Saturday, April 20, 2024

तूल पकड़ता जा रहा है आन्ध्रा सीएम और न्यायपालिका के बीच का टकराव

आन्ध्र के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और उनके समर्थकों द्वारा उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर अपमानजनक टिप्पणियों और आरोपों का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सीबीआई ने सोमवार को सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ मानहानि की सामग्री पोस्ट करने के लिए 16 व्यक्तियों को नामजद  किया है। इस मामले की जांच पहले आंध्र प्रदेश सीआईडी द्वारा की जा रही थी। कथित अपमानजनक पदों पर संज्ञान लेते हुए,  उच्च न्यायालय ने सीबीआई को दक्षिणी राज्य में प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका की जांच करने का निर्देश दिया था, जो जानबूझकर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को निशाना बना रहे थे।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने सीबीआई को मामले की जांच करने और आठ सप्ताह के भीतर एक सीलबंद कवर में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। मामले की अगली सुनवाई 14 दिसंबर को है।

सीबीआई ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर राज्य सीआईडी  द्वारा दर्ज 12 मामलों की जांच राज्य के रजिस्ट्रार जनरल बी राजशेखर की शिकायत पर संभाल ली है। विशाखापत्तनम में सीबीआई कार्यालय ने विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, जिसमें 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा), भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 शामिल हैं।

शिकायत में आरोप लगाया गया था कि मुख्य कार्मिक, जो आंध्र प्रदेश राज्य में प्रमुख पदों पर काबिज हैं, ने जानबूझकर न्यायाधीशों को निशाना बनाकर, साक्षात्कार/पद/भाषण दिए थे, जिनमें से कुछ सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के इरादे,  उनकी जाति और उनके कथित भ्रष्टाचार से जुड़े आरोप थे। आरोप थे कि उच्च न्यायालय ने आदेश/निर्णय देने में न्याय नहीं किया। उन्होंने आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा दिए गए हालिया आदेशों और निर्णयों के बारे में सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर में न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक, जानलेवा धमकी और धमकी भरे पोस्ट किए। आंध्र प्रदेश विधानसभा के स्पीकर और उपमुख्यमंत्री ने भी न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से खुद को नहीं रोका था।

कथित अपमानजनक पदों पर संज्ञान लेते हुए, उच्च न्यायालय ने सीबीआई को दक्षिणी राज्य में प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका की जांच करने का निर्देश दिया था, जो जानबूझकर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को निशाना बना रहे थे। अदालत ने उल्लेख किया था कि पोस्टिंग उच्च न्यायालय और माननीय न्यायाधीशों के खिलाफ घृणा, अवमानना, उकसाने और दुर्भावनापूर्ण व्यवहार के लिए की गई थी।

जस्टिस राकेश कुमार और जे उमा देवी की खंडपीठ ने राज्य सरकार के खिलाफ गए कुछ अदालती फैसलों के बाद जजों और न्यायपालिका के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कथित रूप से अपमानजनक पोस्ट किए जाने के बाद यह आदेश पारित किया था। खंडपीठ के निर्देश पर रजिस्ट्रार जनरल को नाम और संबंधित सबूत देते हुए सीआईडी के पास एक शिकायत दर्ज हुई, लेकिन राज्य पुलिस विंग ने केवल नौ लोगों को बुक किया।

खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि उनकी टिप्पणी लोकतंत्र के लिए खतरनाक है और न्यायपालिका पर हमले की सरीखी है। अगर कोई सामान्य व्यक्ति सरकार के खिलाफ कोई टिप्पणी करता है, तो ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ तुरंत मामले दर्ज किए जाते हैं। जब पदों के व्यक्तियों ने न्यायाधीशों और अदालतों के खिलाफ टिप्पणी की, तो मामले क्यों दर्ज नहीं किए गए? चीजों को देखते हुए, हमें यह पता लगाने के लिए छोड़ दिया जाता है कि न्यायपालिका पर युद्ध की घोषणा की गई है।

सीआईडी जांच पर नाराजगी व्यक्त करते हुए खंडपीठ ने बीते अक्तूबर में सीबीआई को निर्देश दिया कि वह सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं द्वारा सोशल मीडिया पर कुछ न्यायाधीशों और न्यायपालिका के खिलाफ की गईं कथित अपमानजनक टिप्पणियों के मामले की जांच करे। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ मामला सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं किया गया, ताकि उन्हें बचाया जा सके। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों और न्यायपालिका पर की गई टिप्पणियों का स्वत: संज्ञान लिया था।

खंडपीठ ने यह भी कहा था कि सीबीआई को उन सभी के खिलाफ मामले दर्ज करने चाहिए, जिन्होंने जजों की निंदा की है। अपने निर्णयों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ‘आपत्तिजनक टिप्पणियों’ का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि यह न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा है। दरअसल सीआईडी ने केवल कुछ सोशल मीडिया पोस्ट करने वालों पर ही एफ़आईआर दर्ज की थी, जबकि राज्य सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसला देने के लिए 90 से अधिक लोगों ने न्यायपालिका के ख़िलाफ़ अपमानजनक टिप्पणी की थी। सुनवाई के दौरान अन्य लोगों के अलावा विधानसभा अध्यक्ष तमिनमनी सीतारम, उपमुख्यमंत्री नारायण स्वामी, सांसद विजयसाई रेड्डी और एन सुरेश और पूर्व विधायक अमनचि कृष्णमथन द्वारा की गई कथित टिप्पणी को भी खंडपीठ ने ग़लत माना। उसने कहा कि उन्होंने न्यायपालिका पर सीधा हमला किया।

गौरतलब है की अक्तूबर में राज्य के सीएम जगनमोहन रेड्डी ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे से उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एनवी रमना की शिकायत की थी । शिकायत में कहा गया था कि चंद्रबाबू नायडू के इशारों पर हाई कोर्ट और उच्चतम न्यायालय के जज उनकी सरकार की स्थिरता को प्रभावित कर रहे हैं। रेड्डी ने आरोप लगाया था कि जस्टिस रमना आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई को प्रभावित कर रहे हैं, जिसके तहत वे कुछ जजों के रोस्टर को भी प्रभावित कर रहे हैं।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने अपने पत्र में जस्टिस एनवी रमना पर तब आरोप लगाया था , जब जस्टिस रमना की अध्यक्षता वाली एक पीठ भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सांसदों, विधायकों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई की मांग की गई है। जस्टिस रमना की पीठ ने 16 सितंबर, 2020 को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों से माननीयों के मामलों की सुनवाई की प्रगति की निगरानी के लिए एक विशेष पीठ गठित करने और ऐसे सभी मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए कहा था, जिन पर स्टे लगा है या नहीं और यह तय करना है।

जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ के आदेश के बाद कि 9 अक्तूबर को हैदराबाद में सीबीआई की विशेष अदालत में आय से अधिक संपत्ति मामले में जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई है। इस मामले में सीबीआई ने वर्ष 2011 में जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इसके अगले दिन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को चिट्ठी लिख कर जस्टिस एनवी रमना के ख़िलाफ़ शिकायतें की थीं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।