Thursday, March 28, 2024

मोदी ने अनुच्छेद 370 खत्म करने के जरिए बनाया कॉरपोरेट के लिए घाटी में लूट का रास्ता

केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 के खंड 2,3, व 35 ए को समाप्त कर, राज्य को दो टुकड़ों में बाँट कर उन्हें केंद्र शाषित प्रदेश बना दिया है। पूरी कश्मीर घाटी को सेना, अर्ध सैनिक बलों और पुलिस की छावनी में तब्दील कर कर्फ्यू के हालात बना दिए गए हैं। घाटी की इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद कर दी गयी हैं। देश और चलती संसद को सत्य बताए बिना तीन-चार दिन पहले पर्यटकों और अमरनाथ यात्रा से गुलजार हुए कश्मीर में केंद्र द्वारा जानबूझ कर डर का माहौल बनाया गया। पर्यटकों और अमरनाथ यात्रियों को जबरन वापस भेज दिया गया। राज्य में विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। कश्मीर में भारत की मुख्य धारा की राजनीति करने वाले और इसके लिए आतंकियों और पाकिस्तान के हाथों अपने हजारों कार्यकर्ताओं की कुर्वानी झेलने वाले नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेताओं को अलगाववादी बता कर गिरफ्तार कर सरकार क्या संदेश देना चाहती है? ये दोनों पार्टियां वही हैं जिनके साथ भाजपा समय-समय पर केंद्र और राज्य की सत्ता में साझीदार रही है। अब संघ-भाजपा द्वारा जश्न के नाम पर एक बार फिर देश के राजनीतिक माहौल को उन्माद के स्तर तक साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की भेंट चढ़ाया जा रहा है।

कश्मीर के बहाने नरेंद्र मोदी-अमित शाह की सरकार ने हिंदू वोट को अपने पक्ष में सुदृढ़ करने के लिए देश के संघीय ढाँचे पर हमला किया है। यह याद रखना जरूरी है कि अनुच्छेद 370 और 35 ए के कारण ही कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना था। यही धारा कश्मीर और भारत के बीच की मजबूत पुल थी जिसे अब मोदी सरकार ने नष्ट कर डाला है। इन धाराओं के बिना कश्मीर पर हमारा सिर्फ कब्जा रह सकता है जैसे उसके दूसरे हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा है। इससे हमने उस कश्मीरी आवाम का विश्वास खो दिया है जिसने अनुच्छेद 370 के तहत अपनी सुरक्षित कश्मीरी राष्ट्रीयता की पहचान के साथ भारत में विलय का फैसला किया था। सरकार के इस कदम ने भारत की मुख्यधारा की राजनीति के साथ जुड़े कश्मीर के क्षेत्रीय दलों के आधार में निराशा पैदा कर दी है। वह आधार इसे कश्मीरियों के साथ धोखा और खुद को छला महसूर कर रहा है। केंद्र सरकार के इस कदम के बाद भारत की आधिकारिक स्थिति के विपरीत कश्मीर मामले के अंतर्राष्ट्रीयकरण की आशंका ज्यादा बढ़ गई है।

कश्मीर से इन धाराओं को हटाने का जो मुख्य कारण संघ-भाजपा द्वारा प्रचारित किया गया, वह था कश्मीर में बाहरी व्यक्ति द्वारा जमीनों की खरीद पर लगी रोक। अमित शाह ने संसद में बहस के दौरान कहा कि कश्मीर के विकास और रोजगार के लिए जमीन चाहिए। अनुच्छेद 370 की 35 ए कश्मीर में गैर कश्मीरी लोगों को जमीन खरीदने से रोकती है। इस फैसले पर जश्न मनाने वाले भी कह रहे हैं कि अब कश्मीर में सब जमीन खरीद पाएंगे। पर इसी तरह अरुणाचल, नागालेंड, मिजोरम, हिमाचल आदि पर्वतीय राज्यों में लागू धारा 371 और अन्य उससे जुड़े प्रावधान भी बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीद पर रोक लगाते हैं। तो क्या अब बारी-बारी इन राज्यों से भी संविधान द्वारा प्रदत्त ये रोक हटाई जाएगी? देश के पर्वतीय राज्यों में उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जहां बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीद पर कोई रोक नहीं है। आज उत्तराखंड में सत्ता के संरक्षण में कारपोरेट और भूमाफिया के लिए जमीनों की जो लूट मची है, उससे वहां धारा 371 से जुड़े प्रावधान लागू करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। ऐसे में क्या अब अन्य पर्वतीय राज्यों में भी उत्तराखंड की तरह ही भूमि लूट की छूट दी जाएगी?

असल में पूरे देश के संसाधनों और संस्थानों पर मोदी राज में तेजी से कब्जा जमाते कारपोरेट घरानों की नजरें कश्मीर सहित पर्वतीय राज्यों की बेश-कीमती जमीनों और वहां के पर्यटन उद्योग पर है। वे उस पर भी कब्जा जमाना चाहते हैं। कश्मीर देश का पहला ऐसा राज्य था जहां शेख अब्दुल्ला की सरकार ने 50 के दशक में ही क्रांतिकारी भूमि सुधार कर हर कृषक और पशुपालक परिवार को बेहतर आजीविका लायक जमीन उपलब्ध कराई। इस पर विकसित खेती, पशुपालन और उद्यान वहां की आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। पर्यटन उद्योग कश्मीरियों की आजीविका का एक और बड़ा जरिया है। यही कारण है कि कश्मीरी लोग रोटी-रोजी के लिए ऐसे भटकते नहीं दिखेंगे जैसे देश के अन्य हिस्सों की स्थिति है। अनुच्छेद 370 और 35 ए के कारण आज तक उनकी इस आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था पर कारपोरेट घराने और बाहरी माफिया कब्जा नहीं कर पाए। मोदी सरकार ने इस बदलाव के जरिये कश्मीरियों की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था और उनकी पहचान पर हमला किया है। वहां कारपोरेट लूट और माफिया के लिए रास्ता खोल दिया है जो आने वाले समय में कश्मीरियों की तबाही का कारण बनेगा।

दूसरी बात जो कश्मीर के लिए प्रचारित की जाती है वह यह कि वहां देश के कानून क्यों लागू नहीं होते हैं? यह इसलिए कि कश्मीर का भारत में विलय इसी शर्त के साथ हुआ था कि वैदेशिक, रक्षा और मुद्रा को छोड़कर बाक़ी सभी मामलों में कश्मीर राज्य को स्वायत्तता होगी। कश्मीर ही नहीं देश में राष्ट्रीयताओं, रजवाड़ों को भारत में मिलाने और उन्हें संविधान के तहत अलग-अलग छूट देने के लिए ही भारत का संविधान संघीय राज्य की अवधारणा के साथ रचा गया। जब पेप्सू (पंजाब का पुराना नाम) को भारत संघ में मिलाया गया था तब उससे समझौता हुआ था कि राज्य विधानसभा के बावजूद वहां राज्यपाल का पद नहीं होगा। पटियाला के राजा को पदेन राज्य प्रमुख का पद दिया गया था। मगर चार-पांच साल बाद ही भारत सरकार अपने वायदे से मुकर गयी और पेप्सू को पंजाब प्रान्त घोषित कर राज्य प्रमुख पद समाप्त कर वहां राज्यपाल नियुक्त कर दिया। आज एक देश एक कानून की बात करने वाले मोदी-शाह को याद रहना चाहिए कि उन्होंने मंत्री पद की शपथ “संघ के एक मंत्री” के रूप में ली है। यह संघ “भारत संघ” है जो भारत में एक केंद्रीकृत व्यवस्था के विपरीत संघीय ढांचे को संवैधानिक मान्यता देता है। मोदी-शाह की जोड़ी देश में खुली कारपोरेट लूट के लिए इस संघीय ढाँचे को नष्ट करने पर आमादा है। एक देश एक चुनाव का नारा भी इस संघीय ढांचे पर एक और हमला है।

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक लाकर मोदी-शाह की जोड़ी ने यह साफ़ संकेत दे दिया है कि अपने कॉरपोरेट फासीवादी राज्य की मजबूती के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्होंने बिना कश्मीरी आवाम की राय के कश्मीर राज्य के अस्तित्व को ही मिटा दिया। भारत के नक्शे से एक राज्य समाप्त हो गया और उसकी जगह दो केंद्र शासित राज्यों ने ले ली जिसमें से एक के पास विधान सभा भी नहीं होगी। अब इन दोनों केंद्र शाषित प्रदेशों की बागडोर सीधे मोदी-शाह के हाथ में होगी। इससे साफ़ हो गया है कि मोदी-शाह उन राज्यों का कभी भी अस्तित्व मिटा सकते हैं जहां की राजनीति उनके माफिक न हो। वे उन राज्यों को तोड़ कर उनके टुकड़े-टुकड़े कर उन्हें केंद्र शाषित प्रदेश बना सकते हैं, ताकि उनकी सत्ता की बागडोर सीधे उनके हाथ में रहे। आज कश्मीर पर केंद्र का साथ देने वाले दक्षिण के राज्य उनके हमले के अगले शिकार हो सकते हैं जहां तमाम प्रयासों के बाद भी संघ-भाजपा की राजनीति परवान नहीं चढ़ रही है।

इस घटना ने न सिर्फ देश की ज्यादातर बुर्जुआ राजनीतिक पार्टियों के कारपोरेटपरस्त/सामंती और साम्प्रदायिक चरित्र को उजागर किया है, बल्कि लोकतंत्र और जनवाद का चोला ओढ़े खुद को प्रगतिशील बताने वाले बड़े हिस्से को भी बेनकाब कर दिया है। इस पूरे घटनाक्रम पर जब संसद में गृहमंत्री बता रहे थे कि अब कोई भी कश्मीर में जमीन ले सकता है। तो इस पर संसद में जोर से ताली बजाने वालों में हिमाचल, नागालैंड, मिजोरम, सिक्किम से आए सांसद और मंत्री भी शामिल थे जहां बाहर के लोगों द्वारा जमीन खरीद पर अब भी रोक है। इसमें उत्तराखंड से आए सांसद और मंत्री भी थे, जहां ऐसे कानून के अभाव में सारी जमीनें बाहरी कारपोरेट और माफिया के हाथों जा रही हैं और स्थानीय लोग भूमिहीन की स्थिति में पहुंच गए हैं। देश और उत्तराखंड में खुद को जनवादी-क्रांतिकारी कहने वाले और पहाड़ में जमीनों की लूट के खिलाफ आवाज उठाने वाले ज्यादातर लोग जब कश्मीरियों की तबाही के इस दस्तावेज पर खुशी मना रहे हों, तो उनकी बुद्धि पर तरस खाते हुए सिर्फ मुस्काराया ही जा सकता है। इसी लिए मैं कहता हूँ

“तबाही का यह जश्न तुम्हें मुबारक, हम तो न्याय और लोकतंत्र के लिए लड़ेंगे!”

(लेखक अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव और विप्लवी किसान संदेश के संपादक हैं।)

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