Saturday, April 20, 2024

झारखंड में भूख से हुई मौतें, मौतें नहीं सत्ता प्रायोजित हत्याएं हैं!

वह आदिवासी है, लेकिन आदिवासी नहीं है। वह विकलांग है, लेकिन विकलांग नहीं है। वह भूखा रहने को अभिशप्त है, लेकिन भूखा नहीं है। वह सरकार की सारी जनकल्याणकारी योजनाओं का हकदार है, लेकिन वह सरकार की हर जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है।

इन पंक्तियों से शायद आप इस सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर ऐसा क्यों? तो सीधा सा जवाब है कि उसके पास अपने होने का कोई भी दस्तावेज नहीं है। न आधार कार्ड, न वोटर कार्ड, न राशन कार्ड, न आयुष्मान भारत कार्ड और न कोई बैंक अकाउंट।

हम बात कर रहे हैं, झारखंड के लातेहार जिला के महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत ओरसापाठ पंचायत के सुरकई गांव के रहने वाले शरीर से विकलांग 45 वर्षीय राजेन्द्र नगेसिया की। जिसको न तो दिव्यांग पेंशन मिलता है, न ही सरकार की ओर से विकलांगों को मिलने वाली ह्वीलचेयर या इलेक्ट्रोनिक चेयर ही नसीब हुआ है। इनका न तो राशन कार्ड है, न वोटर आईडी बना है और न इनका अपना आवास है। इनकी कोई भी पहचान, जैसे न तो आधार कार्ड और न बैक एकाउंट ही है। वे सभी तरह के सरकारी लाभों से वंचित हैं।

क्योंकि सरकारी आंकड़ों के जनकल्याणकारी योजनाओं में शामिल होने के लिए सबसे जरूरी दस्तावेजों में इनका आधार कार्ड ही नहीं है। यह अपना गुजारा भीख मांगकर करते हैं। वह वर्तमान में महुआडांड़ प्रखंड के अम्बाटोली पंचायत के गुरगुटोली गांव में दूसरों के घर पर रहते हैं।

सबसे दुखद बात यह है कि नगेसिया जनजाति की श्रेणी में आते हैं, लेकिन कोई भी दस्तावेज नहीं होने के कारण राजेन्द्र नगेसिया इस लाभ से भी वंचित हैं। बता दें कि नगेसिया समुदाय पहले आदिम जनजाति की श्रेणी में था, लेकिन इसे आदिम जनजाति की श्रेणी से हटाकर अब सामान्य जनजाति में डाल दिया गया है। ऐसा क्यों? इसका कारण अभी तक पता नहीं चल पाया।

राजेन्द्र नगेसिया बताते हैं कि उनके पूर्वज 50 साल पहले महुआडांड़ आये थे, जो साहूकारों के घरों में धांगर का काम (बिना किसी निश्चित मजदूरी या वेतन के घर का हर काम को करना) करते थे। उन्होंने बताया कि हमारा कोई पहचान पत्र नहीं है, न ही कोई ठिकाना है, जहां शाम होती है, वहीं बसेरा होता है, आधार कार्ड एवं वोटर कार्ड नहीं रहने के कारण दिव्यांग पेंशन भी नहीं बनी। प्रखंड मुख्यालय में कई बार सरकारी कार्यालय का चक्कर काट कर थक चुका हूं।

वह बताते हैं कि 10 वर्ष पूर्व एक दुर्घटना में बायां पैर क्षतिग्रस्त हो गया, जिससे काम करने में असमर्थ हूं। गरीबी के कारण ठीक से इलाज नहीं हो पाया है। दिव्यांग अवस्था में अकेला रहता हूं, पैर से अपाहिज हूं, शरीर भी ठीक से काम नहीं करता है। ऐसी परिस्थिति में पेट भरने के लिए भीख मांगने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा भीख मांगकर अपना गुजारा कर रहा हूं। वर्षों पूर्व पत्नी का देहांत हो चुका है, एक बेटा था, वह भी वर्षों से पलायन कर बाहर रहता है, उसका कोई हाल—खबर भी नहीं है। अब बैसाखी ही एकमात्र सहारा है।

वर्तमान में राजेंद्र सुरकई गांव छोड़ चुके हैं और वह अमवाटोली के गुरगूटोली में रहते हैं।

 झारखण्ड के कैबिनेट मंत्री के संज्ञान में आने के बाद भी कोई सुधार नहीं

दिव्यांग राजेन्द्र की खबर एक स्थानीय अखबार और एक स्थानीय न्यूज़ पोर्टल पर आई तो झारखण्ड के कैबिनेट मंत्री चम्पई सोरेन ने इसे संज्ञान में लेकर लातेहार डीसी अबु इमरान को राजेंद्र को सभी सुविधाएं मुहैया कराने का निर्देश दिया था। लातेहार डीसी ने महुआडांड़ बीडिओ को दिव्यांग राजेन्द्र को सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया। तब बीडिओ दिलीप टुड्डू द्वारा राहत सामग्री के तौर पर मात्र 10 किलो चावल मुहैया कराकर औपचारिकता पूरी कर ली गई। जबकि सबसे पहले जरूरी था आधारकार्ड बनाना, जिससे उनके अन्य दस्तावेज बनने में सुविधा होती।

एक स्थानीय पत्रकार वसीम अख्तर बताते हैं कि राजेन्द्र नगेसिया भले ही भीख मांगकर खाते हैं, लेकिन वह काफी संवेदनशील हैं। वह जहां भी किसी के घर में डेरा जमाते हैं, वह मांगकर लाई हुई सामग्री को उन्हें दे देते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र काफी बदहाल है। वह जहां भी रुकते हैं उस परिवार की स्थिति भी काफी दयनीय होती है। वसीम अख्तर बताते हैं कि बीडिओ द्वारा दिया गया चावल भी वह जहां ठहरे थे उसे ही दे दिए। कहने का तात्पर्य है कि उन्हें चावल से ज्यादा जरूरी है दस्तावेज, क्योंकि दस्तावेज होने के बाद ही उन्हें दिव्यांग पेंशन मिलती, ह्वीलचेयर या इलेक्ट्रोनिक चेयर मिलती, बैक एकाउंट खुलता, राशन कार्ड बनता, प्रधानमंत्री आवास की भी सुविधा मिलती, स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिलता। लेकिन बीडिओ दिलीप टुड्डू ने चावल देकर, फोटो खिंचवाकर लातेहार उपायुक्त को भेज दिया और उपायुक्त ने मंत्रालय को बता दिया कि मंत्री जी के आदेश पर संज्ञान लेकर काम किया जा रहा है।

बताते चलें कि यह ग्रामीण इलाका है, लोगों के पास पैसों की कमी रहती है, अत: राजेन्द्र नगेसिया को भीख के रूप में पैसा नहीं मिलता है और लोग अनाज या खाना देते हैं। ऐसे में उन्हें यह परेशानी रहती है कि वह अनाज रखेंगे कहां और खाना बनाएंगे कहां? सो वह जिस घर में रहते हैं, उसे मांगा हुआ सारा अनाज दे देते हैं और बदले में उसे वहां से पका हुआ खाना मिल जाता है। वैसे भी वह जहां जिस घर में रुकते हैं, उनकी भी स्थिति काफी दयनीय होती है, इस तरह उन्हें भी भोजन मिल जाता है।

कहना ना होगा कि इस दशा के शिकार अकेले राजेन्द्र नगेसिया ही नहीं हैं। कितने ही राजेन्द्र नगेसिया हैं, जिस पर हमारी नजर नहीं जाती या हम उन्हें देखकर भी अनदेखा कर देते हैं।

भले ही हमारी राजकीय व्यवस्था में जनकल्याणकारी योजनाओं की लंबी फेहरिस्त हो, सरकारी घोषणाओं में किसी को भूखा नहीं रहने देने के लंबे-लंबे विज्ञापन देकर व्यवस्था आत्ममुग्ध होकर यह मानने को तैयार न हो कि कोई भूखा भी हो सकता है। लेकिन सच तो यह है कि उन योजनाओं तक की पहुंच जरूरतमंदों को कितनी है, यह राजेन्द्र नगेसिया जैसों को ही पता है।

राजेन्द्र नगेसिया जैसों की कहानी के बीच बताना जरूरी हो जाता है कि 2017 में बिना परिवारों को बताये झारखण्ड में लाखों राशन कार्ड रद्द किये गए थे। राज्य सरकार का दावा था कि इनमें ज्यादातर कार्ड ‘फ़र्ज़ी’ थे। लेकिन, हाल ही में J-PAL के एक अध्ययन से यह साफ हो गया है कि रद्द किये गए कार्डों में ज़्यादातर फ़र्ज़ी नहीं थे। यह अध्ययन स्थानीय शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं के दावों की पुष्टि करता है, जिन्होंने पहले ही स्थानीय जांच के आधार पर सरकार के दावे को गलत ठहराया था।

अप्रैल 2017 को लगभग 3 लाख राशन कार्ड अवैध घोषित किए गए

उल्लेखनीय है कि 27 मार्च 2017 को झारखंड की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने कहा था कि ”सभी राशन कार्ड जिन्हें आधार नंबर के साथ जोड़ा नहीं गया है, वे 5 अप्रैल 2017 को निरर्थक हो जाएंगे … लगभग 3 लाख राशन कार्ड अवैध घोषित किए गए हैं।”

इस बावत सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, झारखंड सरकार द्वारा 27 मार्च 2017 एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गयी।

22 सितंबर, 2017 को झारखंड सरकार ने अपने एक हजार दिनों की सफलताओं पर एक पुस्तिका जारी की। उसमें उन्होंने यह कहा कि ”आधार नंबर के साथ राशन कार्ड को सीड करने का काम शुरू हो गया है। इस प्रक्रिया में 11 लाख, 64 हजार फर्जी राशन कार्ड पाए गए हैं। इसके माध्यम से, राज्य सरकार ने एक वर्ष में 225 करोड़ रुपये बचाये हैं, जिनका उपयोग अब गरीब लोगों के विकास के लिए किया जा सकता है। 99% राशन कार्ड आधार के साथ सीड किए गए हैं।”

10 नवंबर 2017 को, खाद्य विभाग (झारखण्ड सरकार) ने स्पष्ट किया कि हटाए गए राशन कार्डों की संख्या असल में 6.96 लाख थी, न कि 11 लाख। इसमें सबसे हास्यास्पद पहलू यह रहा कि रद्द किये गए कार्डों को “फ़र्ज़ी” आदि कहा जाता रहा।

बता दें कि जहां 22 सितंबर 2017 को झारखंड सरकार अपने एक हजार दिनों की सफलताओं पर अपनी पीठ थपथपाई, वहीं 28 सितंबर 2017 को सिमडेगा जिले की 11 वर्षीय संतोषी कुमारी की भूख से हुई मौत ने पूरे राज्य को हिला दिया। संतोषी कुमारी की मौत ‘भात दे, भात दे’ करते हुए हुई थी। उसका पूरा परिवार चार—पांच दिनों से कुछ नहीं खाया था। दरअसल उसके परिवार का राशन कार्ड, आधार से सीड न होने के कारण, 22 जुलाई 2017 को रद्द किया गया था। यह जानकारी खुद सरयू राय, तत्कालीन खाद्य आपूर्ति मंत्री द्वारा दी गई थी। बता दें कि संतोषी कुमारी स्कूल में मिलने वाला मध्याह्न भोजन घर लाती थी जिसे परिवार के सदस्य थोड़ा—थोड़ा खाकर गुजारा कर लेते थे। मां भी कहीं कहीं काम करके कुछ लाती थी। किसी कारण स्कूल एक सप्ताह से बंद था, जिस वजह से मध्याह्न भोजन का मिलना बंद हो गया। ऐसे में पूरा परिवार चार-पांच दिनों से कुछ नहीं खाया और संतोषी की जान चली गई।

झींगुर भुइयां का शव।
झींगुर भुइयां का शव।

2020 में बोकारो जिले के कसमार का भूखल घासी 6 मार्च को जीवन का जंग हार गया। उसकी मौत के पहले उसके घर में लगातार चार दिनों तक चूल्हा नहीं जला था, मतलब बीमार भूखल घासी को लगातार चार दिनों से खाना नहीं मिला था।

वहीं गढ़वा जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर और भण्डरिया प्रखण्ड मुख्यालय से करीब 30 किमी उत्तर पूर्व घने जंगलों के बीच 700 की अबादी वाले एक आदिवासी बहुल कुरून गाँव की 70 वर्षीया सोमारिया देवी की भूख से मौत 02 अप्रैल हो गई। सोमरिया देवी अपने 75 वर्षीय पति लच्छू लोहरा के साथ रहती थी। उनको कोई संतान नहीं थी। मृत्यु के पूर्व यह दम्पति करीब 4 दिनों से अनाज के अभाव में कुछ खाया नहीं था। इसके पहले भी ये दोनों बुजुर्ग किसी प्रकार आधा पेट खाकर गुजारा करते थे।

दिसंबर 2016 से लेकर अप्रैल 2020 तक 24 लोगों की जान भूख के कारण गई

बता दें कि दिसंबर 2016 से लेकर अप्रैल 2020 तक 24 लोगों की जान भूख के कारण गई है। ये वो आंकड़े हैं जो किसी न किसी सूत्र से मीडिया तक पहुंच पाये थे। जो मीडिया तक नहीं पहुंच पाये वे गुमनाम रह गए।

इन भुखमरी से हुई मौतों में से लगभग आधी मौतें किसी ना किसी तरीके से आधार से सम्बंधित समस्याओं से जुड़ी थीं।

प्रख्यात अर्थशास्त्री कार्तिक मुरलीधरन, पॉल नीहाउस और संदीप सुखटणकर द्वारा इस अध्ययन के तहत झारखण्ड में 10 रैंडम ढंग से चुने गए ज़िलों में 2016 -2018 में रद्द हुए राशन कार्डों का शोध किया गया है। अध्ययन के परिणाम इस प्रकार हैं- 2016 और 2018 के बीच 10 ज़िलों में 1.44 लाख राशन कार्ड रद्द किये गए थे।

कुल रद्द किए गए कार्डों के 56% (एवं कुल कार्डों के 9%) आधार से जुड़े नहीं थे।

रद्द किये गए राशन कार्डों में से 4,000 रैंडम ढंग से चुने गए कार्डों की जांच में पाया गया कि लगभग 90% रद्द किये गए राशन कार्ड फ़र्ज़ी नहीं थे। बस लगभग 10% “घोस्ट” (फ़र्ज़ी) परिवारों के थे, यानी वह परिवार जिनका पता नहीं लगाया गया था।

जो आंकड़े उपलब्ध हैं उनके अनुसार दिसम्बर 2016 से 2020 तक झारखंड में भूख से 24 लोगों की मौत भोजन की अनुपलब्धता के कारण हुई है।

 1— इंदरदेव माली (40 वर्ष) हजारीबाग- दिसंबर 2016

 2— संतोषी कुमारी (11 वर्ष) सिमडेगा- 28 सितंबर 2017

 3— बैजनाथ रविदास, (40 वर्ष) झरिया- 21 अक्टूबर 2017

 4— रूपलाल मरांडी, (60 वर्ष) देवघर- 23 अक्टूबर 2017

 5— ललिता कुमारी, (45 वर्ष) गढ़वा-  अक्टूबर 2017

 6— प्रेममणी कुनवार, (64 वर्ष) गढ़वा- 1 दिसंबर 2017

 7— एतवरिया देवी, (67 वर्ष) गढ़वा -25 दिसंबर 2017

 8— बुधनी सोरेन, (40 वर्ष) गिरिडीह -13 जनवरी 2018

 9— लक्खी मुर्मू (30 वर्ष) पाकुड़ -23 जनवरी 2018

 10— सारथी महतोवाइन, धनबाद-29 अप्रील  2018

 11— सावित्री देवी, (55 वर्ष) गिरिडीह – 2 जून 2018

 12— मीना मुसहर, (45 वर्ष) चतरा – 4 जून 2018

 13— चिंतामल मल्हार, (40 वर्ष) रामगढ़- 14 जून 2018

 14— लालजी महतो, (70 वर्ष) जामताड़ा -10 जुलाई 2018

 15— राजेंद्र बिरहोर, (39 वर्ष) रामगढ़ -24 जुलाई 2018

 16— चमटू सबर, (45 वर्ष) पूर्वी सिंहभूमि-16 सितंबर 2018

 17— सीता देवी, (75 वर्ष) गुमला -25 अक्टूबर 2018

 18— कालेश्वर सोरेन, (45 वर्ष) दुमका – 11 नवंबर 2018

 19— बुधनी बिरजिआन, (80 वर्ष) लातेहार – 1 जनवरी 2019

 20— मोटका मांझी, (50 वर्ष) दुमका – 22 मई 2019

 21— रामचरण मुंडा, (65 वर्ष) लातेहार – 5 जून  2019

 22— झिंगूर भुइयां, (42 वर्ष) चतरा – 16 जून 2019

 23 — भूखल घासी, (42 वर्ष) बोकारो – 6 मार्च 2020

 24 —सोमारिया देवी, (70 वर्ष) गढ़वा – 02 अप्रैल 2020

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।