ट्रंप विवाद: संघ के एजेंडे को पूरा करने में लगे हैं मोदी

दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कश्मीर मसले पर अपने बयान से अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक भूचाल सा ला दिया है। ट्रम्प के अनुसार- “भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की पेशकश की थी।”

हालांकि ट्रम्प अपने बयानों को लेकर बहुत अधिक विश्वसनीय नहीं रहे हैं लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति का यह बयान अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है। केंद्र में 2014 में एनडीए सरकार के गठन के समय से लेकर अब तक दक्षिण एशिया में भारत घिरता नजर आया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मसले पर भारतीय कूटनीतिक विफलता भी सामने आ चुकी है।

ऐसी स्थिति में अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान और भी कई अर्थों को समेटे हुए है। ट्रम्प का बयान देश की संप्रभुता से जुड़ा है इस कारण इसे हल्के में लेना देश के लिए गम्भीर खतरे को जन्म दे सकता है। ट्रम्प का यह बयान सच है तो देश षड्यंत्रकारी शक्तियों के हत्थे चढ़ चढ़ चुका है और अगर ट्रम्प का बयान गलत है तो भी इसके अपने कूटनीतिक मायने हैं जो कतई भारतीय दृष्टिकोण से सुखद संकेत नहीं दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में देश के विदेशी मामलों के कूटनीतिक शूरमाओं के पास स्थिति से निपटने का कोई कूटनीतिक उपाय भी है या नहीं ये सबसे गम्भीर प्रश्न है। इस प्रश्न के उत्तर को टटोलने के लिए इस पूरे वाक़ये के पीछे के घटनाक्रम और कश्मीर मुद्दे पर एनडीए सरकार के रवैये को समझने का प्रयास करते हैं।

2014 में केंद्र में मजबूत एनडीए सरकार का गठन होता है, कुछ दिनों के बाद कश्मीर में भी बीजेपी-पीडीपी गठबन्धन की सरकार शपथ लेती है। मीडिया में कश्मीर मसले के हल की संभावना बलवती होती दिखाई देने लगती है लेकिन हकीकत इसके विपरीत ही रहती है। सेना के जवानों को दहशतगर्दी का शिकार होना पड़ता है, पत्थरबाजों की हलचल भी तेज हो जाती है, पैलेट गन कथित रूप से आम सिविलियनों को शिकार बनाती रहती है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर में मानवाधिकार हनन की बात को उठाता है और फिर 2018 आते-आते संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने कश्मीर मुद्दे पर अपनी पहली रिपोर्ट जारी की जिसमें मानवाधिकार उल्लंघन पर गम्भीर चिंता जताते हुए पाक और हिंदुस्तान दोनों देशों से तनाव कम करने के लिये कार्यवाही का आग्रह करता हैं। भारत सरकार की ओर से इस रिपोर्ट को सिरे से ख़ारिज कर दिया जाता है। इस बीच, दबी जुबान से ही सही कश्मीर में दहशतगर्दी को दूर करने की असफलता को स्वीकार करते हुए कश्मीर में गठबंधन सरकार भी टूट जाती है।

देश मे चुनावी वर्ष की शुरुआत से ही सीमा पर हलचलें तेज हो जाती हैं। पुलवामा में आतंकवादी देश के 40 जवानों को दहशतगर्दी का शिकार बना लेते हैं। उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का एक ट्वीट सामने आता है जिसमें “भारत सरकार द्वारा कोई बड़ी कार्यवाही करने का संकेत दिया जाता है।”

अगले ही दिन भारतीय जवान सीमा पार एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देता है। इसी क्रम में भारतीय विंग कमांडर अभिनन्दन पाकिस्तान के कब्जे में आ जाता है। उस समय भी अमेरिकी राष्ट्रपति का एक ट्वीट सामने आता है जिसमें “जल्द ही भारत के लिए सुखद खबर आने की उम्मीद जताई जाती है।” और इस ट्वीट के बाद पाक प्रधानमंत्री इमरान खान का वह बयान सामने आ जाता है जिसमें अभिनन्दन की रिहाई की घोषणा हो जाती है। इस पूरे घटनाक्रम को भारतीय मीडिया ने राष्ट्रवाद की चाशनी में इस तरह लपेटा की चुनाव में अन्य सारे मसले उड़न छू हो गए और ऐतिहासिक जीत के साथ एनडीए सरकार की वापसी हो गई। भारतीय विपक्षी दलों के कुछ नेताओं द्वारा पुलवामा हमला और बालाकोट एयर स्ट्राइक को स्क्रिप्टेड भी बताया गया और गम्भीर षड्यन्त्र का आरोप भी लगाया गया लेकिन राष्ट्रवाद के बहस तले ऐसे बयान पूरी तरह कुचल दिए गए।

वर्ष 2019 में एनडीए सरकार के गठन के बाद हाल में ही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (United Nation Commission on Human Rights- UNCHR) ने भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित कश्मीर संबंधी मुद्दे पर अपनी दूसरी रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत और पाकिस्तान दोनों ही कश्मीर संबंधी मुद्दे का समाधान करने में विफल रहे हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया कि कश्मीर और पीओके में मई 2018 से अप्रैल 2019 के दौरान हताहत होने वाले नागरिकों की संख्या पिछले एक दशक से भी अधिक है। कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों के सदस्यों द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है जिसकी कोई भी जवाबदेही नहीं होती है। रिपोर्ट में भारत और पाकिस्तान की सरकारों को व्यापक रूप से सलाह दी गई है साथ ही मानवाधिकार परिषद (Human Rights Council- HRC) से कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों की जांच के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग गठित करने का भी आग्रह किया गया है।

रिपोर्ट पर भारत की ओर से पुनः तीखी प्रतिक्रिया दर्ज की गई। रिपोर्ट को भारतीय संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ जारी ‘गलत और पूर्वाग्रह से ग्रसित बयान’ का हिस्सा बताया गया।

भारत ने इस रिपोर्ट पर राजनयिक विरोध दर्ज़ कराते हुए इसे भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन बताया है। क्योंकि इसमें सीमा पार आतंकवाद के मूल मुद्दे की अनदेखी की गयी है। भारत ने रिपोर्ट में जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को ‘सशस्त्र समूह’ बताये जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले में इस संगठन के शामिल होने का ज़िक्र किया जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी स्वीकार किया है।

इस बीच पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिकी यात्रा से पहले पाकिस्तान में जैश सरगना मसूद अजहर को गिरप्तार कर लिया जाता है, उस समय भी ट्रम्प का ट्वीट धनुष से छूटे तीखे बाण की तरह सामने आ जाता है, जिसमें ट्रम्प ने कहा कि दो सालों से मेरे द्वारा पाकिस्तान पर बनाए गए दबाव के कारण ही मसूद की गिरप्तारी हो सकी। यानि साफ संदेश था कि भारतीय विदेश नीति इतनी असहाय है कि बिना ट्रम्प के सहयोग से वह रेंग भी नहीं सकती। ख़ैर ये सारा वाकया ट्रम्प के वर्तमान बयान के पहले की पटकथा थी, जिसे इत्तफाक मानें या गम्भीर षड्यन्त्र ।

अब जरा भारतीय दृष्टिकोण से ट्रम्प के इस बयान के कूटनीतिक मायने और पाकिस्तान के नापाक मंसूबे को समझने का प्रयास करते हैं। ट्रम्प के इस बयान के दो ही पक्ष हैं- या तो यह बयान सच है या झूठ। इन दोनों पक्षों की चर्चा में ही बयान के मतलब और मायने छुपे हैं, जिसे बारी-बारी से समझना वक्त का तकाजा भी है और आवश्यक भी।

अगर ट्रम्प का आरोप सही है तो यह देश के लिए काफी ख़तरनाक है। बीजेपी की मातृ संस्था आरएसएस ने देश विभाजन के समय मुस्लिम बहुल क्षेत्र कश्मीर को पाकिस्तान को सौंप कर हिंदू राष्ट्र निर्माण के अपने मंसूबे को जाहिर कर दिया था। अगर ट्रम्प का बयान सच है तो वर्तमान सरकार अपने मोहरे उसी दिशा में चल रही है (जो संघ का आरम्भिक एजेंडा था) ये तय है। ऐसी स्थिति में माननीय मोदी जी के पास अपने पद पर बने रहने का कोई नैतिक आधार नहीं बचता है। 

अगर ट्रम्प का बयान उनके स्वभाव की तरह झूठ का पुलिंदा है तो भी यह भारत के लिए काफी खतरनाक है। पहला प्रश्न तो यह बनता है कि आखिरकार दुनिया के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति ये झूठ क्यों बोलेगा? इससे अमेरिका या ट्रम्प को क्या लाभ ? 

क्या एक छोटा सा मुल्क पाकिस्तान इतना महत्वपूर्ण है कि उसे खुश करने भर के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति झूठ बोल गए? क्या भारत के मुकाबले पाकिस्तान अमेरिका के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण बन गया है ? क्या भारत सरकार की विदेश नीति इतनी लचर है कि दूसरे देश के राष्ट्राध्यक्ष के सामने ट्रम्प भारत को जलील करें? प्रश्न अनेक हैं और इनमें से किसी भी प्रश्न का उत्तर भारत के लिए राहत का उपाय नहीं हो सकती है। अगर ट्रम्प का बयान झूठ का पुलिंदा है तो एक मजबूत प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी को संसद में आकर इस बयान की भर्त्सना करने में क्या समस्या है? देश की संप्रभुता की रक्षा का शपथ लेकर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान माननीय मोदी जी मौन क्यों? उन्हें अबिलम्ब अमेरिकी राष्ट्रपति को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए, पूरा देश अपने प्रधानमंत्री के साथ खड़ा है। कांग्रेस नेता शशि थरूर और नटवर सिंह ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ होने का स्पष्ट बयान भी दिया है, फ़िर मोदी जी बताएं कि अमेरिकी राष्ट्रपति को देश के सम्प्रभुता के विरुद्ध षड्यन्त्र करने का अधिकार और देश के स्वाभिमान का मख़ौल उड़ाने का अधिकार किसने दे दिया है? क्या यही आपकी रिकार्ड अमेरिकी यात्रा का प्रतिफल है? क्या यही भारतीय विदेश नीति है?

कश्मीर मसले पर ट्रम्प के बयान के निष्कर्ष और आगे की राह 

जैसा कि विदित है कि पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मसला बताता रहा है, यूनाइटेड नेशन में कई बार चीन और अमेरिका के मध्यस्थता की पेशकश करता रहा है साथ ही साथ कश्मीर में जनमत संग्रह की मुख़ालफ़त करता रहा है। भारत हमेशा से कश्मीर को एक द्विपक्षीय मसला बताता रहा है और इस मुद्दे पर किसी अन्य देश की मध्यस्थता को सिरे से खारिज करता रहा है। लेकिन अब जो संभावना बन रही है वो भारत पर बढ़ता अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने का संकेत कर रहा है।

पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघन की बात, फिर अमेरिकी द्वारा खुले तौर पर मध्यस्थता की पेशकश के बाद अब कश्मीर में जनमत संग्रह करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बनेगा और फिर कश्मीर को देश की राजनैतिक सीमाओं में बांध रखना कतई आसान नहीं होगा। भारत के विरुद्ध हमेशा से आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले पाकिस्तान के साथ अमेरिका भी इस षड्यन्त्र में शामिल दिख रहा है ये उतना हैरानी भरा नहीं है जितना कि कश्मीर मसले पर भारत सरकार का रवैया अचम्भित करने वाला है, कहीं न कहीं देश संघ के पुराने एजेंडे की ओर स्पष्ट रूप से आगे बढ़ता दिख रहा है।

(दया नन्द स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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