Thursday, March 28, 2024

लखीमपुर मामले में बाकी गवाहों के कलमबंद बयान दर्ज़ कराने का सुप्रीम कोर्ट का यूपी को निर्देश

उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि लखीमपुर खीरी मामले के शेष गवाहों के बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराएं। इस मामले में राज्य सरकार की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा कि उसे लगता है कि वह इस मामले में बहुत धीमे काम कर रही है। पीठ तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में किसानों के एक प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत के मामले में सुनवाई कर रही थी।पीठ को राज्य सरकार ने बताया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 44 में से चार गवाहों के बयान दर्ज कर लिए हैं।

पीठ ने कहा कि उसे यह आभास हो रहा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस 3 अक्टूबर की लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच में अपने कदम पीछे खींच रही है। पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी की कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत केवल 4 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं, हालांकि 44 गवाह हैं। पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से पूछा कि अन्य गवाहों के बयान क्यों दर्ज नहीं किए गए। साल्वे ने जवाब दिया कि यह शायद इसलिए हुआ क्योंकि दशहरे की छुट्टियों के कारण अदालतें बंद थीं। लेकिन पीठ ने कहा कि छुट्टियों के दौरान आपराधिक अदालतें बंद नहीं होती।

इस बिंदु पर, यूपी राज्य की वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि पुलिस अपराध स्थल का पुनर्निर्माण कर चुकी है। हालांकि, पीठ ने कहा कि अपराध स्थल का पुनर्निर्माण और न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज करना दो अलग-अलग चीजें हैं। चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि 164 के तहत बयानों की रिकॉर्डिंग अलग है! यह एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने है। इसका साक्ष्य मूल्य कहीं बेहतर है। जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि हमें लगता है कि आप अपने पैर खींच रहे हैं, कृपया इसे दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाएं।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि आपको धारा 164 के तहत बयान दर्ज करने के लिए कदम उठाने होंगे।” पीठ ने कहा कि विशेष जांच दल को संवेदनशील गवाहों की पहचान करनी होगी और उन्हें सुरक्षा देनी होगी और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उनके बयान दर्ज कराने होंगे, क्योंकि इसका अधिक स्पष्ट मूल्य होगा। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि आपकी एसआईटी पहचान सकती है कि सबसे कमजोर गवाह कौन हैं और उन्हें धमकाया जा सकता है। फिर केवल चार गवाहों के बयान क्यों दर्ज किए गए हैं?

पीठ ने लखीमपुर खीरी में हाल ही में हुई हिंसा की घटना में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने में देरी के लिए उत्तर प्रदेश राज्य की खिंचाई की। उत्तर प्रदेश सरकार ने यह स्टेटस रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दायर की थी। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि सुनवाई से कम से कम एक दिन पहले रिपोर्ट दायर की जानी चाहिए ताकि कोर्ट को इसे पढ़ने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।

उत्तर प्रदेश राज्य के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने न्यायालय को सूचित किया कि राज्य द्वारा एक स्टेटस रिपोर्ट दायर की गई है। पीठ ने इस पर टिप्पणी की कि अगर रिपोर्ट अंतिम समय में दायर की जाती है तो कोर्ट के लिए इसे पढ़ना मुश्किल हो जाता है । चीफ जस्टिस ने पूछा कि आखिरी मिनट अगर यह रिपोर्ट दायर की गई है तो हम इसे कैसे पढ़ेंगे?

जब मामले की सुनवाई शुरू हुई तब साल्वे ने कहा कि एक सीलबंद लिफाफे में स्टेटस रिपोर्ट दायर की गई है। पीठ ने “आखिरी मिनट” पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने पर नाराज़गी व्यक्त की। चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि हमें अभी सीलबंद कवर मिला है। कल रात 1 बजे तक हमने किसी अतिरिक्त सामग्री का इंतजार किया। लेकिन कुछ भी नहीं मिला। पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि उसने रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखने के लिए नहीं कहा। हालांकि साल्वे ने शुक्रवार तक के लिए स्थगन का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया। स्टेटस रिपोर्ट देखने के बाद सुनवाई फिर से शुरू हुई।

स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने में देरी का कारण बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता साल्वे ने प्रस्तुत किया कि उनकी समझ यह थी कि रिपोर्ट को एक सीलबंद लिफाफे में दिया जाना है। पीठ ने हालांकि कहा कि उसने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट देने के लिए नहीं कहा था और इसे सुनवाई से कम से कम एक दिन पहले प्रस्तुत किया जाना चाहिए था।जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हमने सीलबंद लिफाफे की रिपोर्ट नहीं मांगी थी।

पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें लखीमपुर खीरी की हालिया हिंसक घटना की समयबद्ध सीबीआई जांच की मांग की गई थी, जिसमें आठ लोगों की जान जाने का दावा किया गया था, जिनमें से चार किसान प्रदर्शनकारी थे, जिन्हें कथित तौर पर आरोपी केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले में वाहनों द्वारा कुचल दिया गया था।

साल्वे ने बताया कि किसानों को वाहन चलाने से संबंधित अपराध में अब तक 10 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि उनमें से चार पुलिस हिरासत में हैं और बाकी न्यायिक हिरासत में हैं। पीठ ने वरिष्ठ वकील से सवाल किया कि बाकी आरोपियों की पुलिस हिरासत की मांग क्यों नहीं की गई। सीजेआई ने जवाब दिया, “जब तक पुलिस उनसे पूछताछ नहीं करती, तब तक आपको पता नहीं चलेगा।”

राज्य की वकील गरिमा प्रसाद ने जवाब दिया कि उन्हें कुछ दिनों की पुलिस हिरासत के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। पीठ ने जानना चाहा कि क्या पुलिस ने पुलिस हिरासत बढ़ाने के लिए आवेदन किया था। साल्वे ने कहा कि फोन जब्त कर लिए गए हैं और वीडियो को फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया है। साल्वे ने कहा कि अगर फोरेंसिक रिपोर्ट आती है, तो आगे पूछताछ की जरूरत नहीं होगी।इस पर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि यह कभी न खत्म होने वाली कहानी नहीं होनी चाहिए। अंत में पीठ ने आगे की सुनवाई 26 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी।साल्वे ने आश्वासन दिया कि पीठ के संदेह को दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

दरअसल मामले की उचित जांच की मांग करते हुए दो अधिवक्ताओं द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर जनहित याचिका दर्ज की गई है। पिछली सुनवाई की तारीख 8 अक्टूबर को, भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जांच पर अपना असंतोष दर्ज किया था।

पिछली सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा था कि आरोपी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। राज्य सरकार ने कहा था कि पुलिस ने मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को समन जारी किया है, तो पीठ ने पूछा कि क्या सभी हत्या के मामलों में यही नियम है। पीठ ने कहा था कि यह 8 लोगों की निर्मम हत्या का मामला है और ऐसे में पुलिस आमतौर पर आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लेती है। पीठ ने यह भी बताया कि प्रत्यक्षदर्शी के स्पष्ट बयान हैं।

पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि जो भी इसमें शामिल है, उसके खिलाफ कानून को अपना काम करना चाहिए। पीठ ने विशेष जांच दल की संरचना पर भी असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि सभी व्यक्ति स्थानीय अधिकारी हैं। पीठ ने यह भी पूछा कि क्या राज्य इस मामले को सीबीआई को सौंपने पर विचार कर रहा है। एक बिंदु पर, चीफ जस्टिस ने यहां तक कहा कि सीबीआई भी समाधान नहीं है, क्योंकि आप जानते हैं,लोगों के कारण।

उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पीठ को आश्वासन दिया था कि कार्यवाही संतोषजनक नहीं है आवश्यक कदम उठाए जाएंगे और एक वैकल्पिक एजेंसी द्वारा जांच की जाएगी। पीठ ने आदेश में दर्ज किया था कि वह राज्य पुलिस के उच्च अधिकारियों से बात कर मामले में साक्ष्य और सामग्री को संरक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे। पीठ की तीखी टिप्पणी के बाद, आशीष मिश्रा को यूपी पुलिस ने 9 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया था।

इस मामले में अब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 10 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। दो वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि इस मामले की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कराई जाए, जिसमें सीबीआई को भी शामिल किया जाए । इसके बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई शुरू की।

गौरतलब है कि किसानों का एक समूह उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की यात्रा के खिलाफ तीन अक्टूबर को प्रदर्शन कर रहा था, तभी लखीमपुर खीरी में एक एसयूवी (कार) ने चार किसानों को कुचल दिया था । इससे गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो कार्यकर्ताओं और एक चालक की कथित तौर पर पीट पीटकर हत्या कर दी थी, जबकि हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हो गई थी ।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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