किसी भी महामारी को रोकने के लिये जिन सात बातों को प्रमुख माना गया है, जिन्हें ‘पावर आफ सेवन’ कहा जाता है, वे हैं —
1. सभी स्तरों पर एक दृढ़ निश्चय वाले नेतृत्व को सुनिश्चित करना ।
2. एक मज़बूत स्वास्थ्य व्यवस्था का निर्माण करना ।
3. बीमारी से बचने के त्रिस्तरीय उपाय करना – निवारण (रोकथाम), शिनाख्त और उपचार।
4. समय पर सटीक सूचना का प्रसार ।
5. उपचार के तात्कालिक बुद्धिमत्तापूर्ण उपायों पर निवेश ।
6. महामारी में बदलने के पहले ही बीमारी को रोकने के लिये ज़रूरी खर्च ।
7. नागरिकों को सतर्क और सक्रिय बनाना ।
इन सातों पैमानों पर ही मोदी सरकार का अगर कोई आकलन करेगा तो उसे शून्य से ज़्यादा नंबर नहीं दे सकता है ।
शुरू से ही इस सरकार ने बीमारी से लड़ने के प्रति ढीला-ढाला रुख़ अपनाया और आज तक वह अपनी इस मनोदशा से निकल नहीं पाई है । महामारी से निपटने के बजाय विरोधियों की सरकार के हथियाने और उनके नेतृत्व को परेशान करने में इसकी कहीं ज़्यादा दिलचस्पी है ।
स्वास्थ्य व्यवस्था को चौपट करने में तो मोदी ने खुद सक्रिय रूप से काम किया है । चिकित्सा की सुविधाओं के बजाय उन्होंने ज़्यादा निवेश चिकित्सा बीमा की तरह की योजनाओं के झूठे प्रचार से आम लोगों को बरगलाने में किया है ।
जिस सरकार का सबसे ज़्यादा ज़ोर कम से कम टेस्टिंग पर रहता हो, वह निवारण, शिनाख्त और उपचार, इन सभी स्तरों पर विफल होने के लिये अभिशप्त है ।
जहां तक सूचनाओं के सही समय पर और सटीक रूप में प्रसारण का मामला है, मोदी बुनियादी तौर पर इस बात के विरुद्ध हैं । सूचनाओं को छिपाना और विकृत करना उनकी हमेशा की मूलभूत प्रकृति रही है ।
उपचार के नये और तात्क्षणिक उपायों पर निवेश तो इस सरकार की कल्पना के बाहर है । वह इस मामले में अपने भाई-भतीजों को लाभ पहुँचाने को लेकर ज़्यादा चिंतित रहती है ।
जहां तक बीमारी को महामारी का रूप लेने से रोकने का सवाल है, मोदी ने तो अपने अविवेकपूर्ण लॉक डाउन के ज़रिये इसे महामारी की शक्ल देने में सक्रिय भूमिका अदा की है । देश के गाँव-गाँव तक फैलाने का यहाँ जैसे सुनियोजित प्रयास किया गया है ।
और अंतिम, नागरिकों को सजग और सक्रिय बनाने का जहां तक मामला है, मोदी नागरिक समाज के दमन पर विश्वास करते हैं, उनकी भूमिका को किसी भी रूप में बढ़ावा देने पर नहीं ।
कहना न होगा, मोदी सरकार कोरोना महामारी के संदर्भ में सचमुच आज अपराधी के कठघरे में खड़ी है । इसे जीवन में कभी भी क्षमा नहीं किया जा सकता है ।
(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक, चिंतक और स्तंभकार हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)