Saturday, April 27, 2024

शिक्षा बजट में कटौती: अनपढ़ और जाहिल समाज मौजूदा सत्ता की पहली पसंद

बजट 2021 – 22, सरकारी सम्पदा को बेचने यानी सरकार के शब्दों में विनिवेशीकरण या निजीकरण का एक दस्तावेज है, और इसे साइबर की तकनीकी भाषा मे कहें तो, यह एक टूलकिट की तरह है। सरकार, किसलिए अवतरित हुयी है यह शायद सरकार को ही पता हो, पर सच तो यह है कि सरकार के कथनानुसार, सरकार बिजनेस करने की चीज नहीं है। सरकार के प्रिएम्बल का खुलासा खुद सरकार के प्रधानमंत्री जी ने ही किया और एक बात साफ कर दी कि, सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है। उधर सरकार ने अपने मन की बात उजागर की, इधर दुंदुभिवादन शुरू हो गया, और पगड़ी क्षत्र चंवर की बात हरचरना गुनगुनाने लगा। सरकार बिजनेस के लिये नहीं बनी है, इस बात के निश्चित हो जाने के बाद, यह सवाल सरकार के दुंदिभिवादक नहीं पूछ सके कि, फिर सरकार किस काम के लिये धरती पर अवतरित हुयी है, क्योंकि सरकार को न तो  ज़बानदराजी पसंद है और न ही जवाबदेही, साथ ही असहज करने वाली पूछताछ। 

एक अजीब किस्म की गैरजिम्मेदारी, खुदगर्ज़ी और अहमकाना भरा दौर है यह, जहां पेट्रोल डीजल की कीमतों के बढ़ने पर सरकार यह तर्क देती है कि, तेल की कीमतें, अंतरराष्ट्रीय बाजार तय करता है, गैस की कीमत बढ़ने पर, मंत्री यह कहते हैं कि, सर्दी जब उतर जाएगी तो, गैस की कीमत गिर जाएगी, यानी मौसम के सर्द गर्म होने का असर गैस की कीमतों पर बढ़ता है। प्याज की बढ़ती कीमतों के बारे में सरकार, संसद में कहती है कि वह (वित्तमंत्री) प्याज नहीं खाती हैं। ऐसे ही अनेक हास्यास्पद जवाब आप को जीवन से जुड़े मुद्दों पर सवाल उठाने पर मिलेंगे, पर इन सब जवाबों के पहले देशद्रोही का तकियाकलाम तो सुनना ही पड़ेगा। आज बजट 2021 – 22 के संदर्भ में शिक्षा की क्या स्थिति है, इस विषय पर एक समीक्षा करते हैं। 

इस बार के बजट 2021 – 22 में सरकार ने शिक्षा के मद में भी कटौती की है। शिक्षा और स्वास्थ्य, भोजन तथा आवास के बाद सबसे महत्वपूर्ण मौलिक आवश्यकता है। लेकिन शिक्षा को लेकर वर्तमान सरकार का रवैया, इस बजट के आलोक में, निराशाजनक रहा है। कोरोना आपदा के बाद अब जन जीवन सामान्य हो रहा है, लेकिन इस आपदा में सबसे अधिक जिन सेक्टरों में उक्त महामारी का असर पड़ा है, उनमें शिक्षा का क्षेत्र भी शामिल है। साल भर से, स्कूल कॉलेज बंद हैं, और इसका कुप्रभाव न केवल पढ़ाई पर पड़ा है, बल्कि स्कूलों और कॉलेजों में काम करने वाले स्टाफ़ और अध्यापकों के जीवन यापन पर भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से पड़ रहा है। इस वैश्विक आपदा के कारण जब जनजीवन थम गया तो स्कूलों और कॉलेजों में भी पढ़ाई वर्चुअल यानी ऑनलाइन होने लगी। भारत में वर्चुअल या ऑनलाइन पढ़ाई के  कारण छात्रों और अध्यापकों के समक्ष बहुत सी दिक्कतें आयीं।

यह समस्या, कम्प्यूटर, अच्छे स्मार्टफोन, टैब या मोबाइल सहित अन्य उपकरणों को लेकर तो थी ही, साथ ही इंटरनेट कनेक्टिविटी और उसकी सुलभता को लेकर भी थी। शहरों में तो, कुछ बेहतर सुविधाएं उपलब्ध थीं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी समस्या का होना आम बात है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्तरीय नेट कनेक्टिविटी, और अच्छे स्मार्टफोन तथा कम्प्यूटर के अभाव के काऱण, वर्चुअल कक्षाओं का लाभ, ग्रामीण क्षेत्र के छात्र उतनी सक्षमता से नहीं उठा पाए जितनी दक्षता से शहरी क्षेत्रो के छात्रों ने लाभ उठाया था। अब जाकर स्कूल और कॉलेज कुछ खुले हैं, पर अभी भी कोरोना पूर्व की समान्य स्थिति बहाल नहीं हो पायी है। यहां तक कि, शहरी क्षेत्रों में भी, निम्न सामाजिक और आर्थिक वर्ग के छात्रों के समक्ष भी इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों का अभाव रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार का यह दायित्व था कि वह, इस साल के बजट में वह शिक्षा को प्राथमिकता देती, ताकि पिछले साल के आपदाजन्य गतिरोध से थोड़ी मुक्ति तो मिलती।

अब बात कुछ बजट के आंकड़ों की। बजट 2021-22 में शिक्षा मंत्रालय को 93,224.31 करोड़ रूपए आवंटित किए गए है। वित्त वर्ष 2020-21 के मूल बजटीय आवंटन में मंत्रालय को 99,311.52 करोड़ रूपए आवंटित किये गये थे, जो बाद में संशोधित होकर 85,089 करोड़ रूपए हो गया था क्योंकि देश में कोविड-19 महामारी का संकट था और संक्रमण के प्रकोप के कारण कक्षाओं को बंद करना पड़ा था। वर्तमान बजट के अनुसार, स्कूली शिक्षा विभाग को 54,873 करोड़ रूपए प्राप्त हुए हैं जो पिछले बजट में 59,845 करोड़ रूपए थे । यह 4,971 करोड़ रूपए की कमी को दर्शाता है।

उच्च शिक्षा विभाग को इस बार 38,350 करोड़ रूपए का आवंटन किया गया है जो पिछले बजट में 39,466.52 करोड़ रूपए रहा था। बजट में स्कूली शिक्षा योजना समग्र शिक्षा अभियान के आवंटन में कमी दर्ज की गई है और इसके लिए 31,050 करोड़ रूपए का आवंटन किया गया है जो पिछले बजट में 38,750 करोड़ रूपए था। लड़कियों के लिए माध्यमिक शिक्षा की राष्ट्रीय प्रोत्साहन योजना के लिए आवंटन महज एक करोड़ रूपए किया गया है जो चालू वित्त वर्ष में 110 करोड़ रूपए था।

केंद्रीय विद्यालयों के लिए आवंटन बढ़कर 6,800 करोड़ रूपए तथा नवोदय विद्यालयों के लिए आवंटन 500 करोड़ रूपए बढ़ाकर 3,800 करोड़ रूपए किया गया है। मध्याह्न भोजन योजना का बजट 11,500 करोड़ रूपए किया गया है, जो पिछले साल की आवंटित धनराशि से कम है। केंद्र सरकार ने, भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन के प्रस्ताव के क्रियान्वयन की भी बात की है।  वित्त मंत्री ने संसद में बजट 2021-22 पेश करते हुए कहा था, ” बजट 2019-20 में मैंने भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग गठित करने के बारे में उल्लेख किया था। हम उसे क्रियान्वित करने के लिए इस वर्ष विधान पेश करेंगे। यह एक शीर्ष निकाय होगा जिसमें मानक बनाने, प्रत्यायन एवं मान्यता, विनियमन एवं वित्त पोषण के लिए चार अलग-अलग घटक होंगे।”

इसके अतिरिक्त निम्न घोषणाएं भी की गयीं। बजट भाषण के अनुसार, 

● कई शहरों में विभिन्न अनुसंधान संस्थान, विश्वविद्यालय और कॉलेज हैं जो सरकार के समर्थन से चलते हैं। उदाहरण के लिए हैदराबाद, जहां तकरीबन 40 मुख्य संस्थान हैं। इसी तरह 9 अन्य शहरों में हम इसी तरह का एक समग्र ढांचा खड़ा करेंगे जिससे इन संस्थानों में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो सकें, साथ ही इनकी स्वायत्तता बरकरार रह सके। 

● इस उद्देश्य के लिए एक विशिष्ट अनुदान की शुरुआत की जाएगी। 

● देश के 15,000 से अधिक स्कूल, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सभी पक्षों को शामिल करेंगे जिससे देश में शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूत किया जा सके और वे अपने क्षेत्र के लिए बेहतर स्कूल के उदाहरण के रुप में उभर सकें। 

● 100 नए सैनिक स्कूलों की स्थापना एनजीओ/निजी स्कूलों/राज्यों के साथ साझेदारी में की जाएगी। सैनिक स्कूलों को बजाय एनजीओ द्वारा स्थापित करने और चलाने के इसे एक अलग से बोर्ड बना कर सरकार को अपनी देखरेख में संचालित करना चाहिए। 

● लद्दाख में उच्च शिक्षा के लिए लेह में एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय के गठन का प्रस्ताव है। 

● जनजाति क्षेत्रों में 750 एकलव्य मॉडल आवसीय स्कूलों की स्थापना का लक्ष्य है। 

● ऐसे स्कूलों की इकाई लागत को 20 करोड़ रूपए से बढ़ाकर 38 करोड़ रूपए करने का है, और पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्रों के लिए इसे बढ़ाकर 48 करोड़ रूपए करने का प्रस्ताव है।

● जनजातीय विद्यार्थियों के लिए आधारभूत सुविधा के विकास में मदद और अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना का पुनरूद्धार किया गया है। इस संबंध में केंद्र की सहायता में भी वृद्धि की गयी है। 

● अनुसूचित जाति के 4 करोड़ विद्यार्थियों के लिए 2025-26 तक की छह वर्षों की अवधि के लिए 35,219 करोड़ रूपए का आवंटन किया गया है। 

बजट में की गयी धन आवंटन की कमी का असर, शिक्षा के क्षेत्र में चल रही कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं पर भी पड़ेगा। जैसे,

●  समग्र शिक्षा अभियान, जो सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना है में, पिछले बजट में जहां 38,751 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, वहां इस साल, यह आवंटन घटा कर, 31,050 करोड़ रुपये का, कर दिया गया है। 

● राष्ट्रीय शिक्षा मिशन जिसमें शिक्षकों की शिक्षा का बिंदु भी सम्मिलित है, में वर्तमान बजट में आवंटन 31,300.16 करोड़ रुपये का कर दिया गया है, जबकि पिछले साल इसी मद में 38,840.50 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था।  

● बच्चों को दोपहर में भोजन देने की योजना के अंतर्गत, मिड डे मील में सरकार ने, पिछले बजट के आवंटन 12,900 करोड़ रुपये की तुलना में, 11,500 करोड़ रुपये का आवंटन इस साल किया है। 

कोरोना ने न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से निम्न वर्ग की शिक्षा को प्रभावित किया है, बल्कि उन बच्चों के कुपोषण को भी प्रभावित किया है जिन्हें स्कूलों में दोपहर का भोजन मिलता था। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वंचित और आर्थिक रूप से विपन्न वर्ग के बच्चों के लिये मिड डे मील एक बड़ी सुविधा के रूप में था, जिस पर कम बजट आवंटन का का असर पड़ सकता है। 

आज कोरोना से काफी राहत मिल चुकी है। वैक्सीन भी आ गयी है और टीकाकरण भी चल रहा है। हालांकि कोरोना का दूसरा स्ट्रेन भी आ गया है पर बाजार, मॉल, उद्योग, कल कारखाने आदि खुल गए हैं। धार्मिक आयोजन हो रहे हैं, कुंभ का सबसे बड़ा मेला लगने वाला है, और बड़ी-बड़ी भीड़ भरी चुनावी जन सभाएं हो रही हैं। लेकिन स्कूलों और कॉलेज में अब तक नियमित पढ़ाई शुरू नहीं हो पायी है। सरकार के पास ऐसी कोई योजना भी नहीं है कि वह स्कूलों और कॉलेज को प्राथमिकता के आधार पर खोलने और शैक्षिक गतिविधियों को जारी रखने पर आगे बढ़े। अब तक देश मे इस पर भ्रम का वातावरण है। कुछ राज्यों ने अपने अपने राज्य में स्कूल कॉलेज खोले भी थे, जैसे आन्ध्र प्रदेश ने सबसे पहले अपने राज्य में स्कूल कॉलेज खोले थे, पर जब संक्रमण के मामले आने और बढ़ने लगे तो उन्हें बंद करना पड़ा।

अधिकतर राज्यों ने अपने स्कूल कॉलेज जनवरी तक बंद भी रखे हैं। कोरोना से बचने के लिये सैनिटाइजर, मास्क आदि निरोधक उपायों के बावजूद, स्कूल कॉलेजों में स्वस्थपूर्ण जीवन शैली और जन स्वच्छता के प्रति सामान्य जागरूकता के साथ साथ संसाधनों की भी कमी है। इस पर अभी न केवल ध्यान देना होगा, बल्कि छात्रों और अध्यापकों को भी जागरूक करना पड़ेगा। इन सबके लिये कोरोनोत्तर काल में धन की अलग से व्यवस्था की जानी चाहिए जो इस बार के बजट में नहीं की गयी है। अब साफ सफाई के प्रति जन जागरूकता और जन स्वच्छता एक औपचारिक संदेश या क्युरिकलम के रूप में ही नहीं देखा जा सकता है, बल्कि स्वस्थ और रोगरहित रहने के लिये, जीवन के एक अनिवार्य अंग के रूप में इसे स्वीकार करना पड़ेगा, क्योंकि वैक्सीन की खोज और चल रहे टीकाकरण के बावजूद, कोरोना महामारी का ख़तरा अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि वह अभी भी बरकरार है, बस उसका स्वरूप और स्वभाव ज़रूर बदला हुआ है। 

कोरोना आपदा की महामारी के बीच, जब देश की जीडीपी माइनस 23.9 % तक आ गिरी हो, तो, ऐसी विषम परिस्थितियों में, वर्ष 2021 – 22 का बजट तैयार करना किसी भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। खास कर ऐसे समय मे जब, सरकार की सिवाय, बिना सोचे समझे, सब कुछ बेच देने की आत्मघाती निजीकरण की नीति के अतिरिक्त अन्य कोई आर्थिक सोच सूझती ही न हो। इसमे कोई दो राय नही कि, कोरोना काल मे देश की  आर्थिकी को बहुत नुकसान पहुंचा है। लेकिन यदि अर्थव्यवस्था की समीक्षा के दौरान विभिन्न आर्थिक सूचकांकों को देखें तो देश की आर्थिकी में गिरावट 8 नवम्बर, 2016 की रात 8 बजे घोषित अब तक के सबसे विवादास्पद आर्थिक घोषणा नोटबन्दी के बाद से ही शुरू हो गयी थी। अर्थव्यवस्था तो मार्च 2020 में ही लड़खड़ाने लगी थी, तभी कोरोना आ गया और उससे आर्थिकी ध्वस्त हो गयी। अब कुछ उम्मीद बंधी है। लेकिन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में इस गिरावट से उबरने की किसी स्पष्ट नीति का अभाव भी इस बजट 2021 – 22 में साफ साफ दिखता है। 

इसमे कोई दो राय नहीं है कि एक महामारी की आपदा में सबसे अधिक जोर और सरकार का व्यय स्वास्थ्य सेक्टर पर होना चाहिए। बल्कि स्वास्थ्य के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर नियमित ध्यान दिया जाना चाहिए। सरकार ने कोरोना काल मे तमाम अफरातफरी और बदहवासी भरे निर्णयों के बीच महामारी को नियंत्रण में रखने के उपाय भी किये। दुनियाभर में कोरोना आपदा के असर को देखते हुए भारत मे यह महामारी काफी हद तक नियंत्रित भी रही है। लेकिन, शिक्षा का भी महत्व स्वास्थ्य से कम नहीं है। बल्कि यह जीवन से जुड़े मुद्दों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और समाज तथा जनजीवन के विकास में इसका सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। बजट 2021 – 22 में की गयी कटौती, शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। 

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

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