Friday, April 26, 2024

बस्तर डायरी-1: बेचाघाट में भी आदिवासियों ने डाला पड़ाव, कहा-पुल और कैंप नहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दो

बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में आदिवासी न केवल अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, बल्कि वे अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए होने वाली लड़ाइयों में भी आगे बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही नक्सल उन्मूलन के नाम पर उनका पुलिसिया उत्पीड़न भी किया जा रहा है। लिहाजा इसके खिलाफ भी प्रदर्शन उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है।

लेकिन आदिवासियों के बीच आयी जागरूकता ने उन्हें चेतना के एक दूसरे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है। जिसके चलते उनके बुनियादी अधिकार भी अब उनकी लड़ाई के मुद्दे बनने लगे हैं। लिहाजा मूलभूत सुविधाओं को लेकर जगह-जगह आंदोलन हो रहे हैं। इन्हीं सब घटनाओं पर आधारित ये बस्तर डायरी है जहां हम आपको इस बात से रूबरू कराएंगे कि भारत की राजाधानी से हजारों किमी दूर छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासियों को क्यों बोरिया-बिस्तर और राशन-पानी लेकर प्रदर्शन करना पड़ रहा है।

उत्तर बस्तर के इलाके के आदिवासियों को डर है कि पुल निर्माण के लिए कैम्प बैठाया जाएगा और फिर उनके प्राकृतिक स्रोतों को नष्ट कर दिया जाएगा। आदिवासियों का कहना है कि पूर्वजों के दौर से आदिवासी जल,जंगल,जमीन और प्राकृतिक खनिज संपदा की रक्षा करते आ रहे हैं और सरकार ये पुल हमारी सुविधा के लिए नहीं बल्कि इलाके के जल,जंगल,जमीन और खनिज संपदा को लूटने के लिए बना रही है।

इसीलिए बर्तन-भाड़ा-बोरिया बिस्तर लेकर तीन दिनों से कैम्प व पुलिया निर्माण के विरोध में आदिवासी यहां प्रदर्शन कर रहे हैं। 

आदिवासियों का यह अनिश्चित कालीन आंदोलन छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के पखांजुर क्षेत्र अन्तर्गत छोटेबैठिया के बेचाघाट में हो रहा है। बेचाघाट में 200 गांवों के हजारों की संख्या में महिला पुरुष पहुंचे हैं। 

प्रदर्शन में शामिल दुखू राम नरेटी कहते हैं, सरकार यहां पुलिया बनाने वाली है पुलिया बनाने के लिए कैम्प बैठायेगी और फिर हमारे जल,जंगल,जमीन को ले जाएगी। हम अपना जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। दुखू राम आगे बताते हैं कि यहां बिना ग्राम सभा के सरकार काम कर रही है। 

प्रदर्शन में ही शामिल नवलू राम ध्रुव कहते हैं कि  बीएसएफ कैम्प खुलने से सुरक्षाबल के जवान अंदरूनी इलाके में जाकर ग्रामीणों के साथ मारपीट करते है, न कि ग्रामीणों की सुरक्षा करते हैं। आदिवासी ग्रामीण जवानों से अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं। 

जहां एक ओर पिछले साल भर से दक्षिण बस्तर के बीजापुर सिलगेर में कैम्प के विरोध में ग्रामीण लगातार आंदोलन कर रहे हैं वहीं अब उत्त्तर बस्तर में भी कैम्प के विरोध में आदिवासी अनिश्चत कालीन विरोध में उतर गए हैं। 

बता दें कि इसी साल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वर्चुअल माध्यम से 15 करोड़ 89 लाख 91 हजार की लागत से पुल निर्माण की घोषणा की थी। यह पुल बन जाने से कांकेर जिले के साथ-साथ पड़ोसी जिला नारायणपुर भी जुड़ जाएगा और क्षेत्र के लोग नारायणपुर भी आवागमन कर सकेंगे। बताया जा रहा है कि पुल निर्माण से 150 से अधिक गांवों के लोगों का आवगमन सुलभ होगा। 

ग्रामीणों का कहना है कि अंदरूनी गांवों में बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने में  असफल रही सरकार अब पुलिया बनाकर जल,जंगल,जमीन और खनिज संपदा लूटने की तैयारी कर रही है। 

 ग्रामीणों का कहना है कि  जब तक सरकार अपने फैसले से पीछे नहीं हटती और बीएसएफ कैम्प खुलने और पुलिया बनाने का निर्णय वापस नहीं लेती तब तक वो यहां पर अनिश्चितकालीन धरने पर डटे रहेंगे।

वहीं पूरे मामले को लेकर जिला पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा का कहना है कि पुल निर्माण का ग्रामीण विरोध कर रहे हैं। अभी तक कैम्प स्थापित करने का आदेश नहीं आया है। ग्रामीणों से संवाद किया जा रहा है। 

जब आप यह खबर पढ़ रहे होंगे तब तक आदिवासी राशन पानी लेकर प्रदर्शन कर रहे होंगे। ठंड की इस भीषण ठिठुरन के बीच आदिवासियों के बच्चे और महिलाएं इस प्रदर्शन में शामिल हैं।

(बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।) 

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