Friday, April 19, 2024

अज़मत उल्ला खां: जल, जंगल, जमीन से खेती की लड़ाई तक की अगुआई

मप्र के पिछड़े हुए आदिवासी बहुल और कोयला खदान जिलों की समस्याएं अलग हैं, सूखे की अक्सर मार झेलते रहते हैं और पलायन यहाँ के लोगों का स्थाई भाव है बावजूद इसके कि यहाँ बड़े पैमाने पर खदानें हैं। अजमत उल्ला खां शहडोल जिले के सुहागपुर से हैं और इन दिनों उमरिया जिले में लोगों के साथ काम कर रहे हैं, अजमत मूल रूप से राष्ट्रीय युवा संगठन के सदस्य हैं और इस समय राष्ट्रीय स्तर पर इसके संयोजक भी हैं। अजमत बताते हैं कि कक्षा बारहवीं करने के बाद उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा, और वे अपने क्षेत्र में कुछ-कुछ सामाजिक काम जैसा करने लगे थे – “किशोरावस्था में जैसे सभी को अपनी पहचान की एक समस्या होती है और यह पहचान कुछ सॉलिड काम करके ही बनाई जा सकती है।” शहडोल में राष्ट्रीय युवा संगठन का 2003 में एक आवासीय कैम्प लगा था उसमें किसी ने कहा कि जाओ और कुछ सीखो, कैम्प में जाने पर वहां काफी लोग मिले और अजमत को लगा कि शायद यह वो जगह है जहां से कुछ हासिल भी किया जा सकता है और सीखा भी जा सकता है।

“उस कैम्प में जो सम्मान मिला और हमारी हर बात को ध्यान से सुना गया वह हमारे लिए अनोखा था, इसलिए कि हमारी बात कोई सुनता नहीं था और फिर वहाँ सात दिन तक काफी अलग-अलग लोगों के भाषण हुए, साथ काम करने की बात हुई और यही वो क्षण था जिसने जीवन को एक दिशा दी।” 2005 में पास के जिले उमरिया में फिर एक कैम्प लगा जो पहाड़ी पर था और वहाँ आदिवासियों के साथ रहकर ही उनके साथ रहना खाना था और हमें उनकी मदद भी करने थी। उन आठ दिनों में हमने देखा कि जितनी आसानी से हम घरों में पानी का इस्तेमाल करते हैं और अन्न को कभी-कभी फेंक देते हैं उसी पानी और अन्न की लड़ाई इन आदिवासियों के लिए कितने मुश्किल हैं, मन बहुत विचलित हुआ और फिर लगा कि अब थोड़ा संजीदा होकर कुछ काम किया जाये।

राष्ट्रीय युवा संगठन ने उमरिया के इसी आकाश कोट वाले इलाके में अजमत को काम करने के लिए आमंत्रित किया, जुनून था जोश और कुछ करने की तमन्ना और वो दिन था कि आज का दिन अजमत आज भी उमरिया में काम कर रहे हैं और इस सबमें अपना जिला शहडोल छूट गया। परिवार से शुरू में काफी उम्मीदें थीं और इस तरह का काम पसंद नहीं था परन्तु धीरे-धीरे जब परिवार को अजमत ने बताया तो उन्हें भी समझ आया कि जरुरी और महत्वपूर्ण काम कर रहा है लड़का तो उन्होंने हस्तक्षेप करना बंद कर दिया। संगठन के दफ्तर में रहना, दाल चावल खाना और लोगों से दोस्ती करके उनकी दिक्कतें समझने की कोशिश करना, लगातार बैठकों प्रशिक्षणों से यह हुआ कि अलग-अलग तरह की संस्थाओं से जुड़ने का मौका मिला और सरकारी विभागों से जुड़ने का भी अवसर मिला। इस तरह लोगों के साथ लोगों की लड़ाइयां शुरू हुईं।

परन्तु रुपयों की जरूरत भी थी सो कुछ संस्थाओं में काम किया सरकारी प्रशिक्ष्ण किये और जैविक खेती के बारे में लोगों को बताया इसी समय एक आत्मा परियोजना से जुड़े तो खेती के काम में रूचि जगी और फिर खेती का भी काम लोगों के साथ आरम्भ किया। अजमत ने संदीप पांडे, अमरनाथ भाई, ठाकुरदास बंग आदि जैसे बड़े लोगों के साथ काम आरम्भ किया और देश में चलने वाले अलग-अलग आन्दोलनों से जुड़े साथ ही स्थानीय कार्यक्षेत्र के गाँवों में पंचायती राज को मजबूत करने के लिए, खेती और शिक्षा के लिए भी युवाओं का संगठन बनाकर काम किया। जन स्वास्थ्य सहयोग गनियारी, बिलासपुर के सहयोग से स्वास्थ्य के कई प्रशिक्षण खुद भी अटेंड किये साथ ही अपने गाँवों में स्वास्थ्य का काम किया। पोषण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल से लेकर वर्तमान में कोविड को लेकर भी काम कर रहे हैं।

अजमत कहते हैं “शिक्षा से खुद तैयार होकर ही लोगों को संगठित किया जा सकता है, संगठन से विकसित समाज को रचना हमारा उद्देश्य है, संघर्ष, सेवा, श्रम, श्रद्धा हमारे मूल्य हैं जो हम उमरिया जिले के लगभग 80 गाँवों में 800 युवाओं के संगठन के साथ फैला रहे हैं और शिक्षा स्वास्थ्य जैसे मुद्दों से लेकर उन्नत और जैविक खेती  के काम कर रहे हैं। सकारी संस्थाओं पर से लोगों का भरोसा हट सा गया है, पंचायतें और पंचायत के कर्मचारी अब दबाव बनाते हैं और लोगों के मुद्दों की बात करें तो शिकायत भी करते हैं जबकि हम लोग सरकार और लोगों के बीच पुल बनाने का काम करते हैं, कभी-कभी कोई ठीक प्रशासनिक अधिकारी आ जाता है तो सब कुछ स्मूथ होता है पर अधिकाँश समय लड़ना पड़ता ही है।

युवाओं के समक्ष इस समय में साम्प्रदायिकता और आजीविका की चुनौती सबसे बड़ी है यहां तक कि “मेरे अपने दोस्त जो कभी जाति धर्म की बात नहीं करते थे, अब मुझे मुसलमान समझने लगे हैं और यह सब बेहद दुखद है, कई बार लगता है कि अब तक जो अजमत इंसान था अचानक से कैसे मुसलमान हो गया।“ पर हम निराश नहीं हैं और लोगों के साथ सीधे बात ना करके अपने काम से यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि हम सब एक मानव समुदाय हैं और मानवता की सेवा और सबकी मदद करना ही हमारा मूल चरित्र है हालांकि गाँवों में भी अब यह समस्या पेश आने लगी है परन्तु वो अपना काम कर रहे हैं और हम अपना पर जीत हमारी होगी यह निश्चित है।

क्षेत्र में जागरूकता बढ़ी है, शिक्षा स्वास्थ्य को लेकर लोग बोलने लगे हैं, बड़े इलाके में खेती को लेकर लोगों ने प्रयोग किये हैं, जल जंगल जमीन के मुद्दे उठाने से स्थानीय नेतृत्व को भी अब ये प्राथमिकता के क्षेत्र लगते हैं, पलायन कम हुआ है और पंचायतों में आदिवासियों की भागीदारी भी बढ़ी है। राष्ट्रीय फलक से स्थानीयता के मुद्दे बिल्कुल फर्क है यहाँ डिजिटल इंडिया और गौरक्षा एक साथ नहीं हो सकता, इसके लिए एकदम भिन्न किस्म का काम करना होगा।

अजमत के घर पर आस-पास के गाँवों के करीब बीस बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं जो ठेठ अन्दर के गाँवों से हैं और जहां तक पहुंचना भी बहुधा मुश्किल होता है, अजमत एक जिम्मेदार अभिभावक की तरह से इन बच्चों को घर पर रखकर पढ़ाते हैं और देखभाल करते हैं, अभी तक करीब 200 बच्चे अजमत के घर रहकर पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और यहाँ वहां काम कर रहे हैं या उच्च शिक्षा ले रहे हैं, इनसे किसी भी प्रकार का वे शुल्क नहीं लेते और यह सारा खर्च वे दोस्तों की मदद से पूरा करते हैं। राष्ट्रीय युवा संगठन का इस क्षेत्र में बहुत काम है और इस सबको आगे बढ़ाने और विकसित करने में अजमत की भूमिका बहुत बड़ी है। खुदाई खिदमतगार से भी वे सघन रूप से जुड़े हुए हैं और साम्प्रदायिकता और मजहबी जूनून के खिलाफ लोगों को युवाओं को जागरूक करते रहते हैं।

अजमत जैसे युवा साथी जो बदलाव का स्वप्न लिए बंजर जमीन पर काम कर रहे हैं वह इस संदर्भ में प्रशंसनीय है कि आज जब युवा नौकरी, पैकेज और सुविधाओं या महानगरों की ओर दौड़ रहे हैं वहीं अजमत स्थानीय युवाओं और लोगों को जोड़कर कुछ बदलाव की कोशिश कर रहे हैं ताकि स्थानीय स्तर पर आजीविका, जल, जंगल और जमीन के मुद्दों को हल करते हुए स्वस्थ एवं शिक्षित समाज का नव निर्माण किया जा सके।

(संदीप नाईक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और आजकल भोपाल में रहते हैं।)

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