Thursday, March 28, 2024

योगी के लिए कांटों से भरा है खुद की सीट जीतने से लेकर पूर्वांचल का रास्ता

देवरिया/गोरखपुर। भाजपा ने गोरखपुर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विधान सभा चुनाव लड़ने का एलान कर पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र अब इसे बना दिया है। अपनी जीत के लिहाज से गोरखपुर शहर की सीट योगी आत्यिनाथ के लिए भले ही सर्वाधिक सुरक्षित माना जा रहा है,पर यहां से पूर्वांचल की सीटों को समेटना इनके लिए आसान नहीं होगा। ऐसे हालात में जबकि कल तक योगी आदित्यनाथ के लिए जो मंच संभाला करते थे,वे कट्टर राजनीतिक दुश्मन बन बैठे हैं। अपने राजनीतिक विरोधियों से मुकाबला कर 2017 का चुनावी परिणाम दोहरा पाना इस बार भाजपा के लिए मुश्किल भरा है।

गोरखपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा के पूर्व तक योगी आदित्यनाथ को लेकर यह अटकल लगाया जा रहा था कि अयोध्या या मथुरा से चुनाव लड़ सकते हैं। सांप्रदायिक उन्माद की लहर में भी अयोध्या की सामाजिक राजनीतिक पहचान कुछ अलग रही है। राममंदिर आंदोलन के दौरान भी यहां कम्युनिष्ट पार्टी ने अपनी जीत दर्ज कराकर अपने मिजाज का एहसास करा दिया था। राममंदिर निर्माण के बावजूद हाल में हुए पंचायत चुनाव में भी भाजपा को करारी हार व सपा को यहां से अधिक बढ़त मिली है। ये सारे नतीजे योगी आदित्यनाथ को चुनाव लड़कर अपने को मुश्किल भरे भंवर में डालने जैसा था। जिसका नतीजा रहा कि आखिरकार उन्होंने गोरखपुर से चुनाव लड़ने का एलान किया। जहां की सीट के इनके लिए राज्य के सबसे अधिक सुरक्षित सीट होने से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके बाद भी सफर में कांटे बहुत मिलेंगे।

पूर्वांचल व योगी आदित्यनाथ को समझने के पहले इनके अतीत को समझना होगा। योगी आत्यिनाथ पहला लोकसभा चुनाव 1998 में 26 हजार वोटों से जीते थे। इसके एक वर्ष बाद ही हुए 1999 के चुनाव में जीत का अंतर मात्र सात हजार का रहा। इसके बाद ही 2002 में आदित्यनाथ ने गोरखपुर में हिंदू युवा वाहिनी नाम से एक सांस्कृतिक संगठन की स्थापना की। जिसके बारे में कहा गया कि यह गांवों और शहरों में जाकर राष्ट्र विरोधी व हिंदू विरोधी गतिविधियों को रोकने का काम करेगी। हालांकि बाद में एक खास विचारधारा के लोगों को गोलबंद करने का यह संगठन बन गया। इसके बाद धीरे-धीरे संगठन की पहचान गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज समेत आसपास के जिलों से आगे निकलकर पूर्वांचल में फैल गई। इस बढ़े राजनीतिक प्रभाव का लाभ योगी आदित्यनाथ को भाजपा पर दबाव बनाने में भी मिला। इसका उन्होंने समय-समय पर भाजपा नेतृत्व को एहसास दिलाने का काम भी किया। वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में भी भाजपा से अलग हिंदू युवा वाहिनी के कई चेहरों ने चुनाव लड़कर अपनी शक्ति का एहसास कराया। जिसके पीछे योगी की मौन सहमति की भी बात कही जाती है। इसके बाद जब आरएसएस ने यूपी में योगी आदित्यनाथ के नाम की मुख्यमंत्री के रूप में मोहर लगाया तो हिंदू युवा वाहिनी को निष्क्रिय करने की शर्त रखी गई।

हिंदू युवा के पुराने चेहरे बने योगी के बड़े राजनीतिक दुश्मन

योगी आदित्यनाथ को यूपी का ताज मिल गया, पर हिंदू युवा वाहिनी को कमजोर करने की कोशिश शुरू हो गई। जिसका नतीजा यह रहा कि संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह जो कल तक योगी आदित्यनाथ का मंच सजाने से लेकर उसे संभालने तक का कार्य देखा करते थे,वे नाराज हो गए। इसके अलावा संगठन के बड़ी संख्या में कार्यकर्ता अलगाव में चले गए। सुनील सिंह को नाराजगी जताने का परिणाम रासुका समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमे के रूप में भी झेलना पड़ा। जेल से बाहर निकलने के बाद सुनील सिंह ने हियुवा से ही मिलता जुलता एक अलग संगठन खड़ा किया। जिसका मकसद हियुवा के बिखरे कार्यकर्ताओं को अपने पक्ष में करने का था। बाद में अपने संगठन का सुनील सिंह ने सपा में विलय कर दिया। ये कार्यकर्ता अब योगी आदित्यनाथ के सामने कांटा बोने का ही काम करेंगे।

गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने गोरखपुर से चार बार के विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल का टिकट काटकर योगी का नाम फाइनल किया है।

गोरखपुर में 9 विधानसभा हैं, जिसमें से 8 पर भाजपा तो एक पर बसपा का कब्जा है। योगी का टिकट फाइनल होने पर सभी भाजपा कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर है तो दूसरी तरफ गोरखपुर की 7 विधानसभा जहां पर भाजपा के विधायक हैं, उनकी बेचैनी बढ़ गई है। वहीं, गोरखपुर कई सीटों पर अब भाजपा के किस विधायक का टिकट काटेगी इसको लेकर यहां पर चर्चाओं का बाजार गरम है।

भाजपा विधायकों की बेचैनी इस कारण भी बढ़ी है कि इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कई नए नेताओं ने दावेदारी पेश की है। साथ ही वे गोरखपुर की अलग-अलग विधानसभा में चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी से गोरखपुर की 9 सीटों से कमल खिलाने के लिए अभी तक 60 दावेदार सामने आ चुके हैं। इसमें सर्वाधिक संख्या सहजनवां से है। यहां कुल 11 नेताओं ने भाजपा के टिकट के लिए दावेदारी की है। सहजनवां के बाद भाजपा में टिकट के लिए सर्वाधिक मारामारी खजनी में है। यहां से कुल 10 लोगों ने टिकट के लिए अपनी दावेदारी पेश की है। चौरी चौरा से 7, शहर से 2, पिपराइच से 3, बांसगांव से 5, चिल्लूपार से 5, ग्रामीण से 5 व कैंपियरगंज से 6 लोगों ने पार्टी के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत की है। दावेदारी के साथ-साथ इन लोगों ने अपने-अपने क्षेत्रों में लोगों से वर्चुअली संपर्क अभियान तेज कर दिया है। इतना ही नहीं वह संगठन के साथ-साथ निरंतर पार्टी के बड़े नेताओं के भी संपर्क में बने हुए हैं, ताकि टिकट पर उनकी दावेदारी मजबूत साबित हो।

चार बार लगातार विजयी रहे राधामोहन के निर्णय पर सबकी नजर

योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर की जिस सीट से विधायक का चुनाव लड़ने जा रहे हैं,वहां से निवर्तमान विधायक डा. राधामोहन अग्रवाल चार बाद से चुनाव जीत रहे हैं। यह सीट वर्ष 1989 से ही भगवा के कब्जे में है। यहां से भाजपा से शिवप्रताप शुक्ल लगातार चुनाव जीतते रहे। लेकिन योगी से उनकी खटास का नतीजा रहा कि वर्ष 2002 में भाजपा के खिलाफ हिंदू महासभा से डा.राधा मोहन अग्रवाल को उम्मीदवार बना कर चुनाव जिताने का काम किया। इसके बाद से लगातार चार चुनावों में डा. राधा मोहन चुनाव जीतते रहे हैं। जिनका टिकट काटने को लेकर वे खुद असमंजश में हैं। इस बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक पत्रकार वार्ता में सवालों के जवाब में कहा है कि डा. अग्रबाल चुनाव लड़ने को तैयार हों तो सपा उम्मीदवार बना सकती है। खास बात यह है कि राजनीति में कुछ भी तय नहीं माना जाता है। ऐसे में डा. राधा मोहन अग्रवाल को लेकर कयासों का बाजार गर्म है।

भाजपा ने अपने ही सर्वे में कई विधायकों को कर दिया है फेल

सूत्रों की मानें तो विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने गोपनीय तरीके से टीम भेजकर गोरखपुर की सभी 9 विधानसभा में एक सर्वे किया था। टीम ने गांव कस्बे में जाकर चौक चैराहे पर लोगों से विधायक के कार्यों का फीडबैक लिया था। जिसके बाद एक रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय भेजी थी। सूत्रों के अनुसार गोरखपुर की चार विधानसभा चौरी-चौरा, बांसगांव, गोरखपुर ग्रामीण और पिपराइच विधानसभा में भाजपा की टीम को लोगों को जो फीडबैक मिला, उसके अनुसार वोटर भाजपा विधायकों की कार्यप्रणाली से खुश नहीं थे। वहीं, क्षेत्र में भी ये विधायक समय कम दिए हैं। इस तरह की बातें खुलकर सामने आईं। जिसके बाद से ही गोरखपुर से चार भाजपा विधायकों की जगह इस बार नए चेहरों को टिकट मिलना तय माना जा रहा है। वहीं, चिल्लूपार सीट पर लगातार तीन बार से भाजपा हार रही है और वहां पर बसपा का कब्जा है। बसपा का किला तोड़ने के लिए भी भाजपा कोई मजबूत दावेदार ही इस बार चुनाव में उतारेगी।

गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा में सबसे अधिक वोटर दलित और निषाद हैं। यहां पर वर्तमान में भाजपा से विपिन सिंह विधायक हैं। जिन्होंने वर्ष 2017 चुनाव में बहुत कम वोट से सपा को हराया था। इस बार भाजपा का निषाद पार्टी से गठबंधन हुआ है। यहां से वर्ष 2017 चुनाव में डॉ. संजय निषाद 34 हजार वोट पाए थे। ऐसा माना जाता है कि सपा के कैंडिडेट केवल 5 हजार वोट से चुनाव हारे थे। अगर संजय निषाद चुनाव न लड़ते तो भाजपा की हार और सपा की जीत तय थी। भाजपा से गठबंधन के बाद गोरखपुर की ग्रामीण सीट से निषाद पार्टी ने अपना कैंडिडेट लड़ाने की सिफारिश की है। जिसके बाद चर्चाओं का बाजार गर्म है। सूत्रों की मानें तो यहां से भाजपा विधायक का टिकट कटना तय माना जा रहा है।

भाजपा का सामाजिक समीकरण साधना आसान नहीं

गोरखपुर मंडल की 28 सीटों में से 23 पर बीजेपी का कब्जा रहा है। सीएम योगी आदित्यनाथ का गृह मंडल होने की वजह से पार्टी और सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर है। यह कहा जा रहा है कि सत्ता विरोधी लहर का जहां भाजपा को सामना करना पड़ेगा वहीं भाजपा से बगावत करने वाले चेहरे भी राह में कांटा बोने का काम करेंगे। गोरखपुर मंडल में सीटवार मुस्लिम-यादव, निषाद, सैंथवार, ब्राह्मण, पाल व ठाकुर जैसे जातीय समीकरण भी हैं, जो हर एक सीट पर असर दिखाते हैं। वहीं यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से रहा है। प्रदेश में करीब 10-12 फीसदी ब्राह्मण आबादी है। कई विधानसभा सीटों पर 20 फीसदी से अधिक वोटर ब्राह्मण हैं। ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है। खास बात यह है कि योगी आदित्यनाथ पर पांच वर्ष के कार्यकाल में एक खास जाति को तवज्जो देने का आरोप लगता रहा है। जिससे अन्य विशेषकर ब्राम्हणों के एक बड़े हिस्से की नाराजगी से इंकार नहीं किया जा सकता।

ओमप्रकाश राजभर इस बार सपा गठबंधन का हिस्सा

पिछले 2017 के चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का भाजपा से गठबंधन था। इस बार ओमप्रकाश भाजपा से जुदा होकर उनके प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी के साथ खड़े हैं। पूर्वांचल की अधिकांश सीटों पर राजभर समाज की एक बड़ी आबादी है। जातिगत राजनीति के आधार पर ओमप्रकाश राजभर अपने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के बैनर तले एक बड़े राजभर समाज को अपने पक्ष में जोड़ने में कामयाब रहे हैं। ऐसे में पूर्वांचल की 146 सीटों में से अधिकांश सीटों पर जीत का ख्वाब देख रही भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिल पाने की उम्मीद कम है।

(देवरिया और गोरखपुर से पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

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