बेनजीर भुट्टो को इन्दिरा गांधी के समकक्ष ठहराने का ‘पाकिस्तानी खेल’

बेनजीर भुट्टो 1988 में पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने के साथ-साथ किसी मुस्लिम देश का नेतृत्व करने वाली पहली महिला थीं, उन्हें पूरब की बेटी के नाम से भी जाना जाता है। आज ही के दिन 27 दिसंबर 2007 को पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में एक चुनाव यात्रा के दौरान दिन-दहाड़े उनकी हत्या कर दी गई। बेनजीर 1988 और 1993 के अपने दोनों कार्यकालों में प्रसिद्ध और विवादास्पद राजनेता दोनों ही रहीं। वह पाकिस्तान को एक ऐसे राष्ट्र में बदलना चाहती थीं जहां आर्थिक विकास, सामाजिक सहिष्णुता और लोकतांत्रिक स्थिरता सुनिश्चित हो सके।

पाकिस्तान के लिए विभिन्न विकास कार्यक्रम जैसे एयरोस्पेस परियोजनाएं, परमाणु हथियार कार्यक्रम और अनुसंधान कार्यक्रमों का आधुनिकीकरण और 1990 में पृथ्वी पर उपग्रह स्थापित करने वाला पहला मुस्लिम देश पाकिस्तान, भुट्टो के शासन की उल्लेखनीय उपलब्धि रहीं लेकिन इन सब उपलब्धियों के बावजूद 1988 के चुनाव में “इस्लाम हमारा विश्वास है, लोकतंत्र हमारी राजनीति है, और समाजवाद हमारी अर्थव्यवस्था है” का नारा देने वाली बेनज़ीर भुट्टो, इन्दिरा गांधी के समकक्ष कभी नहीं रहीं। बेनज़ीर को इन्दिरा के समकक्ष ठहराने के वैश्विक पटल पर हुए प्रयास भुट्टो के गुप्त रूप से पाकिस्तान में जेहाद और कश्मीर में अलगाववाद पर पर्दा डालने की एक सोची-समझी रणनीति थी।

भारत के खिलाफ बयानबाज़ी से कभी नहीं चूकीं बेनज़ीर

बेनज़ीर भुट्टो को भारत के खिलाफ बयानबाज़ी करने की विरासत उनके बाप-दादा से विरासत में मिली थी। वह भारत के खिलाफ कभी बयानबाज़ी करने से नहीं चूकीं यह बात और है कि उन्हें इसका लाभ भी मिलता रहा।पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की राजनीतिक जीवनी लिखने वाले भारत मूल के ब्रिटिश पत्रकार श्याम भाटिया अपनी किताब ‘अलविदा शहज़ादी’ में लिखते हैं कि बेनज़ीर गुप्त रूप से और हिंसक रूप से भारत विरोधी थीं, 1990 की उनकी टेलीविजन छवियों से हटाई गई थी, जहां वह कश्मीरी आतंकवादियों को भारत के कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल, जगमोहन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उकसाती हुई देखी गई थीं।

अभी भी याद किया जाता है कि 1990 में उस समय उन्होंने जो चौंकाने वाला इशारा किया था, उनका दाहिना हाथ उनके बाएं हाथ की खुली हथेली से टकरा रहा था, जैसा कि उन्होंने कहा था, ‘जग, जग, मो-मो, हन-हन’। जिहादियों के रोष को भड़काने के उद्देश्य से अपने भाषण में उन्होंने कहा: ” कश्मीर के लोगों को मौत का डर नहीं है क्योंकि वे मुसलमान हैं। कश्मीरियों में मुजाहिदीन का खून है क्योंकि कश्मीरी पैगंबर मोहम्मद, हजरत अली और हजरत उमर के उत्तराधिकारी हैं और कश्मीर की बहादुर महिलाएं? वे लड़ना भी जानती हैं और जीना भी। कश्मीर के लोग गरिमा के साथ जीवन जीते हैं, हर गांव से एक ही आवाज निकलेगी: आजादी; हर स्कूल से एक ही आवाज़ निकलेगी: आज़ादी; हर बच्चा चिल्लाएगा, “आज़ादी, आज़ादी, आज़ादी “।

क्या पाकिस्तान में इस्लामिक जेहाद के लिए केवल जिया-उल हक ही जिम्मेदार थे ?

1980 का दशक पाकिस्तान की रणनीति में बड़े स्तर पर प्रभावी रहा। अफगान युद्ध में पाकिस्तान का सोवियत यूनियन को करारा जवाब देने के लिए अमेरिका का समर्थन करना, भारत के खिलाफ दक्षिण एशिया में इस्लामिक जेहाद को खड़ा करना था। जनरल हक सीधे तौर पर इसके लिए जिम्मेदार अवश्य थे लेकिन इसकी जड़ें भुट्टो खानदान में समाहित थी।पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी और उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो की हत्या ये दो प्रकरण जिसके लिए पाकिस्तान की आवाम अपने देश में चरमपंथ के उदय के लिए पूर्व तानाशाह जनरल जिया-उल हक को दोषी मानती आयी है लेकिन दक्षिण पंथी पाकिस्तानी उन्हें ‘नायक’ का दर्जा देते हैं सवाल है क्या वह वास्तव में जनरल हक पाकिस्तान में इस्लामिक जेहाद के वास्तुकार थे?

अमेरिका स्थित इस्लामवाद के विशेषज्ञ आरिफ जमाल के मुताबिक पाकिस्तान में इस्लामी उग्रवाद की जड़ें देश के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना में निहित थी। पाकिस्तानी उदारवादी जहां जिन्ना और भुट्टो दोनों की धर्मनिरपेक्ष मुद्रा के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं, वहीं दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान और कश्मीर में छद्म युद्ध लड़ने के लिए जिहादियों का उपयोग करने की नीति अपनाई। यह जुल्फिकार अली भुट्टो ही थे जिन्होंने भारत को अस्थिर करने के लिए हिकमतयार और रब्बानी जैसे अफगान जिहादियों को पाकिस्तान में आमंत्रित किया था। उनकी नीतियों को बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ जैसे उनके उत्तराधिकारियों ने आगे बढ़ाया। जनरल हक वही कर रहे थे जो राज्य ने उनसे मांग की थी।

एक बेटी को उसके पिता का पत्र

स्वतंत्रता आन्दोलन के समय जेल में कैद रहते हुए नेहरू अपनी बेटी इंदिरा गांधी को पत्र लिखा करते थे जिनका उल्लेख बेनजीर के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो जिया-उल-हक सरकार के प्रयासों से जेल में बंद रहने के कारण अपनी बेटी को पत्र लिखकर करते हैं।

जेल में बंद एक कैदी का जीवन व्यतीत करते भुट्टो एक पत्र में अपनी बेटी बेनजीर को लिखते हैं , “मेरी सबसे प्यारी बेटी,एक निंदित कैदी जन्मदिन का पत्र कैसे लिखता है? अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रही एक खूबसूरत और मेधावी बेटी को बधाई। एक पिता, स्वयं बंधन में होने के नाते, यह जानकर कि उसकी मां खुद के समान पीड़ित है इसके बावजूद स्नेह और सहानुभूति का यह संदेश कैसा होगा!”

भुट्टो, नेहरू को अपनी बेटी इंदिरा को लिखे पत्र का हवाला देकर कहते हैं कि, “नेहरू भी अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे। अपनी बेटी के जन्मदिन पर नेहरू ने जेल से उनके लिए बधाई भी भेजी थी। मैंने आपको पहले भी इसका उल्लेख किया है, या तो पहले या दूसरे पत्र में । मैंने आपको और अन्य तीन पत्र जकार्ता से लिखे 1964 में जब आप मुरी के कॉन्वेंट में एक छोटी सी बच्ची थीं।  सनम- सीमा और भी छोटी थी। उस लंबे पत्र में मैंने उल्लेख किया कि कैसे नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा को जेल से दुनिया के इतिहास के बारे में बताया। बाद में, इन पत्रों को “विश्व इतिहास की झलक” नामक उत्कृष्ट एक किताब के रूप में समेकित किया गया। मुझे बहुत विश्वास है पहला पत्र उनकी बेटी इंदु को जन्मदिन की बधाई के लिए था। भुट्टो लिखते हैं, जब तक मैं तेईस वर्ष का था मैंने “विश्व इतिहास की झलकियाँ” चार बार पढ़ी थीं। नेहरू हमारे अंग्रेजी गद्य के सबसे परिष्कृत लेखकों में से एक थे, उनके शब्दों में प्रेरणा और संगीत था।”

आगे भुट्टो लिखते हैं कि, “मैं दावा कर सकता हूं कि आप इंदिरा गांधी की तरह इतिहास रच रही हैं। मैं इंदिरा गांधी को अच्छी तरह जानता हूं, हालांकि मैं उनके पिता को ज्यादा जानता था। नेहरू की विरासत को इन्दिरा गांधी ने संभाला और वह भारत की प्रधानमंत्री पद पर रहीं। मेरा उनके प्रति यह कोई भावनात्मकता मूल्यांकन नहीं है लेकिन मैं फिर दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर नेहरू की बेटी भारत की प्रधानमंत्री बन सकती तो मेरी बेटी भी पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बन सकती है।”

जुल्फिकार जानते थे कि वह जिया-उल-हक के खिलाफ लड़ाई हार चुके हैं इससे पहले कि कब अंतिम घड़ी आ जाए वह अपनी बेटी को एक समेकित दृष्टिकोण देना चाहते थे जिसमें सभी के लिए समानता, बन्धुता और न्याय शामिल हो। यहां वो अफ्रीकी मूल के लोगों के साथ किए जाने वाले नस्ल-भेद की आलोचना करते हुए कहते हैं कि, “मैं पूरी दुनिया को सिर्फ एक मौत की कोठरी में नहीं देखता क्योंकि मैं मृत्यु कोठरी में हूँ। पश्चिमी दृष्टिकोण को अफ्रीका के प्रति बदलने की जरूरत है। अफ्रीका के निवासी “बदसूरत ब्लैकमैन” के प्रति गौरव की भावना और संवेदनशीलता होनी ही चाहिए। जुबानी कूटनीति से काम नहीं चलेगा।दोनों हाथों से अफ्रीका की लूट बंद होनी चाहिए। ऐसा माहौल बनाया जाए जहां एक अफ्रीकी की बगल में बैठने से लोग न कतराएं।  अफ्रीकी लोग, आदिवासी और पिछड़े होने पर भी वे अपमान सहन नहीं करेंगे। वह अधिक विस्तार से लिखना चाहते हैं लेकिन भुट्टो अच्छी तरह जानते हैं कि समय इसकी अनुमति नहीं देता,फाँसी उसकी प्रतीक्षा कर रही है। बेनजीर के लिए उनका प्यार और लगाव जबरदस्त है। यह कहते हुए कि, नेहरू ने अपने पत्रों में जेल से उनकी बेटी “इंदु” पर कोई बोझ नहीं डाला। भुट्टो ने लिखा, “बेटी, मैं भी तुम पर कोई बोझ नहीं डाला रहा हूं निःसंदेह, तुम मेरी उम्मीदों पर खरा उतरोगी, लेकिन कार्य असंभव है। मैं केवल तुम्हारी ईश्वरीय कामना कर सकता हूं।”

दो राजवंशों की विरासत और नई पीढ़ी

वर्तमान में अगर यह सवाल पूछा जाए कि भारत और पाकिस्तान के दो बड़े राजवंशों की नई पीढ़ी में क्या कोई समानता देखने को मिलती है? तो इसके लिए इतिहास में जाने की आवश्यकता नहीं है। हाल ही में यूएनएससी में  पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दिए गए विवादित बयान को पढ़ा जा सकता है। भले ही पाकिस्तान में इन्दिरा गांधी और बेनज़ीर की तरह दोनों राजवंशों की नई पीढ़ी बिलावल भुट्टो, आसिफा जरदारी की तुलना राहुल और प्रियंका गांधी से की जाए लेकिन पाकिस्तान की नई पीढ़ी के हालिया बयान को सुनकर तो यही कहा जा सकता है कि यह पीढ़ी अपने पुरखों के कदमों पर ही चलने वाली है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और यूपी के अमरोहा में रहते हैं।)

प्रत्यक्ष मिश्रा

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