Saturday, April 20, 2024

यूपी में गिरफ्तार केरल के पत्रकार की पर्सनल लिबर्टी पर चुप रहे जस्टिस चन्द्रचूड़

उच्चतम न्यायालय में बुधवार 11 नवम्बर को जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने पर्सनल लिबर्टी पर जोर देते हुए कहा कि “अगर हम एक संवैधानिक अदालत के रूप में कानून नहीं बनाते हैं और स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं तो कौन करेगा?” लेकिन जब केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को 5 अक्तूबर से ही यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने और हिरासत में होने का मामला वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उठाया तो जस्टिस चन्द्रचूड़ ने चुप्पी साध ली।

लाइव लॉ के अनुसार महाराष्ट्र राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल  ने गोस्वामी के मामले की सुनवाई के अंत में जब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की अवकाश पीठ आदेशों की घोषणा करने वाली थी तो पीठ के समक्ष कप्पन की गिरफ्तारी का उल्लेख किया। सिब्बल ने कहा कि केरल के एक पत्रकार को यूपी पुलिस ने उस समय गिरफ्तार किया जब वह हाथरस जा रहा था। हम अनुच्छेद 32 के तहत इस उच्चतम न्यायालय में आए। अदालत ने कहा कि निचली अदालत में जाएं। याचिका चार सप्ताह के बाद पोस्ट की गई थी। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में ऐसी बातें भी हो रही हैं। पीठ ने सिब्बल की इस दलील पर कोई टिप्पणी नहीं की।

दिल्ली स्थित पत्रकार और केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्ल्यूजे) के सचिव कप्पन, मलयालम पोर्टल अजीमुखम के लिए काम कर रहे थे। कप्पन, तीन अन्य लोगों के साथ मथुरा से गिरफ्तार किए गए थे और पुलिस का आरोप है कि वे क्षेत्र में शांति को बाधित करने की साजिश कर रहे थे। इन चारों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है और कप्पन पर राजद्रोह लगाए गए हैं।

गिरफ्तारी के एक महीने बाद भी पत्रकार कप्पन की जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं हुई है। पत्रकार संघ ने पिछले हफ्ते उच्चतम न्यायालय में एक अर्जी दाखिल की थी और कोर्ट से कप्पन की जमानत याचिका पर तुरंत सुनवाई करने का आग्रह किया था। कप्पन के मामले में प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन और न्याय से इनकार करने पर पत्रकार संघ ने भी चिंता जताई है।

उच्चतम न्यायालय 16 नवंबर को केयूडब्ल्यूजे के वकील विल्स मैथ्यूज के आवेदन पर सुनवाई करेगी। आदेवन में उल्लेख किया गया है, “वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मुलाकात का भी कोई मौका नहीं दिया गया और ई-जेल व्यवस्था के तहत ई-मुलकात के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया गया। उनके परिवार के सदस्य पूरी तरह से उन पर निर्भर हैं और उनकी जरूरतों का ख्याल रखने के लिए कोई अन्य नहीं है। इस आवेदन में कप्पन की 90- वर्षीय वृद्ध माँ की व्यथा का भी उल्लेख है।

कप्पन की पत्नी रहिनाथ का कहना है कि वो यह समझने में नाकाम हैं कि उनके पति की गिरफ्तारी क्यों हुई। हाल ही में जब रिपब्लिक टीवी के अर्नब गोस्वामी को हिरासत में लिया गया था, तो लोगों का एक बड़ा तबका गोस्वामी की गिरफ्तारी की तुलना आपातकाल के दौर से करने लगा, लेकिन उनके पति की गिरफ्तारी पर किसी की जुबान नहीं खुली। कप्पन की 35 वर्षीय पत्नी कहती हैं कि ऐसा दोहरा मापदंड क्यों? वहीं मंत्री कप्पन की रिहाई पर मेरी दलीलों और पत्रों पर चुप हैं।

यूपी पुलिस ने कप्पन, रहिनाथ उनके सहयोगियों और मित्रों पर षड्यंत्र के आरोपों और अन्य आतंकी गतिविधियों के आरोप लगाए हैं। जबकि कप्प्न हाथरस काण्ड की रिपोर्ट करने जा रहे थे, जो राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा था। इसके पहले कप्पन की गिरफ्तारी के बाद 6 अक्तूबर को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गयी थी लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामले को संदर्भित किया था और याचिकाकर्ताओं को याचिका में संशोधन करने के लिए कहा था। कप्पन के वकीलों का कहना है कि मथुरा कोर्ट द्वारा पत्रकार से मिलने के उनके अनुरोध को अस्वीकार करने के बाद वे याचिका में संशोधन करने में विफल रहे।

केयूडब्ल्यूजे का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को मथुरा अदालत द्वारा अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था, जब उन्होंने 16 अक्तूबर को कप्पन से मिलने की कोशिश की थी। वकील मैथ्यूज के अनुसार मथुरा अदालत ने पहले हमें जेल जाने और कप्पन से मिलने के लिए कहा। लेकिन जेल प्रशासन ने सीजेएम के आदेश पर जोर दिया। जब हम वापस कोर्ट में गए, तो उन्होंने हमें इंतजार कराया और देर शाम हमारे आवेदन को खारिज कर दिया गया।

केयूडब्ल्यूजे के पूर्व सचिव पी के मणिकांतन ने कहा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार अपने सहयोगी को न्याय दिलाने में विफल रही है। हमने अब तक केवल पुलिस संस्करण ही सुना है। कप्पन की कहानी के पक्ष को कोई नहीं जानता है। पुलिस का कहना है कि वह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े हैं। लेकिन उनका परिवार, दोस्त और उनके जानने वाले लोग इस बात को कहते हैं कि वो पीएफआई के सदस्य नहीं हैं, वो एक पत्रकार हैं।

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखकर अर्णब की याचिका दाखिल होने के अगले ही दिन अवकाश पीठ के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सवाल उठाया है और कहा है कि ये अदालत की गरिमा का सवाल है, किसी भी नागरिक को ये नहीं लगना चाहिए कि वो दूसरे दर्जे का है, सभी को ज़मानत और जल्द सुनवाई का हक़ होना चाहिए, सिर्फ़ कुछ हाई प्रोफाइल मामलों और व़कीलों को नहीं। उन्होंने तीन मामलों का ज़िक्र करते हुए ये कहा कि उनमें भी याचिका दायर करने के अगले ही दिन उसे उच्चतम न्यायालय के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, और ऐसे में इस मामले की आलोचना करना सही नहीं है।

दुष्यंत दवे के समर्थन में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी ट्वीट कर इसे प्रशासनिक ताक़त का ग़लत इस्तेमाल बताया। उन्होंने लिखा कि जब ससीएए, 370, हेबियस कॉर्पस, इलेक्टोरल बॉन्ड्स जैसे मामले कई महीनों तक नहीं सूचीबद्ध होते, तो अर्णब गोस्वामी की याचिका घंटों में कैसे सूचीबद्ध हो जाती है, क्या वो सुपर सिटिज़न हैं?”दूसरी ओर दुष्यंत दवे ने कहा कि ज़मानत और सुनवाई का हक़ ऐसे सैकड़ों लोगों को नहीं दिया जा रहा, जो सत्ता के क़रीब नहीं हैं, ग़रीब हैं, कम रसूख़वाले हैं या जो अलग-अलग आंदोलनों के ज़रिए लोगों की आवाज़ उठा रहे हैं, चाहे ये उनके लिए ज़िंदगी और मौत का सवाल हो।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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