Friday, April 19, 2024

शुरुआती आपराधिक लापरवाही का नतीजा है कोरोना की मौजूदा तस्वीर

कोरोना पॉज़िटिव रोगियों की संख्या में सबसे बड़ी उछाल 75,760 के साथ भारत ने एक दिन के ब्राज़ील के 69,074 और अमरीका के 75,682 सर्वाधिक रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। आंकड़े जारी करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि अधिक जांच ने प्रभावी उपकरण का काम किया है, संक्रमण दर में कमी आई है। हालांकि संक्रमण की रफ्तार के हिसाब से पिछले कुछ समय से भारत सबसे आगे है। इससे निपटने के प्रयासों से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। बेरोज़गारी बढ़ी है। गरीब जनता की आय घटी है। शिक्षा प्रभावित हुई है और सामान्य रोगियों के इलाज में बाधा आई है।

देश में कई तरफ से कोविड–19 से लड़ने के सरकार के तौर-तरीकों की आलोचना की जा रही थी। आलोचना के प्रमुख बिंदु थे कि जहां भी संक्रमण पाया जाए, जांच को व्यापक किया जाए और संक्रमित व्यक्तियों के दूसरे स्थानों तक जाने पर रोक लगे ताकि संक्रमण से बचे क्षेत्रों तक महामारी न फैले।

यह काम भी एक समय सीमा के अंदर करना था, क्योंकि लम्बे समय तक सब कुछ रोक पाना न तो आसान था और न ही भारत की आर्थिक स्‍थिति, गरीबी, अशिक्षा और प्रवासियों, खासकर प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं को देखते हुए यह संभव था।

मार्च में, लॉक डाउन के आरंभ में यह बहुत प्रभावी तरीके से लागू किया गया, लेकिन जांच की कमी के कारण उसका कोई बड़ा लाभ नहीं मिल पाया। आज भारत न केवल संक्रमण के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है, बल्कि 33 लाख संक्रमितों की संख्या के साथ तेज़ी से ब्राज़ील के आंकड़े को छूने की तरफ बढ़ रहा है। 1 अगस्त को भारत और ब्राज़ील के संक्रमितों की संख्या में नौ लाख से अधिक का अंतर था जो 26 अगस्त के आंकड़ों में सिमट कर चार लाख के करीब बचा है।

अब स्वास्थ्य मंत्रालय खुद यह मान रहा है कि जांच में तेज़ी प्रभावी साबित हो रही है तो इस काम में शिथिलता की ज़िम्मेदारी भी उसी की बनती है, लेकिन कभी जांच के अनुपात में संक्रमण दर में कमी को सरकार की उपलब्धि के रूप में पेश किया जा रहा है तो कभी रिकवरी दर को। अगर संक्रमितों की वास्तविक संख्या में कमी नहीं आती और अस्पतालों का बोझ नहीं कम होता है तो दोनों के प्रतिशत का कोई मतलब नहीं रह जाता है।

सरकार समर्थक कई बार तर्क देते हैं कि सरकार उचित समय पर सही फैसले नहीं लेती तो स्‍थिति और भयानक होती। इस तरह के तर्क देना आसान हैं। ‘स्‍थिति और खराब होती’ का स्थाई तर्क कभी भी और किसी भी परिस्‍थिति में दिया जा सकता है। मृत्यु दर में कमी या शौचालय नहीं बने होते तो संक्रमण काल में देश की क्या हालत होती का तर्क अस्पतालों और स्वास्थ्य से जुड़े अन्य संस्थानों के लिए उससे अधिक उपयुक्त हो सकता था, लेकिन इस सच्चाई से इनकार की गुंजाइश नहीं है कि जांच की मात्रा और रफ्तार दोनों में आरंभिक सुस्ती का संक्रमण वृद्धि से सीधा संबंध है। 

  • मसीहुद्दीन संजरी

(लेखक सोशल एक्टिविस्ट हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।

Related Articles

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।