Friday, April 19, 2024

नारदा मामले में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने किया नियमों का उल्लंघन, एक जज ने लिखा खुला पत्र

नारदा मामले में गिरफ्तार चार हैवीवेट तृणमूल नेताओं की पक्की जमानत का मुद्दा अब गौण हो गया है। आरोप है कि हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की डिवीजन बेंच ने सीबीआई को विशेष तरजीह दी थी। क्या इस तरह अपीलेट साइड रूल्स की अनदेखी नहीं की गई।

इस मामले में तृणमूल नेताओं की तरफ से बहस कर रहे एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी सवाल करते हैं कि अगर एक आम आदमी ने ईमेल और व्हाट्सएप के जरिए एप्लीकेशन दिया होता तो क्या आपका रवैया नकारात्मक नहीं होता। क्या सीबीआई को एलिस इन वंडरलैंड के अंदाज में तरजीह दी गई, क्योंकि वह एक प्रीमियर इन्वेस्टिगेशन एजेंसी है। एडवोकेट जनरल किशोर दत्त सवाल करते हैं कि हाई कोर्ट के रूल्स हैं और इन्हें अपनी सुविधा के अनुसार तोड़ा मरोड़ा नहीं जा सकता है।

हाईकोर्ट के जस्टिस अरिंदम सिन्हा ने एक खुला पत्र लिख कर प्रक्रियागत खामी के इस मुद्दे को उठाया है। कलकत्ता हाईकोर्ट के इतिहास में पहली बार किसी जज ने एक खुला पत्र लिखा है। जस्टिस सिन्हा ने कहा है कि अपीलेट साइड रूल्स के मुताबिक सीआरपीसी की धारा 407 के तहत मामले का ट्रांसफर किए जाने, चाहे वह सिविल हो या क्रिमिनल, की सुनवाई सिंगल जज ही कर सकता है। इसे जनहित याचिका के रूप में भी नहीं सुना जा सकता है। अगर संविधान की धारा 228 के तहत भी मामला है तो इसे पहले सिंगल बेंच ही सुन सकता है।

इसे रिट के रूप में भी नहीं सुन सकते हैं क्योंकि जिस आदेश के खिलाफ इसे दायर किया गया था उसमें कोई संवैधानिक मुद्दा नहीं था। यहां याद दिला दें कि नारदा मामले में सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज ने तृणमूल कांग्रेस के चार हैवीवेट नेता सुब्रतो मुखर्जी, फिरहाद हकीम,  मदन मित्रा और शोभन चटर्जी को जमानत दे दी थी। उन्हें सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। जस्टिस सिन्हा का सवाल था कि इसके बावजूद एक्टिंग चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच इसकी सुनवाई रिट की तरह कैसे कर रही है।

 इन दिनों इन चार नेताओं की तरफ से बहस कर रहे एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा इसी सवाल पर अपनी दलील दे रहे हैं। उनका सवाल है कि हाईकोर्ट ने सीबीआई के इस एप्लीकेशन को कैसे ग्रहण कर लिया। क्या यह कलकत्ता हाईकोर्ट के अपीलेट साइड रूल्स के खिलाफ नहीं है।  जस्टिस सिन्हा ने भी यही सवाल पूछा है। हाई कोर्ट के एडवोकेट आशीष चौधरी का भी यही सवाल है। क्या कोर्ट इस एप्लीकेशन को इस तरह ग्रहण कर सकता है। उनका कहना है कि अगर किसी आर्डर को चैलेंज करना है तो इसके लिए ऑर्डर की कॉपी लेकर रिवीजन में जाना पड़ता है। एडवोकेट चौधरी कहते हैं कि इसकी सुनवाई पहले सिंगल बेंच में होगी। एडवोकेट चौधरी कहते हैं कि किसी जनहित याचिका और किसी ऑर्डर के चैलेंज का मिश्रण नहीं बनाया जा सकता है।

जस्टिस सिन्हा ने भी यही सवाल उठाया है। अगर सीआरपीसी की धारा 407 के तहत एप्लीकेशन लिया गया तो एफिडेविट कहां था। इसके अलावा 407 का मामला भी पहले सिंगल जज ही सुनता है। इन चार नेताओं को शुक्रवार की शाम को जमानत मिली और एक्टिंग चीफ जस्टिस के डिवीजन बेंच ने रात को 8:30 बजे के करीब इस पर स्टे लगा दिया था। अब इस मामले की सुनवाई एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस आई पी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की लार्जर बेंच में हो रही है।  इस लार्जर बेंच में से एक जज ने सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया था कि इतनी जल्दी क्या थी, दो दिन बाद बेल कैंसिलेशन का मामला कर सकते थे।  इसका जवाब तो वे नहीं दे पाए,  पर वह शायद यही होता कि इन चार नेताओं को हर हाल में जेल में रखना सीबीआई की मजबूरी थी।

अभी इस मामले में और भी दिलचस्प मोड़ है। इस लार्जर बेंच में सुनवाई से पहले जब इन चार नेताओं को जमानत देने के सवाल पर एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस अरिजीत बनर्जी एकमत नहीं हो पाए तो इसे थर्ड जज के पास ओपिनियन के लिए भेजा जाना चाहिए था। हाई कोर्ट के अपीलेट साइड रूल्स के मुताबिक यही किया जाना चाहिए था। लेकिन यहां तो लार्जर बेंच का गठन कर दिया गया। एडवोकेट प्रियंका अग्रवाल कहती हैं कि अगर एक ही मुद्दे पर दो डिविजन बेंच की राय अलग-अलग हो तो अपीलेट साइड रूल्स के मुताबिक लार्जर बेंच का गठन किया जाता है। अगर डिविजन बेंच किसी मामले में एकमत ना हो तो थर्ड जज के पास भेजे जाने की परंपरा है। 

सीबीआई ने सीआरपीसी की धारा 407 के तहत इस मामले के ट्रांसफर करने की अपील की है। एडवोकेट प्रियंका अग्रवाल कहती हैं कि यह एक अजीब मुद्दा है। इसे सीबीआई के स्पेशल कोर्ट से चीफ जज के कोर्ट में ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है क्योंकि दोनों का रैंक एक है। एडवोकेट अग्रवाल कहती हैं कि हाई कोर्ट अपीलेट कोर्ट है और यह ट्रायल नहीं होता है। एडवोकेट अग्रवाल कहती हैं कि किसी दूसरी जिला अदालत में ट्रांसफर हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट अनुसूइया चौधरी कहती हैं कि अगर राज्य के बाहर ट्रांसफर कराना है तो सुप्रीम कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 406 के तहत एसएलपी दायर करनी पड़ेगी।

बहरहाल इसी तरह की एक मामले की याद आती है जिसका उल्लेख करना यहां मौजूं होगा। मामले की प्रकृति एक थी, दिन भी एक ही था और इन चारों अभियुक्तों में से एक मदन मित्रा इसके केंद्र बिंदु थे। मदन मित्रा को शारदा चिटफंड मामले में गिरफ्तार किया गया था। शुक्रवार के दिन जिला जज की अदालत में जमानत याचिका पर सुनवाई हुई थी। भारी शोर-शराबा और तत्कालीन जिला जज के अड़ियल रुख के कारण सीबीआई के एडवोकेट अपनी दलील नहीं दे पाए थे। इसके बाद मदन मित्रा को जमानत मिल गई थी। सीबीआई एडवोकेट ने सोमवार को इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की और तत्कालीन जस्टिस निशिता म्हात्रे ने मदन मित्रा को मिली जमानत खारिज कर दी। इसके साथ ही आदेश दिया कि दो घंटे के अंदर मदन मित्रा को जिला अदालत में हाजिर होना पड़ेगा ताकि उन्हें जेल भेजा जा सके। मदन मित्रा हाजिर हुए और जेल चले गए।

सीबीआई को इतनी बेचैनी क्यों थी। यह सवाल न तो कानूनविद समझ पा रहे हैं और न ही आम आदमी के पल्ले पड़ रहा है। क्या सुब्रतो मुखर्जी से कोई विशेष नाराजगी थी और फिरहाद हकीम से उनकी, सीबीआई की नहीं, रंजिश तो किसी से भी नहीं छुपी है। मदन मित्रा और शोभन चटर्जी तो गेहूं के साथ घुन की तरह पिस गए।

(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।)

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