Thursday, April 25, 2024

राजेन्द्र कृष्ण की जयंती: गीतकार जिसने फिल्मों की स्क्रिप्ट और संवाद भी लिखे

फिल्मी दुनिया में राजेन्द्र कृष्ण वे गीतकार हैं, जिन्होंने हिंदी फिल्मों की कहानी, स्क्रिप्ट और संवाद भी लिखे। सभी फील्ड में वे कामयाब रहे। लेकिन राजेन्द्र कृष्ण के चाहने वालों में उनकी पहचान गीतकार की ही है। चार दशक तक उनका फिल्मों में सिक्का चला। इस दरमियान उन्होंने ऐसे नायाब गीत लिखे, जो आज भी उसी तरह से पसंद किए जाते हैं। उनके लिखे गीतों का कोई ज़वाब नहीं। वे सचमुच लाज़वाब हैं। 6 जून, 1919 को अविभाजित भारत के जलालपुर जाटां में जन्मे राजेंद्र कृष्ण का पूरा नाम राजेंद्र कृष्ण दुग्गल था। राजेन्द्र कृष्ण को बचपन से ही शेर-ओ-शायरी का जु़नूनी शौक था। अपना शौक पूरा करने के लिए वे स्कूल की किताबों में अदबी रिसालों को छिपाकर पढ़ते। यह शौक कुछ यूं परवान चढ़ा कि आगे चलकर खुद लिखने भी लगे। पन्द्रह साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने मुशायरों में शिरकत करना शुरू कर दिया। जहां उनकी शायरी खूब पसंद भी की गई। शायरी का शौक अपनी जगह और ग़म-ए-रोजग़ार का मसला अलग।

लिहाजा साल 1942 में शिमला की म्युनिसिपल कार्पोरेशन में क्लर्क की छोटी सी नौकरी कर ली। लेकिन उनका दिल इस नौकरी में बिल्कुल भी नहीं रमता था। नौकरी के साथ-साथ उनका लिखना-पढ़ना और मुशायरों में शिरकत करना जारी रहा। यह वह दौर था, जब सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर मुशायरों-कवि सम्मेलनों की बड़ी धूम थी। इन मुशायरों की मकबूलियत का आलम यह था कि हजारों लोग इनमें अपने मनपसंद शायरों को सुनने के लिए दूर-दूर से आते थे। शिमला में भी उस वक्त हर साल एक अजीमुश्शान ऑल इंडिया मुशायरा होता था, जिसमें मुल्क भर के नामचीन शायर अपना कलाम पढ़ने आया करते थे। साल 1945 का वाकया है, मुशायरे में दीगर शोअरा हजरात के साथ नौजवान राजेंद्र कृष्ण भी शामिल थे। जब उनके पढ़ने की बारी आई, तो उन्होंने अपनी ग़ज़ल का मतला पढ़ा, ‘‘कुछ इस तरह वो मेरे पास आए बैठे हैं/जैसे आग से दामन बचाए बैठे हैं’’। ग़ज़ल के इस शे’र को खूब वाह-वाही मिली। दाद देने वालों में जनता के साथ-साथ जिगर मुरादाबादी की भी आवाज़ मिली। शायर-ए-आज़म जिगर मुरादाबादी की तारीफ़ से राजेन्द्र कृष्ण को अपनी शायरी पर एतमाद पैदा हुआ और उन्होंने शायरी और लेखन को ही अपना पेशा बनाने का फैसला कर लिया। एक बुलंद इरादे के साथ वे शिमला छोड़, मायानगरी मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने जा पहुंचे। 

फिल्मी दुनिया में काम पाने के लिए राजेन्द्र कृष्ण को ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। उन्हें सबसे पहले फिल्म ‘जनता’ की पटकथा लिखने को मिली। यह फिल्म साल 1947 में रिलीज हुई। उसी साल उनकी एक और फिल्म ‘जंज़ीर’ आई, जिसमें उन्होंने दो गीत लिखे। लेकिन उन्हें असल पहचान मिली फ़िल्म ‘प्यार की जीत’ से। साल 1948 में आई इस फ़िल्म में संगीतकार हुस्नलाल भगतराम का संगीत निर्देशन में उन्होंने चार गीत लिखे। फिल्म के सारे गाने ही सुपर हिट हुए। खास तौर पर अदाकारा सुरैया की सुरीली आवाज से राजेन्द्र कृष्ण के गाने ‘तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया परदेसिया’ में जादू जगा दिया। गाना पूरे देश में खूब मकबूल हुआ। साल 1948 में ही राजेन्द्र कृष्ण ने एक और गीत ऐसा लिखा, जिससे वे फिल्मी दुनिया में हमेशा के लिए अमर हो गए। 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई। बापू की इस हत्या से पूरा देश ग़मगीन हो गया। राजेन्द्र कृष्ण भी उनमें से एक थे। बापू के जानिब अपने जज्बात को उन्होंने एक जज़्बाती गीत ‘सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी’ में ढाला। तकरीबन तेरह मिनट के इस लंबे गीत में महात्मा गांधी का पूरा जिंदगीनामा है। मोहम्मद रफी की दर्द भरी आवाज ने इस गाने को नई ऊंचाइयां पहुंचा दी। आज भी ये गीत जब कहीं बजता है, तो देशवासियों की आंखें नम हो जाती हैं। 

 हिंदी फिल्मों में राजेन्द्र कृष्ण के गीतों की कामयाबी का सिलसिला एक बार शुरू हुआ, तो उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक उनकी ऐसी कई फिल्में आईं, जिनके गीतों ने ऑल इंडिया में धूम मचा दी। साल 1949 में फिल्म ‘बड़ी बहन’ में उन्हें एक बार फिर संगीतकार हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देशन में गीत लिखने का मौका मिला। इस फिल्म के भी सभी गाने हिट हुए। खास तौर पर ‘चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है, पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है’ और ‘चले जाना नहीं..’ इन गानों ने नौजवानों को अपना दीवाना बना लिया। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज ने इन गीतों में वह कशिश पैदा कर दी, जो आज भी दिल पर असर करती है। ‘चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है’ की तरह फ़िल्म ‘बहार’ (साल-1951) में शमशाद बेगम का गाया गीत ‘सैंया दिल में आना रे, ओ आके फिर न जाना रे’ भी खूब मकबूल हुआ। इन गानों ने राजेन्द्र कृष्ण को फिल्मों में गीतकार के तौर पर स्थापित कर दिया।

साल 1953 में फिल्म ‘अनारकली’ और साल 1954 में आई ‘नागिन’ में उनके लिखे सभी गाने सुपर हिट साबित हुए। इन गानों की कामयाबी ने राजेन्द्र कृष्ण के नाम को देश के घर-घर तक पहुंचा दिया। फिल्म ‘अनारकली’ में यूं तो उनके अलावा तीन और गीतकारों जांनिसार अख्तर, हसरत जयपुरी शैलेन्द्र ने गीत लिखे थे, लेकिन राजेन्द्र कृष्ण के लिखे सभी गीत खूब पसंद किए गए। ‘जिंदगी प्यार की दो-चार घड़ी होती है..’, ‘जाग दर्दे-ए इश्क जाग’, ‘ये जिंदगी उसी की है’ और ‘मोहब्बत में ऐसे कदम डगमगाए’ उनके लिखे गीतों को हेमंत कुमार और लता मंगेशकर की जादुई आवाज़ ने नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इसी फिल्म से उनकी जोड़ी संगीतकार सी. रामचंद्रा के साथ बनी। इस जोड़ी ने आगे चलकर कई सुपर हिट फिल्में ‘पतंगा’, ‘अलबेला’, ‘पहली झलक’, ‘आजा़द’ आदि दीं। इन फिल्मों में लता मंगेशकर द्वारा गाये गए गीत खूब लोकप्रिय हुए। 

फिल्म ‘नागिन’ की कामयाबी के पीछे भी राजेन्द्र कृष्ण के गीतों का बड़ा योगदान था। इस फिल्म में उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत ‘मन डोले, तन डोले, मेरे दिल का गया क़रार रे’, ‘मेरा दिल ये पुकारे आजा’, ‘जादूगर सैयां छोड़ मोरी बैयां’, ‘तेरे द्वार खड़ा इक जोगी’, ‘ओ ज़िन्दगी के देने वाले, ज़िन्दगी के लेने वाले’ लिखे। संगीतकार हेमंत कुमार के शानदार संगीत और गायिका लता मंगेशकर की आवाज ने इन गीतों को जो जिंदगी दी, वह आज भी इसके चाहने वालों के दिलों में धड़कन की तरह धड़कते हैं। सरल, सहज ज़बान में लिखे राजेन्द्र कृष्ण के गीत लोगों के दिलों में बहुत जल्द ही अंदर तक उतर जाते थे। जहां उन्हें मौका मिलता, उम्दा शायरी भी करते। संगीतकार मदन मोहन के लिए उन्होंने जो गाने लिखे, वह अलग ही नज़र आते हैं।

मिसाल के तौर पर फिल्म ‘अदालत’ में राजेन्द्र कृष्ण ने एक से बढ़कर एक बेमिसाल ग़ज़लें ‘उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते’, ‘जाना था हमसे दूर बहाने बना लिये’ और ‘यूं हसरतों के दाग़ मुहब्बत में धो लिये’ लिखीं। अपनी मखमली आवाज से पहचाने जाने वाले सिंगर तलत महमूद के जो सुपर हिट गीत हैं, उनमें से ज्यादातर राजेन्द्र कृष्ण के लिखे हुए हैं। यकीं न हो तो खुद ही देखिए ‘ये हवा ये रात ये चान्दनी तेरी इक अदा पे निसार है’ (फिल्म-संगदिल), ‘बेरहम आसमाँ मेरी मंज़िल बता है कहां’ (फिल्म-बहाना), ‘हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया’ (फिल्म-देख कबीरा रोया), ‘इतना न मुझ से तू प्यार बढ़ा’, ‘आंसू समझ के क्यूं मुझे आँख से तुमने गिरा दिया’ (फिल्म-छाया), ‘फिर वही शाम वही ग़म वही तनहाई है’, ‘मैं तेरी नज़र का सुरूर हूं, तुझे याद हो के न याद हो’ (फिल्मत-जहाँआरा)। 

संगीतकार हेमंत कुमार के साथ भी राजेन्द्र कृष्ण की जोड़ी अच्छी जमी। फिल्म ‘नागिन’ के अलावा ‘मिस मैरी’, ‘लगन’, ‘पायल’, ‘दुर्गेश-नन्दिनी’ वगैरह फिल्मों में इस जोड़ी ने अनेक नायाब नग्में दिए। फिल्म की हर सिचुएशन पर राजेन्द्र कृष्ण को गीत लिखने की महारत हासिल थी। जिंदगी के हर रंग और हर भाव पर उन्होंने गीत लिखे। ये सभी गीत सुपर हिट हुए। उनके सुपर हिट गीतों की एक लंबी फेहरिस्त है, जो कभी भुलाए नहीं जाएंगे। ‘कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिए’ ‘चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना’ (फ़िल्म-भाभी), ‘तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बन्धु सखा तुम्हीं हो’ (फ़िल्म-मैं चुप रहूंगी), ‘जहां डाल डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा’ (फ़िल्म- सिकन्दर-ए-आज़म)। राजेन्द्र कृष्ण ने फिल्मों में कई कॉमेडी और अनूठे गीत भी रचे। जो अपनी ज़बान और अलबेले अंदाज की वजह से अलग ही पहचाने जाते हैं। मिसाल के तौर पर उनके लिखे गए इन गीतों पर एक नज़र डालिए ‘शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो’ (फिल्म-अलबेला), ‘मेरे पिया गये रंगून, वहां से किया है टेलिफ़ून’ (फिल्म-पतंगा), ‘ओ मेरी प्यारी बिन्दु’, ‘इक चतुर नार करके सिंगार’ (फिल्म-पड़ोसन), ‘ईना मीना डीका’ (फिल्म-आशा)।

गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने तकरीबन 300 फ़िल्मों के लिए एक हज़ार से ज्यादा गीत लिखे। सौ से ज्यादा फिल्मों की कहानी, संवाद और पटकथा लिखीं। जिसमें उनके द्वारा लिखी कुछ प्रमुख फ़िल्में ‘पड़ोसन’, ‘छाया’, ‘प्यार का सपना’, ‘मनमौजी’, ‘धर्माधिकारी’, ‘मां-बाप’, ‘साधु और शैतान’ हैं। एक वक्त ऐसा भी था, जब राजेन्द्र कृष्ण उन्हीं फिल्मों में गीत लिखते थे, जिसमें उनके संवाद और पटकथा होती थी। अपने फ़िल्मी लेखन के बारे में राजेन्द्र कृष्ण की एक इंटरव्यू में कैफियत थी, ‘‘आम तौर पर एक फ़िल्म में छः या सात गीत होते हैं। जिसमें रोमांटिक सिचुएशन ज़्यादा होती है। उसमें तो कोई पैग़ाम नहीं दिया जा सकता। मगर क्योंकि मैं स्क्रिप्ट राइटर भी हूं, संवाद भी लिखता हूं तो इसलिये कोई न कोई सिचुएशन ऐसी निकाल लेता हूं जिसमें देशभक्ति, भजन, या समाजवाद की बात हो या ग़ज़ल हो जाए।’’

बहरहाल, राजेन्द्र कृष्ण को जब भी मौका मिला, उन्होंने अपने गीतों और संवादों से देशवासियों को सरल शब्दों में एक संदेश दिया। सीधे-सच्चे लफ्जों और सादा अंदाज में वे ऐसे गीत लिखते थे, जो दिलों में गहरे तक उतर जाते थे। अपने शानदार गीतों  के लिए राजेन्द्र कृष्ण कई पुरस्कारों और सम्मान से भी नवाजे गए। साल 1965 में उन्हें ‘तुम्ही मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा’ (फिल्म-खानदान) गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला। उन्होंने चार दशक तक अपने गानों से फिल्मी दुनिया में राज किया। एक शानदार जिंदगी बिताई। 23 सितम्बर, 1988 को गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और उस अनजानी दुनिया के सफर पर निकल गए, जहां से कोई वापस लौटकर नहीं आता।

(जाहिद खान वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल मध्य प्रदेश के शिवपुरी में रहते हैं।) 

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