Thursday, March 28, 2024

जेएनयूएसयू चुनाव: छात्र राजद प्रत्याशी जयंत सामाजिक न्याय का नया सितारा है या फिर लाठी पर टंगी लालटेन?

जितेंद्र कुमार

जनचौक ब्यूरो

(जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के अध्यक्षीय भाषण में छात्र राजद के प्रत्याशी जयंत जिज्ञासु का भाषण बेहद चर्चित रहा है। सवाल-जवाब के सत्र में भी उनका प्रदर्शन अच्छा बताया जा रहा है। सोशल मीडिया से लेकर जेएनयू से संबंध संपर्क रखने वाले हिस्से में ये चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मसले पर दो गंभीर टिप्पणियां आयी हैं। इनमें एक रवि रंजन सिंह ने लिखी है और दूसरी रिंकू यादव की फेसबुक वाल पर साया हुई है। पहले ने जयंत जिज्ञासु की जमकर तारीफ की है जबकि रिंकू यादव ने अपना रुख आलोचनात्मक रखा है। पेश है दोनों के लेख-संपादक)

10 बजे रात तक झेलम लॉन में हजारों की भीड़ आ चुकी थी, बहुतेरे लोग विश्वविद्यालय के बाहर से भी थे, लेकिन चुनाव आयोग की नासमझी एवं अनुभवहीनता के कारण भीड़ उसे ही भला बुरा कहने लगी! कारण था -डिबेट प्रारंभ होने में देरी ! बहरहाल आधी रात के आसपास डिबेट प्रारंभ हुई ! चूंकि जेएनयू निशाचरों का भी गढ़ है, इसलिए भीड़ जस की तस बनी रही!

तीन चार Presidential candidates के बोलने के बाद सब लोग चट गये! अब जनता का गुस्सा चुनाव आयोग से शिफ्ट होकर प्रत्याशियों पर आ गया! ” न जाने कैसे कैसे लोग खड़े हो जा रहें हैं प्रेसिडेंट के लिए, टाइम बर्बाद करके रख दिया सब, जेएनयू में डिबेट का स्तर कितना गिरा दिया है इन लोगों ने, सब बकवास हैं ” इत्यादि, इत्यादि ! तभी एक दुबला-पतला छोटे कद का प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट आया, अपना अध्यक्षीय भाषण देने, नाम जयंत कुमार!

कैडर के नाम पर महज 10 -15 लोग ही रहे होंगे उसके पास, इसलिए अन्य सभी संगठन हल्के में ले रहे थे जयंत को! लेकिन जैसे ही बोलना शुरू किया तो 10 मिनट तक पूरा जेएनयू अपनी लेफ्ट-राइट की बाइनरी से निकलकर हर एक मिनट पर करतलध्वनि करता रहा! बेहतरीन भाषा शैली, लाजवाब वक्तृत्व क्षमता एवं अपनी अप्रतिम बौद्धिक क्षमता का समागम कर क्या ओजस्वी भाषण दिया, तेजस्वी वाले पार्टी के जयंत ने! छात्र समुदाय जो अब तक उब चुका था और उसके तालियों एवं नारों की वैलिडिटी ख़त्म हो गयी थी, अचानक जयंत के भाषण से रिचार्ज होकर 4G की स्पीड से एक्टिवेट हो गया !

ऐतिहासिक भाषण की चहुं ओर चर्चा होने लगी- ” ये तो कन्हैया जैसा बोल रहा है” ! “कन्हैया का पुराना मित्र है सुनने में आ रहा है” ! कन्हैया को नेता बनाने में इसी का हाथ है !” कन्हैया का भाषण यही लिखता था ” ! “लेकिन कन्हैया में इतनी बौद्धिक क्षमता कहां, वो तो लेफ्टिस्ट मोदी है, !” बहुतेरे विद्यार्थियों ने पिछले 5-6 सालों में किसी भी जेएनयूएसयू अध्यक्ष उम्मीदवार द्वारा दिया गया अब तक का सबसे शानदार और धारदार भाषण बताया !

साहित्य से प्रेमचंद का हल्कू, वैज्ञानिकता एवं शिक्षा में नेहरु का दृष्टिकोण, सामाजिक न्याय में अम्बेडकर, जगदेव प्रसाद, कर्पूरी ठाकुर का योगदान, धर्मनिरपेक्षता में लालूवाद का महत्व आदि तमाम पहलुओं को समेटे हुए था जयंत का भाषण! उनके बाद एक राइट के और एक लेफ्ट के दो उम्मीदवार बोलने के लिए आये, वही घिसा-पिटा, रटा-रटाया पारंपरिक भाषण हुआ जो यहां नाकाबिले जिक्र है ! सबसे मजेदार रहा प्रश्नोत्तर का चरण जिसमें जयंत ने न सिर्फ सबको धूल चटाया बल्कि एक दो तो उम्मीदवार मंच पर ही खुद जयंत की वाकपटुता एवं बौद्धिकता की तारीफ किये !

आज मतदान है, जेएनयू एक प्रगतिशील विश्वविद्यालय है, लेकिन कल इसका भी लिट्मस टेस्ट होने जा रहा है कि ये कितना प्रगतिशील है, प्रगतिशीलता का मतलब क्या केवल “वामपंथी प्रगतिशीलता” है या फिर संघवादी जड़ता ही प्रगतिशीलता का दूसरा नया नाम है! अध्यक्ष का चुनाव चाहे कोई जीते, परिणाम चाहे कुछ भी हो, JNU ने जयंत भाई के रूप में एक मूर्धन्य विद्वान नायाब नेता तो पैदा कर ही दिया है ! हमारी शुभकामनाएं जयंत भाई के साथ हैं, आपके नेतृत्व का दायरा इस कैंपस तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि आगामी वर्षों में आप विधानमंडल और संसद में जाकर प्रदेश और देश का नेता अवश्य बनेंगे !!

-रवि रंजन सिंह

जेएनयू छात्र संघ चुनाव के प्रेसिडेंशियल डिबेट के मौके पर लाठी पर टंगा लालटेन नजर आ रहा था। जेएनयू के लिए यह ऐतिहासिक घटना है। जेएनयू के लोकतांत्रिक माहौल और विरासत के सामने भगवा ताकतों के बाद दूसरी चुनौती है! बिहार के संदर्भ से बात करें तो लाठी पर टंगा लालटेन एक प्रतीक रचता है। एक नये किस्म के वर्चस्व और लोकतांत्रिक आंदोलन के कमजोर होने के साथ ही काले धुंध की ओर बिहार को ले जाने का प्रतीक!

हां, जेएनयू में भी वह प्रतीक चुनौती के रूप में है! जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर छात्र राजद के उम्मीदवार ने राजद और रणवीर सेना के संबंधों पर बोलने से चालाकी से कन्नी काट ली। जब मध्य बिहार में गरीबों-दलितों-वंचितों-अल्पसंख्यकों का सामंती रणवीर सेना कत्लेआम कर रही थी। तो यह लाठी किसके पक्ष में अड़ी थी, लालटेन किसको रोशनी दिखा रहा था? 96 के लोकसभा चुनाव में आरा और विक्रमगंज के प्रत्याशियों-चंद्रदेव वर्मा और कांति सिंह को रणवीर सेना ने खुले तौर पर समर्थन दिया था। बाद में चंद्रदेव वर्मा ने रणवीर सेना पर लगे प्रतिबंध को हटाने और भाकपा-माले पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। कांति सिंह और वर्तमान में राजद के नेता शिवानंद तिवारी के रणवीर सेना से संबंध का जिक्र तो अमीरदास आयोग की रिपोर्ट में भी मिलता है।

इस बात को इसलिए दोहरा रहे हैं कि जेएनयू में छात्र राजद लोकतांत्रिक संघर्ष की विविध रंग की विरासत पर दावा कर रहा है।

वह दावा फर्जी है। हकीकत बिहार में गरीबों-दलितों-वंचितों के बुनियादी अधिकारों और संघर्षों के प्रति राजद का रवैया उसे लोरिक सेना की विरासत के साथ खड़ा करती है। शहीद जगदेव, कर्पूरी ठाकुर या फिर बिहार के गरीबों-वंचितों के सम्मान व अधिकार के संघर्षों की विरासत के साथ नहीं!

बिहार में इस लाठी के साथ बहुजनों का बड़ा हिस्सा क्यों नहीं खड़ा रहा, लालटेन जलाये रखने से वे क्यों भाग खड़े हुए? क्योंकि यह लाठी उनके जिस्म पर ही जख्म पैदा करने लगी, लालटेन की रोशनी कुछ मुट्ठीभर नवकुलकों-धनाड्यों-दलालों-ठेकेदारों व माफिया के घरों में ही उजाला पैदा करने तक सिमट गयी। बहुजनों के बड़े हिस्से ने अलग रास्ता चुन लिया। वे नीतीश कुमार और भाजपा के पाले में जाने को बाध्य हुए।

कोई शक नहीं कि शुरुआती दिनों में बिहार के बहुजनों का जबर्दस्त समर्थन लालू यादव को हासिल रहा है। लेकिन बाद के दिनों में बहुजन बल के बजाय राजद की राजनीति यादव बल पर आ टिकी। अगर सचमुच में राजद की राजनीति सोशल जस्टिस के एजेंडा पर टिकी होती, सामाजिक न्याय व लोकतांत्रिक संघर्षों की विरासत को बुलंद कर रही होती तो यह स्थिति तो नहीं आती!

जेएनयू में लाठी पर लालटेन टांग कर भगवा ताकतों से लड़ने का दावा करने वालों को जरूर ही जवाब देना चाहिए कि बिहार में भाजपा के मजबूत होने के लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है? बिहार में आपकी राजनीति बहुजनों को गोलबंद नहीं रख पाती है, भगवा ताकतों को नहीं रोक पाती है और जेएनयू में भगवा ताकतों से लड़ने और विकल्प होने का दावा करते हैं!

राजद से सवाल है और वह सवाल जेएनयू में पूछा ही जाना चाहिए कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की कैसी राजनीति आप बिहार में बढ़ा रहे हैं कि अतिपिछड़ों और दलितों को आपकी लाठी डराती है? प्रतिनिधित्व की बात है, सम्मान व अधिकार की बात है तो बिहार में इस मोर्चे पर अतिपिछड़ों-दलितों-पसमांदा को 15 साल के राजद शासन में क्या कुछ मिला है? केवल यही तो बताइए कि संसद और विधानसभा में आपकी उम्मीदवारों की सूची में बहुजनों के इन हिस्सों की क्या हिस्सेदारी रही है? आपकी पार्टी के कितने जिलाध्यक्ष बहुजनों के इन हिस्सों से रहे हैं?

इन हिस्सों के सशक्तिकरण और सम्मान के लिए सबसे जरूरी है, भूमि सुधार! आपकी पार्टी क्यों भूमि सुधार के एजेंडे पर आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं हुई? भूमि सुधार से भागिए और फिर भी सामंतवाद से लड़ने और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने का दावा कीजिए! वहां जेएनयू में शहीद जगदेव के वक्तव्य को दुहराया जा रहा है। पता होना चाहिए कि जिस प्रदर्शन में जगदेव बाबू की शहादत हुई है, उसका एजेंडा क्या था? वंचितों के लिए समान शिक्षा और भूमि अधिकार जैसे सवाल भी उस प्रदर्शन का एजेंडे थे। इन प्रश्नों पर राजद का रवैया पीछे हटने का है, लेकिन दावा शहीद जगदेव का वारिस होने का कर रहे हैं।

साहब आप जेएनयू में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने और लालू जी के स्मार्ट गांव पर बयान की चर्चा कर रहे हैं तो भूमि सुधार ही वह कुंजी है जो बिहार में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करता, बिहार के गांव व कृषि के विकास का रास्ता खोलता और मनुवाद व सामंती ताकतों की बुनियाद पर चोट करता, भगवा ताकतों को सर उठाने की जमीन नहीं मिलती! बिहार के सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल को लोकतांत्रिक बनने का रास्ता खोलता! यह यथास्थिवाद विरोधी राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण व बुनियादी एजेंडा है।

गौर कीजिए, कृषि विकास, पशुपालकों-दुग्ध उत्पादकों और बटाईदार किसानों के एजेंडे पर सरकार और सरकार से बाहर रहते हुए राजद ने कभी आवाज बुलंद नहीं की है! भूमि सुधार में बटाईदारी का प्रश्न महत्वपूर्ण है। अगर एक जाति विशेष यादव पर ही बात करें तो उसका बड़ा हिस्सा बिहार में बटाईदार किसान है, छोटा-मंझोला किसान है, पशुपालक है! राजद के लालटेन की रोशनी वहां भी नहीं पहुंची!

कुल मिलाकर कहिए तो राजद की राजनीति एक जाति विशेष के वर्चस्व की प्रवृति, उस जाति के वर्चस्वशाली हिस्सों के हितों पर खड़ी-टिकी है। इसलिए बहुतेरे यादव बुद्धिजीवी लालू यादव के आने के बाद ब्लॉक और थाना तक पहुंच की दुहाई देते हैं! बहुतेरे खाये-पीये अघाये कलम घिस्सू लालू चालीसा का पाठ करते रहते हैं! उन्हें अपनी जाति के बड़े हिस्से के हित- अधिकार, सम्मान से कोई लेना-देना नहीं है! हां, यदि इस मुल्क में जाति यथार्थ है तो वर्ग भी यथार्थ है और साहब! आपकी दृष्टि वर्गीय संकीर्णता का शिकार है! इसलिए आप मनुवादी-सामंती शक्तियों के सामने सरेंडर करने वाली, सामाजिक न्याय व लोकतंत्र को विस्तार देने से भागने वाली राजनीति की हकीकत नहीं देख पा रहे हैं!

राजद का दावा है कि वह जुझारु सेकुलर राजनीति करता है! सामंती ताकतों के सामने समर्पण करने वाली और लोकतंत्र की जड़ों को गहरा व विस्तृत बनाने से भागने वाली राजनीति सेकुलरिज्म के मोर्चे पर जुझारू नहीं हो सकती! आडवाणी का रथ रोकना और दंगा नहीं होने के इर्द-गिर्द ही सेकुलरिज्म कब तक परिभाषित होता रहेगा? जेएनयू में छात्र राजद उम्मीदवार ने भागलपुर दंगे की चर्चा की, लेकिन यह नहीं बताया कि दंगा पीड़ितों के साथ राजद का क्या रवैया रहा है! साहब! कोई कम्युनल राजनीति भी 365 दिन और 24 घंटे दंगे नहीं कराती और सेकुलर राजनीति भी दंगा नहीं होने देने तक सिमटी नहीं होती! धर्मनिरपेक्षता महज मुसलमानों को दंगों से बचाने तक सीमित नहीं है। आखिर आप कैसी सेकुलर राजनीति बिहार में कर रहे हैं कि कम्युनल राजनीति को फलने-फूलने का मौका मिल गया? वाह!

जहां तक राजद के समाजवादी होने का सवाल है, उसका समाजवादी विरासत को आगे बढ़ाने का दावा है, जेएनयू की समाजवादी विरासत को बुलंद करने का भी वे दावा कर रहे हैं! बिहार में तो आपकी राजनीति में कोई समाजवादी तत्व नहीं दिखता है। आज के दौर में तो समाजवादी राजनीति कम से कम नई आर्थिक नीतियों से जरूर टकराएगी, लेकिन आपकी अर्थनीति तो कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही परिभाषित होती है।

कॉरपोरेट लूट-भ्रष्टाचार, एनपीए जैसे मसले नई आर्थिक नीतियों से ही जुड़ते हैं! नीरव मोदी और एनपीए जैसे मसलों-शिक्षा के निजीकरण, विश्वविद्यालयों को बचाने जैसे सवालों पर राजद जुबानी जंग ही लड़ सकता है! आज के दौर में भगवा चुनौती का मुकाबला आपकी राजनीति नहीं कर सकती है! अब चाहिए, मनुवाद-सामंती-साप्रदायिक ताकतों और कॉरपोरेट गुलामी से टकराने वाली बहुजन राजनीति! चलिए बात लंबी हो गयी है!

लेकिन चंदू की हत्या पर बात होगी! चंदू की हत्या एक राजनीतिक हत्या थी। युवा आदर्श व नये बिहार के सपनों की हत्या थी। बिहार को दलितों-वंचितों के पक्ष से बदलने और भगत सिंह के विचारों-संघर्षों की रोशनी में आगे बढ़ने, बुर्जुआ कैरियर से इतर युवा जीवन को परिभाषित करने की आकांक्षा की हत्या थी। चंदू की हत्या के जरिए बिहार के दलितों-वंचितों की सामाजिक-राजनीतिक दावेदारी को रोकने की कोशिश हुई।

चंदू की हत्यारी राजनीति किस तरह की राजनीति हो सकती है? इस सवाल से आंख नहीं मूंद सकते! जेएनयू में छात्र राजद के प्रत्याशी ने चंदू की हत्या के प्रश्न पर कन्नी काट ली! जुबां नहीं चलायी! चंदू भी तो वंचित समुदाय की ही संभावनाओं से भरा नौजवान था। आपकी जुबां पर चंदू आया तक नहीं! चंदू के सामने आप कहां टिकेंगे?

अगर चंदू की हत्या आपके लिए मामूली है और लालू का जेल जाना बड़ा सवाल है। सामाजिक न्याय के लिए बिहार में तेजस्वी का नेता होना बड़ा सवाल है तो हम लानतें भेजते हैं, छात्र राजद के सिपाही, आपको! आप खांटी अवसरवादी-जातीय वर्चस्व के सिपाही हैं और जेएनयू में आप यथास्थितिवादी-नये किस्म की प्रतिक्रियावादी राजनीति को आप लोगों के शब्दों में ही कन्हैया शैली में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की चाशनी में लपेट कर पेश कर रहे हैं!

जेएनयू की गहरी लोकतांत्रिक दृष्टि से आप बच नहीं पाएंगे! आपकी चालाकी पकड़ी जाएगी! शेष जो आपके साथ होंगे, उनकी लोकतांत्रिक चेतना की कलई भी खुल जाएगी! शेष, वाकपटुता पर फिदा बुद्धिजीवियों के लिए इतना ही कि जेएनयू छात्र संघ चुनाव को भाषण प्रतियोगिता मत समझिए! अगर ऐसा समझ रहे हैं तो आप पर तरस ही खाया जा सकता है!

-रिंकू यादव, भागलपुर

(दोनों टिप्पणियां फेसबुक से साभार ली गयी हैं।)

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