Thursday, April 25, 2024

एमसीडी चुनाव : मोदी-शाह की प्रतिष्ठा और केजरीवाल के भविष्य की जंग

प्रदीप सिंह

मार्च महीने के अंत के साथ ही देश का मौसम मई-जून जैसा गरम हो गया है। मौसम का तापमान बढ़ने के साथ ही दिल्ली का राजनीतिक तापमान भी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। इसका कारण दिल्ली नगर निगम चुनाव हैं। दिल्ली के तीन नगर निगमों के  लिए  23  अप्रैल को चुनाव होना है। चुनावी मैदान में भाजपा,  आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और नवगठित स्वराज अभियान समेत कई दूसरे दल भी मैदान में हैं। लेकिन सबसे रोचक उपस्थिति आम आदमी पार्टी की है।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव समाप्त होने के बाद ही भाजपा दिल्ली नगर निगम चुनाव में सक्रिय हो गयी। दिल्ली नगर निगम में लगातार दस वर्षों से सत्ता में रही भाजपा ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। रामलीला मैदान में निगम चुनाव के लिए रखी गयी रैली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि निगम चुनाव जीत कर दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में हुई हार का बदला लेना है।

दिल्ली नगर निगम के चुनाव प्रचार में केंद्र सरकार के कई कैबिनेट मंत्री और सांसद तो दिल्ली की गलियों की धूल फांक ही रहे हैं। जल्द ही इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के रमन सिंह, महाराष्ट्र के देवेंद्र फणनवीस, गोवा के मनोहर पर्रिकर भी शामिल होंगे। भाजपा ने योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता और खास छवि को भुनाने के लिए उन्हें स्टार प्रचारक घोषित किया है।

भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न

ऐसे में यह सवाल उठता है कि, भाजपा एमसीडी चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों बना रही है? यहीं से दिल्ली में एमसीडी चुनाव की तपिश और भाजपा की रणनीति को समझा जा सकता है। लोकसभा चुनाव 2014 के बाद भाजपा को दिल्ली और बिहार चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल एक नैतिक आभा के साथ नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के सामने चुनौती बन कर सामने आए। दोनों राज्यों के चुनाव ने मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की रणनीति को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। भाजपा की यह हार उस समय हुई जब भाजपा और संघ के कार्यकर्ता खुलेआम यह कहने लगे थे कि अमित शाह की चुनावी रणनीति और सांगठनिक कौशल से दूसरी राजनीतिक पार्टियों को सीख लेनी चाहिए।

इस दौर में जब भाजपा दिनोदिन राजनीतिक रूप से अपनी बढ़त बनाये हुए है, कांग्रेस से लेकर राज्य स्तरीय पार्टी भाजपा के सामने कहीं टिक नहीं पा रही हैं, तब आम आदमी पार्टी दिल्ली में सत्तारूढ़ और पंजाब में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका मे हैं। जहां-जहां भाजपा सरकार है और विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां अरविंद केजरीवाल भाजपा के सामने चुनौती बन कर सामने आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा अरविंद केजरीवाल को उनके गढ़ में ही परास्त करके यह संदेश देना चाहती है कि आम आदमी पार्टी कहीं उसके मुकाबले में नहीं है।

दूसरा कारण दिल्ली की सत्ता का रणनीतिक महत्व है। जब देश के एक-एक राज्य में भाजपा की सरकार बन रही हो, ऐसे में केंद्रीय सत्ता के ठीक नाक के नीचे लाख अड़चनों के बाद भी केजरीवाल सरकार चल रही है। भाजपा विपक्ष पर निशाना साधते हुए यह प्रचार करती है कि विपक्ष अभी तक भाजपा की जीत को पचा नहीं पाई है। ठीक उसी तरह से भाजपा दिल्ली में अभी तक केजरीवाल की जीत को पचा नहीं पाई है।

तीसरा कारण यह है कि भाजपा एमसीडी में दस वर्षों से काबिज है। हारकर वह कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के इस आरोप को सही साबित नहीं होने देना चाहती कि दिल्ली नगर निगम भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है।

केजरीवाल के भविष्य का सवाल

दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी एमसीडी चुनाव में भाजपा को हरा कर राष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश देना चाहती है कि जहां पर विपक्ष मजबूत और पाक-साफ है वहां भाजपा को मुंह की खानी पड़ रही है। केजरीवाल यह भी देश और दिल्ली की जनता को बताना चाहते हैं कि दिल्ली की गद्दी पर गिद्ध दृष्टि लगाए भाजपा ने कैसे दस वर्षों में एमसीडी को भ्रष्टाचार और राजधानी को कूड़े के ढेर में तब्दील कर दिया है। निगम के सफाई कर्मचारियों, शिक्षकों और कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है।

ऐसे में लगातार दो बार एमसीडी चुनाव जीत चुकी भाजपा के सामने हैट्रिक लगाने की चुनौती है। दिल्ली नगर निगम चुनाव में इस बार बाजी किसके हाथ होगी, इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। नगर निगम के चुनावी मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय कर चुकी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय जहां भाजपा और कांग्रेस की रणनीति आम आदमी पार्टी को नजरंदाज करने की थी वहीं इस बार वे काफी सतर्कता बरत रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा का चुनावी अभियान राष्ट्रीय नेताओं के हाथों में है। ऐसे में दिल्ली नगर निगम चुनाव की अहमियत को समझा जा सकता है।

दिल्ली नगर निगम यानी ‘मिनी सचिवालय’

दिल्ली नगर निगम को मिनी सचिवालय कहा जाता है। कुछ सालों पहले तक दिल्ली की राजनीति और विकास का केंद्र टाउन हॉल हुआ करता था। कई मामलों में दिल्ली नगर निगम दिल्ली सरकार से ज्यादा अधिकार संपन्न था। दिल्ली में विधानसभा गठन के बाद धीरे-धीरे एमसीडी का रुतबा कम होता गया। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एमसीडी के प्रशासनिक अधिकारों को कम करते हुए इसे तीन भागों में विभक्त कर दिया। प्रशासनिक अधिकारों के कम होने के बावजूद राजनीतिक रूप से एमसीडी का असर बरकरार है। इसका सीधा कारण है कि एमसीडी की हार-जीत यह साबित कर देती है कि किस पार्टी का कितना जमीनी आधार है।

 

10 साल से भाजपा का कब्ज़ा

एकीकृत निगम पर भी पांच साल भाजपा रही तो तीन निगम हो जाने के बाद भी उस पर भाजपा काबिज रही। इस समय उत्तरी नगर निगम  के 104  वार्ड में भाजपा के  पास  67 , दक्षिणी नगर निगम के 104  वार्ड में  50  और पूर्वी नगर निगम के  64 वार्ड में से 35  भाजपा के पास हैं। तीनों निगमों में भाजपा काबिज है। भाजपा के खाते में पिछले दस सालों की उपलब्धियां और नाकामियां दर्ज हैं। शहर में वर्षों से सफाई कर्मचारियों के वेतन और राजधानी की साफ -सफाई का मुद्दा उठता रहा है।

भाजपा नेता मान रहे हैं कि तीनों एमसीडी में जो काम हुए हैं, साथ ही प्रधानमंत्री मोदी का जो जादू है, वह तीनों एमसीडी में फिर भाजपा को जितायेगा। मनोज तिवारी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी नेता व कार्यकर्ता को खासा खुश बताया जा रहा है। भाजपा नेताओं का मानना है कि उनके आने से पूर्वांचल व गरीब वोट भाजपा की ओर आएंगे, इसलिए निगम चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से उनका कोई मुकाबला नहीं है जबकि सच्चाई यह भी है कि मनोज तिवारी के आने से दिल्ली के वैश्य और पंजाबी मतदाता ने भाजपा से दूरी बना ली है। दोनों वर्ग भाजपा के परंपरागत आधार माने जाते रहे हैं।

कांग्रेस के लिए अस्तित्व का सवाल

कांग्रेस के लिए यह चुनाव अपने को मैदान में डटे रहने और पुनर्जीवित करने का है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन के हाथों में चुनावी कमान है। दस सालों से नगर निगम में सत्ता से दूर रही कांग्रेस अब किसी भी तरीके से चुनाव जीतने की रणनीति बनाने में लगी है। माकन ने भाजपा के दस साल के एमसीडी में शासन का लेखा-जोखा एक चार्जशीट के जरिये दिखाया है और कहा है कि एमसीडी पिछले दस सालों में पंगु हो चुकी है।

अरविंद केजरीवाल दिल्ली नगर निगम चुनाव जीतने पर दिल्ली को लंदन जैसा बनाने और गृहकर समाप्त करने का वादा करते हैं। आम आदमी पार्टी ने पंजाब चुनाव से सबक लेते हुए नगर निगम चुनावों में सिर्फ पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को ही टिकट दिया है। पार्टी के बड़े नेता मानते हैं कि पुराने कार्यकर्ता को टिकट देने से वो चुनाव में अपना सब कुछ दांव पर लगा देता है और चुनाव में ज्यादा मेहनत करता है।

स्वराज इंडिया ने भी ताल ठोंकी

एमसीडी चुनाव के लिए स्वराज इंडिया ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। स्वराज इंडिया के कर्ताधर्ता योगेंद्र यादव हैं। जो अरविंद केजरीवाल के साथ अन्ना आंदोलन के समय से ही जुड़े थे। स्वराज इंडिया के अधिकांश उम्मीदवार जनलोकपाल आंदोलन और इंडिया अगेंस्ट करप्शन से जुड़े कार्यकर्ता हैं।

हार-जीत देगी बड़ा संदेश

फिलहाल,  नजीब जंग, अनिल बैजल और नगर निगम के माध्यम से केंद्र सरकार अरविंद केजरीवाल पर राजनीतिक अंकुश लगाने में नाकाम साबित हुई है। ऐसे में वह दिल्ली की चुनावी राजनीति में आम आदमी पार्टी को हराकर अपनी हार का बदला और अपनी जीत का एक देशव्यापी संदेश देना चाहती है। ऐसे में दिल्ली नगर निगम का चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles