Friday, March 29, 2024

कम नहीं हो रहीं महिलाओं के प्रति दरिंदगी की घटनाएं

बलात्कार भारत में महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे आम अपराध है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में 32033  बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, यानी प्रतिदिन औसतन 88 मामले दर्ज हुए। ये 2018 की तुलना में थोड़ा कम है जब 91 मामले रोज दर्ज किए गए थे। इनमें से 30,165 बलात्कार पीड़िता के ज्ञात अपराधियों द्वारा किए गए थे (94.2% मामले)। यह वर्ष 2018 के समान ही उच्च संख्या की स्थिति थी। जो नाबालिग थे या 18 वर्ष से कम पीड़ितों का हिस्सा 15.4% था। राजस्थान में बलात्कार के सबसे ज्यादा 5,997 केस दर्ज करवाए गए जबकि मध्य प्रदेश 2,485 रेप केस के साथ इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर है।

साल भर के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज हुए जो 2018 की तुलना में सात प्रतिशत अधिक हैं। जिनमें से 11 फीसदी पीड़ित दलित समुदाय से हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। एक तरफ प्रदेश की सरकार लॉ एंड ऑर्डर पर सख्ती बरतने और अपराधियों पर नकेल कसने के लंबे-चौड़े दावे करती रही है तो दूसरी तरफ महिलाओं के खिलाफ अपराध की राज्यवार लिस्ट में उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर रहता है। देश को हिला कर रख देने वाले उन्नाव कांड, हाथरस कांड और बलरामपुर कांड इसी राज्य में हुए हैं, वो भी कुछ ही समय के अंतराल पर। राज्य में महिलाओं के खिलाफ हैवानियत का आलम यह है कि तभी चौबीस घंटों में ही आजमगढ़, बुलंदशहर और फतेहपुर से रेप की थर्रा देने वाली घटनाएं सामने आई थीं।

इनमें आठ और 14 साल ही मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की बात सामने आई। वहीं प्रदेश के बिजनौर में एक राष्ट्रीय स्तर की खो-खो खिलाड़ी से रेप किया गया और हत्या के बाद उसके शव को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया। इस दलित खिलाड़ी ने रेप के दौरान ही एक दोस्त को कॉल किया था, जिसका कथित ऑडियो क्लिप भी सामने आया है। यह क्लिप अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और स्थानीय लोगों का दावा है कि इस क्लिप में खिलाड़ी मदद के लिए गुहार लगा रही है। ऐसी घटनाओं से भारत में महिला सुरक्षा के प्रति भय और आशंका और बढ़ जाती है।

डॉटर्स डे के ठीक दो दिन बाद भारत में एक और बेटी की जिंदगी को बेरहमी से कुचल दिया गया। उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित तौर पर सवर्ण समुदाय के चार लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था ​और उसे शारीरिक रूप से बुरी तरह प्रताड़ित किया था। इसके 15 दिन बाद पीड़िता ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। उन दो महीनों में ही उत्तर प्रदेश में यह पांचवीं घटना थी जिसमें किसी लड़की के साथ बलात्कार के बाद क्रूरतापूर्ण ढंग से हत्या की गई। इनमें से तीन लड़कियां दलित समुदाय से थीं। गत दिनों मुंबई में एक दलित महिला की रेप के दौरान आई चोटों के कारण मौत हो गई थी। सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना की साल 2012 में दिल्ली में हुए बर्बर गैंगरेप से तुलना की है। जिसकी वजह स्थानीय अधिकारी की ओर से दी गई भयावह जानकारियां हैं।

इस मामले में भी रेप के दौरान महिला की योनि में एक लोहे की छड़ घुसाई गई। महिला एक मिनी बस में बेहोश पाई गई और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। पुलिस की ओर से इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया, जिसने अपराध कबूल लिया। देश में पिछले कुछ दिनों में इस तरह के जघन्य बलात्कार का यह अकेला मामला नहीं है। कुछ ही दिन पहले छत्तीसगढ़ में शराब के नशे में दो युवकों ने एक महिला का अपहरण कर, उसे बांधकर गैंगरेप किया और फिर उसकी हत्या कर दी। जानकार कहते हैं कि निर्भया कांड के बाद से रेप के मामलों में शिकायत दर्ज कराने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है, हालांकि अब भी रेप के मामलों के वास्तविक आंकड़े, शिकायत में दर्ज मामलों से बहुत ज्यादा हैं। डर और शर्म के चलते अब भी कई महिलाएं इन अपराधों की शिकायत नहीं करतीं और कई मामलों में तो पुलिस की ओर से ही रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। दिसंबर, 2019 तक मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले अपराधों के मामले में हत्या के बाद सबसे बड़ा अपराध रेप ही था।

इस श्रेणी के कुल अपराधियों में से रेप के अपराधी 12.5 फीसदी थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध की श्रेणी में सबसे बड़ा अपराध रेप है। ऐसे कुल अपराधों में 64 फीसदी मामले रेप के हैं। ऐसे अपराधों के अंडरट्रायल कैदियों में भी सबसे ज्यादा (करीब 60 फीसदी) रेप के आरोप में ही बंद हैं। साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक रेप के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से सामने आए थे। महिलाओं के अपहरण के मामले में भी ये दोनों राज्य सबसे आगे थे। बिहार की हालत भी इस मामले में काफी खराब थी। प्रमुख सामाजिक कारण यह है कि जिस समाज के लोग प्रताड़ित, शोषित और कुंठित रहे हैं, अपने गुस्से, खीझ और कुढ़न को निकालने के लिए वो एक रास्ता खोजते हैं जो रेप का कारण बनता है। दूसरा प्रमुख पहलू यह भी है कि जिस समाज को आप बेसिक शिक्षा और समझ तक नहीं दे सके हैं, उसके हाथों में इंटरनेट पर तकरीबन मुफ्त अनलिमिटेड पॉर्न दे दिया गया है।

बलात्कार न होने के लिए एक बेहद स्वस्थ समाज की जरूरत होती है, जहां स्त्री-पुरुष समान समझे जाते हों, उनका मिलना-जुलना सहज हो, सरल हो, उनके बीच रिश्ते बिना किसी कुंठा के बन सकते हों, सेक्स का दमन न हो, इसे एक प्राकृतिक भेंट समझकर उसे स्वीकारा जाए, उसकी निंदा न हो। यह देखा जा सकता है कि जो आदिवासी हैं, पिछड़े हैं, जंगलों में रहते हैं, वे बेहद सहज, सरल व प्राकृतिक जीवन जीते हैं, वहां कभी बलात्कार नहीं होते। हमें उनसे सीखने की जरूरत है। पूंजीवादी मानसिकता अपराधों को प्रश्रय देती है। कहीं मनोरंजन के नाम पर तो कहीं पूंजी की ताकत दिखाने के नाम पर। बलात्कार सामंती सोच, लैंगिक विषमता, अव्यवहारिक शिक्षा व दमित समाज की देन है। निर्भया केस रहा हो, या हाथरस गैंग रेप मामला, या अनेकों ऐसी अन्य आपराधिक घटनाएं, भारतीय पुरुष मनोविकार के उदाहरण से एक बहुत मान्य बात हर बार यह निकलकर आती है कि लड़कियां कपड़े उत्तेजक पहनती हैं या फिर लड़कों को उकसाने वाली हरकतें करती हैं। बलात्कार को जायज़ ठहराने के लिए मर्दों की दुनिया के पास कई तरह के जस्टिफिकेशन बहुत आसानी से मिलते हैं।

अतः समाज के संदर्भों में कुछ कारणों को समझना बेहद ज़रूरी है। यथा, महिला के साथ सेक्स उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त से जुड़ा है इसलिए महिला के साथ बलात्कार करने से एक पूरे परिवार से बदला लेने या सबक सिखाने जैसी अवधारणा जुड़ी है जिसे अंजाम देना कठिन नहीं होता। कमजोर पर नियंत्रण करना, अपनी मर्ज़ी से चलाना या फिर अपनी हुकूमत चलाने जैसी भावनाओं के कारण रेप वर्चस्व स्थापित करने की लड़ाई में प्रमुख ​हथियार बनता है। यह गांवों की मामूली लड़ाइयों से लेकर विश्व युद्ध तक में दिखता है। सेक्स- एजुकेशन का अभाव एक बड़ा कारण है। दूसरे शब्दों में लड़कों की परवरिश भेदभाव की मानसिकता के साथ किया जाना लड़कियों को एक असुरक्षित स्थिति देने की बड़ी वजह है। कानून और अपराध के बारे में पूरी और गंभीर समझ की कमी एक महत्वपूर्ण वजह है। पुलिस, प्रशासन, न्यायालय सब एक मशीन की तरह काम करते हैं। एक वैज्ञानिक समझ का अभाव वहां स्पष्ट दिखता है। उनका मनोविज्ञान भी समाज के मनोविज्ञान के सदृश ही होता है| जबकि उनमें उच्चतर मानवीय धरातल पर सोचने-समझने की शक्ति और विवेक होना चाहिए।

(शैलेंद्र चौहान साहित्यकार हैं और आजकल जयपुर में रहते हैं।)

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