Saturday, April 27, 2024

पूछता है भारत… वैक्सीन के लिए इतनी जल्दबाज़ी क्यों!

यह बताना हम लोगों की ज़िम्मेदारी है, इसलिए शुरूआत इसी तरह करना ठीक रहेगा। आगे आप लोगों की मर्ज़ी है कि हमारी इस बात को और हमारे तथ्यों को आप लोग किस तरह देखते हैं। बेशक आप हमें स्वयंभू ज़िम्मेदार शख़्स मान लें। यहां हम से मतलब यह लेखक और ये माध्यम है। भारत सरकार ने कल 3 जनवरी 2021 को कोरोना की वैक्सीन कोविशील्ड (#covishield) और कोवैकसीन (#COVAXIN) को भारत में इस्तेमाल की अनुमति दे दी है।

कोविशील्ड वैक्सीन को ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राज़ेनका (#AstraZeneca) मिलकर तैयार कर रही हैं। इसमें मॉडर्ना का भी सहयोग है। कोविशील्ड का अभी तीसरे चरण का ट्रायल पूरा नहीं हुआ है। #कोवैक्सीन को हैदराबाद की कंपनी भारत बॉयोटेक तैयार कर रही है। भारत के ड्रग कंट्रोलर (DGCI) ने दोनों वैक्सीन को अनुमति दे दी है।

कोविशील्ड वैक्सीन भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया बनाएगा और सप्लाई करेगा। यह तथ्य याद रखिए, दोनों वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल बाकी है। भारत बॉयोटेक का 2 जनवरी को सार्वजनिक बयान है कि उसने तीसरे चरण के लिए 23000 वॉलंटियर्स तैयार कर लिए हैं, जिन्हें ये वैक्सीन लगेगी।

सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के मालिक अदार पूनावाला हैं। 3 जनवरी को ही अदार पूनावाला ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिल गेट्स का ख़ास तौर पर शुक्रिया अदा किया है।

अब कुछ बातें खटक रही हैं। दोनों वैक्सीन का तीसरे चरण ट्रायल पूरा नहीं हुआ है। क्या ये वैक्सीन सबसे पहले पीएम मोदी, अदार पूनावाला, उनके पिता साइरस पूनावाला, मिलिंडा गेट्स, बिल गेट्स को खुद नहीं लगवानी चाहिए? क्या कोवैक्सीन सबसे पहले भारत बायोटेक के मालिक को नहीं लगनी चाहिए, लेकिन कोवैक्सीन की पहली डोज़ हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज को दी गई और अगले दिन वो कोरोना पॉज़िटिव निकले। हरियाणा के सरकारी अस्पताल छोड़कर गुड़गांव के फ़ाइव स्टार जैसे मेदांता अस्पताल में 15 दिनों तक इलाज के बाद बाहर आए हैं।

ख़ैर हम बात कर रहे हैं अदार पूनावाला और दोनों वैक्सीन लाने की जल्दबाज़ी पर। अमेरिका ने फाइजर (#Pfizer  #BioNTech) कंपनी की वैक्सीन को वहां लगाने की अनुमति दी, लेकिन इस कंपनी ने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप और हेल्थ सेक्रेटरी का शुक्रिया अदा नहीं किया। वजह साफ़ है कि अपनी वैक्सीन बेचने के लिए फाइजर कंपनी को किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की सिफ़ारिश या मेहरबानी की ज़रूरत नहीं पड़ती है। अमेरिकी हेल्थ सिस्टम पारदर्शी है। वहां कुछ छिपा कर माल बेचने का चलन नहीं है। भारत में अदार पूनावाला को प्रधानमंत्री मोदी का आशीर्वाद या संरक्षण क्यों चाहिए?

इन दोनों कंपनियों की हरकत भूल गया भारत
भारत में नोटबंदी हुई तो दो चीज़ें या दो कंपनियां सामने आईं। चाइनीज़ कंपनी पेटीएम (#Paytm) और मुकेश अंबानी यानी रिलायंस (#Reliance) का जिओ (#Jio)। दोनों कंपनियों ने अपनी लॉन्चिंग का जो पहला विज्ञापन दिया उसमें प्रधानमंत्री मोदी का फोटो लगाकर धन्यवाद देने के साथ शुरुआत की गई। जनता को संदेश दिया गया कि इस प्रोडक्ट पर मोदी जी की ‘कृपा’ है।

भारत में कई चाइनीज़ कंपनियां बंद हुईं पर पेटीएम आजतक बंद नहीं हुआ। पेटीएम अब हम लोगों की ज़िंदगी में डालडा या रिफाइंड तेल की तरह है। उसे हर चीज की ख़रीददारी में अनिवार्य या मजबूर करने की गहरी साज़िश रची गई है। पेटीएम के कंपनी डिक्लरेशन में आज भी दर्ज है कि अगर आपके पैसे या खाते से कोई घपला होता है तो पेटीएम ज़िम्मेदार नहीं होगा।

सोचिए भारतीय उपभोक्ताओं के पैसे को किस तरह दांव पर लगा दिया गया। कहीं कोई विरोध नहीं, कहीं कोई जवाबदेही नहीं। अभी हम वो बात करने ही नहीं वाले कि किस तरह दिल्ली-ग़ाज़ियाबाद-मेरठ रैपिड रेल का साढ़े पांच किलोमीटर लंबा कॉरिडोर बनाने का ठेका चीन की कंपनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग लिमिटेड को दिया गया है।

और जिओ….
जिओ को सफल करने के लिए ट्राई के नियम किस तरह बदले गए। वो आप लोगों को याद होगा। पहले फ़्री डेटा (#FreeData #internet) आया। फिर थोड़ा महंगा किया और अब क्या रेट है, आप लोगों को मालूम होगा। इसका नतीजा क्या निकला कई टेलीकॉम कंपनियां डूब गईं। कुछ घाटे में हैं। टेलीकॉम बिज़नेस जिस तेज़ी से फलफूल रहा था, वो बर्बाद हो गया। बीएसएनएल और एमटीएनएल, इस देश की सबसे पुरानी और नामी सरकारी कंपनियों को 4जी स्पेक्ट्रम नहीं दिया गया। उनको प्राइवेट कंपनियों से मुक़ाबला नहीं करने दिया गया।

ड्रग कंट्रोलर भी जल्दी में हैं
अब वापस वैक्सीन पर लौटते हैं।एक और तथ्यात्मक बात बताता चलूं कि प्रधानमंत्री अदार पूनावाला की कंपनी सिरम इंस्टिट्यूट 28 नवंबर 2020 को घूम कर आए थे और कंपनी की बहुत तारीफ़ की थी। उस मुलाक़ात का नतीजा आख़िरकार 3 जनवरी 2021 को आ ही गया। बहरहाल, हमें मोदी और अदार पूनावाला की नीयत या रिश्ते पर कोई शक नहीं है। हमें भारत बॉयोटेक पर भी भरोसा है। बस, बात इतनी सी है कि बिना तीसरे चरण का ट्रायल पूरा हुए दोनों वैक्सीन को लाने की जल्दी क्यों?

आप यही वैक्सीन लाएं लेकिन ट्रायल तो पूरा होने दें। भारत के ड्रग कंट्रोलर वीजी सोमानी ने बहुत अजीबोग़रीब तरीक़े से 3 जनवरी को वैक्सीन को अनुमति देने के फ़ैसले का अनुमोदन किया है। वह हैरान कर देने वाला है। उन्होंने रविवार को सार्वजनिक बयान में कहा, “किसी वैक्सीन में मामूली कमी रहेगी तो हम उसे अनुमति नहीं देंगे। सभी वैक्सीन 110% सुरक्षित हैं। इनके कुछ साइड इफ़ेक्ट ज़रूर हैं, जिनमें मामूली बुखार, दर्द और एलर्जी बहुत आम हैं, लेकिन ये आरोप ग़लत है कि इस वैक्सीन से कोई नामर्द हो जाएगा।”

भारत के ड्रग कंट्रोलर सोमानी किस आधार पर और क्यों वैक्सीन के 110% सुरक्षित होने की ज़िम्मेदारी ले रहे हैं, कोई नहीं जानता।

बिल गेट्स हैं सर्वशक्तिमान
अब बिल गेट्स पर आते हैं। दुनिया के अमीरों में शुमार। भारत की ग़रीबी, भुखमरी और बाल कुपोषण से जनाब बिल गेट्स को बहुत हमदर्दी है। अचानक 2014 से बिल गेट्स भारत को इतनी मदद कर देते हैं, जितना यूपी जैसे राज्य का सालाना बजट होता है। भारत में उनकी संस्था बिल एंड मिलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन के ज़रिए काम करती है। मिलिंडा गेट्स, बिल गेट्स की पत्नी हैं। भारत सरकार बिल गेट्स को कई राष्ट्रीय सम्मानों से नवाज चुकी है।इनकी फ़ाउंडेशन अमेरिका दवा कंपनी मॉडर्ना (#mRNA) के कई सारे प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद करती है। बताता चलूं कि मॉडर्ना के असली मालिक बिल गेट्स नहीं हैं, लेकिन वे इसके असली मालिक से भी बढ़कर हैं।

मॉडर्ना ही ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राज़ेनका द्वारा बनाई जा रही कोविशील्ड को भी बनाने में मदद कर रही है। यह भी कह सकते हैं कि कोविशील्ड दरअसल मॉडर्ना का भी उत्पाद है या बाकी देशों में इसे मॉडर्ना अपने ब्रैंड के तहत बेचेगी। अलग-अलग देश में अलग-अलग नाम। धंधा है, यही चलेगा। स्वीकार्य है।

बिल गेट्स ने 8 दिसंबर 2020 को सिंगापुर के फिनटेक फ़ेस्टिवल में कहा था, “दुनिया में कोरोना की वैक्सीन अप्रैल 2021 से पहले नहीं आने वाली है।” लेकिन भारत में जल्दी मची हुई है। बिल गेट्स से बेहतर कोई नहीं जानता कि किस कंपनी की वैक्सीन कब आएगी, क्योंकि हर कंपनी के मददगार या फ़ाइनेंसर बिल गेट्स या उनकी फ़ाउंडेशन ही तो है। मॉडर्ना के ज़रिए बिल गेट्स सब जगह विराजमान हैं।

भारत में तो #कोविशील्ड और कोवैक्सीन आ पहुंची है। पूरा प्लान तैयार है। कई राज्यों में सेंटर तक बन गए हैं कि वैक्सीन कहां लगाई जाएगी। देश भर के ज़िलों में सभी डीएम और एसडीएम की देखरेख में पूरा सिस्टम काम शुरू कर चुका है। पंचायतों तक को इस अभियान में शामिल किया गया है।

ध्यान रहे मैं दोनों वैक्सीन पर कोई सवाल नहीं खड़े कर रहा हूं। बस, सवाल इन्हें  लगाने की हड़बड़ी पर है। सवाल है कि तीसरा ट्रायल पूरा हुए बिना भारत के लोगों को क्यों शिकार बनाया जा रहा है? क्या भारत के लोग आपको बंदर, चूहे, बिल्ली नज़र आते हैं?

वैक्सीन ज़रूर लगवाएं, लेकिन सरकार से सवाल भी ज़रूर करें। ख़ैर, इस बात को आप लोगों पर छोड़कर आगे बढ़ते हैं।

मुसलमान इस ट्रैप में न फंसें
वैक्सीन की आड़ में एक ट्रैप तैयार किया जा रहा है। वो ट्रैप मुसलमानों के लिए है। इस समुदाय के लोगों को थोड़ा समझदारी से काम लेने की ज़रूरत है। समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने वैक्सीन का विरोध कर दिया है। उनके अपने तर्क हो सकते हैं। पर, सावधान रहिए।हो सकता है जल्द ही किसी ओवैसी या किसी मौलवी साहब का भी बयान कोविड19 वैक्सीन के खिलाफ आए। जिस तरह कुछ मौलवियों ने पोलियो टीकाकरण का विरोध कर खुद को शर्मिंदा किया था। वैसी हरकत कोरोना वैक्सीन को लेकर नहीं होना चाहिए।

आप लोगों को ‘कोरोना जिहाद’ याद होगा। किस तरह गोदी मीडिया और आरएसएस के अफ़वाहबाजों ने कोरोना फैलाने के लिए निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ और वहां के जमातियों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था। अब भी वे ताक में हैं कि किस तरह अल्पसंख्यक समुदाय को किसी न किसी बड़े मुद्दे या मामले के ज़रिए विवाद में घसीटा जाए।

उनकी हर सुबह की शुरुआत अल्पसंख्यकों के खिलाफ साज़िश से शुरू होती है। आप लोग बस चुपचाप तमाशा देखें। जब ऐसे बदमाश यूपीएससी की परीक्षा में मुसलमानों के बड़ी तादाद में पास होने पर उसे ‘यूपीएससी जिहाद’ नाम दे देते हैं तो वे किसी भी हद तक गिर सकते हैं। किसान आंदोलन को जिस तरह खालिस्तानी आंदोलन बताया गया, वो तो अभी की बात है। क्या कोई सिख इस देश के कानून के खिलाफ आवाज़ उठाता है तो वह ‘खालिस्तानी’ है?

अगर आपको वैक्सीन नहीं लगवानी तो न लगवाएं, लेकिन विरोध न करें और न ही कहीं विरोध की पहल करें। देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में विरोध की सारी ज़िम्मेदारी अकेले 30 या 35 करोड़ लोगों पर नहीं है, जिन्हें हिंद पर नाज़ है, बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी उन्हीं पर है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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