Saturday, April 20, 2024

शख्स जिसने अपने बेटों का नाम रावण और दुर्योधन रखा

सूरत। धर्म, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के पालन के मामले में गुजरात दूसरे सूबों के मुकाबले मीलों आगे खड़ा रहता है। वह समाज हो या कि राजनीति उसका हर जगह असर देखा जा सकता है। समाज में धर्म की पैठ के गहरे होने का ही नतीजा है कि राजनीति और समाज समेत हर चीज के ऊपर धर्म को रखने वाली बीजेपी पिछले दो दशकों से वहां सत्ता में है। इसके चलते आस्था और अंधविश्वास ने भी समाज को उसी पैमाने पर अपनी गिरफ्त में ले रखा है। लेकिन इन सब बातों के बावजूद सूबे के एक शख्स ने एक ऐसी मिसाल पेश की है जो इस तरह के किसी दकियानूसी और पिछड़े समाज में बेहद मुश्किल है।

आम तौर पर लोग अपने बेटे-बेटियों का नाम अगर पौराणिक इतिहास के किसी चरित्र से चुनते हैं तो उसमें ईश्वर या उसके समकक्ष माने जाने वाले या फिर उसके उजले पक्ष से तालुक रखने वाले चरित्रों को ही प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन सूरत के रहने वाले बाबू वघानी ने इन सारी मान्यताओं और परंपराओं को तोड़ते हुए अपने बेटों का नाम रावण और दुर्योधन रखा है। जो हिंदू धर्म के दो सबसे बड़े पौरागणिक ग्रंथों रामायण और महाभारत के सबसे बड़े खलनायक रहे हैं। दरअसल 70 वर्षीय बाबू वघानी ने इसके जरिये अंधविश्वास को चुनौती देने का संकल्प लिया है।

वघानी को जब बहुत साल पहले बेटा हुआ तो उन्होंने तमाम परंपराओं को धता बताते हुए उसका नाम रावण रख दिया। पूछने पर उन्होंने कहा कि नाम में क्या रखा है। और यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। कुछ सालों बाद जब उन्हें दूसरा बेटा हुआ तो उसका नाम दुर्योधन रख दिया। वह दुर्योधन जिसे कौरव वंश से जुड़ा माना जाता है और जिसने द्रौपदी पर काली निगाह डाली थी।

मामला बच्चों के नाम तक ही सीमित नहीं रहा। अभी लोग उनका नाम सुनकर ही भौंहे खड़ी कर रहे थे कि तभी वघानी ने सभी वास्तु और मकान बनाने की परंपराओं को नकारते हुए अपने घर का नाम “मृत्यु” रख दिया। यानि मृत्यु निवास।

आठवीं कक्षा के आगे नहीं पढ़ पाने वाले वघानी से जब टाइम्स ऑफ इंडिया ने बात की तो उनका कहना था कि ‘अंधविश्वास से जुड़ी चीजों का मेरे जीवन में कोई स्थान नहीं है। यह कुछ ऐसा था जिसे मैं अपने बचपन से ही जानता था’।

वघानी भले ही 8वीं के बाद पढ़ाई नहीं कर पाए हों लेकिन स्वाअध्याय में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं बाकी रखी। और एक बार जब चीजों को पढ़ने, जानने और समझने का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर वह किन्हीं सीमाओं के मोहताज नहीं रहे। फिर तो ईश्वर के अस्तित्व को समझने के लिए उन्होंने हर धार्मिक ग्रंथ का गहराई से अध्ययन किया। और उससे जुड़े महापुरुष और ग्रंथ उनके सबसे प्रिय विषय बन गए। लाओत्से, कन्फ्यूसियस, मोसे, शिंटो, मोहम्मद, जीसस, महावीर और बुद्ध से लेकर हर उस शख्सियत का अध्ययन किए धर्म के क्षेत्र में जिसकी न्यूनतम भी भूमिका रही है।

वघानी का अध्ययन के प्रति रुझान कितना गहरा है यह बात उनके घर में मौजूद समृद्ध पुस्तकालय से समझी जा सकती है। वघानी बेटों का नाम उन मिथकीय चरित्रों पर रखना कोई बुरा नहीं मानते पौराणिक इतिहास में जिनका पक्ष काला बताया गया है। उन्होंने कहा कि “संकेतात्मक तौर पर रावण का पुतला जलाने की जगह लोगों को सबसे पहले धर्म से जुड़े अंधविश्वास को खत्म करना चाहिए।”

मूल रूप से भावनगर के गड़ियाधर के रहने वाले वघानी 1965 में सूरत में आए और अपना स्वतंत्र व्यवसाय खड़ा करने से पहले वह डायमंड पॉलिस करने का काम करते थे। उन्होंने बताया कि “मैं अपने पूरे बचपन में बेहद गरीबी के दौर से गुजरा हूं और देखा कि मेरा परिवार रोजाना पेट भरने के लिए प्रार्थना करता था। लेकिन उसमें तब तक कोई सुधार नहीं आया जब तक हम लोगों ने मेहनत नहीं शुरू की।”

वघानी के बेटों को भी अपने पिता की गैरपरंपरागत सोच पर कोई एतराज नहीं है। दोनों बेटों में छोटे 40 वर्षीय दुर्योधन ने बताया कि “मैं और मेरा भाई अपने असामान्य नामों के चलते जाने जाते हैं। मैं अपने ई-मेल आईडी और संचार के दूसरे कामों के लिए अपने दुर्योधन नाम का इस्तेमाल करता हूं।” हालांकि दोस्त उसे हितेश के नाम से बुलाते हैं।

42 वर्षीय रावण अपने मित्रों के बीच राजेश के नाम से जाना जाता है। हालांकि कई बार वह अपने पिता के सामाजिक विश्वासों के विरोध के आक्रामक रवैये को खारिज कर देता है। लेकिन अपने सोच की प्रक्रिया को उसने कभी बदलने की कोशिश नहीं की।

वघानी ने बताया कि “धर्म हमें बहुत सरल चीजें बताते हैं। यह धार्मिक नेता होते हैं जो लोगों के दिमाग में भ्रम पैदा करते हैं।”

(टाइम्स आफ इंडिया से साभार।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।