Friday, March 29, 2024

बढ़ती महंगाई के आगे बेदम हो रही है सरकारी मदद

हरदासी खेड़ा, लखनऊ। राजधानी लखनऊ के मटियारी स्थित हरदासी खेड़ा में बसी एक बस्ती है राम रहीम। इस बस्ती में कुल 29 घर हैं जिसमें अधिकांश घर दलितों के हैं और कुछ पिछड़ी जाति के लोग भी रहते हैं। इस बस्ती के ज्यादातर पुरुष मजदूर हैं जिसमें कुछ सब्जी फल का ठेला लगाते हैं तो कई ई रिक्शा चलाते हैं। कुछ महिलाएँ घरेलू कामगारिन के तौर पर काम करती हैं। कुल मिलाकर बेहद गरीब परिवारों की बस्ती है यह। रिपोर्टिंग के तहत पिछले दिनों इस बस्ती में जाकर लोगों से संवाद करने का मौका मिला। जाने का एक अहम मकसद बस्ती के हालात पर स्टोरी करना तो था ही साथ ही यह जानना भी था कि यह गरीब और मेहनतकश तबका महँगाई की इस मार में कैसे अपना जीवन यापन कर पा रहा है

हर महीने मिलने वाला राशन, (चावल, गेहूँ, एक किलो नमक, एक किलो चना, एक लीटर रिफाइंड) इनकी एक महीने की खाद्य जरूरतों को कितना पूरा करता है और महंगी होती अन्य खाद्य सामग्रियों की वजह से अपनी कमाई का कितना हिस्सा इन्हें खर्च करना पड़ता है, कुल मिलाकर जो सरकार दे रही है और यह बढ़ती महंगाई जितना इन गरीबों की जेब में डाका डाल रही है उसमें कितना अंतर है या सामंजस्य है साथ ही साथ अब जबकि प्रदेश में पुनः मुख्यमंत्री के तौर पर योगी  आदित्यनाथ की ताजपोशी होने जा रही है तो ऐसे में अब दूसरे कार्यकाल में वे सरकार से क्या उम्मीद करते हैं।

तो आईये लोगों से पहले बस्ती के हालात से रूबरू हो लिया जाये….

छोटे-छोटे कच्चे घर, घरों के बाहर खेलते छोटे बच्चे, घरों में काम करती महिलाएँ और काम पर जाते घर के पुरुष। कोई सब्जी का ठेला तैयार करते हुए तो कोई पंचर हुई साईकिल में जल्दी-जल्दी हवा भरते हुए ताकि समय रहते  मजदूरी पर निकल सकें। बमुश्किल 400, 500 वर्ग फुट में बने मिट्टी के  खिलौनेनुमा घरों के अंदर की बदहाली उनके रोजमर्रा के संघर्ष को बयां कर रही थी। कई कोशिशों के बावजूद अभी तक इस बस्ती में बिजली तक नहीं पहुँच पाई है, अलबत्ता बिजली के खंभे जरूर लग गए हैं लेकिन अभी उनमें करंट दौड़ना बाकी है।

दो साल पहले तक बस्ती के लोग आस-पास की कालोनी के घरों से पानी भरकर लाते थे। बिजली के अभाव में पानी की किल्लत वर्षों से झेल रहे इन बस्ती वासियों की फिलहाल पानी की समस्या का समाधान कुछ हद तक तो हो गया। बिजली, पानी के लिए कई बार आंदोलन कर चुके इन बस्ती वासियों के मुताबिक अंत में वार्ड पार्षद के हस्तक्षेप से बिजली विभाग द्वारा पानी की टंकी भरने तक के लिए बिजली दे दी गई। लेकिन घरों तक बिजली पहुँचने का इंतज़ार आज भी खत्म नहीं हुआ। पूरी बस्ती के लिए केवल एक पानी की टंकी है जो एक हजार लीटर की है। सुबह और शाम, दो बार ही पानी के लिए मोटर चलाने की अनुमति है।

पानी की इकलौती टंकी

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्की छत का वादा तो इनसे भी था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ। दरअसल यह बस्ती ग्राम सभा की जमीन पर करीब 22 साल पहले बसाई गई थी। दो दशक से ज्यादा समय हो गया जब अलग-अलग जगहों से आकर गरीब लोग यहां बसे और शहर में मजदूरी कर अपना जीवनयापन करने लगे। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यह आश्वासन दिये जाने के बावजूद कि, पक्का घर बनाने के लिए जिन गरीब परिवारों के पास अपनी जमीन नहीं है उन्हें जमीन का पट्टा दिया जायेगा, बार-बार कोशिशों के बाद भी अभी तक इन गरीब परिवारों को पट्टा नहीं मिल पाया है। पक्की कालोनी न होने की वजह से बरसात के दिनों में बस्ती पानी की भेंट चढ़ जाती है।

पेशे से दिहाड़ी मजदूर कामता प्रसाद कहते हैं अब अगर जमीन का पट्टा, पक्की छत नहीं मिली तो वे लोग सीधे मुख्यमंत्री से मिलेंगे। हालांकि वे भाजपा के दोबारा सत्ता में आने और योगी आदित्यनाथ के एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने से खुश हैं। वे कहते हैं हम रोज कमाने वाले रोज खाने वाले दिहाड़ी मजदूर हैं, चरम कोरोना काल और लॉकडाउन में जब हम बेरोजगार हो गए तब भी इस सरकार ने किसी को भूखा नहीं सोने दिया और वे एक-एक कर योगी सरकार के कामों को गिनाने लगे। लेकिन दूसरे ही पल वे कहते हैं पर अभी भी गरीबों के पक्ष में सरकार को बहुत कुछ करने की जरूरत जैसे पक्के घर का वादा पूरा करे, भूमिहीन गरीबों को जमीन का पट्टा दे तो वहीं श्रमिक लालजी राजभर बताते हैं दबंगों, भू माफियाओं द्वारा कई बार उनकी बस्ती को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई, बस्ती को आग तक लगा दी गई, लेकिन आज तक वे लोग अपने बूते अपनी बस्ती को बचाये हुए हैं। वे कहते हैं बस्ती को बचाने के आंदोलन में वे तीन बार जेल भी जा चुके हैं।

कामता प्रसाद और उनकी पत्नी

महंगाई की मार और थाली से कम होता अनाज

मेरी मुलाक़ात बस्ती की मीनू और उसके पति मनोज से हुई। मनोज पहले मजदूरी करते थे लेकिन अब सब्जी का ठेला लगाते हैं। चार सदस्यों का परिवार है, दो बच्चे और पति-पत्नी। मीनू बताती हैं कि उन्हें महीने में 12 किलो गेहूँ, 8 किलो चावल, एक पैकेट रीफाइंड, एक पैकेट चना और एक पैकेट नमक मिलता है। मोटा-मोटी हिसाब जोड़कर वे कहती है, बढ़ती महंगाई ने घर का बजट पूरी तरह बिगाड़ कर रख दिया, आठ से दस हजार घर का खर्च है और सरकार से हमें बमुश्किल से 400 रुपये से लेकर 500 रुपये का राशन मिलता है, वो भी पूरा नहीं पड़ता महीने में दोबारा चावल, गेहूँ, रीफाईइंड खरीदना ही पड़ता है।

मीनू साफ-साफ कहती हैं, सरकारी योजना के तहत मिलने वाले राशन से कोई शिकायत नहीं जितना मिल रहा उतना ही अपने हक़ का मान लिया, ज्यादा शिकायत करेंगे तो हम गरीबों पर यह इल्जाम रहेगा कि इन्हें तो मुफ्त की खाने की पड़ गई लेकिन कम से कम जो सरकार कर सकती है वो तो करे….. सरकार को क्या करना चाहिए? मेरे सवाल के जवाब में वह कहती हैं महंगाई तो कम कर सकती है न। नाराजगी भाव में वह कहती हैं पाँच सौ का राशन देकर सरकार हमारी जेब पर पंद्रह हजार का अतिरिक्त बोझ डाल रही है, 190 रुपये लीटर तो तेल ही हो गया है। महीने में तो पांच सौ का तो तेल ही लग जाता है वो भी जब छोटा परिवार है तब, इसके अलावा दालों के बढ़ते दाम ने परेशान कर दिया सो दाल खाना ही कम कर दिया। मीनू कहती हैं कि उनके पति की पूरे दिन की कमाई करीब तीन सौ है अब अगर वे दौ सौ का तेल ही लाकर दे देंगे तो बाकी का सामान कैसे आएगा।

मीनू के बगल में आशा देवी का घर था। अपने घर के छोटे से आंगन में आशा ने जो थोड़ी बहुत सब्जी उगा रखी थी, उसे चरने के लिए गाय घुस आई। आशा ने गाय को खदेड़ कर ही दम लिया। दुखी मन से आशा बोलीं, बस रोज का यही सिरदर्द है थोड़ी बहुत सब्जी उगाई है वो भी अक्सर गाय घुसकर बर्बाद कर देती है। इतना कहकर आशा अपनी छोटी सी क्यारी को ठीक करने लगीं। आशा के परिवार में चार सदस्य हैं, एक बेटा, दो बेटियाँ और खुद वह। पति की मृत्यु हो चुकी है।

जब आशा के घर पहुँची तो घर में आशा के अलावा दोनों बेटियाँ थीं और 16 साल का बेटा मजदूरी पर निकला हुआ था। आशा कहती हैं जो कमाने वाले थे वह नहीं रहे तो मजबूरीवश बेटे को आठवीं के बाद पढ़ाई बंद करके काम पर लग जाना पड़ा पर अभी दोनों बेटियाँ पढ़ाई कर रही हैं। उदासी भरे स्वर से वह कहती हैं, बेटे को पढ़ाने का बहुत मन है, जब हालात थोड़ा सुधरेंगे तो फिर से बेटे की पढ़ाई शुरू करवा दूँगी।

आशा देवी

बेहद आर्थिक तंगी से जूझती आशा बढ़ती महंगाई से बहुत चिंतित हैं। उन्होंने बताया कि राशनकार्ड में केवल उसका नाम ही चढ़ा है तीनों बच्चों के नाम किसी कारणवश कट गए हैं अब आधारकार्ड के जरिए जोड़े जायेंगे। चूंकि अभी मात्र आशा का नाम ही राशनकार्ड में दर्ज है तो केवल उसी के हिस्से का राशन मिल रहा है। आशा कहती हैं जितनी कमाई घर में आ रही है, इस महंगाई के कारण उससे दोगुना पैसा जेब से चला जा रहा है।

घर में रखा थोड़ा बहुत राशन दिखाकर आशा आंखों में आंसू भर कहती हैं, बस मेरे हिस्से भर का राशन मिलता है वो भी तो एक जनभर के लिए पूरा नहीं पड़ता, जबकि तेल, मसाले, दालें, गैस, कौन सी ऐसी चीज नहीं जिनका दाम न बढ़ रहा हो। वे कहती हैं कि हम गरीब तो दोहरी मार झेल रहे हैं, एक तरफ मुफ्त राशन हमें सरकार का ऋणी बना रहा है जबकि मिल रहा राशन किसी भी परिवार की महीने भर की जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहा। अतिरिक्त राशन अपनी जेब से पैसा लगाकर खरीदना ही पड़ता है, तो दूसरी तरफ बढ़ती महंगाई लोगों को कर्जदार बना रही है।

आशा से बातचीत के क्रम में पड़ोस में रहने वाली इन्दु देवी भी आ गईं। महंगाई को लेकर हो रही बात को बीच में ही काटते हुए वह बोलीं सुन रहे हैं मैडम जी कि अभी महंगाई और बढ़ेगी… अगर ऐसा होता है तो हम गरीब कहाँ जायेंगे, क्या अपने बच्चों को खिलाएंगे कैसे पढ़ाएंगे? वे कहती हैं महीने में मिलने वाला राशन भी तो पूरा नहीं पड़ता दोबारा खरीदना ही पड़ता है। सब्जियों के दाम बताते हुए इंदु कहती हैं कोई भी सब्जी के दाम पैंतीस, चालीस रुपये किलो से कम नहीं, गुस्से भरे लहजे में वह कहती हैं तेल, गैस के दाम ने गरीबों को मार डाला है। एक तरफ सरकार कहती है कि देश को धुआँ मुक्त बनाएंगे और दूसरी तरफ गैस के दाम बढ़ा रही है तो कैसे देश धुआँ मुक्त होगा। इंदु कहती हैं गैस के दाम बढ़ने की वजह से उन्हें ज्यादातर खाना मिट्टी के चूल्हे पर ही बनाना पड़ता है। इंदु देवी का पाँच सदस्यों का परिवार है, तीन बच्चे और पति-पत्नी। पति दिहाड़ी मजदूर हैं।

इंदु देवी

वह कहती हैं महीने का आठ से दस हजार का खर्चा है, वो भी तब जब बहुत सी चीजें थाली तक नहीं पहुँच पाती हैं। पति जितना कमाते हैं सब खर्च हो जाता है बचत का तो सवाल ही नहीं। वह हाथ जोड़कर कहती हैं अब तो सरकार से यही कहना है कि अब जब एक बार फिर हम जनता ने आपको दोबारा सरकार बनाने का मौका दिया है तो बेमौत मार रही इस महंगाई पर लगाम लगाने का काम करिये और गैस का दाम उतना ही हो जितना हर गरीब व्यक्ति खर्च कर सके साथ ही साथ कम से कम महीने का उतना राशन तो मिले कि दोबारा न खरीदना पड़े। इंदु देवी को उम्मीद है कि अपने दूसरे कार्यकाल में योगी सरकार अपने अधूरे कामों को पूरा करेगी और यदि ऐसा हुआ तो उन्हें एक दिन पक्का घर मिल जायेगा।

इसी बस्ती के रहने वाले छोटे लाल के घर भी जाना हुआ। उस दिन वह घर पर ही मिल गए। छोटे लाल मिस्त्री का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि उस दिन उनको कोई काम नहीं मिला इसलिए घर पर ही हैं। उनका पाँच लोगों का परिवार है जिसमें तीन बेटियाँ और पति पत्नी शामिल हैं। छोटे लाल कहते हैं परिवार का रोज का खर्चा पाँच सौ रुपये का है यानी महीने में पंद्रह हजार का खर्च जिसमें चावल, आटे का खर्चा भी शामिल है। वे कहते हैं यहाँ तो ईमानदारी से पूरा सरकारी राशन भी नहीं मिल रहा कटौती होकर बीस किलो ही अनाज मिल रहा है तो कैसे पेट भरें। वे बताते हैं कि उनकी बस्ती में लगभग सबका ई श्रम कार्ड बन चुका है लेकिन अभी तक किसी के खाते में एक भी किस्त नहीं आई है।

बस्ती के लोग

वे कहते हैं सिर पर होली का त्यौहार है लेकिन महंगाई ऐसी कि गरीब कैसे त्यौहार मनाये। भाजपा सरकार के दोबारा सत्तासीन होने पर अपनी मिली जुली प्रतिक्रिया देते हुए छोटे लाल कहते हैं चुनाव से पहले इस सरकार ने भूमिहीनों को जमीन का पट्टा देने का वादा किया था, हर कच्चे घर को पक्का कर देने का भी वादा किया था, गरीब जनता के पक्ष में और भी कई वादे किये थे तो अब सरकार को यह समझना चाहिए कि इन्हीं वादों की पूर्ति के लिए इस राज्य की गरीब जनता ने उन्हें दोबारा राजपाठ सौंपा है तो अब अपने वादों को सरकार ईमानदारी से पूरा करे।

(लखनऊ से स्वतंत्र पत्रकार सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

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