Saturday, April 20, 2024

कोविड-19 ने चौड़ी कर दी है देश और समाज में असमानता की खाई

नव वर्ष आने के साथ कोविड-19 ने फिर से दस्तक देना शुरू कर दिया है। कोविड-19 तथा असमानता के बढ़ने के बीच एक सीधा सम्बन्ध रहा है -ऐसा कोरोना की पहली और दूसरी लहर में स्पष्ट हुआ। दोनों का ही बढ़ना अच्छा नहीं है। एक का बढ़ना स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल है तो दूसरा गैर बराबरी को बढ़ाता है। वस्तुतः इससे व्यक्ति तथा समूह, देश एवं समाज, दोनों ही गहरी समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं। गरीबी, व्यक्ति को व्यथित करती है तो असमानता, समाज को खोखला कर देती है। नव उदारवादी आर्थिक नीतियों पर चलने वाले देशों में यह समस्या खुल कर दिखाई देती है।

कोविड-19 तथा असमानता के सम्बन्ध में पिछले समय कुछ सर्वेक्षण तथा रिपोर्ट्स आयी हैं। इनमें सम्मिलित प्रमुख रिपोर्टें यह बताती हैं कि कोविड के दौरान असमानता तेजी से बढ़ी है। इन रिपोर्टों में अभी हाल ही में प्रकाशित “वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट, 2022” प्रमुख है जो बताती है कि भारत भी उन देशों में सम्मिलित है जिनमें असमानता सर्वाधिक है। असमानता का स्वरुप पिरामिड के आकार का है जिसमें सर्वाधिक गरीब, पिरामिड के धरातल पर हैं उपभोग, आय, सम्पति तथा अवसर की असमानता-गैर बराबरी के प्रमुख आयाम हैं। इस रिपोर्ट ने यह उजगार कर दिया है कि उदारीकरण तथा आर्थिक सुधार का सर्वाधिक लाभ सबसे अमीर एक प्रतिशत जनसंख्या को ही प्राप्त हुआ है।

सर्वाधिक एक प्रतिशत संपन्न जनसंख्या का राष्ट्रीय आय में भाग 22 प्रतिशत है। वहीं देश की सर्वाधिक 10 प्रतिशत अमीर जनसंख्या के पास देश कि आय का 57 प्रतिशत है। इसके विपरीत, 50 प्रतिशत सबसे गरीब जनसँख्या के पास राष्ट्रीय आय का केवल 13 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट ने यह भी प्रकट कर दिया है कि राष्ट्रीय आय में स्त्री श्रमिकों का भाग केवल 18 प्रतिशत है जो कि लैंगिक असमानता को व्यक्त करता है। रिपोर्ट ने यह भी आंका है क़ि भारत में औसत होउसहोल्ड सम्पत्ति रुपया 983,010 थी। रिपोर्ट ने पाया है क़ि भारत तथा चीन, विश्व के उन चंद देशों में शामिल हैं जहां उदारीकरण अपनाने के पश्चात आय और सम्पत्ति की असमानता में तीव्र वृद्धि हुई। दोनों ही उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं। भारत में निजी सम्पत्ति में अप्रत्याशित वृद्धि की रफ़्तार 1980 में 290 प्रतिशत थी जो क़ि सन 2020 में बढ़कर 560 प्रतिशत हो गई। स्पस्ट है कि वैश्वीकरण ने असमानता में अप्रत्याशित एवं तीव्र वृद्धि की है।

इसी बीच ऑक्सफैम इंडिया ने 2021 में “दी इनइक्वालिटी वायरस” रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसने कोरोना के अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव तथा विशेष रूप से असमानता में हुई तीव्र वृद्धि को भली भांति उजागर कर दिया। इस रिपोर्ट को यहां उल्लिखित करना बेहतर होगा। इस रिपोर्ट ने बताया कि जब पहले लॉक डाउन में अर्थव्यवस्था निस्तेज सी हो गई थी, लोग बेरोजगारी से त्रस्त एवं  भूख से बेहाल हो रहे थे, जब लाखों लोग सड़कों पर घर जाने के लिए निकल पड़े थे, उसी समय बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का एक विद्रूप चेहरा दिखाई दिया। लॉक डाउन के समय भारतीय खरबपतियों की सम्पत्ति में 35 प्रतिशत कि वृद्धि हुई थी। मार्च-दिसंबर 2020 के बीच 100 भारतीय खरबपतियों के सौभाग्य में रूपया 12,97,822 करोड़ कि वृद्धि हुई थी। लॉक डाउन के दौरान जब देश की 24 प्रतिशत आबादी तीन हजार प्रतिमाह से कम कमा और उसी पर गुजारा कर रही थी, उसी समय मुकेश अम्बानी 90 हजार रुपये प्रति घंटा कमा रहे थे।

वस्तुतः उदारीकरण क़े पश्चात असमानता बढ़ाने वाली नीतियां अपनाई जाने लगी थीं। सितम्बर 2019 में कॉरपोरेट टैक्स में भारी कमी की गई जिससे कम्पनी सेक्टर को लाभ हुआ। दूसरी तरफ 2019-20 में ही अप्रत्यक्ष कर की दर 44 प्रतिशत से बढ़ाकर 45 प्रतिशत कर दिया गया। अप्रत्यक्ष करों में कोई भी वृद्धि आम जनता की मुसीबतों को और भी बढ़ाती है। कर की यह दर, गरीब एवं अमीर पर समान होती है। इसके और बढ़ने से गरीबों की मुसीबतें और भी बढ़ेंगी। कोविड-19 के दौरान रोजगार छूटने या कम मजदूरी मिलने के कारण भी लोगों की आय तेजी से घटी थी। गरीब और कम आय वाले 46 प्रतिशत लोगों को घर चलाने के लिए उधार लेना पड़ा था। कुछ घरो में एक दिन का भी राशन नहीं बचा था। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर खर्च बढ़ा था तथा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में कोविड -19 का इलाज कराने पर एक भारतीय की औसत मासिक आय का 31 गुना ज्यादा खर्च करना पड़ रहा था। यह सब आय की कमी और असमानता में वृद्धि के कारण तथा परिणाम को बताने के लिए पर्याप्त है।

यहां अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी कि “स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया -2021” नामक एक और रिपोर्ट का उल्लेख करना समीचीन होगा जो कि मई 2021 में जारी की गई थीं। इस रिपोर्ट में कोविड-19 का भारत में रोजगार, आय, असमानता एवं गरीबी पर क्या प्रभाव पड़ा था की विस्तृत पड़ताल की गई थी। रिपोर्ट में बताया गया कि चूंकि इस दौरान परिवारों की आय तेजी से घटी, अतः घर चलाने के लिए परिवारों को उधार लेना पड़ा या अपनी सम्पत्तियों को बेचना पड़ा। इस दौरान संगठित रोजगार घटा एवं असंगठित रोजगार में वृद्धि हुई। स्व रोजगार एवं दैनिक मजदूरी पर कार्य करने वालों कि संख्या में वृद्धि हुई । कोविड-19 के अप्रैल-मई 2020 के दौरान 20 प्रतिशत सर्वाधिक गरीब जनसँख्या कि पूरी आय समाप्त हो गई थी। इस दौरान संपन्न परिवारों की आय कम घटी – इसमें महामारी के आने के पूर्व की आय के एक तिहाई की कमी हुई। दूसरी तरफ, महामारी के आठ महीने के दौरान सबसे गरीब 10 प्रतिशत आबादी ने औसतन 115,700 रूपया की आय खोई थी।

उपरोक्त विवेचन के कुछ निष्कर्ष हैं। एक तो भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप  में ही असमानता निहित रही है। वैश्वीकरण की नीतियों ने इसे और भी बढ़ाया। लेकिन कोविड-19 ने जैसे आग में घी डालने का काम किया है। वस्तुतः  भारत, शीर्ष असमानता वाली अर्थव्यवस्थाओं में भी विश्व गुरु बनने की दौड़  में आगे बढ़ रहा है। कोविड ने यह राजफाश कर दिया कि एक तरफ जहाँ कुछ  लोग तथा संस्थाएं भूख से ग्रसित जनता के लिए भोजन की व्यवस्था कर रही  थीं तो दूसरी तरफ देश में ही कुछ ऐसे भी लोग थे जिनकी आय तथा सम्पत्ति  की भूख कोरोना से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रही थी। जब पूरा भारत कोरोना की समयावधि में घरों में कैद था तो कुछ लोगों की अतृप्त इच्छाएँ, मन और तिजोरियों के दरवाजे खुल गए थे उन्हें भरने के लिए। सम्पत्ति बनाने में वे सफल भी रहे।

जैसे सभी सफल व्यक्तियों कि सफलता के पीछे उनके परिवारों का हाथ माना जाता है वैसे ही खरबपतियों की सफलता के पीछे सरकारों की नीतियों का भी हाथ रहा है। विमुद्रीकरण के बावजूद कालेधन का बाहर न आना, अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि से गरीब वर्ग की आय में कमी होना, पेट्रोल पर भारी करों से कीमतों का तेजी से बढ़ना, सरकारी कर्मचारियों के डीए को रोकना, सभी ने मिलकर आम जनता की कमर ही तोड़ा है। सरकार की इन  सभी नीतियों ने गरीबों की गरीबी को बढ़ाया ही है। दूसरी तरफ, कॉर्पोरेट टैक्स  में कमी ने कॉर्पोरेट की बांछें खिला दी है। खरबपतियों की सम्पत्तियों पर टैक्स न लगने से उनकी सम्पति में बेहिसाब वृद्धि हुई है। सरकार द्वारा आम आदमी पर ही टैक्स का बोझ डालने से गरीबी और असमानता बढ़ती है। वस्तुतः असमानता में वृद्धि होती है- गरीबों की गरीबी बढ़ाकर या अमीरों की अमीरी बढ़ाकर। अपने देश की विडम्बना यह है कि हमने दोनों को ही बढ़ाया है । प्रश्न यह है कि क्या सरकार इस बजट में खरबपतियों पर अतिरिक्त कर लगाकर, असमानता को घटाएगी ?

(लेखक का आभार उन लेखकों, प्रकाशकों एवं संस्थाओं को है जिनकी रिपोर्टों एवं लेखन सामग्री का उपयोग इस आलेख को तैयार करने में किया गया है।)

(लेखक विमल शंकर सिंह, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशात्र विभाग के विभागाध्यक्ष थे।)

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