Friday, April 19, 2024

आर्यन घोड़ों में क्या कमी थी जो यूनानी पेगासस को लाया गया?

पेगासस जासूसी काण्ड में बाकियों को जो बुरा लगा हो सो लगा हो अपन को तो अपने इधर के घोड़ों का अपमान बिल्कुल भी नहीं भाया। पेगासस यूनानी पौराणिक गाथाओं के बड़े जबर घोड़े हैं- उनकी रफ़्तार और ऊंचाई तय करने की क्षमता इतनी है कि सवार को सीधे स्वर्गलोक तक पहुंचाने का माद्दा रखते हैं; होंगे, मगर इधर के घोड़े क्या सुस्त और काहिल थे? कुछ देश-वेश, परम्परा-वरम्परा की इज्जत-विज्जत होती है कि नहीं?

अचरज की बात इसलिए भी है कि इस यूनानी घोड़े-पेगासस- को इस जम्बू द्वीप भारतखंडे  में जासूसी का जिम्मा सौंपने की वारदात उसके द्वारा अंजाम दी गयी जिसे खुद उसके अस्तबल के मालिशियों ने कोई साढ़े चार-पौने पांच सौ साल बाद आया पहला हिन्दू शासक बताया था।  यह नाइंसाफी तब और नाकाबिले बर्दाश्त हो जाती है जब यह याद आता है कि इस आर्यावर्त में घोड़े तो वे आर्य ही लाये थे जिनने वेद गाये, जिनके जिम्मे सारे पुराण भये, जिनके नाम पर शुध्द वर्णाश्रमी राज की पुनर्स्थापना करने के लिए कोई दो तिहाई सदी से ज्यादा भाई लोग लठिया उठाये आधे उघाड़े फकत नेकर पहने उत्पात मचाते रहे। इधर उधर के खच्चरों का रेवड़ बनाकर बेचारे  बमुश्किल तमाम सरकार में पहुंचे- और उन्हीं के राज में अपने शुध्द रक्त आर्य घोड़ों की जगह यूनानी घोड़े पेगासस को महिमामंडित कर दिया गया।  Et tu, Brute? हे ब्रूटस तुम भी?

#नेशन_वांट्स_टू_नो कि कश्मीर का विखंडन कर श्रीनगर में बीच चौराहे खड़े होकर बिरियानी खाने वाले घोड़े सहित भाँति-भाँति के घोड़ों की भरमार होने के बाद भी ऐसी क्या आन पड़ी थी कि ठेठ म्लेच्छ घोड़े पर यकीन कर लिया और कोई साढ़े चार पांच सौ करोड़ रुपयों से उसका अभिषेक भी कर दिया? ठीक है कि आर्य-आगमन पूर्व भारत में घोड़े नहीं थे, लेकिन भाई लोग तो घोड़े की पीठ पर ही बैठकर आये थे ना।  आने के बाद सारे पुराण और ग्रंथों को उलट पुलट कर घुड़गुड़ाय दिया था।  वे घोड़े भी उतने ही- शायद उनसे भी ज्यादा – पुराने थे ; वे क्या घास चरने चले गए थे जो उनकी नौकरी छीन ली गई  ? इस कम्बखत यूनानी पेगासस की ऐसी कौन सी अदा भाई ? 

नेशन वांट्स टू नो !!  कि हमारे उच्चै श्रवा नाम के घोड़े – सॉरी अश्व – में क्या कमी थी ? देवताओं के राजा इंद्र का चहेता घोड़ा था।  कोई सामान्य घोड़ा नहीं था ; समुद्र मंथन में निकली 14 ख़ास चीजों में से एक था। नाम का गलत अर्थ  लगाकर  उच्चै श्रवा का मतलब ऊंचा सुनने वाला तो नहीं समझ लिया।  किसी संस्कृतपाठी से ही पूछ लेते तात ।  बंदा बहरा नहीं था, उसके  खूब लम्बे कान थे, मोबाइल में चिप भी नहीं चिपकानी पड़ती बिना उसके घुसाए ही दूर की सुन लेता।  जोर से हिनहिनाता भी था – सो रिपोर्ट मंगवाने के लिए इजराइल भी नहीं जाना पड़ता।  दूर से हिनहिनाकर ही बता देता। इसे कहीं इसलिए तो नहीं छोड़ दिया कि असुरों के राजा बलि ने इंद्र को थपड़ियाकर उनसे यह छीन लिया था और अपने अस्तबल में बाँध लिया था ?

#चलिए_छोड़िये_उसे_भी 

सूरज सर के पास भी तो सात सात घोड़े हैं।  इत्ते मजबूत कि 4 अरब 60 करोड़ 3 लाख वर्षों से चौबीसों घंटा सातों दिन उनका एक पहिये वाला रथ खींचकर उन्हें सकल ब्रह्माण्ड घुमा रहे हैं।  उनमें से ही एकाध को ले लेते।  दिन में न सही रात में ही ले लेते।  बाकी को न सही इनमें सबसे बड़े वाले वरुण के भाई अरुण को ही ले लेते। सोचिये उन सातों पर क्या गुजरी होगी ? बताइए घोड़ों की माता सुरभि जी और उनके घुड़मुखी अश्विन कुमारों को कितना अफ़सोस हुआ होगा।  

अब इतनी दूर नहीं जाना था तो राम जी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा कर्ण ही ले लेते।  इसके भी तो कितने सुन्दर कान थे।  लव और कुश ने यज्ञ पूरा ही नहीं होने दिया था सो अश्व भी मेध होने से बच ही गया था।  सुनते हैं इधर ही है।  हर साल इलाहाबाद में शोभायात्रा में सजधज कर निकलता भी है। मंदिर परियोजना की सुनकर और घोड़ा चम्पत नहीं होगा यह आश्वासन पाकर तो रामजी भी खुश होकर दे ही देते।  इस यूनानी पेगासस से तो लाख गुना अच्छा होता – देशी भाषाएँ भी समझ बूझ लेता, अनुवादकों का खर्चा भी बचता। और तुर्रा ये बकौल खुद कर्ण अश्व महाशय वे तो पूर्वजन्म में ब्राह्मण भी थे ; अब इससे भी ज्यादा पुण्याई कुछ होती क्या ? ब्राह्मणहस्ते सम्पन्न वैदिकी जासूसी जासूसी न भवति की उक्ति भी काम आ जाती !! 

पता नहीं फिरे है इतराता वाले शाह के मुसाहिबों को आगे पीछे का कुछ भान और अपने वाले जहाँपनाह की हैसियत का ज्ञान भी है कि नहीं।  ब्रह्मा तो साहब का बुलौआ नाम – निकनेम –  है , हैं तो वे विष्णु  के आख़िरी अवतार मतलब कलयुग के आखिर में  आने वाले कल्कि अवतार जिनके बारे में कहा गया है कि वे देवदत्त नाम के एकदम से झक्क सफ़ेद पंखों वाले घोड़े पर श्वेत धवल परिधान धारे आएंगे।  मीडिया-वीडिया, बटुकों और शाखा शृगालों की मानें तो कल्कि तो आ ही चुके हैं। अब आये हैं तो पाँव पाँव खरामा खरामा तो नहीं ही आये होंगे।  उन्हीं की घुड़साल में ज़रा सा झाँक लेते तो काजू और मशरूम पगुराते देवदत्त मिल जाते।  हल्दी लगती न फिटकरी रंग चोखा हो जाता – कंगले पत्रकारों की जासूसी कराने की भद्द भी नहीं पिटती, अपनी खुफिया एजेंसियों पर भरोसा न करके इजरायलियों पर यकीन करने की  पोलपट्टी भी नहीं खुलती और दुनिया भर में  हुई जगहँसाई भी नहीं होती। 

जिन्होंने नंगे पैर  दुनिया भर में अपनी चित्रकारी की अश्वमेध यात्रा ही घोड़ों पर सवार होकर की थी। उन हुसैन साब (मक़बूल फ़िदा हुसैन) के घोड़ों का जिक्र हम जानबूझकर नहीं कर रहे हैं । क्योंकि जिन्हें अपने शुद्ध आर्य घोड़ों की परवाह नहीं वे हुसैनी घोड़ों को क्या ख़ास तवज्जो देंगे।  

जो भी हो, दुनिया की इत्ती पुरानी सभ्यता के इत्ते पुराने घोड़ों का दिल दुखाना बहुतई गलत बात है।  घोड़ों की याददाश्त बहुत कर्री होती है सर जी  – होने को तो उनकी लात भी कोई कम कर्री नहीं होती।  इन दोनों से बचकर रहिएगा।  ये अपना अपमान भूलने वालों में से नहीं हैं।

(बादल सरोज लोकजतन के संपादक हैं और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)  

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।