Saturday, April 20, 2024

बिना पर्याप्त कानूनी आधार के हिरासत में लिए गए प्रत्येक व्यक्ति को रिहा करे भारत : संयुक्त राष्ट्र

भारत की अदालतों के लचर रवैये के कारण ईसाई पादरी और सामाजिक कार्यकर्ता स्टैन स्वामी की हिरासत में मौत ने भारत ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार से जुडी संस्थाओं को हिलाकर रख दिया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) ने भारत से बिना पर्याप्त कानूनी आधार के हिरासत में लिए गए प्रत्येक व्यक्ति को रिहा करने का आग्रह किया, जिसमें केवल आलोचनात्मक या असहमतिपूर्ण विचार व्यक्त करने के लिए गिरफ्तार किए गए लोग भी शामिल हैं। इसके अलावा, इसने भारत सरकार से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और संघ के मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिए किसी को भी हिरासत में नहीं लिया जाए। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में रखना स्वीकार्य नहीं है।

भीमा कोरेगाँव मामले में अभियुक्त जेसुइट पादरी व मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़ादर स्टैन स्वामी की हिरासत में मौत पर तीखी प्रतिक्रिया हो रही है।रिटायर्ड, जज, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनेता, संयुक्त राष्ट्र व यूरोपीय संघ के मानवाधिकार अधिकारी व दूसरे लोगों ने फ़ादर स्टैन की मृत्यु पर दुख ही नहीं जताया है, वरन सरकार के रवैये की आलोचना की है।

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के उच्च मानवाधिकार अधिकारियों ने ईसाई पादरी और सामाजिक कार्यकर्ता स्टैन स्वामी के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भारत में मूल निवासियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले 84 वर्षीय स्वामी को ‘आतंकवाद के झूठे आरोपों’ में जेल में बंद किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र की ‘स्पेशल रेपोर्ट्योर ऑन ह्यूमन राइट्स’ मैरी लॉलर ने कहा कि आज भारत से बेहद दुखी करने वाली खबर आई है। मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईसाई पादरी फादर स्टैन स्वामी का निधन हो गया है। उन्हें आतंकवाद के झूठे आरोपों में नौ महीने तक हिरासत में रखा गया था। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में रखना स्वीकार्य नहीं है।

इससे पहले उन्होंने स्वामी की बिगड़ती हालत पर चिंता जताई थी और उनके लिए विशेष उपचार की मांग की थी। उन्होंने स्वामी के खिलाफ आरोपों को ‘आधारहीन’ बताया। यूरोपीय संघ के मानवाधिकार के लिए विशेष प्रतिनिधि ईमन गिलमोर ने लॉलर के ट्वीट को साझा कर ट्वीट किया, ‘भारत: मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि स्टैन स्वामी का निधन हो गया है। वह मूलनिवासी लोगों को अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता थे। उन्हें पिछले नौ महीने से हिरासत में रखा गया था। ईयू ने बार-बार इस मामले को उठाया था।’

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन लोकुर ने कहा है कि फ़ादर स्टैन स्वामी का निधन एक बड़ी त्रासदी है, मैं इस मामले में अभियोजन और अदालतों से निराश हूँ। यह अमानवीय है। मशहूर साहित्यकार नयनतारा सहगल ने इस जेसुइट पादरी की हिरासत में मौत को साफ शब्दों में हत्या कहा है। उन्होंने कहा कि फ़ादर स्टैन स्वामी की मृत्यु नहीं हुई है, उनकी हत्या की गई है, क्योंकि उन्होंने अपना जीवन ग़रीबों व वंचितों के लिए खपा दिया।

वरिष्ठ पत्रकार एन. राम ने कहा कि फ़ादर स्टैन बहुत ही साहसी थे और आदिवासियों के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने अधिनायकवादी और सांप्रदायिक ताक़तों की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि क़ानूनों का उल्लंघन हो रहा है, मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है और अन्याय हो रहा है। इसके साथ ही राम ने कहा, ‘हमें सुधा भारद्वाज को नहीं भूलना चाहिए जो ढ़ाई साल से भायखला जेल में बंद हैं। अदालतों के समय पर काम नहीं करने पर यह टिप्पणी है।

भीमा कोरेगाँव मामले के दूसरे अभियुक्तों के परिजनों ने एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें एन राम व जॉन दयाल व दूसरे लोगों ने शिरकत की।इसमें एक साझा बयान जारी किया गया। इस बयान में कहा गया कि यह स्वाभाविक मौत नहीं है, यह एक सज्जन व्यक्ति की संस्थागत हत्या है, इसे एक अमानवीय राज्य ने अंजाम दिया है। झारखंड के आदिवासियों के जल, ज़मीन, जंगल के लिए संघर्ष करने वाले स्टैन स्वामी की मृत्यु इस तरह नहीं होनी चाहिए थी।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के इस मानवाधिकार कार्यकर्ता की मृत्यु के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर जेसुइट पादरी की मृत्यु पर शोक जताया और कहा कि फ़ादर स्टैन स्वामी न्याय व मानवीय व्यवहार के हक़दार थे।

स्वामी का सोमवार को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था जहां उन्हें 29 मई को भर्ती कराया गया था। उन्हें एल्गार परिषद मामले में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने अक्टूबर 2020 में रांची से गिरफ्तार किया था।

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