Saturday, April 20, 2024

दिल्ली की खराब हवा का इलाज जरूरी

दिल्ली की हवा बहुत खराब हो गई है। स्कूल-कालेज बंद करने पड़े हैं। सरकारी दफ्तरों के आधे कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कह दिया गया है। यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद हुई है। हवा की स्थिति पिछले कई वर्षों से लगातार बिगड़ती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट को पिछले कई वर्षों से हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। लेकिन सरकारें स्थिति बिगड़ने पर फौरी कार्रवाई करके रह जाती हैं। समस्या की जड़ को समझने और उसपर प्रहार करने की कोई योजना सामने नहीं आ रही। इस बारे में कुछ शोधकर्ताओं ने कई सुझाव दिए हैं, पर उन्हें मंजूर किया जाना बाकी है।

इस वर्ष जाड़े की शुरुआत में ही दिल्ली में भयानक ढंग से कोहरा छा गया है। हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गई है। एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार गंभीर बना रहा है। आशंका यह है कि इस वर्ष यह स्मॉग अधिक दिनों तक छाया रहेगा। दिवाली के समय से ही हवा की गुणवत्ता खराब होती गई है। स्थिति बिगड़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और उसकी फटकार पर सरकारें कठोर कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो गई। हर वर्ष जाड़े में नम हवा में प्रदूषण की वजह से स्मॉग छा जाता है। इसमें पड़ोसी राज्यों के प्रदूषण का कुछ योगदान रहता है। पर सारा दोष पंजाब व हरियाणा-राजस्थान के किसानों के पराली जलाने पर थोपने की चलन बन गई थी। इस बार सुप्रीम कोर्ट में वास्तविकता स्पष्ट हुई है। पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का दस प्रतिशत से तीस प्रतिशत हिस्सेदारी ही है।

राजधानी में वायु प्रदूषण के कई कारण हैं। कचरे को जलाना, निर्माण कार्यों की वजह से धूल कणों का उड़ना, वाहनों से निकलने वाला धुआं, पड़ोसी राज्यों में फसल अवशेषों को जलाने से हवा के साथ आने वाला प्रदूषण इनमें प्रमुख हैं। हर साल जब स्मॉग की समस्या गहराती है, तब कोई जिम्मेवार ठहराया जाता है और अस्थाई इंतजाम में पूरा अमला लग जाता है। एक बार वाहनों को जिम्मेवार ठहराया गया और ऑड-इवेन की व्यवस्था लागू की गई थी। पर समूची समस्या को समग्रता से देखने और समूचे समाधान के बारे में कभी सोचा नहीं गया।

दिल्ली में इस वर्ष दो जगहों पर स्मॉग टावर लगाए गए हैं। वे हवा को फिल्टर से छानकर फिर वायुमंडल में छोड़ेंगे। कनाट प्लेस में लगा टावर 24 मीटर ऊंचा है, यह उपर से हवा नीचे भेजेगा, जो नीचे लगे फिल्टरों में साफ होगा और फिर पंखों के माध्यम से उस साफ हवा को वायु मंडल में छोड़ा जाएगा। यह इंतजाम भी सुप्रीम कोर्ट की पहल पर ही हुआ है। इसके लिए आईआईटी मुंबई और अमेरीका की एक यूनिवर्सिटी में तकनीकी साझीदारी हुई है। निर्माण का काम टाटा समूह ने किया है। इसकी देखरेख दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करेगा और दूसरा टावर आनंद बिहार में लगा है जिसकी देखरेख केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जिम्मे होगा।

स्मॉग टावर कितना कारगर हो पाता है, इसकी निगरानी मुंबई आईआईटी और दिल्ली आईआईटी की साझा टीम करेगी और दो वर्ष की सतत निगरानी से निकले निष्कर्ष के आधार पर इस इंतजाम को विस्तार देने के बारे में फैसला किया जाएगा। इतना तय है कि इन टावरों को स्मॉग संकट का रामबाण ईलाज नहीं ठहराया जा सकता। इस तकनीक की कार्यकुशलता के बारे में अभी कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं है। हालांकि चीन में भी ऐसे टावर लगाए गए हैं, पर उनकी तकनीक थोड़ी भिन्न है। वैसे दिल्ली की हवा में धूलकणों (पीएम10 व पीएम2.5 ) की मात्रा 3200 टन प्रति वर्ष आंकी गई है। इस बारे में टेरी ने 2018 में अध्ययन कराया था। यह प्रश्न तो है ही कि इन टावरों से कितने धूलकणों को हवा से निकाला जा सकेगा? प्रदूषण के दूसरे कारणों के कैसे दूर किया जाएगा?

दिल्ली में कोयला से चलने वाले बिजलीघर बंद कर दिए गए हैं। उद्योगों में भी नेचुरल गैस का इस्तेमाल होने लगा है। सार्वजनिक वाहनों और स्थानीय मालवाहक वाहनों को सीएनजी वाहन में बदल दिया गया है। पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। ट्रकों का प्रवेश बंद कर दिया गया है। लेकिन इन कार्रवाइयों से स्मॉग के प्रसार को रोका नहीं जा सका है।

दिल्ली की हवा में प्रदूषण फैलने के आठ स्थानीय कारक हैं। इनसे होने वाले प्रदूषण का भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) ने अध्ययन किया है। इस अध्ययन में वाहनों से होने वाला प्रदूषण सबसे अधिक दिखा है। इस एक शहर में एक करोड़ 30 लाख वाहन हैं। सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था अपर्याप्त है। लेकिन इससे बड़ी समस्या पैदल चलने और साइकिल चलाने के लिए सड़कों पर स्थान निर्धारित नहीं है। इसलिए छोटी दूरी के लिए भी नागरिक यंत्रचालित वाहनों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं। सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र रवि पैदल यात्रियों, साइकिल व साइकिल रिक्शा के लिए वर्षों से आवाज उठा रहे हैं।। पर कोई कारगर व्यवस्था नहीं हुई। मेट्रो स्टेशनों के पास साइकिल स्टैंड बनाने और साइकिल भाड़ा पर देने की एक व्यवस्था एक समय हुई भी तो वह महज प्रचार का हथकंडा बन कर रह गया। कोई शक नहीं कि दिल्ली के प्रदूषण में शहर के स्थानीय वाहन और शहर के भीतर आवाजाही वाले वाहन हैं।

यह सही है कि औद्योगिक क्षेत्रों में नेचुरल गैस के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है और स्वच्छ ऊर्जा नीति को अधिसूचित किया है। पर इसका नगर निगम क्षेत्र व अनधिकृत क्षेत्रों में कार्यान्वयन नहीं हो सका है। औद्योगिक कचरे को हटाने का काम भी अप्रभावी है। कचरे को जलाने पर कारगर रोक नहीं है। हर साल जाड़े के मौसम में खुले में कचरा जलाने पर रोक लगाई जाती है, पर कचरे को एकत्र करने और उपचार करने पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता। शहर से कुल 11,144 टन प्रतिदिन निकलता है। इसका केवल 47 प्रतिशत का ही प्रसंस्करण और फिर से उपयोग हो पाता है। आधा से अधिक कचरा जमा कर दिया जाता है जिससे आग लगने की घटनाएं अक्सर होती हैं। 

दूसरी तरफ निर्माण क्षेत्र में दिल्ली में ध्वंस व निर्माण की रद्दी के प्रसंस्करण की अधिक इकाईयां हैं, उन तक समूचे शहर के ध्वंस की रद्दी पहुंच नहीं पाती। शहर प्रतिदिन लगभग 3711 टन रद्दी पैदा होती है जबकि इसके पास प्रतिदिन 4150 टन के प्रसंस्करण की क्षमता है। परन्तु समूची रद्दी के प्रसंस्करण इकाईयों तक पहुंच नहीं पाने से वह यहां वहां पड़ा रह जाता है। इस मामले में निर्माण एजेंसियों को कहा जा सकता है कि वे ध्वंस से निकले समूची रद्दी का प्रसंस्करण कर इस्तेमाल निश्चित रूप से करें।

दिल्ली के प्रदूषण के बारे में गहराई से शोध करने वाली अनुमिता रायचौधरी जो विज्ञान व पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की शोध अधिकारी हैं। वे आईआईटीएम की रिपोर्ट को उद्धृत करती हुई बताती है कि घरेलू प्रदूषण भी कम नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि गरीबों और फुटपाथी दुकानों में स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध हो। सुश्री रायचौधरी कहती हैं कि सभी संबंधित विभागों को अपने कार्यक्षेत्र में मौजूद कमियों को चिन्हित करें और समयबध्द ढंग से काम करें तब जाकर स्थिति में सुधार हो सकेगा। इस बहु-विभागीय समाधान के लिए विभागवार जिम्मेवारी व जवाबदेही सुनिश्चित करना होगा, इसके लिए अग्रिम बजट का प्रावधान हो और सबको सक्रिय किया जाए तब जाकर अगले वर्षों में स्थिति सुधरने की उम्मीद की जा सकेगी।

(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और पटना में रहते हैं।)

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