क्या लोवर ज्यूडिशियरी में ही फ्लर्ट करना गुनाह है?

उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस राम सुब्रमण्यन की पीठ ने मध्य प्रदेश में जिला अदालत के एक पूर्व जज की अपील पर कहा कि न्यायपालिका में किसी जज के अपने विभागीय जूनियर अधिकारी के साथ ‘फ्लर्ट’ करना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। यौन उत्पीड़न के आरोपी जज ने अपने खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से की जा रही अनुशासनात्मक कार्रवाई को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उसी उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों के मद्देनजर न्यायपालिका के खिलाफ कथित साजिश की जांच के लिए 2019 में दर्ज सु-मोटो केस को बंद कर दिया और यह भी कहा कि जस्टिस गोगोई के ख़िलाफ़ साज़िश को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है।

इस पूरे प्रकरण में तीन मुख्य किरदार हैं, एक तो स्वयं जस्टिस गोगोई हैं, दूसरा उत्पीड़ित महिला है और तीसरे एक वकील उत्सव सिंह बैंस हैं, जिन्होंने साजिश का आरोप लगाया था। उच्चतम न्यायालय की एक महिला कर्मचारी ने पूर्व चीफ जस्टिस गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। यह महिला 2018 में जस्टिस गोगोई के आवास पर बतौर जूनियर कोर्ट असिस्टेंट पदस्थ थी। महिला का दावा था कि बाद में उसे नौकरी से हटा दिया गया था।

महिला ने अपने हलफनामे की कॉपी 22 जजों को भेजी थी। इसी आधार पर चार वेब पोर्टल्स ने चीफ जस्टिस के बारे में खबर प्रकाशित की। अप्रैल 2019 में मामले पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई थी। हलफनामे में, उसने जस्टिस गोगोई के खिलाफ जांच शुरू करने की मांग करते हुए इन आरोपों को विस्तृत रूप से बताया था।

इस महिला को पहले बर्खास्त कर दिया गया था और इसके पूरे परिवार पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा था। मामला शांत होने के बाद इस महिला कर्मचारी को पुनः बहाल कर दिया गया और इसके पति की भी बहाली कर दी गई। इस महिला से जस्टिस गोगोई की पत्नी के पैर पर गिर कर माफ़ी भी मंगवाई गई थी। अब सवाल है कि साजिश है तो यह महिला उसकी मुख्य किरदार है, फिर उसे नौकरी पर क्यों रखा गया? महिला अपने आरोपों से कभी पीछे नहीं हटी तो कौन सी मजबूरी थी, जिससे महिला पर कथित झूठा आरोप लगाने के लिए कार्रवाई क्यों नहीं की गई?  

एक किरदार वकील उत्सव बैंस हैं, जिनके द्वारा दायर एक हलफनामे में यह दावा किया गया था कि उन्हें तत्कालीन सीजेआई गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोपों में फंसाने के लिए ‘फिक्सर’ द्वारा 1.5 करोड़ रुपये का ऑफर दिया गया था। अब यह बताने की जिम्मेदारी उत्सव बैंस की थी कि वह ‘फिक्सर’ कौन है, क्या उसने व्यक्तिगत रूप से मिलकर या फोन से ऑफर दिया था? यदि उत्सव बैंस अपने आरोप प्रमाणित नहीं कर सके तो उच्चतम न्यायालय में झूठा हलफनामा दाखिल करके अदालत को गुमराह करने के आरोप में उच्चतम न्यायालय द्वारा उन्हें दंडित क्यों नहीं किया गया? उस समय भी आरोप लगे थे कि पूरे प्रकरण को साजिश की ओर मोड़कर जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट देने का यह प्रकारांतर से प्रयास है।

जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों के पीछे ‘बड़ी साजिश’ होने की जांच करने के लिए शुरू की गई स्वतः संज्ञान कार्यवाही को बंद कर दिया। पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके पटनायक की अध्यक्षता वाले जांच पैनल ने एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कहा गया है कि यौन उत्पीड़न के आरोपों के पीछे की साजिश को ‘खारिज’ नहीं किया जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूर्व सीजेआई गोगोई द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान लिए गए कुछ कड़े रुखों के चलते आरोपों को बनाया जा सकता है। रिपोर्ट में खुफिया ब्यूरो के इनपुट का भी उल्लेख किया गया है कि कई लोग असम-एनआरसी प्रक्रिया को चलाने के लिए जस्टिस गोगोई से नाखुश थे।

पीठ ने कहा कि दो साल से अधिक समय बीत चुका है, इलेक्ट्रॉनिक सबूत प्राप्त करना मुश्किल है। न्यायमूर्ति पटनायक की जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि वकील उत्सव सिंह बैंस द्वारा लगाए गए आरोपों की सत्यता को रिकॉर्ड और अन्य सहयोगी सामग्री की सीमित पहुंच के कारण पूरी तरह से सत्यापित नहीं किया जा सका। पीठ ने यह कहते हुए मामले को बंद कर दिया कि मामले को जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। पीठ ने मामले को फिर भी बंद कर दिया, क्योंकि आंतरिक समिति ने पहले ही न्यायाधीश को क्लीन चिट दे दी थी और कथित साजिश से जुड़े सबूतों की बरामदगी की अब संभावना नहीं है।

रंजन गोगोई पर सीजेआई दफ़्तर में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर चुकी एक महिला ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। महिला ने 2019 में 19 अप्रैल को लिखे एक शिकायती पत्र में आरोप लगाया था कि गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उसके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उसने इसका विरोध किया तो कई बार उसका तबादला किया गया और उसे कई अन्य तरह से परेशान किया गया। महिला के मुताबिक़, 21 दिसंबर, 2018 को उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया था। महिला के पति और देवर को दिल्ली पुलिस की नौकरी से निलंबित कर दिया गया था, हालांकि बाद में उन्हें नौकरी पर बहाल कर दिया गया।

यौन उत्पीड़न के आरोपों के सामने आने के बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड़यंत्र है ।गोगोई ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश क़रार दिया था।

जस्टिस पटनायक ने ‘बड़ी साजिश’ के आरोपों की जांच की और कार्य पूरा कर रिपोर्ट को सितंबर 2019 में पेश किया। हालांकि, आज तक रिपोर्ट से संबंधित कोई भी सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। जनवरी 2020 में, पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पूर्व महिला कर्मचारी की सेवाओं को बहाल कर दिया गया था।

यह प्रकरण ऐसे समय पर दाखिल दफ्तर किया गया है जब संसद के बजट सत्र में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने लोकसभा में पूर्व चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) पर तीखा हमला बोला। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मोइत्रा ने पूर्व सीजेआई पर टिप्पणी करते हुआ कहा कि न्यायपालिका अब पवित्र नहीं रह गई है। इसकी पवित्रता उसी दिन ख़त्म हो गई जब यौन उत्पीड़न के आरोपी तत्कालीन सीजेआई ने ख़ुद के केस की सुनवाई की और ख़ुद को क्लीन चिट दे दी।

ऐसे में उच्चतम न्यायालय के इस फैसले पर सवाल ही सवाल हैं, जिनका जवाब शायद कभी नहीं मिलेगा। जब देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ साजिश की जांच सीबीआई, एनआइए कर सकती है तो उच्चतम न्यायालय जैसी संविधान की रक्षक संस्था को बदनाम करने की जांच सीबीआई, एनआइए या विशेष रूप से गठित एसआईटी से क्यों नहीं कराई गई?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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