Thursday, March 28, 2024

बगैर पैसे, मीडिया और संसाधन के नेताओं से मुकाबिल है एक प्रवासी दिहाड़ी मजदूर

‘हम लगातार देख सुन रहे थे किसी भी पार्टी ने हम प्रवासी मजदूरों की बात नहीं उठाई इसलिए मैं खुद चुनाव में खड़ा हो गया। एक प्रत्याशी के तौर पर मेरा सिर्फ एक ही एजेंडा है रोजगार। आखिर हम मज़दूरों को केवल काम के लिए अपना गृहराज्य क्यों छोड़ कर जाना पड़ता है। इतने साल से चुनाव हो रहे हैं। बारी-बारी से सत्ता में सब आ रहे हैं लेकिन हमारा मुद्दा ज्यों का त्यों है। चार महीने पहले भूखे प्यासे पैदल ही हम तमाम शहरों से भगा दिये गए। और मैं देख रहा हूं कि इतना जहालत के बावजूद हमारे तमाम मजदूर साथी वापस उन्हीं शहरों में लौटकर जा रहे हैं। लेकिन उनमें से कोई भी निश्चिंत नहीं है कि वहां जाते ही काम मिल जाएगा, या अप्रैल-मई वाली कहानी उनके साथ फिर से नहीं दोहराई जाएगी’। ये कहना है मुजफ़्फ़रपुर जिले की कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय उम्मीदवार संजय सहनी का। 

बता दें कि संजय सहनी भी उन लाखों प्रवासी बिहारियों में से एक हैं जो रोटी रोजगार के लिए दिल्ली जैसे नगरों में जाकर दिहाड़ी मजदूर बनकर काम करते हैं। महंत मनियारी गांव के निवासी 39 वर्षीय संजय सहनी सातवीं ड्रॉप आउट हैं और 10 साल तक राजधानी दिल्ली के जनकपुरी में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते रहे हैं।

संजय सहनी के पास न तो पूँजी है न ही दूसरे संसाधन। वो रोज सुबह 5 बजे अपने कुछ साथी मनरेगा के दिहाड़ी मजदूरों के साथ कभी पैदल, कभी साइकिल से कुढ़नी क्षेत्र के घर-घर जाकर लोगों से वोट देने की अपील करते हैं। वो रोजाना 14 घंटे कैंपेनिंग करके लोगों से कहते हैं – इस बार बिहार चुनाव में आप लोगों में से ही ‘कोई अपना’ खड़ा है। ध्यान रखिएगा। 

मनरेगा भ्रष्टाचार के नेक्सस के खिलाफ़ उठा चुके हैं आवाज़

चुने हुए प्रत्याशी और जिला प्रशासन के साठ-गांठ से मनरेगा में होने वाले भ्रष्टाचार के खिलाफ़ भी संजय सहनी लंबे समय से आवाज़ उठाते आए हैं और क्षेत्र में मनरेगा एक्टिविस्ट के तौर पर जाने जाते हैं। साल 2013 में उन्होंने “समाज परिवर्तन शक्ति संगठन- मनरेगा वाच” का गठन किया। मनरेगा में काम करने वालों को जागरूक किया और ग्रामीण रोजगार स्कीम में नीति निर्धारित करने में वॉचडॉग की भूमिका निभाई। जिसके चलते उनके और संगठन के लोगों के खिलाफ़ साल 2014 में पहली बार एफआईआर दर्ज़ करवाई गई और तब से लगातार उन्हें जान से मारने की धमकी, और फर्जी मामलों में एफआईआर करके फंसाने का सिलसिला चलता ही आ रहा है। मशहूर जन अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज भी संजय सहनी के काम की तारीफ कर चुके हैं। और बिहार चुनाव में कुढ़नी से उनके चुनाव लड़ने का समर्थन कर रहे हैं।   

क्यों चुनाव लड़ रहे हे संजय सहनी

खुद संजय का कहना है कि मैं कोई नेता वेता नहीं हूँ। मैं लाखों मजदूर भाइयों की तरह दिहाड़ी मजदूर हूं। मैंने 10 साल दिल्ली रहकर दिहाड़ी मजदूरी की है। लेकिन इस दौरान मेरे गांव की समस्याएं लगातार मुझे परेशान करती रहती थीं। मैं दिल्ली नहीं जाना चाहता था। लेकिन मजबूरी में जाना पड़ा था। लेकिन मैं ज़्यादा दिन रह नहीं सकता था। इसलिए मैं वापस अपने गांव लौटा और इस देश में जिसे समाज का सबसे अंतिम व्यक्ति कहा जाता है जो मजदूरी करते हैं, मिट्टी उठाते हैं, कुदाल चलाते हैं उनके लिए कुछ करने की ठानी। क्योंकि उनमें से खुद एक मैं हूं। इसलिए 8 साल से मैं लगातार अपने समाज के अंतिम व्यक्ति के लोगों के लिए काम कर रहा हूँ। मनरेगा भ्रष्टाचार, राशन भ्रष्टाचार, बाढ़ के खिलाफ़ लगातार संघर्ष करता आया हूँ।

अभी लॉकडाउन में लाखों मजदूर कई जगह फंसे थे उनके लिए जो कर सकता था किया, बिना संसाधन, पॉवर और पूंजी के। ये सही है कि चुनाव आसान नहीं होता। और विधानसभा का चुनाव तो बिल्कुल भी नहीं। एक ओर बड़े-बड़े नेता पूंजी के बल पर डटे हैं दूसरी ओर हम मजदूर बिना संसाधन के खड़े हैं। पहली बार कोई मजदूर विधानसभा जाएगा। हजारों मजदूर भाई बहनों ने हमें चुनाव के लिए मजबूर किया। तो मैंने शर्त रखा कि मैं किसी पार्टी से चुनाव नहीं लड़ूंगा। क्योंकि सभी पार्टियों के लोग मजदूरों के नाम पर वोट मांगकर जीतते हैं और हमें भूल जाते हैं। सब जैसे एक हैं। मैं किसी पार्टी से लड़ता और जीतता तो वो पार्टी मेरा हाथ बांध देती और मुझसे अपने मुताबिक काम कराती। ये मजदूर साथियों के साथ धोखा होता, इसलिए मैं निर्दलीय चुनाव लड़ रहा हूँ।”    

मीडिया नहीं सोशल मीडिया को बनाया हथियार

संजय सहनी कहते हैं बड़े-बड़े मीडिया संस्थान हमें कवर नहीं करेंगे। जानता हूं। इसलिए सोशल मीडिया ही हमारा हथियार है। ज़मीन पर कैंपेनिंग करने के साथ-साथ सोशल मीडिया फेसबुक, वाटस्अप पर कैंपेनिंग कर रहा हूं। लाइव आकर अपनी बात कह रहा हूँ। मजदूर-किसान साथियों से अपील कर रहा हूँ कि वो मुझे वोट करें। मीडिया को नेताओं की व्यवस्था में चलना है इसलिए वो नेताओं की चिंता करेंगे उन्हें कवर करेंगे।  

संजय सहनी की एक फेसबुक लाइव अपील-

2,83,533 मतदाताओं वाले कुढ़नी विधानसभा सीट पर स्वतंत्र उम्मीदवार संजय सहनी के सामने केदार गुप्ता भाजपा (एनडीए) उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं। भाजपा की सिटिंग सीट है। वहीं महागठबंधन से आरजेडी के अनिल कुमार भी मुकाबिल हैं। 

2015 के चुनाव में केदार प्रसाद गुप्ता ने 72,877 मत हासिल करके जदयू प्रत्याशी मनोज कुमार सिंह (61,657 मत) को हराया था। कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र की शत प्रतिशत आबादी ग्रामीण है। इस क्षेत्र में 18.44 प्रतिशत एससी/ एसटी है। आखिरी चरण के तहत 7 नवंबर को इस सीट पर मतदान किया जाएगा। एक वक़्त था जब अच्छी खासी तादाद में निर्दलीय प्रत्याशी भी जन समाज द्वारा चुनकर विधानसभा और संसद में भेजे जाते थे। लेकिन पार्टी सिस्टम ने इस लोकतांत्रिक प्रणाली का गला घोटकर रख दिया। देखना है कि क्या बिना पार्टी, बिना पूँजी, बिना मीडिया के संजय सहनी एनडीए और महागठबंधन के बड़े शूरमाओं को पटकनी देकर लाखों मजदूरों की आवाज़ लेकर अगर विधानसभा पहुंच पाते हैं तो ये लोकतंत्र की जीत होगी।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।) 

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