Thursday, April 25, 2024

गौरी लंकेश हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने संगठित अपराध आरोपों को रद्द करने के आदेश को ख़ारिज किया

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने गुरुवार को गौरी लंकेश हत्याकांड के आरोपी मोहन नायक के खिलाफ 8 सितंबर, 2021 के लिए कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम ( केसीओसीए) के तहत आरोपों को बहाल कर दिया। पीठ ने गौरी लंकेश की बहन कविता लंकेश द्वारा दायर एक अपील को स्वीकार करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया, जिसने मोहन नायक के खिलाफ केसीओसीए के आरोपों को रद्द कर दिया था। बेंच ने कल सुबह फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को सुनाया। फैसले की विस्तृत प्रति का इंतजार है।

पीठ ने 21 सितंबर, 2021 को कविता लंकेश और आरोपी मोहन नायक की ओर से पेश अधिवक्ता बसवा प्रभु एस पाटिल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी की विस्तृत दलीलों पर सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने मौखिक रूप से कहा था कि जांच एजेंसियों को इस तथ्य की जांच करने के लिए हम अस्थायी रूप से संकेत दे रहे हैं कि हम आदेश के अंतिम भाग को रद्द करने के इच्छुक हैं । आप सिंडिकेट के सदस्य हैं या नहीं और सामग्री को समेटने के बाद चार्जशीट पेश करें। और अगर वह सामग्री मौजूद है, तो चार्जशीट आपके खिलाफ भी आगे बढ़ सकती है।

पीठ ने उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल के निर्णय को चुनौती देने वाली राज्य सरकार और गौरी लंकेश की बहन कविता लंकेश की अपील पर यह फैसला सुनाया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मोहन नायक के विरुद्ध ककोका के तहत जांच की मंजूरी देने संबंधी 14 अगस्त, 2018 का पुलिस आदेश निरस्त कर दिया था।

मालूम हो कि लंकेश की पांच सितंबर 2017 की रात को बेंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर में स्थित उनके घर के पास ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने बीते 21 सितंबर को मामले की सुनवाई करते हुए यह संकेत दिया कि वह आरोपपत्र निरस्त करने के उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर देगा।

कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा आरोपपत्र रद्द करने को लेकर जस्टिस खानविलकर ने कहा था कि इस पर एक बहुत ही गंभीर आदेश पारित किया जाना चाहिए था, आरोपपत्र का विश्लेषण किए बिना उसे रद्द किया गया।न्यायाधीश ने टिप्पणी की थी किउनकी भूमिका आरोपपत्र में गिरोह सदस्य के रूप में उल्लिखित है या नहीं, हाईकोर्ट ने इसका विश्लेषण नहीं किया है।उच्च न्यायालय ने कहा था कि नायक को एक संगठित अपराध गिरोह का हिस्सा नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसके खिलाफ अतीत में कोई आपराधिक मामला या आरोपपत्र दायर नहीं किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने राज्य की ओर से पेश हुए वकील से भी पूछा कि आरोपी के विरुद्ध पहले कोई मामला दर्ज नहीं था तो उसके विरुद्ध ‘ककोका’ के प्रावधानों के तहत कार्रवाई क्यों की गई। इस पर राज्य सरकार के वकील ने कहा था कि प्रारंभिक आरोप पत्र भारतीय दंड संहिता और शस्त्र कानून के प्रावधानों के तहत दाखिल किया गया था। इसके बाद, जांच के दौरान आरोपी की भूमिका जांच अधिकारी के संज्ञान में आई थी। इसके बाद ही यह मंजूरी ली गई थी।

कविता लंकेश के वकील हुज़ेफ़ा अहमदी ने तर्क दिया था कि नायक को संगठित अपराध करने वाले गिरोह का हिस्सा माना जाना चाहिए। अहमदी ने कहा था कि तथ्य यह है कि उस गिरोह के सभी व्यक्ति पहले के अपराध में शामिल हो सकते हैं या नहीं, पूरी तरह से महत्वहीन है।उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने में गलती की है कि नायक के खिलाफ केसीओसीए लागू नहीं होता।

कविता की याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट ने धारा 24 केसीओसीए की जांच नहीं करके गलती की। इसमें कहा गया है कि अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के पद से नीचे के किसी भी अधिकारी को पूर्व मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए।याचिका में यह भी कहा गया कि हाईकोर्ट इस तथ्य को समझने में असफल रहा कि धारा 24 (2) केसीओसीए के तहत मंजूरी आदेश को चुनौती नहीं दी गई और केवल धारा 24 (1) (ए) के तहत आदेश को चुनौती दी गई है। कविता के बाद कर्नाटक पुलिस ने भी केसीओसीए के आरोप हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

पीठ ने आरोपी मोहन नायक की ओर से पेश अधिवक्ता बसवा प्रभु एस पाटिल से कहा कि मुद्दा वह है जिस पर आप सफल हुए। आप इस बिंदु पर सफल हुए कि आपके खिलाफ पूर्व स्वीकृति अनुचित है। पूर्व स्वीकृति केवल यह संतुष्ट करने के लिए है कि एक संगठित अपराध सिंडिकेट मौजूद है जो कि है संगठित अपराध में लिप्त है। वह संतुष्टि दर्ज की गई है और एक प्राथमिकी दर्ज की गई है। आपके कहने पर इसे कैसे रद्द किया जा सकता है? आपकी भूमिका केवल उनका समर्थन करने तक ही सीमित है, वह भी 3 (3) के तहत एक अपराध है जिस पर अलग पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है।

पाटिल ने कहा कि यहां एक मामला है जहां मुझे केसीओसीए लागू करने की मंज़ूरी मिलने के बाद एक आरोपी के रूप में जोड़े जाने की मांग की गई है।उन्होंने यह भी कहा कि केसीओसीए लागू होते ही साक्ष्य के नियम बदल गए। पाटिल ने कहा था कि जिस क्षण उन्हें लागू किया जाता है, उनके दूरगामी प्रभाव होते हैं। इसलिए यह प्रतिबंध वह है जो 2 डी, ई और एफ के तहत माना गया है। प्रतिबंध को पार किए बिना, धारा 3 को लागू करने का सवाल नहीं उठता है। आईपीसी के तहत यह उत्पन्न हो सकता है, शरण देना एक अलग अपराध है।

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने 29 जून, 2021 को नोटिस जारी करते हुए कहा था कि जमानत याचिका फैसले से प्रभावित नहीं होनी चाहिए। 5 सितंबर, 2017 को बेंगलुरू में पत्रकार गौरी लंकेश की उनके घर के बाहर हत्या के बाद ये एसएलपी दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि कविता लंकेश द्वारा अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत शिकायत दर्ज की गई थी और जांच को एसआईटी सौंपा गया था और इस जांच ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि आरोपी व्यक्ति संगठित अपराध सिंडिकेट में शामिल थे, जिससे केसीओसीए के प्रावधान आकर्षित हुए।

गौरी लंकेश हत्याकांड की जांच कर रही एसआईटी ने अब तक इस मामले में 17 लोगों को गिरफ्तार किया है और ये सभी लोग अति दक्षिणपंथी हिंदू समूहों से जुड़े हुए हैं। गौरतलब है कि पांच सितंबर, 2017 को बेंगलुरु स्थित घर के पास ही लंकेश को रात करीब 8:00 बजे गोली मार दी गई थी। उन्हें हिंदुत्व के खिलाफ आलोचनात्मक रुख रखने के लिए जाना जाता था।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles