संवैधानिक संस्थाओं के लिए बीजेपी का हित सर्वोपरि

वैदिक हिंसा, हिंसा न भवति और दुराचार-भ्रष्टाचार यदि भाजपा या उसके समर्थकों का हो तो वह भी दुराचार-भ्रष्टाचार न भवति। यह इस देश में नयी परिपाटी स्थापित की जा रही है। शायद यही, वो न्यू इंडिया हो, जिसका नारा गाहे-बगाहे खूब उछाला जाता है।

ताज़ातरीन उदाहरण सिक्किम का है। सिक्किम में इसी वर्ष अप्रैल में विधानसभा के चुनाव हुए थे। इस चुनाव में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने जीत हासिल की। इस जीत के बाद प्रेम सिंह तमांग मुख्यमंत्री चुने गए। प्रेम सिंह तमांग वो व्यक्ति हैं, जिन्हें 1996-97 में राज्य के पशुपालन मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के एक मामले में सजा हुई। इसके लिए प्रेम सिंह तमांग एक साल तक जेल में भी रहे और चुनाव आयोग ने उनके 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद तमांग के लिए यह आवश्यक था कि वे 6 महीने के भीतर चुनाव जीत कर विधानसभा के सदस्य बनें।

इस बीच सिक्किम में होने वाले उपचुनावों के लिए सत्ताधारी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा और भाजपा के बीच गठबंधन हो गया। इस गठबंधन के तहत गंगटोक और मारतम रूमटेक विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव, भाजपा लड़ेगी। वहीं पोकलोक कामरंग सीट सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के हिस्से में आई, जिसके उम्मीद्वार मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग होंगे।

पर जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, तमांग पर तो सजायाफ़्ता होने के चलते चुनाव लड़ने पर 6 साल की रोक है। रोक तो थी पर जैसे ही भाजपा के साथ उनका गठबंधन हुआ, वैसे ही यह रोक हवा हो गयी। अब देश के चुनाव आयोग ने तमांग के चुनाव लड़ने पर रोक की अवधि को घटा कर एक वर्ष, एक माह कर दिया है। चूंकि यह अवधि पूर्ण हो चुकी है, इसलिए तमांग विधानसभा का चुनाव लड़ सकेंगे। भ्रष्टाचार के आरोप में सजा पा कर जेल काटने वाले तमांग को चुनाव लड़ता देखिये और “बहुत हुआ भ्रष्टाचार, अब की बार मोदी सरकार” के नारे का सुमिरन करिए!

सिक्किम की एक तस्वीर यह भी है कि अगस्त के महीने में विपक्षी पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिक्किम में एक भी सीट नहीं मिली थी पर इन 10 विधायकों के शामिल होते ही वह,राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी हो गयी।

बैकडोर से मुख्य विपक्षी पार्टी बनी भाजपा का उपचुनाव आते-आते सत्ताधारी पार्टी के साथ गठबंधन हो गया। ऐसा पहले कभी सुना है भला,  कि सत्ताधारी पार्टी और मुख्य विपक्षी पार्टी का चुनावी गठबंधन हो जाये ! पर जब सिर्फ और सिर्फ सत्ता पर कब्जा ही मकसद हो तो किसी भी कायदे, उसूल, सिद्धान्त की क्या बिसात कि वह टिका रह सके ! “मुमकिन है” के नारे में चरम अवसरवादिता और सिद्धान्तहीनता के साथ सत्ता और विपक्ष का गठबंधन भी “मुमकिन है।”

प्रेम सिंह तमांग के मामले पर लौटें तो स्पष्ट दिखता है कि केन्द्रीय चुनाव आयोग जैसी संस्था ने केन्द्रीय सत्ता के इशारे पर तमांग के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ किया है। वैसे इस देश में जिन संस्थाओं की निष्पक्षता की सर्वाधिक कसमें खाई जाती रही हैं, उन्हीं संस्थाओं ने इस दौर में आक्रामक सत्ता के सामने समर्पण कर दिया है।

कहा तो यह जाता है कि कानून के सामने सब समान हैं, परंतु कानून चलाने का जिम्मा जिनके हाथ में है, उनके लिए कानून धूरि समान है और अपनों का हित ही कानून समान है।

 (लेखक इन्द्रेश मैखुरी उत्तराखंड के लोकप्रिय वामपंथी नेता हैं।)

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