“आज दीवाली है। प्रभु श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद घर लौटे थे। आइए इस वर्ष दिल्ली परिवार के हम दो करोड़ लोग एक साथ मिलकर दीवाली पूजन करें। 14 तारीख को शाम सात बजकर 39 मिनट पे पूजन का शुभ मुहूर्त है। मैं अपने सभी मंत्रियों के साथ अक्षर धाम मंदिर पर शाम के सात बजकर 39 मिनट से पूजन करूंगा। पूजन और मंत्रोच्चार का लाइव टेलिकास्ट होगा आपके टीवी चैनल में। आप भी अपना टीवी ऑन करके उसी वक़्त अपने परिवार संग मेरे साथ-साथ पूजन करना। दिल्ली के दो करोड़ लोग मिल कर जब एक साथ दीवाली पूजन करेंगे तो दिल्ली में चारों ओर अद्भुत तरंगें उत्पन्न होंगी। सभी दृश्य और अदृश्य शक्तियां दिल्ली-वासियों को अपना आशीर्वाद देंगी। सभी दिल्ली-वासियों का मंगल होगा।”
पिछले एक सप्ताह से तमाम न्यूज चैनल्स, अख़बारों, सोशल मीडिया और ऑटोमेटिक मोबाइल कॉल पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ये वाक्यांश गूंज-गूंज कर उनके हिंदुत्व-अवतरण की घोषणा कर रहे हैं।
दरअसल ये वाक्यांश अरविंद केजरीवाल द्वारा ‘छद्म सेकुलरिज्म’ की केंचुली छोड़ कर हिंदुत्ववाद का नयी चमड़ी धारण करने का पहला सार्वजनिक उद्बोधन है। पांच अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर की नींव धरे जाने के बाद अब ‘राम’ के घर वापसी का सार्वजनिक जश्न मनाकर अरविंद केजरीवाल आरएसएस-भाजपा के ‘क्रूर हिंदुत्व के नायक’ को हाईजैक करके हिंदुत्व के नये खेवनहार बनना चाहते हैँ। नरेंद्र मोदी द्वारा दीवाली सैनिकों के साथ मनाने से अरविंद केजरीवाल को अपनी ब्रांडिग ‘हिंदुत्ववादी केजरीवाल’ बनाने के लिए इससे बढ़िया अवसर और क्या हो सकता है, जब ‘हिंदुत्व’ का पूरा मैदान ही खाली मिल रहा है।
राम से पहले हनुमान को साधा केजरीवाल ने
दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान और चुनाव जीतेने के बाद भी अरविंद केजरीवाल पूरी तरह से ‘हनुमानमय’ नज़र आए थे। दरअसल ‘रामभक्त’ भाजपा से टक्कर लेने के लिए उन्होंने खुद को ‘हनुमान भक्त’ साबित करने की राजनीतिक रणनीति अपनाने की कोशिश की थी। इसी रणनीति के तहत ही चुनाव प्रचार के दौरान कई भाषणों और चैनलों पर उन्होंने हनुमान की जिक्र किया था।
और तो और चुनाव से पहले एक न्यूज चैनल पर वो हनुमान चालीसा पढ़ते भी नज़र आए थे। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वो थैंक्यू बोलने हनुमान मंदिर गए थे।
16 अगस्त को अपने जन्मदिन पर भी अरविंद केजरीवाल सपत्नीक कनॉट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर गए थे।
केजरीवाल की हनुमान भक्ति से असहज नज़र आई भाजपा
विधानसभा चुनाव के दौरान जब पूरी दिल्ली एनआरसी-सीएए विरोधी आंदोलन की गूंज से गुंजयामान थी। केजरीवाल हनुमान चालीसा पढ़कर हनुमान मंदिर जाकर खुद को ‘हिंदू’ साबित करने में लगे हुए थे। उनके इस हिंदू अवतरण से भाजपा परेशान नज़र आई और तत्कालीन दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने उनकी हनुमान भक्ति पर सवाल उठाते हुए हमला बोला। मनोज तिवारी ने कहा, “वो पूजा करने गए थे या हनुमान जी को अशुद्ध करने गए थे? एक हाथ से जूता उतारा, उसी हाथ से माला लेकर… क्या कर दिया?”
मनोज तिवारी ने उन्हें नकली भक्त और अछूत बताते हुए आगे कहा था, “जब नकली भक्त आते हैं तो यही होता है। मैंने पंडित जी को बताया, बहुत बार हनुमान जी को धोए हैं।”
वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार फरवरी को दिल्ली की एक चुनावी रैली में अरविंद केजरीवाल के हनुमान चालीसा पढ़ने को भाजपा-आरएसएस के ‘हिंदुत्व’ की जीत के तौर पर चिन्हित करते हे कहा था, “अब केजरीवाल ने हनुमान चालीसा पढ़नी शुरू कर दी है। आने वाले दिनों में आप औवेसी को भी यह पढ़ते हुए देखेंगे। निश्चित रूप से ऐसा होगा।”
सीएए विरोधी रौलियों से दूरी और रोड शो में ‘तिलकधारी’ केजरीवाल
20 जनवरी को एक चुनावी रोड शो में अरविंद केजरीवाल तिलक लागकर निकले थे। तिलकधारी केजरीवाल ने रोड शो में अपने हिंदुत्व का प्रामण देते हुए बताया था, ‘सुबह सबसे पहले उठकर शिव मंदिर गया। शिवजी महाराज से आशीर्वाद लिया। फिर वाल्मीकि मंदिर गया। वाल्मीकि भगवान से आशीर्वाद लिया। फिर हनुमान मंदिर गया हनुमान जी से आशीर्वाद लिया, कि आने वाले पांच साल भी उतने अच्छे बीतें जितने पिछले पांच साल बीते थे।’
वहीं जब पूरी दिल्ली नागरिक अधिकारों के लिए नागरिकता बचाने की लड़ाई लड़ रही थी। दिल्ली में दर्जनों जगह दिन-रात लगातार अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन चल रहा था। केजरीवाल इन सीएए विरोधी मंचों से बराबर दूरी बनाकर हुए थे। उन्होंने एक भी बार खुलकर सीएए-एनआरसी पर भाजपा-आरएसएस का मुखर विरोध नहीं किया।
दिल्ली जनसंहार पर केजरीवाल की चुप्पी के मायने
ये सच है कि दिल्ली पुलिस प्रशासन मुख्यमंत्री के अधीन नहीं आता, इसलिए दिल्ली जनसंहार में पुलिस की मिलीभगत के लिए अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली जनसंहार पर एक शब्द नहीं बोला। 26 फरवरी को उन्होंने जो बयान दिया वो भाजपा-आरएसएस को बाईपास देने वाला डिप्लोमैटिक बयान था। 26 फरवरी को दिए उनके बयान के मुकताबिक, “यहां सीएए समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई हिंसा और तनाव की स्थिति को दिल्ली पुलिस संभाल नहीं पा रही है, इसलिए यहां सेना को तैनात करने की ज़रूरत है। सेना को बुलाकर दिल्ली के प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू लगाया जाना चाहिए। इस सिलसिले में गृह मंत्री अमित शाह को खत लिख रहा हूं।”
दिल्ली से आगे की राजनीति साध रहे केजरीवाल
जिस आरएसएस ने देश की सत्ता को हथियाने के लिए केजरीवाल को आंदोलन का चेहरा बनाकर एक पहचान दी। उन्हें देश के घर-घर में पहुंचा दिया। अरविंद केजरीवाल अब उसी आरएसएस के अचूक तीर ‘हिंदुत्व’ को साधने में लग गए हैं। वह खुद को नरेंद्र मोदी के हटने के बाद हिंदुत्व के नये अवतार के तौर पर पेश करने के लिए अभी से तैयारी कर रहे हैं। इसी के तहत ही अब अरविंद केजरीवाल अपनी सारी राजनीतिक रणनीतियां तय कर रहे हैं।
संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ़ है धार्मिक आयोजनों के लिए सरकारी खजाने का इस्तेमाल
भारत की संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक “संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र” घोषित किया गया है। प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द को 1976 में बयालीसवें संशोधन अधिनियम द्वारा डाला गया था।देश का संविधान, संवैधानिक पदों पर काबिज़ व्यक्ति से अपेक्षा करता है, “आपका धर्म, आपकी भाषा आदि, आपकी निजी संपत्ति हैं। आपके संवैधानिक पद से जुड़े कर्तव्यों के निर्वहन पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।”
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सेक्यूलरिज्म के अनन्य समर्थक थे। साल 1952 में उनको ईसाई युवाओं के विश्व सम्मलेन के उद्घाटन के लिए बुलाया गया पर उन्होंने इसमें यह कहते हुए शामिल होने से मना कर दिया कि संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति को आधिकारिक रूप से किसी भी तरह के धार्मिक जलसों में शामिल होने से बचना चाहिए।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट में सेकुलरिज्म के संदर्भ में छपे एक सुंदर वाकिये की जिक्र करता हूं, “पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन एक महान चिंतक एवं शिक्षाशास्त्री होने के साथ-साथ एक धार्मिक व्यक्ति भी थे। जब वे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए तो एक प्रमुख पत्रकार टीवीआर शेनॉय ने उनका साक्षात्कार लिया और कहा कि उनका राष्ट्रपति बनना देश के सेक्यूलरिज्म की जीत है। डॉ. जाकिर हुसैन ने उनसे पूछा कि उन्होंने यह क्यों कहा? शेनॉय ने जवाब दिया कि किसी मुसलमान का भारतीय गणराज्य के सर्वोच्च पद पर पहुंचना यह साबित करता है कि इस गणराज्य का चरित्र सेक्यूलर है। पर राष्ट्रपति ने उनकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “भारत में सेक्यूलरिज्म का लक्ष्य पूरी तरह से तभी प्राप्त होगा जब आपको यह न पता चले कि मेरा धर्म क्या है।”
प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने सौराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सोमनाथ मंदिर परियोजना के लिए सरकारी फंड का इस्तेमाल नहीं करने का निर्देश दिया था। साथ ही वो सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन करने के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के फैसले के भी खिलाफ़ थे। उनका स्पष्ट मानना था, “भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राज्य है और राष्ट्रपति के इस तरह के कार्यक्रमों में भाग लेने से लोगों के बीच गलत संकेत जाएगा।”
अरविंद केजरीवाल अपना सत्ता पथ प्रशस्त करने के लिए जनता के खजाने को जनहित में खर्च करने के बजाय, अपनी ‘हिंदुत्ववादी’ ब्रांडिंग में खर्च कर रहे हैं। दीवाली पूजन के विज्ञापनों और पूरे कार्यक्रम के आयोजन और प्रसारण पर जनता के करोड़ों रुपये बर्बाद कर रहे हैं। ये देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ़ है।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव का लेख।)