Friday, April 19, 2024

युवाओं का भविष्य अंधेरे में: सरकार ने बंद किए रोजगार के सारे रास्ते

हिन्दी उपन्यास साहित्य में एक सन्दर्भ के दौरान कभी साहित्यकार मधुरेश ने लिखा था, “यह मोह भंग एक तरह से पूरी स्वतंत्रताकामी शक्तियों का ही मोहभंग है। सत्ताकामी और अवसरवादी राजनीति ने जनता के इस संघर्ष को आज व्यर्थ कर दिया है लेकिन हताशा के अस्थाई दूर के बावजूद संघर्ष का रास्ता कभी बंद नहीं होता। हताशा के इस दौर का भी अपना महत्व है क्योंकि इसी के बीच जनता अपनी भावी रणनीति तय करके संघर्ष का नया हौसला भी पैदा करती है।”

मधुरेश की बातें आज के युवा मन को उकेरती हैं। युवा बेरोजगारी से परेशान है, त्रस्त है। कोई भर्ती ऐसी पूरी नहीं होती जिसमें धांधली की खबरें न आती हों। अभी कुछ दिनों पहले बिहार और इलाहाबाद में छात्रों का गुस्सा फूटा था। मामला आरआरबी एनटीपीसी परीक्षा में बरती गई अनियमितताओं को लेकर था, छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर रेलवे के कई बड़े अफसरों तक को शिकायती पत्र भेजा, इसके बावजूद कोई सुनवाई नहीं हो पाई।

छात्रों ने फिर भी संयम बरता लेकिन फोर्स की प्रतिक्रिया स्वरूप आन्दोलन हिंसक हो गया। प्रदर्शन कर रहे छात्रों को धमकी के लहजे में रेलवे ने एक नोटिस जारी करते हुए कहा, “रेलवे भर्ती बोर्ड की एनटीपीसी परीक्षा को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे प्रतिभागियों को अब रेलवे या सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी”। नोटिस में सख्‍त लहजे में चेतावनी देते हुए कहा कि, “ऐसे प्रतिभागियों की पहचान के लिए जांच एजेंसियों का सहारा लिया जाएगा। रेलवे ट्रैक और रेल संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले प्रतिभागियों पर पुलिस कार्रवाई के साथ साथ नौकरी के लिए आजीवन प्रतिबंध लगाया जा सकता है।” बहरहाल अब रेलवे छात्रों की मांगों को मानने का दावा कर रहा है। बेरोजगार युवाओं के मन में क्या है! यह जानने के लिए जनचौक ने इस तबके के कुछ प्रतियोगी छात्रों से बात की।

संदीप कुमार जिला अमरोहा के एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से आते हैं, आज से करीब 8 महीने पहले गुरुग्राम स्थित एक अमेज़न कम्पनी में संदीप को नौकरी मिली थी, आस जगी थी जेब में कुछ पैसे आएंगे तो घर वालों को सहारा देंगे लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था, कंपनी की तरफ से दी जाने वाली सैलरी इतनी कम थी कि किराये पर रहकर बचत कर पाना मुश्किल था, किराएदार ने संदीप को किराए के लिए विवश किया।

संदीप।

नतीजतन संदीप को नौकरी छोड़नी पड़ी और वह सामान उठाकर अपने घर आ गये। चूंकि संदीप एक मेहनती और ईमानदार शख्स हैं, इसलिए पढ़ाई करने के इरादे से मुरादाबाद आ गए। मुरादाबाद जिले के ही एक कॉलेज में संदीप ने अपनी पढ़ाई लिखाई के बलबूते पर डीएलएड के एक सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया और साथ में उन्होंने कंपटीशन की तैयारी शुरू कर दी लेकिन भूखा पेट और खाली जेब कब तक साथ दे सकते हैं, बेरोजगारी की आर्थिक मार ऐसी पड़ी कि, संदीप को फिर वापस घर आना पड़ा।

 संदीप उस समय अपने धान की कटाई कर रहे थे जब संदीप के एक दोस्त ने उन्हें फोन कर बताया कि उनकी एनटीपीसी (NTPC) और आरआरबी (RRB) ग्रुप-डी की डेट आ गई है। वरना तो वह भूल गए थे उन्होंने कोई फार्म भी भरा था। और उस 2019 में होने वाली भर्ती की परीक्षा तिथि अब आई है। घर वालों को इस बारे में पता चला। उन्होंने कर्ज़ पानी करके एक बार फिर बेटे को परीक्षा की तैयारी के लिए मुरादाबाद भेज दिया। जैसे-तैसे संदीप ने अपनी लगन से आरआरबी एनटीपीसी, ग्रुप-डी का एग्जाम दिया। इस परीक्षा की पड़ने वाली मार यहीं नहीं खत्म नहीं हुई। संदीप अब अपने घर घूमने आये थे सूचना आई कि आरआरबी ग्रुप-डी एग्जाम क्वालीफाई करने के लिए CBT 2 की परीक्षा आयोजित करायी जाएगी। गौरतलब है कि रेलवे के नोटिफिकेशन के अनुसार पहले ग्रुप डी भर्ती परीक्षा 1 फेज में आयोजित की जानी थी, लेकिन बाद में रेलवे ने नोटिफिकेशन जारी कर CBT-2 का चरण भी जोड़ दिया। जिसके बाद उम्मीदवारों ने इसे लेकर विरोध-प्रदर्शन किए।

यह सुनकर संदीप का दर्ज शब्दों के रूप में फूट पड़ा, “हम किसान के बेटे हैं, किसान परिवार से आते हैं। फार्म भरने से पहले 100 बार सोचना पड़ता है, कभी-कभी ऐसा होता है कि घर वालों के पास पैसे नहीं होते तो घर वाले कह देते हैं कि, बेटा अभी फसल तो बिकने दो तब फार्म भर लेना। ऐसे में आरआरबी ग्रुप डी के लिए CBT 2 कराना हमारे साथ बेइमानी है”। संदीप केवल फार्म भरने और एग्जाम देने की समस्या से ही पीड़ित नहीं हैं। परीक्षा के बाद होने वाली धांधली उन जैसे लोगों पर भारी पड़ रही है। उन्होंने अपनी पीड़ा का कुछ इन हर्फों में मुजाहिरा किया, “एनटीपीसी रिजल्ट में इस कदर धांधली की गई है जिस बच्चे के कटऑफ से काफी कम नंबर थे उसका लिस्ट में नाम है और जो कटऑफ में था वह लिस्ट से बाहर है।”

इतनी कोशिशों के बाद भी बेरोजगारी का तमगा संदीप अपने सीने से नहीं हटा सके। लिहाजा एक बार फिर उन्हें उसी रूप में वापस घर आना पड़ा। आज हकीकत में बेरोजगार समाज का वह चेहरा है जिसे कोई देखना पसंद नहीं करेगा। संदीप रेलवे की इस कृत्य से व्यथित हैं, उसकी संवेदना आंसुओं से बाहर झांक रही है।

बरेली जिले के मीरगंज इलाके के एक किसान परिवार से आने वाले दिनेश भी मुरादाबाद में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। सिविल सर्विसेज तो अब इन छात्रों के लिए किसी सपने जैसा है। लिहाजा उन्होंने अभी ग्रुप डी और एनटीपीसी का एग्जाम दिया है, लेकिन परीक्षाओं में बढ़ती जा रही अनियमितताओं को लेकर दिनेश हताश हैं, “आज परीक्षाओं का पैटर्न बेहूदा हो चुका है। किस परीक्षा में किस स्तर के सवाल पूछ लिए जाएं कुछ निश्चित नहीं है। उधर सरकारों के द्वारा लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहा बेरोजगार युवा परेशान है। हमें दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। यदि हमारी सरकारी नौकरी नहीं लगी तो हम भी सरकार के द्वारा निजीकरण की अंधी भीड़ में झोंक दिए जाएंगे।”

दिनेश।

यह कहानी केवल संदीप और दिनेश जैसों की ही नहीं, उन लाखों-करोड़ों युवाओं की है, जो चंद सपने लेकर शहर की तरफ पलायन करते हैं। मुरादाबाद के कांठ में रहने वाले नितिन और प्रियांशु ने सन् 2020(1) में एयरफोर्स की परीक्षा दी थी इतना समय बीत जाने के बावजूद भी फाइनल लिस्ट नहीं आयी। देहरादून की कैडेट्स डिफेंस एकेडमी से दोनों प्रतियोगी छात्रों ने परीक्षा की तैयारी जी-जान से की, लेकिन रिजल्ट में देरी के चलते आज केवल निराशा हाथ लगी है। नितिन और प्रियांशु दोनों प्रतियोगी छात्रों ने साल 2021 में भी एयरफोर्स-2021(2) की परीक्षा दी लेकिन 6 महीने बीतने के बाद अभी तक प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम भी घोषित नहीं किया गया। परीक्षा परिणाम में देरी होने के कारण दोनों छात्र हताश हैं।

वहीं बलिया जिले के रहने वाले विकास फिलहाल प्रयागराज में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं, देश में सरकारी परीक्षाओं के हालात उन्हें हताश कर देते हैं, “हम एक अघोषित अंधकारमय भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं। सरकार भारत के मानव संसाधन का दुरुपयोग करने पर तुली है, वर्ष 2008 में जब वित्तीय आपातकाल की समस्या हमारे सामने आयी थी तब देश का मानव संसाधन अर्थव्यवस्था की रीढ़ साबित हुआ था लेकिन आज मानव संसाधन का दोहन किया जा रहा है, युवा कौशल की लगातार उपेक्षा की जा रही है।”

मूलत: पीलीभीत निवासी प्रतियोगी छात्र संतोष गंगवार आज से 2 साल पहले सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए बरेली आए। नौकरियों और परीक्षाओं के प्रति सरकारी उपेक्षा ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया है, “सरकार एक तो वैकेंसी कम निकालती है ऊपर से परीक्षा रद्द हो जाती है। टैट(TET) में क्या हुआ! यही हुआ। अभी हम दरोगा का पेपर देकर आए हैं, तुम देखना उत्तर प्रदेश के चुनाव समाप्त होने के बाद यदि यही सरकार फिर से बनी तो दरोगा की एक-एक सीट 20 लाख से कम में नहीं बिकेगी।”

संतोष गंगवार।

जनचौक ने जब संतोष से आरआरबी ग्रुप डी एनटीपीसी से उठे छात्र आंदोलन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “रेल मंत्री ने एक समिति बना दी है और बता दिया गया कि 3 हफ्ते तक आराम से अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।” संतोष कहते हैं, ” सरकार किसी भी तरीके से छात्र आंदोलन के इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव समाप्त होने तक टालना चाहती है, लेकिन सरकार को यह नहीं पता जब ज्वालामुखी फटता है तो दहक से पूरी धरती को हिला देता है। बेरोजगारों का गुस्सा अब ज्यादा समय टिक नहीं पाएगा।”

देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी सिविल सेवाओं में हिंदी के लगातार गिरते वर्चस्व को लेकर देश के युवाओं में रोष है। प्रतियोगी छात्र मनोज कुमार का कहना है, ” साल 2014 के बाद से हिन्दी माध्यम से सिविल सेवा के परिणामों में कमी आयी है। बाद के कुछ सालों में तो हिन्दी माध्यम से रिजल्ट बेहद निराशाजनक है, रिजल्ट 2% तक सिमट कर रह गया है।” यूपीएससी अपने रवैये में बदलाव करने को तैयार नहीं है इधर अभ्यर्थियों का आंदोलन भी मुखर्जी नगर से लेकर करोलबाग तक सिमटकर रह जाता है।

देश में बेरोजगारी ने कमर तोड़ दी है। अर्थव्यवस्था की स्थिति पर नजर रखने वाली गैर-सरकारी संस्था सीएमआई ने 5 फरवरी के आंकड़े जारी करते हुए कहा कि इस महीने में बेरोजगारी दर 6.9% पहुंच गई है। जिसमें शहरी बेरोजगारी दर 8% है और ग्रामीण बेरोजगारी दर 6.3% है। बेरोजगारी दर से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में रोजगार के अवसर किस कदर स्थापित हुए हैं।

(अमरोहा से स्वतंत्र पत्रकार प्रत्यक्ष मिश्रा की रिपोर्ट।)

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