Friday, April 19, 2024

चुनाव आयोग को सौ प्रतिशत वीवीपैट पर्चियां गिननी चाहिए

हालांकि योगी आदियनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बन गए हैं लेकिन 2022 के उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के परिणाम संदेहास्पद हैं। चुनाव अभियान के दौरान उ.प्र. में एक बदलाव की लहर दिखाई पड़ रही थी। लोग भाजपा सरकार की विदाई की बात कर रहे थे। यादव व मुस्लिम, दो समुदाय जो मजबूती के साथ समाजवादी पार्टी के साथ खड़े थे। इसके अलावा भी लोग अखिलेश यादव को पुनः मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाह रहे थे, जिनकी जनसभाओं में योगी व मोदी से ज्यादा भीड़ जुट रही थी। किंतु परिणाम जनता की अपेक्षाओं के विपरीत निकले।

विश्वास नहीं होता कि लखीमपुर खीरी में जहां केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के लड़के ने पांच लोगों के ऊपर गाड़ी चढ़ाई हो, जहां किसान नेता राकेश टिकैत कि चेतावनी पर मंत्री महोदय एक चीनी मिल का उद्घाटन करने तक न जा सकें, उन्हें चुनाव के दौरान भारी केन्दीय बल की सुरक्षा में मतदान करना पड़ता हो और जहां उनके बेटे आशीष मिश्र को जमानत मिलने से लोगों में रोष हो। वहां भारतीय जनता पार्टी को सभी आठ विधान सभा क्षेत्रों में सफलता मिल जाए।

इसी तरह हाथरस सुरक्षित विधान सभा क्षेत्र में पिछले साल जिले में एक दलित लड़की के साथ जघन्य बलात्कार, अस्पताल में कुछ दिनों के बाद उसकी मृत्यु, पुलिस द्वारा मृत शरीर को परिवार को सौंपने के बजाए तड़के सुबह जला दिया जाना और ऐसा प्रतीत होना कि प्रशासन चार सवर्ण आरोपियों को बचाने में लगा हुआ हो, के कारण लोगों में रोष था लेकिन यहां भी भाजपा ही जीती।

किसान आंदोलन का तो पश्चिमी उ.प्र. में साफ असर था। इतना कि कुछ गावों में तो भाजपा के प्रत्याशी प्रचार के लिए भी नहीं जा सकते थे। ऐसा माना जा रहा था कि प्रथम चरण में पश्चिमी उ.प्र. में ही भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ेगा और यहां डूबने के बाद शेष चरणों में भाजपा फिर उबर नहीं पाएगी।

चुनाव से तुरंत पहले एक बी.एड. की हुई लड़की शिखा पाल लखनऊ में शिक्षा निदेशालय परिसर में पानी की टंकी पर डेढ़ सौ दिनों से ऊपर चढ़ी हुई थी। उसकी मांग थी कि शिक्षा विभाग में रिक्त पद सरकार के मानक पूरे कर चुके अभ्यार्थियों द्वारा भरे जाएं। एम्बुलेंस चालक, जिन्हें करोना काल में देवतुल्य बताया गया व जिनके ऊपर प्रदेश सरकार ने हेलिकाॅपटर से फूलों की वर्षा करवाई, जिस कम्पनी के लिए ठेके पर काम कर रहे थे का सरकार के साथ अनुबंध समाप्त हो जाने पर नौकरी से निकाल दिए गए थे और वे विरोध प्रदशन कर रहे थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ के हस्तक्षेप के बावजूद भी उनकी एक न सुनी गई। हम यह कैसे मान लें कि रेलवे भर्ती प्रक्रिया विवाद में छात्रों के ऊपर पुलिस के बर्बर तरीके से लाठी बरसाने के बाद छात्र या उनके परिवार भाजपा का समर्थन कर सकते हैं? चुनाव से तुरंत पहले नवजवानों व नवयुवतियों में सरकार के खिलाफ रोजगार के मुद्दे पर जबरदस्त गुस्सा था।

दो चीजें जो सरकार के पक्ष में दिखाई पड़ रही थीं वे थीं मुफ्त राशन व किसान सम्मान निधि योजना। किंतु चौथे चरण के मतदान से पहले ही उ.प्र. में खुले पशुओं का मुद्दा उठ गया। नरेन्द मोदी को उन्नाव की एक सभा में कहना पड़ा कि यदि भाजपा पुनः सत्ता में आती है तो वह किसानों से गोबर खरीदेगी और योगी आदित्यनाथ को घोषणा करनी पड़ी कि प्रति पशु प्रति माह वे रु. 900 देंगे ताकि अनुपयोगी पशु को बांधने में किसान पर खर्च का बोझ न पड़े। खुला पशु तो 2017 में ही योगी आदित्यनाथ के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद ही मुद्दा बन गया था किंतु भाजपा ने किसी तरह 2019 के संसदीय चुनाव में इस मुद्दे को उभरने नहीं दिया। लेकिन इस बार भाजपा ऐसा कर पाने में सफल नहीं रही। अब लोगों को यह समझ में आ रहा है कि साल में तीन बार रु. 2000 किसान सम्मान निधि व मुफ्त राशन तो असल में किसानों की जो फसल खुले पशुओं द्वारा तबाह की जा रही है उसका मुआवज़ा है। किसान को सारी रात जग कर अपनी फसलों को खुले पशुओं से बचाना पड़ रहा है।

सवाल यह है कि जब माहौल भाजपा के खिलाफ था तो वह चुनाव कैसे जीत गई? क्या ई.वी.एम. के साथ छेड़-छाड़ की गई? अथवा सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उसने चुनाव जीता?

10 मार्च की मतगणना से पहले एक या दो दिनों में आजमगढ़, प्रयागराज, बरेली, सोनभद्र, संत कबीर नगर व वाराणसी जैसे कई जिलों में ज्यादातर जगहों पर सरकारी वाहनों में मतपत्र व ई.वी.एम. पकड़े गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से मतपत्र या ई.वी.एम. बदले जाने का काम बड़े पैमाने पर हुआ है, उपरोक्त तो सिर्फ वे स्थान हैं जहां सरकार के साथ सहानुभूति न रखने वाले किसी सरकारी कर्मचारी ने ही हेराफेरी की जानकारी सार्वजनिक कर दी होगी। सरकारी अधिकारियों की मदद से मतपत्र पहले बदले जाते रहे हैं। तो ई.वी.एम. बदले जाने का काम भी किया ही जा सकता है। इस बार कहीं-कहीं मतगणना स्थल से ये खबर मिली है कि कुछ ई.वी.एम. 99 प्रतिशत तक चार्ज थीं जिनमें भाजपा के पक्ष में ज्यादा मत निकले हैं बनिस्पत उनके जो सिर्फ 60-70 प्रतशत ही चार्ज थीं। क्या ये सम्भव नहीं है कि ज्यादा चार्ज वालीे ई.वी.एम. बदली हुई मशीनें थीं?

29 विधान सभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां जीत-हार का अंतर 2000 मतों से कम रहा है और इनमें से 19 क्षेत्रों में भाजपा जीती है। जहां जीत-हार का अंतर 1000 मतों से भी कम था उन सभी क्षेत्रों में डाक मतपत्रों की संख्या जीत-हार के अंतर से ज्यादा है। इन जगहों पर तो बिना ई.वी.एम. को हाथ लगाए सिर्फ डाक मतपत्रों में ही हेरी-फेरी कर चुनाव के परिणाम को प्रभावित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बाराबंकी के कुर्सी विधान सभा क्षेत्र में सपा प्रत्याशी राकेश वर्मा को विजयी घोषित किया गया। जितनी देर में वे अपने स्वर्गीय पिता बेनी प्रसाद वर्मा की मूर्ति पर माला पहना कर आए तो उन्हें बताया गया कि भाजपा प्रत्याशी सकेन्द्र प्रताप 217 मतों से जीत गए हैं। यहां डाक मतपत्रों की संख्या 618 है।

यदि जनता के दिमाग में गड़बड़ी के किसी संदेह को दूर करना है तो, अभी भी, भारत के चुनाव आयोग को सभी मतदान केन्द्रों की सभी ई.वी.एम. से निकली वीवीपैट पर्चियों की गिनती कर यह जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। वर्तमान में यह प्रावधान है कि हरेक विधान सभा के पांच मतदान केन्द्रों की ही वीवीपैट से निकली पर्चियों की गिनती होती है और उसका मिलान ई.वी.एम. से निकले परिणाम से किया जाता है। लेकिन कभी भी अखबार में इस मिलान की कोई खबर पढ़ने को नहीं मिलती। चुनाव आयोग को इस प्रक्रिया में और पारदर्शिता लाने की जरूरत है और 100 प्रतिशत पर्चियों की गिनती करनी चाहिए। इससे वे लोग भी संतुष्ट होंगे जो मतपत्रों पर वापस लौटने की मांग कर रहे हैं क्योंकि 100 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों की गणना मतपत्रों की गणना जैसा ही हो जाएगा।

(संदीप पांडेय मैगसेसे पुरस्कार विजेता और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)

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