Thursday, March 28, 2024

सत्ता पक्ष को भारी पड़ेगा किसानों का अपमान और उनके लिए गाली-गलौच की भाषा

किसान नेताओं और किसान संगठनों को चाहे वे राष्ट्रव्यापी हैं चाहे क्षेत्रीय नेता हैं उनको गाली गलौज वाले  गंदे से गंदे शब्दों में कोसा जा रहा है बदमाश, खालिस्तानी, आतंकवादी और ना जाने किन-किन शब्दों से व्याख्या की जा रही है। किसानों को इतने गंदे-गंदे शब्दों में नहीं कोसें कि बाद में मुलाकात हो आमना सामना हो तो बातचीत नहीं की जा सके।

 यह समय व्यतीत हो जाएगा और फिर किसी रूप में किसानों के सामने मजदूरों के सामने और ग्रामीणों के सामने  जाना पड़ेगा। उस समय क्षमा मांगने के लिए शब्द नहीं होंगे।

प्रजातंत्र है। प्रजातंत्र में मत (वोट)की कीमत है। वोट से ही  चुनाव होते हैं।वोट से ही सत्ता मिलती है और सत्ता चली भी जाती है। वोट से बड़े बड़े परिवर्तन हो जाते हैं। सत्ता में

जो पहले थे वे अब नहीं है और जो अब हैं उनकी भी कोई गारंटी नहीं है कि वे आने वाले 5-10 सालों तक राज कर पाएंगे?

प्रजातंत्र में जनता जैसी भी हो, किसी भी विचार धारा की हो एक राय होकर सत्ता को पलट सकती है। सत्ता का घमंड नहीं होना चाहिए।

सत्ता के सिंहासन पर जो भी रहा उसका यही मानना रहा कि वही अच्छा कर रहा है। उसके मुकाबले में कोई नहीं है और ऐसे दावे करने वाले एक के बाद एक सत्ता से और संसार से भी चले गए। किसी की कोई गारंटी नहीं है। संसार भर में बड़े बड़े प्रजातंत्र वाले और साम्यवादी देशों में भी परिवर्तन होते चले गए। नेता बदलते चले गए।

*राजनीतिक दलों के नेता भी दलबदल करते रहे हैं और राजनीतिक दल भी एक दूसरे को कोसते हैं और फिर एक दूसरे के साथ शामिल हो जाते हैं। किसी की कोई गारंटी नहीं है।

** केवल वोट का अधिकार सर्वमान्य है और जब वोट लेने होते हैं तो वोटर की दहलीज पर मत्था टेकना पड़ता है। हाथा जोड़ी करनी पड़ती है। माफियां भी मांगनी पड़ती है। तब जाकर के वोट मिलता है।

इसलिए यह कहना है कि किसानों को गांव वालों को जो अब आंदोलन कर रहे हैं उनको, उनको सहयोग दे रहे राजनीतिक नेताओं और दलों को गंदे से गंदे शब्दों में कोसना बंद कर दें क्योंकि आने वाले समय में जब वोट की आवश्यकता होगी तब इन किसानों के आगे जाना पड़ेगा। हाथ जोड़ने पड़ेंगे।उस समय किसान ने आपसे सवाल जवाब किए गाली गलौज का हिसाब मांग लिया तब आपके पास कोई जवाब नहीं होगा। 

उस समय यही कहेंगे कि मैंने गाली नहीं दी मैंने नहीं कोसा,गाली देने वाला कोई और था। मैं तो आपका भाई हूं। आपके इलाके का हूं। इसलिए यह राय है कि गंदे शब्दों में किसानों को कोसना आतंकवादी बताने, खालिस्तानी बताने की जो हरकतें की जा रही हैं उनको तत्काल रोका जाना चाहिए। 

किसानों के आंदोलन पर कहा जा रहा है कि आंदोलनकारी तो काजू बादाम मेवे खा रहे हैं। किसान पैदा करे तो वह मेवे खा क्यों नहीं सकता? केवल पैदा दूसरों के लिए करे। खुद क्यों नहीं खा सकता? सूखी प्याज छाछ मिर्च नमक के साथ रोटी खाने वाला फटे पुराने कपड़े पहनने वाला किसान चाहिए। एक और बात। ये ट्रैक्टरों पर आए किसान नहीं। असली किसान तो खेतों में लगा है। बैलों से जुताई करते फोटो भी लगाए जा रहे हैं। आज कितने किसान बैलों से खेती करते हैं? सत्ताधारियों को अपने सत्ता स्वार्थ के लिए भूखा नंगा किसान चाहिए।

किसान आंदोलन में लाखों लोग जुड़े हुए हैं। लाखों लोगों में से किसी एक ने या 200 – 300 लोगों ने कोई गलती की है या अचानक कोई कारस्तानी कर दी है तो उसका सारा दोष लाखों लोगों पर डालना और गालियां निकालना शोभा जनक नहीं है।

विशेषकर भारतीय जनता पार्टी जिसके कार्यकर्ताओं की ओर से समर्थकों की ओर से भद्दे से भद्दे शब्दों में किसानों को कोसा जा रहा है वह बंद होना चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी और समर्थक अपने आप को संस्कारवान कहते हैं देशभक्त कहते हैं तो ऐसे संस्कारवान  लोगों को गाली गलौज की भाषा शोभा नहीं देती। 

स्पष्ट रूप से यही राय है कि यदि ऐसे गाली गलौज वाले शब्दों से किसानों को कोसना रोका नहीं गया तो आने वाले समय में बहुत परेशानियां पैदा करेगा। जब भी चुनाव होंगे किसानों के आगे सिर झुकाते हुए माफियां मांगनी पड़ेगी। उस वक्त जरूरी नहीं है कि आपको किसान माफी दे दे। 

आप सत्ता धारी कीलें बो रहे हैं और अच्छी फसल पैदा होने के सारे प्रयास कर रहे हैं तो कीलों की फसल के नतीजों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। यह कीलों की फसल ऊपर भी होगी और नीचे भी होगी। न खड़े हो पाएंगे और न नीचे बैठ पाएंगे। खड़े होंगे तो सिर में चुभेंगी और बैठ भी नहीं पाएंगे।

सत्ता का यह घमंड कि हमारे जैसा कोई नहीं है। जनता के सामने कोई विकल्प नहीं है। प्रजातंत्र में यह सोच एकदम झूठी है। विकल्प कब खड़ा हो जाए कब बन जाए इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। आज जो महसूस हो रहा है कि विकल्प नहीं है तो कल विकल्प बन सकता है। भाजपा के लिए जिन्होंने खेत तैयार किया और फसलें तैयार कीं उनका आज मालूम नहीं। वे पीछे धकेल दिए गए। मोदी विकल्प बन गए। कल क्या होगा ? यह मालूम नहीं। 

सत्ताधारी तो किसान को किसान ही नहीं मान रहे थे। उसे आतंकवादी कहकर और अन्य अनेक  नामों से विभूषित करके बताया जा रहा था। अगर वह किसान नहीं तो फिर सरकार बात करने के लिए आगे कैसे आई? सत्ता तो किसान समझ ही नहीं रही थी वह किसान मानने लगी। कल को यह वार्तालाप सरकार मानती है झुकती है किसानों की राय के अनुरूप चलती है तो जो लोग आज गाली गलौज दे रहे हैं  उनको व्यक्तिगत रूप से भी क्षति होगी। इसलिए अच्छा यही है कि आंदोलन पसंद नहीं है,नेता पसंद नहीं है तो आलोचना करें खूब कोसें अपनी बात कहें लेकिन शब्द शोभायमान नहीं हों तो गाली वाले तो कत्तई नहीं होने चाहिए,ताकि बाद में भी मिलें तो आपस में एक दूसरे का मुंह देख सकें। 

(करणीदानसिंह राजपूत स्वतंत्र पत्रकार (राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत) हैं। और आजकल राजस्थान के सूरतगढ़ में रहते हैं।)

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