Friday, April 19, 2024

किताब छापकर बताना पड़ा मोदी का सिखों के साथ रिश्ता

भाजपा को ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के संबंध सिखों के साथ अटूट नहीं रहे। अब यह नौबत आ गई कि उसे बताने के लिए बुकलेट छापनी पड़ी है और विभिन्न मंत्रालयों के नेटवर्क के ज़रिए देशभर में बाँटा जा रहा है। तमाम लोगों को इसे ईबुक के रूप में भी ईमेल पर भेजा गया है। 

कल तक भारतीय एजेंसियां इस कॉरिडोर का संबंध खालिस्तानी आतंकियों और पाकिस्तान वाले इलाक़े में आतंकी ट्रेनिंग कैंप चलाने की बातें मीडिया में सूत्रों के हवाले से कहलवाती रही हैं। आज सरकार को बताना पड़ रहा है कि सिखों से मोदी के अटूट संबंध हैं।

यह बुकलेट शब्दों की चाशनी से भरी पड़ी है। 33 पेज की यह बुकलेट नुमा किताब हिन्दी, अंग्रेज़ी और गुरमुखी भाषाओं में है। इसका प्रकाशन सूचना प्रसारण मंत्रालय ने किया है। बुकलेट में करतारपुर साहिब कॉरिडोर का सारा श्रेय मोदी को दे दिया गया है। किताब को मोदी के सिख वेशभूषा वाले फोटो से पाट दिया गया है।

हक़ीक़त तो ये है

हालाँकि सिख समुदाय का बच्चा-बच्चा जानता है कि करतारपुर साहिब कॉरिडोर दरअसल नवजोत सिंह सिद्धू, कैप्टन अमरिंदर सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की कोशिशों की वजह से मुमकिन हो सका है। 

इसकी कोशिशें वर्षों से चल रही थीं लेकिन अपनी पाकिस्तान यात्रा पर नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने क्रिकेटर दोस्त इमरान खान से इस कॉरिडोर का वादा लिया। 2018 में इमरान ने पाकिस्तान की सत्ता संभालते ही करतारपुर साहिब कॉरिडोर की पहली घोषणा कर दी। इधर से कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि इस काम के लिए फंड की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी।

इसके बाद इसमें मोदी सरकार कूदी और आधिकारिक स्तर पर बातचीत के दौर शुरू हो गए। 9 नवम्बर, 2019 को प्रधानमंत्री मोदी सिखों वाली पगड़ी पहनकर भारत के हिस्से वाले कॉरिडोर का उद्घाटन करने जा पहुंचे। उसी कार्यक्रम में बतौर प्रधानमंत्री, मोदी को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर ने क़ौमी एकता पुरस्कार से नवाज़ा। 

बुकलेट में इस पुरस्कार का जो औचित्य कमेटी ने उस समय बताया था उसे ज्यों का त्यों पेश कर दिया गया है। हालांकि उस समय हुए सरकारी समारोह में दिए गए इस पुरस्कार को सरकार के गोदी मीडिया ने ज़्यादा अहमियत नहीं दी थी। लेकिन अब तो मोदी की शान में उस समय पढ़े गए कसीदों को किसान आंदोलन का सामना करने के लिए भुनाया जा रहा है।

बदनाम करने में कोई कमी नहीं

करतारपुर कॉरिडोर पर जब बातचीत चल रही थी तो भारत के मीडिया को करतारपुर में भारत सीमा के पास आतंकी ट्रेनिंग कैंप नज़र आ रहे थे। सारी ख़बर भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियों के हवाले से आ रही थी। जी न्यूज़, आजतक, एबीपी न्यूज़, रिपब्लिक टीवी, न्यूज़ नेशन, टाइम्स नाऊ आदि चैनल चीख-चीख कर बता रहे थे कि करतारपुर साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारे के आस-पास मुरिदके, शकरग और नारोवाल में आतंकी ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं। उनमें महिलाओं को भी ट्रेनिंग दी जा रही है। 

विवादास्पद एंकर दीपक चौरसिया न्यूज नेशन चैनल पर चिल्लाकर इनके तार भारत के हिस्से वाले पंजाब के कुछ संगठनों से जोड़ दे रहा था। उसके सूत्र वही भारतीय इंटेलीजेंस एजेंसियाँ थीं। इन्हीं लाइनों पर सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप, रोहित सरदाना, अमीष देवगन,  नाविका कुमार, मुंबई ख़ुदकुशी मामले के अभियुक्त अर्णब गोस्वामी की रपटें भी अपने अपने चैनलों पर थीं। 

भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियां ये ख़बरें यूँ ही नहीं प्लांट कराती हैं। उनका एक पैटर्न होता है। जब किसी तरह का राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा होता है तो इस तरह की ख़बरें प्लांट की जाती हैं। कन्हैया कुमार के दौर में जेएनयू आंदोलन के दौरान उमर ख़ालिद की गुप्त पाकिस्तान यात्रा इन्हीं चैनलों ने कराई थीं और उस ख़बर को इंटेलिजेंस एजेंसियों के सूत्रों के हवाले से चलाया गया था। जनकवि वरवर राव, दलित विचारक आनंद तेलतुम्बड़े और आदिवासियों की लड़ाई लड़ने वाली सुधा भारद्वाज को इन्हीं एजेंसियों ने माओवादी बना दिया है। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल जब कहते हैं कि किसान आंदोलन वामपंथियों और माओवादियों के हाथों में चला गया है तो पूरी सरकार पर बहुत तरस आता है। इतनी लोकप्रिय सरकार चलाने का दावा करने के बाद भी अगर आप से किसान नहीं सँभाले गये और वे भटककर वामपंथियों के खेमे में चले गये तो इसमें किसकी कमी है?

मोदी का पंजाब

नब्बे का दशक बीतने वाला था और यही नरेन्द्र मोदी भाजपा में पंजाब के प्रभारी हुआ करते थे। मैं उस समय अमर उजाला के पंजाब मिशन पर था और मेरा मुख्यालय जालंधर था। वहाँ के जाने माने भाजपा नेता मनोरंजन कालिया के आवास पर कई मौक़ों पर मोदी से रूबरू होने का मौक़ा मिलता था। वो वहाँ संगठन मज़बूत करने आये थे। मोदी का उस समय मुझ समेत तमाम पत्रकारों से कहना था कि सिख कभी भी अकालियों और कांग्रेस के क़ब्ज़े से बाहर नहीं आयेंगे, इसलिए हमारी पार्टी का फ़ोकस पंजाब के हिन्दुओं पर मुख्य रूप से है। जालंधर के तमाम मौजूदा वरिष्ठ पत्रकार इन बातों के आज भी गवाह हैं। 

पंजाब में आज तक भाजपा सिखों में ऐसा क़द्दावर नेता पैदा नहीं कर सकी है जिसे वह छोटे-मोटे मुखौटे के तौर पर पेश कर सके। भारत सरकार आज जिस बुकलेट के ज़रिए मोदी से सिखों के अटूट रिश्तों को जोड़ रही है वह एक छलावा है।

 एक ज़िम्मेदार पत्रकार होने के नाते मैं आपको असलियत बताता हूँ कि सबसे पहले पंजाब भाजपा के नेताओं ने किसान आंदोलनकारियों को “खालिस्तानी” कह कर प्रचार करना शुरू किया। लेकिन साथ में यह टिप्पणी भी दर्ज करना चाहूँगा कि अगर वाक़ई उन हज़ारों जत्थों में कथित खालिस्तानी, माओवादी घुस आये थे तो क्यों नहीं सेंट्रल एजेंसियों ने ऐसे तत्वों को वहीं गिरफ़्तार किया या पकड़ा? किसानों का कारवाँ तो वहाँ के बाद बढ़ता गया। पंजाब में जब वे थे तो उस समय एक्शन ले लेते। 

होता यह है कि सत्ता में होने पर भाजपा के कुछ नेता किसी भी जन आंदोलन को सबसे पहले पाकिस्तानी, खालिस्तानी, माओवादी, अर्बन नक्सली बताकर विवाद खड़ा करते हैं फिर आरएसएस उसे अपने नेटवर्क के ज़रिए जनता में उन बातों को अपने लोगों से कहलवाता है। संघ की शाखा से जुड़े शहरी मध्यम वर्गीय परिवार अपने घरों में, पड़ोसियों से, बाज़ार में, दुकानों पर बेबात उस आंदोलन पर चर्चा शुरू कर देते हैं और अंत में उन्हें पाकिस्तानी, खालिस्तानी या माओवादी क़रार दे देते हैं। किसान आंदोलनकारी अगर जेलों में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, दलित विचारकों, एक्टिविस्टों की रिहाई की माँग कर रहे हैं तो यह अपराध है। इसी अकाली-भाजपाइयों की सरकार ने अपने शासनकाल में कई सजायाफ्ता आतंकियों को रिहा किया तो उसे कोई नाम नहीं दिया गया। 

यह पहला जन आंदोलन है, जिससे मोदी परेशान हैं। वह ज़मीन से जुड़े नेता हैं और उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि पंजाब का किसान वाक़ई नाराज़ है। चूँकि सिख वहाँ बहुसंख्यक हैं तो इसीलिए सरकार को बताना पड़ रहा है कि मोदी के सिखों से अटूट रिश्ते रहे हैं। 

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।