Friday, March 29, 2024

सेवा के आखिरी क्षणों तक सरकार को बचाने की जुगत में लगे रहे पूर्व सीएजी राजीव महर्षि!

क्या पहले के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षकों ने ऑडिट रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड करके राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किया था? यह सवाल पूर्व सीएजी राजीव महर्षि के उस बयान से उठ खड़ा हुआ है, जिसमें महर्षि ने कहा है कि पाकिस्‍तान के साथ तनाव के चलते नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने डिफेंस ऑडिट रिपोर्ट्स को वेबसाइट पर न डालने का फैसला किया था।

राजीव महर्षि ने कहा है कि उन्होंने डिफेंस ऑडिट रिपोर्ट को ऑनलाइन इसलिए उपलब्ध नहीं कराया, क्योंकि उन्हें लगा कि कोई वॉशिंगटन (अमरीका), बीजिंग (चीन), इस्लामाबाद (पाकिस्तान) से नज़र रख रहा होगा। महर्षि के कार्यकाल में सीएजी ने आठ ऑडिट रिपोर्ट संसद में पेश कीं, लेकिन उन्हें सीएजी की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं कराया गया।

यह सर्वविदित है कि यूपीए 2 की सरकार में एक लाख 86 हजार करोड़ के कोयला घोटाले और 2जी स्पेक्ट्रम आंवटन के मामले में एक लाख 76 हजार करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट से पूरे देश के जनमानस में ऐसा माहौल बना कि 2014 के चुनाव में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार का पुलिंदा बंध गया। हालांकि मोदी सरकार आने के बाद 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाला अदालत की चौखट पर फुस्स साबित हुए।

अब निवर्तमान सीएजी राजीव महर्षि ने ऑडिट रिपोर्ट पेश करने में विलंब की अपनी नाकामियों को राष्ट्रवादी मोड़ से जोड़ दिया है। पूर्व सीएजी राजीव महर्षि ने कहा है कि पाकिस्‍तान के साथ तनाव के चलते नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने डिफेंस ऑडिट रिपोर्ट्स को वेबसाइट पर न डालने का फैसला किया था। 

कांग्रेस पार्टी ने पूर्व सीएजी राजीव महर्षि के रक्षा ऑडिट रिपोर्ट पर दिए गए बयान को बहुत अजीब और हैरानी वाला बताया है। राजीव महर्षि का भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के रूप में कार्यकाल पिछले हफ्ते समाप्त हुआ है। कांग्रेस ने राजीव महर्षि के उन बयानों को लेकर टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा था कि रक्षा ऑडिट रिपोर्ट इसलिए ऑनलाइन उपलब्ध नहीं कराई गई क्योंकि ये पाकिस्तान या चीन को आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाए।

कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि क्या पहले के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षकों ने रिपोर्ट अपलोड करके राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किया? कैग के रूप में राजीव महर्षि का कार्यकाल शुक्रवार को समाप्त हुआ। अंग्रेजी के दो प्रमुख अखबारों ने उनके हवाले से लिखा है कि यह फैसला लिया गया कि पड़ोसी देशों से तनाव के मद्देनजर कुछ रक्षा रिपोर्ट और भविष्य में भी कोई रक्षा संबंधी ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

महर्षि के हवाले से कहा गया है कि हम संसद और लोक लेखा समिति के सामने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं, लेकिन यह पाकिस्तान या चीन को आसानी से उपलब्ध नहीं हो जानी चाहिए। कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा है कि कैग एक उच्च संवैधानिक प्राधिकार है और इसलिए मुझे कठोर शब्दों का इस्तेमाल करने में संकोच हो रहा है। उन्होंने महर्षि की टिप्पणी को बहुत अजीब, हैरान और स्तब्ध करने वाला बताया।

महर्षि ने कहा है कि अगर रिपोर्ट की फाइंडिंग्‍स मीडिया में खूब छपें तो भी सीएजी रिपोर्ट जैसी एनालिटिकल फाइंडिंग्‍स को आसानी से उपलब्‍ध नहीं होना चाहिए। पूर्व सीएजी ने कहा कि हम डिफेंस रिपोर्ट की कई कॉपियां मीडिया के साथ शेयर करते हैं।

ऐसे में हम मीडिया से भी यह उम्मीद करते हैं कि वो इस के साथ अपनी जिम्मेदारी समझते हुए रिपोर्टिंग करेगा। देश में सेना की तैयारी, हथियारों से जुड़ी खबर को लिखते समय हम मीडिया से उम्मीद करते हैं कि वो सावधानी पूर्वक रिपोर्टिंग करेंगे।

कुल मिलाकर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में मीडिया को सावधानी पूर्वक रिपोर्टिंग करने की नसीहत दी है। राजीव महर्षि तीन साल तक सीएजी में कमान संभालने के बाद रिटायर हो गए। उनकी जगह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल जीसी मुर्मू सीएजी बन गए हैं। मुर्मू अपना कार्यभार भी संभाल चुके हैं।

सत्याग्रह डॉट काम कि एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2019 के मध्य संसद में पेश की गई सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट्स के विश्लेषण से पता चलता है कि इस दौरान 42 से भी अधिक रिपोर्ट्स को संसद में 90 से भी अधिक दिनों की देरी से पेश किया गया था। इस विश्लेषण के लिए उपलब्ध रिपोर्ट्स पर हुए हस्ताक्षर और उनको संसद में पेश किए जाने की तारीख़ को आधार बनाया गया है।

इन रिपोर्ट्स में से बहुत सी ऐसी भी थीं जिनको 180 से भी अधिक दिनों की देरी के पश्चात संसद में पेश किया गया। इनमें से क़रीब आधी ऑडिट रिपोर्ट्स विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और गतिविधियों की पर्फार्मेंस ऑडिट्स थीं।

2014 की बात करें तो इस दौरान संसद में पेश की गईं 32 ऑडिट रिपोर्ट्स में से आठ ऑडिट रिपोर्ट्स की पेशी में 90 से भी अधिक दिन का विलंब देखने को मिला। इसके ठीक अगले वर्ष, कुल 31 ऑडिट रिपोर्ट्स प्रस्तुत हुईं, जिनमें से छह रिपोर्ट्स को पेश करने में फिर से इतनी ही देरी देखने को मिली।

2016 में 47 ऑडिट रिपोर्ट्स में से दो को संसद के सामने रखने में 90 से भी अधिक दिनों की देरी हुई। वर्ष 2017 में पेश की गई कुल 38 ऑडिट रिपोर्ट्स में से 10 ऑडिट रिपोर्ट्स को संसद के सामने पेश करने में सरकार ने 90 से भी अधिक दिनों का समय लिया।

ऑडिट रिपोर्ट्स के प्रस्तुतीकरण में देरी का यह क्रम मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के अंतिम साल 2018 में और भी अधिक गंभीर रूप में सामने आया। इस दौरान कार्यपालिका की ओर से 17 में से आठ ऑडिट रिपोर्ट्स को पेश करने में 90 दिनों से अधिक की देरी हुई।

ऑडिट रिपोर्ट्स को पेश करने में कार्यपालिका की ओर से इसी तरह की देरी वर्ष 2019 में भी देखने को मिली जब 21 में से सात ऑडिट रिपोर्ट्स 90 से भी अधिक दिनों संसद तक नहीं पहुंच सकीं।

गौरतलब है कि किसी भी सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों से संबंधित ऑडिट रिपोर्ट्स को संसद के समक्ष रखने में होने वाली देरी से उन कार्यक्रमों पर सार्वजनिक बहस की संभावना काफी सीमित हो जाती है। ऑडिट रिपोर्ट्स के प्रस्तुतीकरण में जानबूझ कर की जाने वाली इस देरी से, सरकार इन रिपोर्ट्स की संसदीय और विधायी समीक्षा को टालने में सफल रहती है। 

संसद की लोक लेखा समिति और सार्वजनिक उपक्रमों संबंधी समिति की बैठकों में किसी ऑडिट रिपोर्ट पर तब तक चर्चा नहीं की जा सकती है जब तक वह रिपोर्ट सदन में पेश नहीं हो जाती है।

ऐसी तमाम ऑडिट रिपोर्ट्स के उदाहरण हैं,  जिन्हें सीएजी द्वारा संसद और विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले ही सरकार को सौंपा जा चुका था, लेकिन फिर भी उन रिपोर्ट्स को सदन में देरी से ही पेश किया गया।

इनसे ऐसा लगता है मानो कई ऑडिट रिपोर्ट्स को जानबूझ कर संसद में समय पर पेश नहीं किया जाता है, जिन ऑडिट रिपोर्ट्स को संसद में देरी से पेश किया गया, उनमें 2017 में, कृषि फ़सल बीमा योजना, समेकित गंगा संरक्षण मिशन (यानी नमामि गंगे), 2018 में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एक्सलरेटेड इरीगेशन बेनेफिट्स प्रोग्राम-एआईबीपी) एवं 2019 में पर्यावरण पर खनन के प्रभाव तथा कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियों द्वारा उससे निपटने संबंधी रिपोर्ट्स प्रमुख हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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