Saturday, April 20, 2024

दीपिका का रोटी के संघर्ष से दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी का सफर!

कल 30 जून है। दीपिका की शादी की पहली सालगिरह। दीपिका और उनके पति अतनु दास की जोड़ी ने मिश्रित युगल में स्वर्णपदक लेकर खेल इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है। इस नामवर जोड़ी को दोहरी बधाईयां।

दीपिका कुमारी एक रिकर्व भारतीय महिला तीरंदाज हैं। बिल्कुल निचले पायदान से निशानेबाजी के खेल में शुरुआत करने वाली वे आज अंतरराष्ट्रीय स्तर की शीर्ष खिलाड़ियों में से एक हैं। दीपिका कुमारी 2012 से इंटरनेशनल तीरंदाजी खिलाड़ी हैं। अपने खेल जीवन में कुल 37 मेडल जीतने वाली दीपिका का जन्म झारखंड में हुआ। उनके पति अतनु दास बंगाल से हैं वे तीरंदाजी में ही अर्जुन पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित हो चुके हैं।

विश्व कप के तीसरे चरण में तीन स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की स्टार तीरंदाज दीपिका कुमारी सोमवार को विश्व रैंकिंग में फिर से शीर्ष पर काबिज हो गईं। उन्होंने पिछले रविवार को रिकर्व की तीन स्पर्धाओं- महिलाओं की व्यक्तिगत, टीम और मिश्रित युगल में स्वर्ण पदक जीते थे। दीपिका ने पहले अंकिता भगत और कोमोलिका बारी के साथ मिलकर रिकर्व टीम स्पर्धा में मैक्सिको को 5-1 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद मिश्रित टीम स्पर्धा के फाइनल में दीपिका और उनके पति अतनु दास की पांचवीं वरीय जोड़ी ने नीदरलैंड के जेफ वान डेन बर्ग और गैब्रिएला शोलेसर से 0-2 से पिछड़ने के बाद वापसी करते हुए 5-3 से जीत हासिल की। दीपिका ने महिला व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा के फाइनल में रूस की एलिना ओसिपोवा को 6-0 से हराकर एक दिन में स्वर्ण पदकों की हैट्रिक पूरी की।

दीपिका कुमारी की ये उपलब्धियां उनके कठिन संघर्ष का ही परिणाम है। तीरंदाजी सीखने के लिए अपने घर से निकलते हुए दीपिका के मन में एक संतोष इस बात का था कि उनके जाने से परिवार पर एक बोझ कम हो जाएगा। लेकिन आज दीपिका ने अपने दम पर परिवार का आर्थिक और सामाजिक दर्जा ऊंचा किया है। दीपिका के पिता शिव नारायण महतो एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर के रूप में काम किया करते थे। वहीं, उनकी माँ गीता महतो एक मेडिकल कॉलेज में ग्रुप डी कर्मचारी के रूप में काम करती हैं।

ओलंपिक महासंघ ने एक शॉर्ट फिल्म बनाई है जिसमें दीपिका और उनके परिवार ने दीपिका के सफर से जुड़ी चुनौतियों का ज़िक्र किया है। दीपिका के पिता शिव नारायण बताते हैं, “जब दीपिका का जन्म हुआ तब हमारी आर्थिक हालत बहुत ख़राब थी। हम बहुत ग़रीब थे। हमारी पत्नी 500 रुपये महीना तनख़्वाह पर काम करती थी और मैं एक छोटी सी दुकान चलाता था।” इस फिल्म में ही दीपिका बताती हैं कि उनका जन्म एक चलते हुए ऑटो में हुआ था क्योंकि उनकी माँ अस्पताल नहीं पहुंच पायी थीं। जब ओलंपिक खेलने गई थीं तब भी परिवार की आर्थिक हालत बहुत ख़राब थी। कहते हैं कि ज़िंदगी में बहुत कुछ संयोगवश होता है। 14 साल की उम्र में पहली बार धनुष-बाण उठाने वाली दीपिका का तीरंदाजी की दुनिया में प्रवेश भी संयोगवश हुआ। और उन्होंने अपनी शुरुआत बांस के बने धनुष बाण से की।

दीपिका कहती हैं कि “वह तीरंदाज़ी के प्रति इतनी दीवानी हैं क्योंकि उन्होंने इस खेल को नहीं बल्कि इस खेल ने उन्हें चुना है।” तीरंदाजी की दुनिया में अपनी एंट्री की कहानी बताते हुए दीपिका कहती हैं, “साल 2007 में जब हम नानी के घर गए तो वहां पर मेरी ममेरी बहन ने बताया कि उनके वहां पर अर्जुन आर्चरी एकेडमी है। जब उसने ये बोला कि वहां पर सब कुछ फ्री है। किट भी मिलती है, खाना भी मिलता है। तो मैंने कहा कि चलो अच्छी बात है, घर का एक बोझ कम हो जाएगा। क्योंकि उस समय आर्थिक संकट बहुत गहरा था। लेकिन जब दीपिका ने अपनी ख़्वाहिश पिता के सामने रखी तो वह निराश हो गयीं।

दीपिका बताती हैं, “राँची एक बहुत ही छोटी और रूढ़िवादी जगह है। मैंने जब पिता को बताया कि मुझे आर्चरी सीखने जाना है तो उन्होंने मना कर दिया।” दीपिका के पिता बताते हैं कि उनका समाज लड़कियों को घर से इतना दूर भेजना ठीक नहीं मानता है। वे कहते हैं, “छोटी सी बेटी को कोई भी अगर 200 किलोमीटर दूर भेज दे तो लोग क्या कहते हैं, कहते हैं कि ‘अरे बच्ची को खिला नहीं पा रहे थे, इसीलिए भेज दिया…”लेकिन दीपिका आखिरकार राँची से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित खरसावाँ आर्चरी एकेडमी तक पहुंच गयीं लेकिन ये चुनौतियों की शुरुआत भर थी। एकेडमी ने उन्हें पहली नज़र में ख़ारिज कर दिया क्योंकि दीपिका बेहद पतली-दुबली थीं। दीपिका ने एकेडमी से तीन महीने का समय माँगा और खुद को साबित करके दिखाया। एकेडमी में दीपिका की ज़िंदगी का जो दौर शुरू हुआ वह काफ़ी चुनौती पूर्ण था।

दीपिका बताती हैं, “मैं शुरुआत में काफ़ी रोमांचित थी। क्योंकि ये सब कुछ नया – नया सा हो रहा था। लेकिन कुछ समय बाद मेरे सामने कई तरह की समस्याएं आईं जिससे मैं निराश हो गयी। एकेडमी में बाथरूम नहीं थे। नहाने के लिए नदी पर जाना पड़ता था। और रात में जंगली हाथी आ जाते थे। इसलिए रात में वॉशरूम के लिए बाहर निकलना मना था। मगर धीरे-धीरे जब तीरंदाज़ी में मजा आने लगा तो वो सब चीज़ें गौण होने लगीं। मुझे धनुष जल्दी मिल गया था और मैं जल्दी शूट भी करने लगी थी। ऐसे में धीरे-धीरे रुचि बढ़ने लगी और फिर तीरंदाज़ी से प्यार हो गया ।”दीपिका ने शुरुआत में ज़िला स्तरीय प्रतियोगिताओं से लेकर कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। कुछ प्रतियोगिताओं में इनाम राशि 100, 250 और 500 रुपये तक होती थी। लेकिन ये भी दीपिका के लिए काफ़ी महत्व रखती थीं।

इसी दौरान 2008 में जूनियर वर्ल्ड चेंपियनशिप के ट्रायल के दौरान दीपिका की मुलाक़ात धर्मेंद्र तिवारी से हुई जो कि टाटा आर्चरी एकेडमी में कोच थे। दीपिका बताती हैं, “धर्मेंद्र सर ने मुझे सेलेक्ट किया और मुझे खरसावां से टाटा आर्चरी एकेडमी लेकर आए। मुझे वो जगह इतनी पसंद आई कि मैंने वहां घुसते ही एक दुआ माँगी कि भगवान मैं ज़िंदगी भर यहीं रहूं। और मेरी दुआ पूरी भी हुई।” धर्मेंद्र तिवारी वर्तमान में भी दीपिका के कोच हैं। दुनिया की नंबर वन तीरंदाज बनने से जुड़ा दीपिका का अनुभव बेहद मज़ेदार है। दीपिका ने अपने एक इंटरव्यू में बताया है कि जब साल 2012 में वह दुनिया की नबंर वन तीरंदाज बन गईं तब उन्हें ये पता ही नहीं था कि वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन होने का मतलब क्या होता है। इसके बाद उन्होंने अपने कोच से इसके बारे में पूछा तब पता चला कि नंबर वन बनने के मायने क्या होते हैं।

खरसावां से लेकर टाटा आर्चरी एकेडमी समेत पूरे भारत में बच्चे दीपिका कुमारी को एक रोल मॉडल के रूप में देखते हैं। टाटा आर्चरी एकेडमी में उन्हें हमसफ़र के रुप में जतनु दास मिले। इस कमाल की जोड़ी को देश वासियों का प्यार और उनके कठिन संघर्ष सलाम।

दीपिका की नज़र अब ओलंपिक मेडल पर है। दीपिका अगले महीने टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने के लिए जापान जा रही हैं। ख़ास बात ये है कि भारत की ओर से जा रही तीरंदाजी टीम में वह अकेली महिला हैं। उम्मीद है वे लक्ष्य में सफल होंगी।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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