Friday, April 19, 2024

पूरे देश में एक साथ होने पर सफल होगी शराबबंदी

इस समय उमा भारती मध्‍यप्रदेश में शराबबंदी का अभियान चला रही हैं। आजादी के बाद लगभग सारे देश में शराबबंदी लागू की गई थी। मध्‍यप्रदेश में भी 1963 तक शराबबंदी थी। पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र ने मुख्‍यमंत्री का पद संभालने के बाद शराबबंदी समाप्‍त कर दी थी। उनका तर्क था कि शराबबंदी पूरी तरह से लागू करना लगभग असंभव है। इससे एक ओर जहरीली शराब का उत्‍पादन और खपत बढ़ जाती है तो दूसरी ओर शराबबंदी लागू करने पर प्रशासनिक व्‍यय होता है। शराबबंदी समाप्‍त करने से यह व्‍यय समाप्त हो जाएगा और शासन को आमदनी होने लगेगी।

शराब बंदी लागू करने के लिए कवि सम्‍मेलन और मुशायरा आयोजित किये जाते थे। कुछ सम्‍मेलनों में कवि शराब पीकर शराबबंदी के फायदे बताते थे। इस तरह शराबबंदी एक तरह से मजाक बन कर रह गई थी। यद्यपि अनेक राज्‍यों में शराबबंदी, जिसे मद्य निषेध भी कहते हैं, समाप्‍त कर दी गई परंतु फिर भी कुछ राज्‍यों में यह कायम रही। जब तक मोरारजी भाई बम्‍बई के मुख्‍यमंत्री रहे उन्‍होने शराबबंदी कायम रखी।

चूंकि गुजरात गांधीजी और मोरारजी भाई की जन्‍म स्‍थली है इसलिए वहां शराबबंदी अब भी चालू है। परंतु गुजरात में शराबबंदी लगभग मजाक है। शराबबंदी के बावजूद दुकानों से शराब बेची जाती है। परंतु इन दुकानों से वे ही लोग शराब खरीद सकते हैं जिनके पास डॉक्‍टर का प्रिस्क्रिप्शन होता है। डॉक्‍टर यह लिखकर देता है कि उसके रोगी को स्‍वस्‍थ रहने के लिए शराब पीना जरूरी है। डॉक्‍टरों को मोटी फीस देकर ऐसा सर्टीफिकेट प्राप्‍त हो जाता है। गुजरात प्रवास के दौरान मुझे बताया गया कि कई मामलों में ऐसे लोग भी डॉक्‍टरों से सर्टीफिकेट प्राप्‍त कर लेते हैं जो स्‍वयं पीते नहीं हैं परंतु प्रिस्क्रिप्शन से शराब खरीद कर दूसरों को बेच देते है। इस तरह गुजरात में शराबबंदी अच्‍छा खासा नफा का धंधा है।

आजाद भारत में कुछ अन्‍य राज्‍यों ने शराबबंदी लागू की। ऐसे राज्‍यों में आंध्रप्रदेश शामिल है। आंध्रप्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री एन.टी. रामाराव ने शराबबंदी लागू की थी। रामाराव काफी लोकप्रिय मुख्‍यमंत्री थे। इसलिए उन्‍हें भरोसा था कि वे शराबबंदी लागू कर पाएंगे। उस समय मध्‍यप्रदेश में शराबबंदी लागू नहीं थी। इसका फायदा उठाकर आंध्रप्रदेश की सीमा से सटे मध्‍यप्रदेश के इलाके में शराब का धंधा कई गुना बढ़ गया। आंध्रप्रदेश के रहने वाले शराब की अपनी आवश्‍यकता की पूर्ति  मध्‍यप्रदेश से करने लगे। इसका सबक यह है कि अकेले एक राज्‍य में शराबबंदी लागू करने से शराबबंदी नहीं हो सकेगी। और फिर मध्‍यप्रदेश में यह इसलिए और भी कठिन है क्योंकि हमारे राज्‍य की सीमा महाराष्‍ट्र, आन्‍ध्रप्रदेश, तेलंगाना, राजस्‍थान, उत्तरप्रदेश आदि राज्‍यों से मिलती है।

सच पूछा जाए तो मध्‍यप्रदेश में शराबबंदी केवल उस हालत में लागू हो सकती है जब सभी सीमावर्ती राज्‍यों में शराबबंदी हो। और सभी राज्‍यों में शराबबंदी उसी समय में लागू हो सकती है जब संपूर्ण भारत में शराबबंदी लागू हो। और संपूर्ण देश में वह उसी समय लागू हो सकती है जब भारत के सभी सीमावर्ती देशों में शराबबंदी लागू हो। नशे का व्‍यापार दुनिया का सबसे बड़ा व्‍यापार है। तरह-तरह के नशे की दवाओं का व्‍यापार विश्‍वव्‍यापी है। उस पर नियंत्रण शक्‍तिशाली सरकारें भी नहीं कर पा रहीं हैं। यदि दुनिया के सब देश एक होकर नशे पर नियंत्रण करें तो भी उस पर नियंत्रण नहीं पा सकते। हां, उसे कुछ कम अवश्‍य किया जा सकता है।

प्रायः यह दावा किया जाता है कि इस्लामिक देशों में पूरी तरह शराबबंदी है। कुछ वर्षों पहले मैं पाकिस्तान गया था। वहां 15 दिन के प्रवास के दौरान मुझे बताया गया कि पाकिस्तान में सब्जी-भाजी मिलने में भले ही कठिनाई होती है परंतु शराब मिलने में नहीं।

जब रूस में कम्‍युनिस्‍ट सरकार थी उस दरमियान मुझे अनेक बार सोवियत संघ जाने का मौका मिला। वहां के अधिकारियों और नागरिको ने मुझे यह बताया कि हम ड्रिंकिंग समाप्‍त नहीं कर सकते परंतु हम ‘ड्रंकननेस’ अवश्‍य समाप्‍त कर सकते है। इस मामले में हमने काफी सफलता प्राप्‍त की है। हमने ड्रिंक्स पर राशन प्रक्रिया लागू की है। इससे प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति सीमित मात्रा में ही शराब खरीद सकता है। शराब खरीदने के लिए हमने कार्ड दिए हैं। इन कार्डों में यह अंकित रहता है कि एक व्‍यक्‍ति ने कितनी शराब खरीदी है। ऐसा करने से शराब पीकर अनियंत्रित होने के मामलों में काफी कमी आई है।

हम भारत में भी ऐसी व्‍यवस्‍था लागू कर सकते हैं। इससे सरकार को रेवेन्‍यू मिलता रहेगा और ड्रंकन्‍नेस पर भी नियंत्रण हो सकेगा। फिर मध्‍यप्रदेश के समान राज्‍य में पूरी तरह से शराबबंदी इसलिए भी संभव नहीं है क्‍योंकि हमारे प्रदेश की जनसंख्‍या का एक बड़ा हिस्‍सा आदिवासी है, शराब जिनके सामाजिक जीवन से जुड़ी हुई है।

(एलएस हरदेनिया वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट हैं और आजकल भोपाल में रहते हैं।)  

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।