी को अपनी किसी गलती का अहसास हुआ है और वह पछता रही है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।) 

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