Tuesday, April 23, 2024

21 लाख करोड़ के कोरोना पैकेज़ में सीधी राहत के लिए निकले सिर्फ़ 2 लाख करोड़!

12 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस 20 लाख करोड़ रुपये के आत्म-निर्भर पैकेज़ का ऐलान किया था, वो अब बढ़कर क़रीब 21 लाख करोड़ रुपये का हो चुका है। रहा सवाल कि सरकार इतनी रक़म लाएगी कहाँ से? तो इसके बारे में वित्त मंत्री का कहना है कि स्वाभाविक रूप से इसके लिए सरकार कर्ज़ का ही इन्तज़ाम करेगी। वित्तमंत्री ने बताया कि 22 मार्च से लेकर अब तक जितनी भी घोषणाएँ हुए हैं उससे सरकारी राजस्व को 7,800 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज़ के तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये जन-धन खातों, किसान राहत, मुफ़्त गैस सिलेंडर और मुफ़्त राशन की योजनाओं पर खर्च हुए हैं। 15 हज़ार करोड़ रुपये का फंड प्रधानमंत्री ने कोरोना से जूझने के लिए ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधाओं के इस्तेमाल के लिए जारी किये हैं।

वित्त मंत्री अब तक 20,97,053 करोड़ रुपये की घोषणाएँ कर चुकी हैं। पाँच दिनों के भीतर 5 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा भी किसी उपलब्धि से कम नहीं। मलाल बस इतना रहा कि तमाम ऐलान में ऐसी दूरगामी बजटीय घोषणाओं और आर्थिक सुधारों का पलड़ा ही भारी रहा, जिन्हें भारत को ‘आत्म-निर्भर’ बनाना है। अभी लोगों को जो भी तकलीफ़ें उठानी पड़ रही हैं, उससे जूझने के लिए फ़ौरी सहायता के रूप में 21 लाख करोड़ रुपये में से क़रीब दो लाख करोड़ रुपये का ही प्रावधान हुआ है। बाक़ी आत्म-निर्भरता का असर आगामी महीनों और वर्षों में ही नज़र आएगा। इस तरह, 21 लाख करोड़ रुपये वाले भारी-भरकम पैकेज़ में फ़ौरी राहत के खाते वाली सारी बातें 1,92,800 करोड़ रुपये में सिमट गयीं। बाक़ी बचे 19 लाख करोड़ रुपये या तो विभिन्न घोषणाओं के लिए रखे गये हैं या अर्थव्यवस्था में नयी जान फूँकने के लिए लागू होने वाले सुधारों को प्रभावी बनाने के लिए।

घोषणाओं के पाँच दिन

वित्तमंत्री ने पहले दिन 5,94,550 करोड़ रुपये की योजनाएँ बतायीं। लेकिन इनमें से कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) से जुड़ी राहत 8550 करोड़ रुपये की राहत ही ऐसी थी, जो ऐसे वेतनभोगी मज़दूरों को सीधे मिली, जो ऐसी कम्पनियों में काम करते हैं जहाँ 100 से कम मज़दूरों का वेतन 15,000 रुपये महीने तक है। बाक़ी 5.86 लाख रुपये या तो विशुद्ध कर्ज़ हैं या फिर ऐसी रक़म जिसकी वसूली सरकार ने थोड़े वक़्त के लिए टाल दी है।

वित्तमंत्री की दूसरे दिन की घोषणाएँ कुल 3.1 लाख करोड़ रुपये की थीं। लेकिन इसमें सिर्फ़ 3500 करोड़ रुपये ही उस राहत के थे, जिसके तहत सरकार ने अगले दो महीने तक प्रवासी मज़दूरों को मुफ़्त राशन देने की बातें की हैं। इस राहत में प्रवासी मज़दूरों को हर महीने 5 किलो चावल या गेहूँ और एक किलो दाल देने की बात है। ये राहत उन्हें भी मिलेगी जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। बाक़ी बचे 3,07,500 करोड़ रुपये का फंड तरह-तरह के कर्ज़ों के लिए है।

तीसरे दिन 1.5 लाख करोड़ रुपये की घोषणाएँ हुईं, लेकिन ये सारी रक़म भी या तो कर्ज़ है या निवेश। कोरोना संकट से राहत वाली कोई भी बात इसमें नहीं थी। चौथे और पाँचवें दिन, दोनों को मिलाकर 48,100 हजार करोड़ रुपये के ऐलान हुए। इसमें ये 40 हज़ार करोड़ रुपये का फंड मनरेगा में बढ़ाया गया है, जो इसके पिछले बजट 61,000 करोड़ रुपये के अलावा है। साफ़ है कि कोरोना संकट की वजह से बेरोज़गार हुए ग़रीब तबके की अतिरिक्त आबादी के लिए वित्त मंत्री सिर्फ़ 40,000 करोड़ रुपये का प्रावधान कर सकीं। ऐसे 1.01 लाख करोड़ रुपये की बदौलत 300 करोड़ मानव-दिवसों का रोज़गार सृजन किया जाएगा। इसके लाभार्थी अभी गाँवों में रहने वाले या लॉकडाउन के बाद शहरों से वापस गाँवों को लौटे लोगों या लौटने वालों को होगा।

ऐलान 10 फ़ीसदी का, मिला एक प्रतिशत

इसके अलावा, केन्द्र सरकार का एक और खर्च ऐसा ही जिसके कुछ वित्तीय बोझ का पता बाद में ही चलेगा। ये है श्रमिक स्पेशल ट्रेनों पर खर्च होने वाली रक़म। वित्तमंत्री का कहना है कि प्रवासी मज़दूरों के लिए चलायी जा रही इन ट्रेनों का 85 फ़ीसदी किराया और मुसाफ़िरों के खाने-पीने का खर्च केन्द्र सरकार उठा रही है। ज़ाहिर है, अगले कुछ महीनों में जब इस किस्म के खर्चों का सारा ब्यौरा आ जाएगा तो कोरोना के नाम पर जारी हुआ आत्म-निर्भर पैकेज़ 21 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक हो जाएगी। लेकिन तब भी सीधी राहत 2 लाख करोड़ रुपये के आसपास ही सिमट जाएगा। ये देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का एक फ़ीसदी ही बैठेगा। जबकि याद कीजिए कि प्रधानमंत्री ने 12 मई को GDP के 10 फ़ीसदी जितना बड़ा राहत-पैकेज़ देने का सब्ज़बाग़ दिखाया था।

दरअसल, प्रधानमंत्री जानते थे कि देश की माली हालत ऐसी नहीं है कि वो दिल खोलकर मदद बाँट सकें। लिहाज़ा, उन्होंने ‘भाषणं किम् दरिद्रतां’ यानी ‘भाषण देने में भी कंजूरी क्यों की जाए’ वाली रणनीति बनायी। इसीलिए राहत का ऐलान हुआ 2 लाख करोड़ रुपये  का लेकिन भाषणबाज़ी हुई 21 लाख करोड़ रुपये की। इसकी वजह ये है कि मोदीजी को अच्छी तरह से पता है कि 130 करोड़ भारतवासियों में से ज़्यादातर लोग पैकेज़ और आत्म-निर्भरता जैसे जुमलों में ही उलझ जाएँगे। वो सरकार से कोई सहारा पाये बग़ैर भी धीरे-धीरे ख़ुद को खड़ा कर लेंगे। अलबत्ता, कोरोना की आड़ में तमाम सरकारी क्षेत्र का निजीकरण करने का रास्ता ज़रूर खोल दिया गया है, ताकि कुछ और चहेते उद्योगपति दोस्तों को बहती गंगा का आचमन करवा दिया जाए।

(मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। तीन दशक लम्बे पेशेवर अनुभव के दौरान इन्होंने दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, उदयपुर और मुम्बई स्थित न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। अभी दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles