Friday, April 19, 2024

विशेष चुनाव रिपोर्ट: मथुरा में दिख रहा है सरकार के खिलाफ गुस्सा

पहले चरण में उत्तर प्रदेश के जिन 11 जिलों में चुनाव होना है उनमें मथुरा भी है। मथुरा जिला की पांच विधानसभा सीटें छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव हैं।

मथुरा संवेदनशील क्षेत्र है। संवेदनशील इस मायने में कि अयोध्या राम मंदिर मुद्दा खत्म होने के बाद आरएसएस भाजपा ने अपने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये अब मथुरा पर आंखें गड़ा दी हैं। दिसंबर महीने में केशव मौर्या ने –“अब मथुरा की बारी है” बयान ट्वीट करके मुद्दे को हवा दी। जब विपक्ष ने सांप्रदायिक एजेंडे पर घेरा तो केशव मौर्या ने उन्हें भी सांप्रदायिक लपेटे में लेते हुये प्रतिप्रश्न उछाल दिया कि “मेरा अखिलेश जी से सवाल है कि वह श्री कृष्ण जन्मभूमि पर भव्य मंदिर चाहते हैं या नहीं? इसका उन्हें जवाब देना पड़ेगा।” वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मथुरा से चुनाव लड़ाने की कवायद भी की गई।

छोटे बच्चों की शिक्षा से जुड़े सौरभ चतुर्वेदी मथुरा की राजनीतिक समाजिक हालात पर गहरी नज़र रखते हैं। सौरभ जनचौक को बताते हैं कि – भाजपा ने मथुरा में सांप्रदायिक ट्रॉयल मारा था। जैसे राम मंदिर के मुद्दे पर अयोध्या में लोगों में एक उन्माद पैदा किया था। वैसे ही कृष्ण मंदिर के नाम पर मथुरा के लोगों में उन्माद पैदा करने की कोशिश की। 6 दिसंबर को मथुरा इलाके में तनाव भी था। लेकिन मथुरा के स्थानीय लोगों ने उस सांप्रदायिक उन्माद में हिस्सा नहीं लिया। यहां तक की मथुरा के पुराने भाजपाई नेताओं ने कृष्ण मंदिर की बीमारी में भाग नहीं लिया। अंदरखाने ज़रूर कुछ चलता रहा लेकिन बहुत प्रभावी ढंग से बाहर निकलकर समर्थन नहीं किया। यहां तक कि मथुरा के ब्राह्मण समाज के, ब्राह्मण सभा तीर्थ पुरोहित सभा ने इसका पुरजोर विरोध किया और कहा कि बाहर के लोग आकर मथुरा का माहौल खराब कर रहे हैं।

सौरभ आगे कहते हैं – “इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा जिस तरीके का सांप्रदायिक माहौल किसान आंदोलन के समानान्तर बनाना चाहती थी मथुरा में कि कृष्ण मंदिर का मसला उठाकर माहौल बनायेंगे और योगी आदित्यनाथ को खड़ाकर चुनाव जीत लेंगे वो इनका इरादा फ्लॉप हो गया। क्योंकि लोगों के ऊपर सांप्रदायिकता के बजाय महंगाई, बेरोज़गारी के मुद्दे हावी थे। वर्ना तो योगी आदित्यनाथ का मथुरा से चुनाव लड़ते। और कृष्ण मंदिर के मुद्दे को लहर में बदलकर कृष्ण मंदिर के नाम पर वोट पड़वाते। लेकिन इनकी चाल नहीं चल पाई क्योंकि किसान आंदोलन का ताजा असर था, महंगाई, बेरोज़गारी का मुद्दा लोगों के पास है, ताजा प्रकरण में भाजपा के विधायकों का समाजवादी पार्टी में जाने से ये बैकफुट पर आ गये हैं। 

सौरभ चतुर्वेदी मथुरा के पांचों विधानसभा पर विस्तार से बात करते हुये बताते हैं कि – मथुरा वृंदावन विधानसभा क्षेत्र में श्रीकांत शर्मा मौजूदा विधायक हैं और ऊर्जा मंत्री भी हैं उत्तर प्रदेश सरकार में। इससे पहले प्रदीप माथुर कांग्रेस से तीन बार विधायक रहे हैं। 2012 में जब दो ही विधायक कांग्रेस के हुये थे उसमें एक प्रदीप माथुर भी थे। पिछली बार उन्हें श्रीकांत शर्मा ने चुनाव हराया था। प्रदीप माथुर क्षेत्रीय नेता हैं और लोगों से उनकी ट्यूनिंग बहुत अच्छी रहती है। जेएनआरएम योजना उन्होंने अपने क्षेत्र में लागू करवाया था।

लेकिन 2017 में विकास का मुद्दा पीछे छूट गया और हिंदुत्व का मुद्दा आगे आ गया। मोदी लहर थी तो जीत गये श्री कांत शर्मा। लेकिन खुद भाजपा और आरएसएस का ही एक गुट उनसे नाराज़ है और उनके ख़िलाफ़ है। महंगी बिजली और बेरोज़गारी से लोग नाराज़ हैं इस सरकार से। बिजली विभाग का एक घोटाला समाने आया है। उसे दबा दिया गया। दो दिन पहले बिजली विभाग के संविदा पर काम करने वाले लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था। तो मौजूदा भाजपा विधायक के प्रति नाराज़गी है लोगों में। सपा और कांग्रेस प्रत्याशी के जीतने की उम्मीद है यहां से।

जाट बाहुल्य मांट विधानसभा के बारे में सौरभ चतुर्वेंदी बताते हैं कि- “पिछले 40 साल से एक ही व्यक्ति विधायक बन रहा है। 8 बार विधायक रहे हैं श्याम सुंदर शर्मा। उनका व्यवहार जबर्दस्त है। वो फिलहाल बसपा में हैं। मथुरा की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है उन्हें। वो एक बार सरकार में मंत्री रहे हैं। क्षेत्र में कोई बहुत विकास नहीं हुआ है लेकिन सिर्फ़ निजी व्यवहार के नाते वो जनता के चहेते बने हुये हैं। भाजपा से राजेश चौधरी जाट हैं। रालोद-सपा ने योगेश नारवाल को उतारा है।

वो आगे बताते हैं कि किसान आंदोलन में शामिल होने के लिये मथुरा जिले मांट विधानसभा इलाके से सबसे ज़्यादा लोग शामिल हो रहे थे। तो यहां की किसानों में भाजपा के प्रति गुस्सा है। 2017 के चुनाव में कारोबारी एसके शर्मा को भाजपा ने टिकट दिया था। 60 हजार से अधिक वोट मिले थे उसे। लेकिन उसे टिकट नहीं दिया। इससे नाराज़ होकर भाजपा के एसके शर्मा गुट ने भाजपा का जिला कार्यालय का घेराव और तालाबंदी और नारेबाजी की है। इसका नुकसान मांट में भाजपा को होगा। बसपा प्रत्याशी के जीतने के पूरे आसार हैं।

सौरभ चतुर्वेदी बताते हैं कि बलदेव छाता और मांट विधानसभा में किसान आंदोलन का असर देखने को मिलेगा। मांट में सबसे ज़्यादा रहेगा। छाता विधानसभा के किसान लगातार किसान आंदोलन में दिल्ली बॉर्डर पर जमे रहे।

छाता विधानसभा में भाजपा ने लक्ष्मी नारायण चौधरी को टिकट दिया है। ये उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। ताक़तवर कैंडिडेट हैं लेकिन किसान आंदोलन की लहर के चलते रालोद को फायदा होगा।

बलदेव सीट से पूरन प्रकाश विधायक हैं। पहले रालोद, फिर बसपा में अब 2017 चुनाव से एक महीने पहले ही वो भाजपाई बन गए। रालोद ने बबीता देवी को टिकट दिया है। उनका कोई राजनीतिक सामाजिक पहचान या काम नहीं है। बल्कि एक समाजसेवी हैं रोहित। लोग रोहित को रालोद प्रत्याशी के तौर पर देखना चाहते थे। उनका लोगों से अच्छा कनेक्शन है। उन्हें टिकट न मिलने से लोगों में नाराज़गी है। बलदेव विधानसभा में मुद्दा विकास का है। कोहू गांव में 6 महीने पहले अचानक से बुखार से कई बच्चे मर गये। डेंगू का प्रकोप सबसे पहले कोहू गांव में स्पॉट किया गया था। कोहू गांव के लोगों ने मारा नहीं था लेकिन जलील करके पूरन प्रकाश विधायक को भगाया था। क्योंकि इलाके में कोई स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है। लोग नाराज़ हैं भाजपा से।

सौरभ मुद्दे के बाबत कहते हैं कि कोविड मिसमैनेजमेंट की टीस लोगों के मन में है लेकिन ज़ख्म उस तरह से नहीं बाकी हैं, लोग भूल गये हैं लेकिन कोविड से हुई बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं। इससे लोगों में नाराज़गी है। महंगाई एक मुद्दा है यहां।

जीतने की संभावना पर सौरभ चतुर्वेदी कहते हैं छाता, बलदेव और गोवर्धन सीट पर रालोद प्रत्याशी के जीतने के पूरे आसार हैं। मांट विधानसभा से बसपा और मथुरा विधानसभा से कांग्रेस के जीतने की संभावना ज़्यादा है।

बलदेव विधानसभा सीट 

बलदेव सीट अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित सीट है। 2012 के चुनाव से पहले ये विधानसभा सीट गोकुल विधानसभा सीट के नाम से जानी जाती थी। 2008 के परिसीमन के बाद गोकुल विधानसभा सीट का नाम बदलकर बलदेव विधानसभा सीट हो गया।

बलदेव (SC) विधानसभा में लगभग 3 लाख 50 हजार मतदाता हैं। यह जाट बाहुल्य सीट है। यहां 1 लाख 5 हज़ार जाट मतदाता, 60 हज़ार अनुसूचित मतदाता, 50 हजार ब्राह्मण मतदाता, सैनी 40 हजार, बघेल 40 हजार, यादव 40 हजार हैं।

साल 2017 चुनाव में भाजपा के पूरन प्रकाश ने रालोद प्रत्याशी को 13208 वोट से हराया था। पूरन प्रकाश को 88411 वोट मिले थे। रालोद से निरंजन सिंह धनगर को 75203 वोट मिले थे। बसपा से प्रेम चंद को 53539 वोट मिले थे।

बलदेव सीट से बसपा अशोक कुमार सुमन को प्रत्याशी बनाया है। रालोद ने बबीता देवी को टिकट दिया है। और कांग्रेस ने विनेश कुमार सनवाल वाल्मीक को टिकट दिया है।

अब की बार मतदाताओं में मौजूदा विधायकों और सत्ता के प्रति नाराज़गी है। लोग मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। सड़कें और पानी बड़ी समस्या है। किसान लगातार सिंचाई के लिए पानी की मांग को लेकर प्रदर्शन करते हैं। आलू का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। किसान आलू प्रोसेसिंग यूनिट भी कई वर्षों से मांग करते आ रहे हैं। लोग यमुना एक्सप्रेसवे के लिए कट की मांग करते आ रहे हैं और कई बार विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं।

छाता विधानसभा

छाता विधानसभा क्षेत्र में क़रीब साढ़े तीन लाख मतदाता हैं। इनमें 90 हजार ठाकुर मतदाता, 65 हजार जाट, करीब 45 हजार ब्राह्मण, 35 हजार जाटव, 30 हजार मुस्लिम,15 हजार वाल्मीकि, 15 हजार बघेल और 15 हजार गुर्जर के अलावा 50 हजार से ऊपर दूसरी जातियां हैं। डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों के साथ जाट-ठाकुर यहां निर्णायक भूमिका में हैं।

चौधरी लक्ष्मी नारायण मौजूदा विधायक हैं यहां के। इससे पहले चौधरी लक्ष्मी नारायण 1985 में लोकदल प्रत्याशी थे, 1996 में कांग्रेस के टिकट पर और साल 2007 में बसपा के टिकट विधायक निर्वाचित हुये थे। मायावती सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया। 2017 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर चौधरी लक्ष्मी नारायण चौथी बार जीते।

2022 विधानसभा चुनाव के लिए रालोद ने तेजपाल सिंह, भाजपा ने चौधरी लक्ष्मी नारायण और कांग्रेस ने पूनम देवी को टिकट दिया है।

मांट विधानसभा

2 लाख 82 हजार मतदाताओं वाले मांट विधानसभा में 90 हजार जाट मतदाता, 26 हजार ठाकुर, 45 हजार ब्राह्मण मतदाता, गुर्जर 15 हजार, वैश्य 28 हजार, जाटव मतदाता 40 हजार, बघेल मतदाता 18 हजार, मुस्लिम मतादात 17 हजार, कोली 8 हजार, खटीक मतदाता 3 हजार हैं।

श्याम सुंदर शर्मा मांट विधानसभा सीट से 1989 से 2017 के बीच 8 बार विधायक चुने गये हैं। श्याम सुन्दर शर्मा उत्तर प्रदेश सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। बसपा में शामिल होने से पहले अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस में रहे फिर अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस(तिवारी), और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रह चुके हैं। हालांकि 2012 में श्याम सुंदर शर्मा रालोद उम्मीदवार जयंत चौधरी से हार गए थे। लेकिन फिर इस सीट पर उपचुनाव होता है और वो तृणमूल कांग्रेस से टिकट पर राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के योगेश चौधरी को हराकर चुनाव जीते थे।

2017  विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद श्याम सुंदर शर्मा ने रालोद के योगेश चौधरी को 432 मतों से हराकर विधायक बने थे।

2022  विधानसभा चुनाव के लिये श्याम सुंदर शर्मा एक बार फिर बसपा प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं जबकि कांग्रेस ने सुमन चौधरी और भाजपा ने राजेश चौधरी को प्रत्याशी बनाया है।

गोवर्धन विधानसभा

गोवर्धन विधानसभा में कुल 3,67,467 मतदाता हैं। जिसमें ठाकुर मतदाता 85 हजार, ब्राह्मण 60 हजार, जाट मतदाता 70 हजार, वैश्य 25 हजार, जाटव मतदाता 40 हजार, अन्य शिड्यूल कास्ट – 35 हजार, मुस्लिम मतदाता 12 हजार, ओबीसी मतदाता 35 हजार हैं।

इस सीट पर फिलहाल बीजेपी के करिंदा सिंह यहां से विधायक हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में करिंदा सिंह (93538) ने बसपा के रामकुमार रावत (60870 मत) को 30 हजार से अधिक मतों से हराया था।

2022 विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने दीपक चौधरी, भाजपा ने ठाकुर मेघश्याम सिंह और रालोद ने प्रीतम सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है।

मथुरा वृंदावन विधानसभा सीट

3.5 लाख मतदाता वाली इस सीट पर 80 हजार ब्राह्मण, 70 हजार वैश्य, 35 हजार ठाकुर मतदाता हैं। हर बार ब्राह्मण और वैश्य ही जीत की दिशा तय करते आए हैं।

प्रदीप माथुर।

साल 2017 में चली मोदी लहर के चलते यहां से विधायक और नेता कांग्रेस विधानमंडल दल प्रदीप माथुर के सामने पंडित श्रीकांत शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा गया। जिसके चलते प्रदीप माथुर को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। श्रीकांत शर्मा को 1,43,361 वोट मिले और उन्होंने अपनी जीत भाजपा के पाले में डाल दी। प्रदीप माथुर को 42,200 वोट जनता ने दिए।

आरएलडी ने इस बार डॉ. अनिल अग्रवाल को टिकट देकर वैश्य वोटों को बटोरने की कोशिश की है। बीजेपी ने एक ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। यहां से पहले से कांग्रेस के विधायक प्रदीप माथुर को ब्राह्मण और वैश्यों का अच्छा वोट मिलता रहा है। बसपा ने औरंगाबाद के पूर्व प्रधान जगवीर सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।

Related Articles

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।